सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -08



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -08









सन्यासी परिक्रमा पथ पर चलते हुवे आँखों से ओझल हो चुके थे!
मैंने दमन की ओर देखा ,,,, इस ज्ञान वर्षा से उनका मुंह अभी तक खुला का खुला ही था !
दमन जी चले ,,,, " मेने दमन की और देख के कहा .!
,, हआ ,,, हा,,,,,,उनकी तन्द्रा टूटी ,,,, " चलो पंडित जी , महात्मा तो अपने कर्म कांड में दिन भर व्यस्त रहेंगे "

हम यु ही रात की बाते करते करते ध्वस्त मंदिर से बाहर आये और शमशान में टहलते हुवे सड़क की तरफ चल दिए !

गर्मियों की वो सुबह बड़ी सुहानी थी ! सुबह की लालिमा पूर्व दिशा में छाई हुवी थी !. सूर्य देव् अभी भी शीतल ही थे और मंद गति से अपने व्योम पथ पर अग्रसर थे, मानो उनके रथ के अलसाए से घोड़े अपनी हाथ पैर खोल रहे हो ! मंद मंद शीतल समीर चहरे से टकराकर मन ने नवजीवन की उमंग भर रही थी .! पंछी गण कोलाहल करते अपने घोसलों को छोड़ रिज्जक खोजने निकल पड़े थे .!

शमशान रूपी मृत्यु के साम्राज्य में प्रकृति का नव जीवन और नव सृजन का जीवंत प्रदर्शन वातावरण में विहंगम छटा बिखेर रहा था !

जिप्सी तक आये तो प्रह्लाद सिंह जी और रतन जी को बाहर ही टहलता पाया .! हमें आता देख दोनों ही हमारी तफक लपक लिए ! रतन जी के चहरे से तो साफ लग रहा था की वो रात भर सोये नहीं है .! हा प्रह्लाद सिंह जी सामान्य थे .!
"
अंकल ठीक तो है न",,,,, , मैंने पास आकर प्रहलाद जी से पूछा .!
हा जी सब अच्छा है , बस रतन साहब थोड़े ज्यादा ही चिंतित से हो रहे थे . उन्होंने मुस्कुराते हुवे उत्तर दिया
मैंने रतन जी को नमस्ते की , वो दमन से गले मिल रहे थे .
"
रतन जी , "पहलवानो" का गला मिलन समारोह सम्प्पन हो गया हो तो गाड़ी में चल कर कुछ पानी वगैरह पी लिया जाये !",,,,,,,,,, .मैंने कनखियों से दमन को देखते हुवे पहलवान शब्द पर कुछ ज्यादा जोर डाल कर कहा !
दमन मेरी "चुटकी" को फ़ौरन समझ गया ,,,,,, एक नकली हँसी हस कर उन्होंने अपनी झेंप मिटाई और बोले , "चलो जी , मैंने कौन सा आप को रोक रखा है ! बोतल से प्यास ना बुझे तो बगल में ही नदी है , उसमे छलांग लगा देना .! आपका गला और आप , दोनों तर हो जाओगे "
दमन की खीज देख , और उनकी बाते सुन हम तीनो हस पड़े , हमेशा की तरह दमन भी हँसने लगे , और हम सभी बढ़ चले जिप्सी की ओर .!  

रतन जी के घर पहुंचते पहुंचते काफी दिन निकल आया ! सूर्य देव भी प्रखर हो आये थे ! वो तो शुक्र है जिप्सी के वातानुकूलन संयंत्र का की हम आराम से थे ,! ,,,, इतने आराम से की दमन जी आगे की सीट पर और रतन जी मेरे साथ पीछे की सीट पर अधलेटे से खर्राटे भी बजाने लगे थे.!
और मैं बाहर देखता अभी भी उन महात्मा के मेरे पूर्व जन्म सम्बंधित कथन में खोया हुवा था ! मुझे समझ नहीं आ रहा था की उन्होंने आज ही सब कुछ विस्तार से क्यों नहीं बता दिया ! कौन सी नियती मुझे यहाँ खींच लाई है ??????? !

