सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -12



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -12

उस परम भक्ति सम्मोहन की अवस्था में जाने कब तक पड़ा रहा मैं ! मुझे तो काल और समय का ध्यान भी ना रहा ! सूर्य की प्रातः कालीन कोमल रश्मियों ने आकर मुझे जगा सा दिया ! आँखे खुली , दूर नदी के उस पार बाल सूर्य झाड़ियों में खेलते दिखे ! अचानक मुझे अपनी स्थिति का आभास हुवा ! मेरी निगाहे बाबा को खोजती घूमी , और उनके आसान पर केंद्रित हो गई ! अलख बुझ चुकी थी , उसके अंगारे भी अब तो ठन्डे हो गए जान पड़ते थे ! बाबा अभी भी पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुवे थे ! आँखे बंद थी और होठो पे एक आनंददायक मुस्कान खिली हुवी थी ! चेहरा शांत था , मानो किसी गहन समाधी की अवस्था में हो ! तभी मुझे उनकी बगल में बैठे डोम राज दिखे , वो उकड़ू बैठे बाबा के परम शांत चहरे की और एक टक देख रहे थे !
अचानक मेरी निगाहे डोम राज के नेत्रो की तरफ गई , हे ईश्वर ,,,,, वो तो बाबा के सामने बैठे रो रहे थे ! किसी अज्ञात अनहोनी की आशंका से मेरा ह्रदय प्रकम्पित हो उठा ! मैं उठा और भाग छूटा चाचा श्री की और ! डोम राज पर मेरे इस दौड़ भाग का कोई असर नहीं पड़ा ! , वो तो बूत बने केवल एक टक उन्हें देखे जा रहे थे ! मैं पास पंहुचा और चाचा श्री को प्रणाम किया , ! लेकिन वो तो समाधी में लीन ही रहे ! मैंने उन्हें धीरे से उनके कंधे को छू कर उन्हें जगाने की कोशिश की , लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा ! मेरी घबराहट अब बढती ही जा रही थी ! किसी आशंका से ग्रसित होकर मैंने उनका कन्धा जोर से हिलाया !
मेरा कंधे का हिलाया जाना था की चाचा श्री पीठ के बल पीछे गिर पड़े , मेरा ह्रदय एक बार जोर से धड़का , ,, मैंने लपक कर उनकी नाड़ी परीक्छा की ,,,,,,,,,,,,, और मेरी आँखे भी एकाएक बरसने लगी !
चाचा श्री अपना पार्थिव शरीर छोड़ कर मातृ शक्ति में विलीन हो चुके थे ! गहरे संताप से मेरा ह्रदय विदीर्ण सा हो गया मुझसे रहा ना गया और में उनके पार्थिव शरीर से लिपट गया और दहाड़े मार मार उस वीरान स्मशान में रोने लगा ! पार्श्व में कही दमन जी और प्रहलाद जी की मुझे पुकारने की आवाज़ आती रही ,शायद सूर्योदय के पश्च्यात वो लोग मुझे खोजने निकल पड़े थे !
पर अब मुझे कहा होश था किसी चीज का ,

दमन जी और प्रह्लाद जी भी मुझे खोजते हुवे घटनास्थल तक आ चुके थे ! मुझे सन्यासी से लिपट कर रोता देख जैसे उन्हें मामले की गंभीरता का एहसास हो गया ! , दमन जी कोशिश करते रहे मुझे चाचा श्री से छुड़ाने का , लेकिन मैं फिर वापस लिपट जाता ! मेरा ह्रदय संताप से भरा था , केवल एक रात ही उस महान आत्मा का सानिध्य मिल पाया मुझे ! उसपर से उनकी पूर्व जन्म की यादें, उनकी गोद में बीता मेरा बचपन याद आता रहा , मेरी नासमझी और धृष्टताए याद आती रही , मेरा मेरे परिवार से किया गया छल याद आता रहा ,,,,,,,,,,, और मैं जार जार रोता रहा !

बुजुर्ग डोम राज ने दमन को इशारा कर दिया ,,,,,,, की मुझे कुछ देर रोने दे !
कुछ ३० मिनट बाद मैं कुछ सम्भाला , पार्थिव शरीर छोड़ा और खड़ा हुवा , दमन जल्दी से मेरे पास आये , मुझे गले से लगाया , ,, क्या हुवा पंडित , इतने व्यथित क्यों हो ?
दनम मेरे चाचा जी थे ये ,,,,, मेरी रुलाई फिर से फुट पडी !
दमन हक्के बक्के से रह गए , कुछ न समझ पाये , तो मुझे बस आपने से लिपटा लिया !

