सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -10


 सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -10
पूजा की पूरी तैयारियां हो चुकी थी ! डोम राज ने काले रंग का एक युवा और बलिष्ट अज ला कर बलि वेदी के पीछे खड़ा कर दिया था !
महात्मा ने आगे बढ़ कर विग्रह के दोनों तरफ एक जैसे दो पंचमुखी दीप प्रज्वलित किये , फिर मंत्र पाठ करते हुवे एक एक कर पूजन सामग्री विग्रह को अर्पित करना शुरू किया .! विशिष्ट सामग्री के लिए वो केवल पीछे देखते और मैं फ़ौरन उनका अभिप्राय समझ जाता और वो सामग्री प्रस्तुत कर देता .! आरती पात्र में सहस्त्र दीप माल को प्रजवलित किया एवं आरती पात्र को मूर्ती के बाएं हाथ की तरफ रख कर डोम राज को कुछ इशारा किया !
डोम राज के हाथो में वो बलिष्ट अज मदमस्त चाल से चलता मूर्ति के सामने तक आया .! सन्यासी ने एक आख़िरी बार अज का पूर्ण तांत्रिक निरिक्षण किया और संतुष्ट होने पर बलि पूजन शुरू कर दिया ! अज को सिंदूर का टीका किया गया , पैरो में फूल चढ़ाए गए , गले में फूलों की माला पहने गई , मिष्ठान अर्पित किया गया जिसे उसने बड़े प्रेम से खाया , तदोपरांत उसे ठंडा स्वक्छ पानी पिलाया गया ! अब तक अज, बलि पूजा के प्रभाव में आकर थिशिल हो झूमने लगा था !
बलि पूजन के पश्च्यात , बाबा ने मुझे इशारा किया , मैं और डोम राज बलि वेदी तक गए और अज को एक झटके में अर्पण कर दिया ! समूचा रक्त एक पात्र में इकट्ठा किया जाने लगा और उधर महात्मा ने घनघोर स्वर में आरती शुरू कर दिया !
मैं अज मुंड लेकर मूर्ति तक आया और उसे विग्रह के समक्छ मंदिर के फर्श पर रख दिया ! फिर डोम राज से रक्त पात्र लिया और महात्मा के निर्देशानुसार मूर्ति के चरणों में रक्त अर्पित करके पात्र को मूर्ति के दाहिनी तरफ रख कर महात्मा के पास जा खड़ा हुवा .! महात्मा तन्मयता से आरती के मंत्रो का उच्चारण करते हुवे आरती करते रहे !

सहसा , महात्मा ने आरती का थाल मेरे हाथो में थमा, मुझे आगे की आरती का सञ्चालन करने को कहा
मैं निर्देशानुसार आगे बड़ा ,आरती का थाल हाथ में लिया , और महात्मा के स्वर में स्वर मिला कर मंत्र पाठ करता आरती करने लगा !
पांच सौ साल पुराण इतिहास उस मंदिर के ध्वस्तवशेषो के बीच दोहराया जा रहा था , बस नियती ने नाटक के पात्र बदल दिए थे !