रतन जी ने फ़ोन पर ही शायद नाश्ते के लिए बोल दिया था ! . हमारे पहुंचने तक लगभग सब कुछ तैयार था और कुर्सियां भी दालान में लगाई जा चुकी थी .
"
पंडित जी , कृपया हाथ मुंह धो दातुन कर कुछ जलपान कर ले , स्न्नान ध्यान तो होता रहेगा!" . रतन जी ने पेशकश की!
"
सही कहा भाई , पेट में तो चूहे कूद ही रहे है ",,,,,,,, दमन जी बोले , उनको शायद भूख ज्यादा ही लग आयी थी
दमन जी पतले दुबले होने की वजह से एक बार में कम मात्र खाते है ,! इस लिए उन्हें भूख भी जल्दी ही लग जाती है .
"
नहीं रतन जी , गृहस्त गृह में भोजन के लिए मैं और दमन अभी उपयुक्त नहीं .! शमशान प्रवास के पश्च्यात हमें पहले स्न्नान करना ही होगा . " ,,,,,,,,मैंने रतन जी को समझाया .
दनम मेरी बात तुरंत समझ गए , दिमिका और नटुआ का स्पर्श , कुछ और प्रेतों का स्पर्श भी हुवा होगा . स्न्नान जरूरी था ! स्न्नान इत्यादि न करने से हमारा तो कुछ नहीं होता , परन्तु रतन जी के गृह में पूजित कुछ देव गण जरूर कुपित तो सकते थे .
तो मित्रो , स्न्नान के पश्चयात दाल भरी कचौड़िया , दही के साथ उड़ाई गयी . पेट भरा तो रात भर के जगे हम सब लोग शीग्र ही निद्रा देवी के आगोश में खो गए !
दोपहर को सो कर उठे तो दोपहर भी ढलने को आई थी .! रतन जी तो पहले उठ गए थे , पर उन्हेंने हमें नहीं उठाया
था ! सोने दिया था उन्होंने बाकी हम सब को ! जानते थे की रात भर के जगे है , और शायद आज की रात भी जगना ही है

सो के उठ गए जी बाकी सभी लोग ,,,,,,और हाथ मुंह धोए ! तब तक बैठक में खाना लगा दिया गया था .! मध्य एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के दोपहर के भोजन में बहुदा चावल दाल तो रहता ही है , आज तो चावल दाल के साथ बाजरे की सोधी सोधी मोटी खस्ता रोटिया भी थी,,,, आलू गोभी की सब्जी के साथ ! तड़के वाली मसूर की दाल की खुशबु अलग ही दीवाना कर रही थी . !
एक छोटी सी कटोरी में घर का देसी घी पिघला कर रखा हुवा था .! बाजरे की रोटी के साथ देसी घी का आनंद ही कुछ और है ! और तो और साथ में आम के केरी की खट्टी तीखी चटनी .! बस जी , खाने पर बैठने से पहले ही लगा की लार टपक जायेगी .!
सो मित्रो , हम सब तो बस टूट ही पड़े खाने पर , किसी ने भी बिना तीन डकार मारे साँस भी न लिया .! दमन जी एक बार में काम खाते थे , अतः वो मेरे और रमन जी के भोजन समाप्त करने का इंतज़ार करते रहे. !
भोजनोपरांत अपना अपना पेट पकड़े हम दालान में आ गए और कुछ लोग खटिया पर और में दीवान पर पलर ही लिए जी ! मुंह में अभी तक घुले जायके और अपने .पेट के वजन के सामने कुछ भी बात करने की हिम्मत न थी .! कम से कम एक घंटा,, हा , हु करते बीत गया ! जब पेट का खाना थोड़ा नीचे उतरा तो बाते शुरू हुवी .