शव का इतना आकर्षण क्यों साधक ? ,,,,, अचानक बुजुर्ग डोम राज बोल पड़े !
मैं जैसे सोते से जागा,,,,,,,,, सही कहा उस मृत्यु के रंगमंच के चौकीदार ने , अब ये चाचा श्री कहा थे , मात्र शव था ! वो तो अब तक माँ की गोद में खेल रहे होंगे , मुक्ति मिल गई थी उस महायोगी को इस नश्वर संसार से !
सागर , अब तुम्हे वो काम करना है जिसके लिए तुम्हे नियति यहाँ खींच लाई है , डोम राज का स्वर गंभीर था !
मैं कुछ समझा नहीं महाराज ,,,,,,,,, मैं उनकी तरफ देखता रहा !
तुम्हे आपने चाचा श्री के शव का अंतिम संस्कार करना है , कपाल क्रिया करनी है ! डोम राज ने बताया

"आप को पहले से सब पता था ना महाराज " , मैने दुखी मन से उलाहना सा दिया !
हां साधक , उस महा योगी ने मुझे सब कुछ बता दिया था",,,,,, उनका स्वर अब भी गंभीर था
मुझे क्यों नहीं बताया चाचा श्री ने ,,,,, और आप ने भी तो नहीं बताया मुझे कुछ ,,,, ,,,,,,क्या बिगड़ जाता आपका बता देते तो ,,,,,,,,,,,,,,,,, अरे एक दिन तो रोक लेता उन्हें , एक दिन तो उनके पैर दबा लेता मैं ! कुछ तो सेवा कर लेता मैं ,,,,,, कुछ तो मेरे पाप कट जाते ,,,, मेरा गला एक बार फिर से भर आयाथा , आँखे ना चाहते हुवे भी बरस पडी थी !

डोम राज मेरी तरफ आये ,,, मुझे सहारा सा दिया ,,, और बोल पड़े ,,,,,,, "उनकी यही इक्षा थी सागर , वो जानते थे की तुम विव्हल हो जाओगे , बड़ा इंतज़ार किया था उन्होंने , सैकड़ो वषो तक स्थूल शरीर की कैद में वो महायोगी केवल इस लिए रहा की वो महाग्रंथ उसके उत्तराधिकारी के हवाले कर सके ,, और अपने एक मात्र सांसारिक सम्बन्धी के हाथो उनका अंतिम संस्कार संभव हो ! अन्यथा वो विकट योगी तो कब का शक्ति लोक परस्थान कर गए होते ,,,,,,,,,,,"

"
महासाधको के निर्वाण पर शोकसंतप्त नहीं होते साधक , शव का कैसा मोह ,,,, चलो ,, अपना कर्म करो सागर ",,,,,,, वो मृत्यु दूत मुझे जिंदगी का जटिल उपदेश दे रहा था !

मैं भारी मन से शव के पास से हटा , चार पांच डोम राज के सहायकों ने शव को उठा लिया और शमशान के अंदर की तरफ जाने लगे ! और मैं लुटा पीटा अपने पैर घसीटता उनके पीछे चलता रहा !
मुझे याद आने लगे चाचा श्री के विभिन्न मौकों पर कहे गए शब्द,,,,,,, ( वैसे भी तुम्हारे बिना मै रुक्सत नही हो सकता था ) ,,,,,मुझे याद आने लगा डोम राज का रात्रि में उन्हें अकेला ना छोड़ने की जिद ,,,,,,,,,,,, चाचा श्री के महा प्रयाण के बारे में घटनाएं इंगित करती रही थी , मैं ही मुर्ख था जो ना समझ पाया था !

तभी मुझे आपने पीछे से किसी के तेज़ी से हसने की आवाज़ आयी ,,,
मैं मुड़ा,, पीछे देखा ,,,,,,,
सेरिया मसान नदी किनारे खड़ा हस रहा था !
मैं , रोता हुवा शव के पीछे पीछे चलता जा रहा था ,,,,,

और वो ,,,,,,,मृत्यु दूत का कनिष्ठ सेवक,,,,,,,,,,, ,मृत्यु की विजय पर मेरे पीछे खड़ा कहकहे लगता रहा ! दमन जी और प्रह्लाद जी भी मुझे खोजते हुवे घटनास्थल तक आ चुके थे ! मुझे सन्यासी से लिपट कर रोता देख जैसे उन्हें मामले की गंभीरता का एहसास हो गया ! , दमन जी कोशिश करते रहे मुझे चाचा श्री से छुड़ाने का , लेकिन मैं फिर वापस लिपट जाता ! मेरा ह्रदय संताप से भरा था , केवल एक रात ही उस महान आत्मा का सानिध्य मिल पाया मुझे ! उसपर से उनकी पूर्व जन्म की यादें, उनकी गोद में बीता मेरा बचपन याद आता रहा , मेरी नासमझी और धृष्टताए याद आती रही , मेरा मेरे परिवार से किया गया छल याद आता रहा ,,,,,,,,,,, और मैं जार जार रोता रहा !