आरती पूर्ण होने के बाद हमने आरती और विग्रह को नमन किया और रक्त प्रसाद ग्रहण किया ! विग्रह नमन के बाद महात्मा मेरी तरफ घूमे और बोले ,,,,,"सागर , मूर्ति विसर्जन की पूजन विषय विधि प्रारम्भ करो , "
'
विषर्जन ?? '... मैं तनिक चौका.!
'
हा पुत्र सही सुना तुमने , संस्थापित विग्रह का विसर्जन आवश्यक होता है ', ,,, महात्मा ने उत्तर दिया
'
लेकिन चाचा श्री , फिर कल से पूजन कहा होगा ? ',,,,,,,,,मेरे प्रश्न जारी थे !
'
वो भी होगा पुत्र , पहले तुम अतिशिग्र विसर्जन पूजन सम्पान करो ',,,,, महात्मा ने कहा
मैं फिर से विग्रह की और मुद्दा , प्रणाम किया और , विसर्जन की विधि शुरू कर दी , आरती तो पहले ही सम्पान की जा चुकी थी , अतः कुल १५ मिनटो में ही पूजा सम्पन हो गयी और मूर्ति का स्थान थोड़ा सा परिवर्तित कर के छोड़ दिया गया !
'
सागर , वो रक्त पात्र ले आओ' ,,,,,,,,, महात्मा ने अगला आदेश दिया
मैंने रक्त पत्र हाथो से उठाया और महात्मा के समक्छ खड़ा हो गया !
महात्मा में सर्व प्रथम अपने त्रिशूल को रक्तभिषेखित किया , अपना और मेरा रक्त तिलक किया फिर मंत्र पड़ते हुवे अपने विभिन्न अंगो पर रक्त मलते गए ! रक्त संरक्षण प्रयोग में अपने आपको प्रासादिक रक्त से लेपित करने का प्रयोग है , पर महात्मा का मंत्रोचारण तो पूर्णतया अलग ही था ! ये किसी भी हाल में रक्त संरक्षण प्रयोग, ! ,,,
शायद कोई उच्च कोटि की शुध्धीकरण,,,,,,, या कुछ और
महात्मा का रक्त अभिलेपन संपन्न हुवा तो महात्मा ने वो रक्त पात्र अपने हाथो में ले लिया और फिर शुरू हुवा मेरा रक्तभिषेक ,,,, मंत्र चलते गए , लेपन होता रहा . सरे अंगो को एक एक कर रक्त अभिलेपित किया गया .!
"
करिया ,,,,, इधर आ रे " अब चाचा श्री ने डोम राज को आप ने पास बुलाया
आज्ञा , महाराज ,
घुटनो पर बैठ ,,,,, सन्यासी बोले
महात्मा अंजलि में रक्त भर कर मंत्र पाठ करते हुवे डोम राज के सर पर रक्त की छींटे मारते रहे !
करिया , हो जायेगा जो तूने सोचा है ! महात्मा ने मानो आशीर्वाद दिया !
बाबा ,,,, आपने तो दर्शन देकर मेरा जन्म पहले ही सफल कर दिया ,,, अब मेरे परिवार को भी आपने पूर्ण कर दिया ! जय हो ,,, जय हो प्रभु . ''''' डोम राज तो मानो महात्मा के चरणों में लेट गए !
नाटक बंद कर साले,,,,उठ कड़ा हो , जल्दी कर , समय निकल जा रहा है " महात्मा ने रूखे स्वर में उन्हें झिड़क कर उठाया .और घूम कर मेरी तरफ देखते हुवे बोले !
सागर , मागो , क्या मांगते हो मेरे बच्चे ,,,,, महात्मा की वाणी में पुनः वात्सल्य घुल आया था !
"
बस आशीवाद दे चाचा श्री की मैं कम से कम इस जन्म में आपके और पिताश्री की उम्मीदों पर खरा उतर सकु, बाकी तो आपके प्यार ने मुझे सब कुछ दे दिया है ! कुछ और मांगूगा तो मेरे महा प्रतापी चाचा श्री और पिता श्री को तौहीन होगी " मैं चाचा श्री के सामने सम्मान में घुटनो पर बैठ कर बोला !
बाबा ने मुंह ऊपर उठा कर एक गरजदार ठहाका लगाया , जीते रहे पुत्र , मुझे तुमसे यही उम्मीद थी ! आज तुम यदि मांगते तो एक से बढ़कर एक शक्तियां तुम्हे दे देता , पर मैं बेचैन होजाता ,,, महात्मा की आवाज़ में ख़ुशी झलक रही थी !
"
पुत्र , उधार का ज्ञान और शक्तियां ज्यादा उपयोगी नहीं होती , वरन वो तो आगे के ज्ञान और शक्ति अर्जन में बाधक बन जाती है ! अप्रशिक्छित योध्या को परम शस्त्र देने पर बहुधा उसके उस शस्त्र से खुद को ही घायल करने की सम्भावना बन जाती है !"
"
वाह, प्रसन्न हुवा मैं , " महा ग्रन्थ को सही हाथो में दिया है मैंने "

हमसब ने प्रासादिक मदिरा पान किया और फिर बाबा के कहने पर मैंने मूर्ति को विसर्जन के लिए ससम्मान उठा लिया !, डोम राज ने बाबा के निर्देशानुसार सामग्री ले ली थी और हम मंदिर की सीढ़िया उतर शमशान भूमि में प्रवेश कर गए !