सुबह सबेरे गाड़ी में ही रतन जी को बीती रात की बताने लायक बाते संछेप में बता दी थी ! वो महात्मा से तो बड़े प्रभावित हो गए पर शमशान में मुझे अकेले पूर्णतया असुरक्चित जाने की बात सोच के डर भी गए थे !
"
पंडित जी , ये शमशान में इतने शक्तिशाली सन्यासी के समक्छ असहाय हो जाना , तर्क से परे है!" . रतन जी ने अपनी शंका फिर जाहिर की .
"
सही कहा रतन जी , पंडित को अकेले ना छोड़ना है हमें " ,,,, दमन भी बोल पड़े ,,, वो अभी तक दुविधा में ही थे
"
केवल एक रात के शक्ति प्रदर्शन और कुछ ज्ञान की बाते बोल देने भर से किसी पर इतना विश्वाश ठीक नहीं "
दमन ने अपनी बात पूरी की .
"
दमन , शक्ति प्रदर्शन का आकलन करो , नटुआ जिसका नौकर हो ,,,,,, जो रकतोदित का केवल इक्छा शक्ति से संहार कर दे ,,,,,,, हमें सभी कवचो के साथ मंत्र पाठ के समय जड़ कर देने का बल, क्या साधारण है ! और उसपर वो ज्ञान जो धरा पर विरले ही उपलभ्द हो ! इनते बड़े ज्ञानी और शक्ति पुंज को क्या किसी धोके , या प्रपंच की जरुरत है . . " मैंने वृष्टित रूप में सारा दृष्टान्त उनके सामने रखा !
"
बात तो आपकी ठीक है पंडित जी , पर बस अकेले छोड़ने को दिल नहीं कर रहा " , दमन बोले ,, वो कहा इतनी जल्दी मान जाने वाले नहीं थे !
पंडित जी , ठीक है शमशाम में आपको अकेले जाना है , पर हम सब सब कवचो के साथ शमशान में अपनी गाड़ी में तो बैठे रह सकते है न , रतन जी ने बीच का रास्ता सुझाया .
"
मित्रो , उसका कोई भी फायदा नहीं होने वाला, और बेकार में आपकी रात काली होगी , सो अलग !",,,,,, मैंने फिर से मना करना चाहा
पंडित जी , कुछ नहीं सुनना मुझे , हम लोग वही शमशान के पास गाड़ी में रहेंगे . , और वैसे भी हमारी गाड़ी पूर्णतया सुरक्छित है . , दमन ने फैसला सा सुनाया ,,,,,, दमन के अंदर से अचानक " ठाकुर रिपुदमन सिंह " जाग उठे थे !

मैंने भी और हुज्जत करना ठीक ना समझा ,!
और जी ,, फैसला हो गया की सभी लोग शमशान तक तो चलेंगे , आगे मैं अकेला जाउगा , बिना किसी कवच के , बिना किसी पारलौकिक प्राणी के संरक्छन के

दोपहर बीती , शाम घिर आयी ! परस्थान की तैयारियां होने लगी .
मेने भी एक बार पुनः स्नानादि कर के अपने इष्ट का ध्यान कर लिया था ! मंत्रो पर धार देने की आवश्यकता तो थी नहीं , बस गौरी माँ से अपनी और अपने मित्रो की सुरक्छा की प्रार्थना करनी थी , वो कल ली मैंने !