बुजुर्ग डोम राज ने दमन को इशारा कर दिया ,,,,,,, की मुझे कुछ देर रोने दे !
कुछ ३० मिनट बाद मैं कुछ सम्भाला , पार्थिव शरीर छोड़ा और खड़ा हुवा , दमन जल्दी से मेरे पास आये , मुझे गले से लगाया , ,, क्या हुवा पंडित , इतने व्यथित क्यों हो ?
दनम मेरे चाचा जी थे ये ,,,,, मेरी रुलाई फिर से फुट पडी !
दमन हक्के बक्के से रह गए , कुछ न समझ पाये , तो मुझे बस आपने से लिपटा लिया !

शव का इतना आकर्षण क्यों साधक ? ,,,,, अचानक बुजुर्ग डोम राज बोल पड़े !
मैं जैसे सोते से जागा,,,,,,,,, सही कहा उस मृत्यु के रंगमंच के चौकीदार ने , अब ये चाचा श्री कहा थे , मात्र शव था ! वो तो अब तक माँ की गोद में खेल रहे होंगे , मुक्ति मिल गई थी उस महायोगी को इस नश्वर संसार से !
सागर , अब तुम्हे वो काम करना है जिसके लिए तुम्हे नियति यहाँ खींच लाई है , डोम राज का स्वर गंभीर था !
मैं कुछ समझा नहीं महाराज ,,,,,,,,, मैं उनकी तरफ देखता रहा !
तुम्हे आपने चाचा श्री के शव का अंतिम संस्कार करना है , कपाल क्रिया करनी है ! डोम राज ने बताया

"
आप को पहले से सब पता था ना महाराज " , मैने दुखी मन से उलाहना सा दिया !
हां साधक , उस महा योगी ने मुझे सब कुछ बता दिया था",,,,,, उनका स्वर अब भी गंभीर था
मुझे क्यों नहीं बताया चाचा श्री ने ,,,,, और आप ने भी तो नहीं बताया मुझे कुछ ,,,, ,,,,,,क्या बिगड़ जाता आपका बता देते तो ,,,,,,,,,,,,,,,,, अरे एक दिन तो रोक लेता उन्हें , एक दिन तो उनके पैर दबा लेता मैं ! कुछ तो सेवा कर लेता मैं ,,,,,, कुछ तो मेरे पाप कट जाते ,,,, मेरा गला एक बार फिर से भर आयाथा , आँखे ना चाहते हुवे भी बरस पडी थी !

डोम राज मेरी तरफ आये ,,, मुझे सहारा सा दिया ,,, और बोल पड़े ,,,,,,, "उनकी यही इक्षा थी सागर , वो जानते थे की तुम विव्हल हो जाओगे , बड़ा इंतज़ार किया था उन्होंने , सैकड़ो वषो तक स्थूल शरीर की कैद में वो महायोगी केवल इस लिए रहा की वो महाग्रंथ उसके उत्तराधिकारी के हवाले कर सके ,, और अपने एक मात्र सांसारिक सम्बन्धी के हाथो उनका अंतिम संस्कार संभव हो ! अन्यथा वो विकट योगी तो कब का शक्ति लोक परस्थान कर गए होते ,,,,,,,,,,,"

"
महासाधको के निर्वाण पर शोकसंतप्त नहीं होते साधक , शव का कैसा मोह ,,,, चलो ,, अपना कर्म करो सागर ",,,,,,, वो मृत्यु दूत मुझे जिंदगी का जटिल उपदेश दे रहा था !

मैं भारी मन से शव के पास से हटा , चार पांच डोम राज के सहायकों ने शव को उठा लिया और शमशान के अंदर की तरफ जाने लगे ! और मैं लुटा पीटा अपने पैर घसीटता उनके पीछे चलता रहा !
मुझे याद आने लगे चाचा श्री के विभिन्न मौकों पर कहे गए शब्द,,,,,,, ( वैसे भी तुम्हारे बिना मै रुक्सत नही हो सकता था ) ,,,,,मुझे याद आने लगा डोम राज का रात्रि में उन्हें अकेला ना छोड़ने की जिद ,,,,,,,,,,,, चाचा श्री के महा प्रयाण के बारे में घटनाएं इंगित करती रही थी , मैं ही मुर्ख था जो ना समझ पाया था !

तभी मुझे आपने पीछे से किसी के तेज़ी से हसने की आवाज़ आयी ,,,
मैं मुड़ा,, पीछे देखा ,,,,,,,
सेरिया मसान नदी किनारे खड़ा हस रहा था !
मैं , रोता हुवा शव के पीछे पीछे चलता जा रहा था ,,,,,
और वो ,,,,,,,मृत्यु दूत का कनिष्ठ सेवक,,,,,,,,,,, ,मृत्यु की विजय पर मेरे पीछे खड़ा कहकहे लगता रहा !

इसी के साथ ये सूत्र समाप्त होता है !
मेरे सभी मित्रो को सूत्र भ्रमण और उनके उत्साह वर्धन के लिए आभार !
मेरी इतनी वर्तनी की अशुद्धियाँ आपने झेली ,, इसके लिए भी आभार


सभी को शुभकामनाये !
यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !




Comments

  1. Bhsishahab is kahani ke lekhak kon hai . Kya unki aur bhi koi rachanaye hain

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