बाकी लोग भी अपने अपने अपने ढंग से तैयारियों में वयत हो गए थे ! प्रह्लाद जी ने जिप्सी चेक कर ली थी ! रतन जी ने घर से ४ आदमियों का भोजन पैक करवा लिया था ! दमन जी ने मेरे सहयोग से हमारे प्रबलतम तांत्रिक कवच धारण कर लिए थे !
भाई इतने सजने सवरने की क्या जरुरत है , """" मैंने दमन को ढेर सारे प्रबल कवच धारण करते देख कर चुटकी ली!
"
भाई , हो सकता है की तुम्हारे उन पुरखे को हमारी याद आ जाये और हमें भी शमशान में प्रवेश करना पड़े "दमन से सामान्य स्वर में उत्तर दिया .
"
नहीं दमन जी , चाहे कुछ भी हो जाए आप लोगो में से कोई भी सूर्योदय से पूर्व , श्मशान में प्रवेश नहीं करेगा" मैंने कहा
दमन को देख कर ऐसा नहीं लगा की उन्होंने मेरी बातो पर तनिक भी ध्यान दिया हो !
इस बार में उनके पास तक गया , उनका हाथ अपने हाथ में लिया और बोल ,,,," मेरे साथ कवच नहीं तो क्या हुवा , मंत्र और सिद्धियाँ के साथ गुरु का आशीर्वाद तो रहेगा ही . में अपनी सुरक्छा में समर्थ हु दमन और वैसे भी सन्यासी शत्रु नहीं है ! , बस आप के यहाँ कोई लापरवाही नहीं होनी चाहिए ,!
कुछ सोचते हुवे उन्होंने गर्दन " हा " में हिलाई ! लेकिन मुझे लगा की वो मेरी बात से अभी भी पूर्ण सहमत नहीं है .!
अब उन्हें समझने का और समय तो था नहीं , हमने आपने कक्छ का दरवाज़ा खोल और राहदानी में चलते द्वार पर आ गए जहां जिप्सी सफर के लिए तैयार खड़ी थी !

घर से शमशान तक का सफर शांति से ही कट गया ! किसी ने कोई और बात करने की कोशिश नहीं की . वातावरण में आगे की घटना की अनिश्चितता से होने वाला तनाव स्पष्ट दृतिगोचर हो रहा था .!
शमशान तक पहुंचते पहुंचते अच्छी खासी रात घिर आयी थी ! जिप्सी तय जगह पर खड़ी कर दी गई और अब मेने परस्थान के लिए अपना अंगरखा भी उतार कर गाड़ी में दाल दिया ! . अब मेरे शरीर पर केवल एक काले रंग का लगोत्त ही था ,,,,. एक पेंसिल टोर्च जरूर ले ली थी , बाकी कुछ नहीं . हा ' आडोमास लोशन पुरे शरीर पर अच्छी तरह लेपित कर लिया था ! क्योंकि मित्रो ये अनपढ़ मच्चर कोई तंत्र मंत्र नहीं मानते ! न ही इन्हे सिद्ध ही किया जा सकता है ! और अपनी पर आ जाए तो आपकी पूरी रात काली कर दे .!
जिप्सी से उतरने से पहले मैंने सभी लोगो को वापस एक बार जिप्सी में ही बने रहने की हिदायत दी ! वैसे मुझे पता था की इन सामान्य लोगो को होने वाली किसी भी बड़ी से बड़ी पारलौकिक घटना का एहसास भी नहीं हो सकता .! उन घटनाओं को देखने और महसूस करने के लिए एक स्तर की सिद्धि तो चाहिए ही होती है , वरना , आप के बगल से महा पिशाच भी गुजर जाये और वो न चाहे तो आपको पता भी नहीं चलेगा .!

मित्रो से हाथ मिला कर सबसे विदा ली मैंने ,,,! सबकी आँखों में चिंता की लकीरे मुझसे अपना ख्याल रखने की गुजारिश करती सी लग रही थी .! अंततः में और दमन जिप्सी से नीचे उतरे और चल पड़े शमशान की ओर ,
दमन साधारण शक्तियों के लिए पूरी तरह से संरकचित थे अतः वो शमशान के गेट तक आ सकते थे . !
शमशान की सीमा आते ही मैंने दमन को गले लगकर विदा दी .
"
पंडित , यही है हम लोग , कुछ चिंता ना करना.,,,,,,,, समस्या होने पर जोर से आवाज़ लगाना ",,,,, दमन जी गले लग कर बोल उठे . उनकी आवाज़ में दोस्ती की अमूल्य मिठास थी ,
कोई चिंता नहीं दमन , बस कोई बेवकूफी नहीं करना , ,,, मैंने एक बार फिर दमन को चेताया,,,, पीछे मुड़ा और चल पड़ा शमशान के अंदर की और .!
दमन वही खड़े तबतक मुझे देखते रहे , जब तक की मैं शमशान के अँधेरे में घुल नहीं गया , बस मेरे पेंसिल टोर्च की पतली सी रोशनी ही उन्हें मेरे वहा होने का कुछ देर और संकेत करती रही .

दमन की छोड़ उस घनघोर शमशान में मैं अंदर की तरफ आगे बढ़ चला ! तारकोल की तरह का काला गहन अँधेरा और उसमे दूर नदी के किनारे लगभग जल चुकी चिता के सुलगते अंगारो से निकला मरियल सा प्रकाश वातावरण को और भयावह बना रहा था ! दुबला पतला चन्द्र बादलों में छिपा यमराज की घूरती आँख सा प्रतीत हो रहा था ! शमशान के किनारे के वृक्छो से गुजरती हवा भी सन्नाटे के शोर की तरह कानो में चुभ रही थी ! ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सैकड़ो प्रेत आस पास की झाड़ियों में छुप कर फुसफुसा रहे हो .!

पेन्सिल टोर्च की रोशनी में मैं अंदाजे से कीकर के पेड़ की तरफ बढ़ाना शुरू किया ! मैंने निशाचर पारलौकिक जीवो की आहट लेने के लिए चारो तरफ नजरे घुमाई ! लेकिन मुझे कुछ भी एहसास नहीं हुवा ! अबतक मसान के सेवक तो मुझे ताड़ने आ जाने चाहिए थे ! और वैसे भी मैं सुरक्छा विहीन था और उसकी गंध उन्हें लग चुकी होगी !

किसी सामान्य मनुष्य पर मसान के सेवक या प्रेत तब तक वार नहीं करते जब तक वो मनुष्य किसी कुकृत में लिप्त नहीं होता , लेकिन तांत्रिको की समस्या अलग होती है ! उनका हमारे साथ चूहे बिल्ली का खेल चलता रहता है ! तंत्र कवचो के बिना कभी कभी अचानक होने वाल प्रकोप मुश्किल खड़ा कर सकता है ! मैंने प्रारंभिक सुरक्छा मंत्रो का जाप कर लिया था पर सावधानी जरूरी थी .!


पेन्सिल टोर्च की रोशनी में आगे बढता मैंने फिर से चारो दिशाओं में दृष्टि पात किया ! अलौकिक जीवो की सुगबुगाहट तो महसूस हुवी पर वो डरे सहमे से शमशान के कोनो में दुबके हुवे से प्रतीत हुवे थे ! किसी के भी स्वक्चन्द विचरण का नामोनिशान मैजूद नहीं था ! लगता ही नहीं था की ये कल वाला बही जागृत शमशान है जहां मसान और प्रेत गण अपनी पूरी योनि जनित उदंडता के साथ सक्रिय थे .!
कुछ था जो उन्हें इस हद तक आतंकित किये हुवे था की सभी के सभी अपने बिल में दुबके एक कवच विहीन तांत्रिक के पास आकर शरारत करने की कोशिश भी नहीं कर रहे थे .!

मैं बिना किसी रोक टोक के चलता हुवा ध्वस्त मंदिर के दववजे तक पहुंच गया जहां डोम राज मुझे मेरा इंतज़ार करते मिले ! शायद बाबा के किसी खबरी ने उन्हें पहले से ही सूचित कर दिया था !
यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !






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