शमशान में घोर सन्नाटे और तम का साम्राज्य फैला था , उसी सन्नाटे के बीच कभी कभी नदी के कल कल कर बहने की आवज़ सुनाई दे जाती थी ! ! नदी के दूर वाली चिता भी बुझ चुकी थी पर उनके अंगारे अभी भी लाल थे ! महा सन्यासी के दर्शनार्थ लालाइत पतला दुबला चाँद निकल आया था और अपनी मरियल सी रोशनी के सहारे हमें देखने की कोशिश करता लग रहा था !

चाचा श्री आज अपने पूर्ण औघडी अलंकार में थे ! अनेको तंत्र माल और कवच उनके सुगठित देह पर शुशोभित थे !, अंगुलिमाल का करधन पहना था उन्होंने , गले में अनेको रुद्राक्ष की मालाओं के पीछे झाकती किसी पंछी की हड्डियों से बने माला शुशोभित थी ! दाएं पैर में चांदी का एक खूब भारी कड़ी पहने थे वो ! हाथ में रक्त पूजित त्रिशूल जिसके कुछ नीचे एक बड़ा सा डमरू बंधा था ! हाथो पर सर्प माल भुज बंध के रूप में शुशोभित था .! आँखे अघोर ताप और मद्य के नशे में दमक रही थी ! , उनमे इतना तेज़ भरा था की एक बार तो देव राज भी उनका ताव ना सके ! और सबसे बढ़कर उनका रक्तभिषेखित बलशाली शरीर !

महात्मा के शमशान में प्रवेश करते ही जैसे वहा हाहाकार सा मच गया ! पहले से ही डरे सहमे एवम आतंकित पारलौकिक जीव भय से चीत्कार कर उठे ! कुछ तो अपने छिपने की जगह से भी निकल कर आसमान में उड़ भागे ! उन्हें कुछ ऐसा पता था जिससे वो परम आतंकित हो गए थे ! अभी तक मैंने महात्मा को किसी पारलौकिक को सताते नहीं देखा था,,,,,,,,, पर शायद महात्मा का अपने पूर्ण औघडी स्वरूप में आना उन्हें डरा रहा था , या फिर कुछ और भी बात थी ?
आगे आगे चाचा श्री चल रहे थे , उनके पीछे मई था और मेरी बगल में सामग्री लिए हुवे डोम राज .!
" ,,,,,,
सेरिया ssssssss ,,,,,, कहा मर गया हरामी ? अचानक वातावरण में बाबा की आवाज़ गूंजी ,

एक दो छन भी ना बीते होगे की मसान प्रमुख सेरिया प्रगट हुवा और महात्मा के चरणों में लौटने लगा !
"
कहा छिपा था रे साले,,,,मेरे आने पर तू आया क्यों नहीं रे ,,,,,,,,तेरी इतनी हिम्मत ",,,,,,, महात्मा ने उसे अपने पैरो से झिड़का तो वो कुछ कदम के फासले पर उकड़ू बैठ कर रोने लगा !
जोरू को भगा दिया अब खुद रोता है साले , बाबा ने एक ठहाका सा लगाया ! कहा गई रे वो ,,,,,, कही बेतिया तो ना ले भागा !
शरणागत हु बाबा ,,,,, वो आज रात ,,,आप के ताप को ,, ताव ना ला सकी,,,,,,,,,, , डर के भाग गई ! बेतिया भी भाग गया ! सारे भुत प्रेत भी भाग गए ! सेरिया मसान जैसी शक्ति बाबा के सामने मिमिया रही थी !
तो साले तू पहलवान बने है यहाँ ? तेरा टेटुआ दबा दू तो ? ,,,,,, बाबा ने उसे फिर से डांटा
"
नहीं महाराज , दया करे ,,,,,, मैं शमशान छोड़ कैसे जाता ,,,,,,,, आपके लिए बुहारी करने को रुक गया" ,,,,,,,,,, सीरिया फिर से मिमियाया !
तो फिर कर ना , बिल में क्यों छुपा बैठा था बे ?
सेरिया को मानो भागने की वजह मिल गई हो ,,,,, उस जागृत शमशान का मालिक लुढ़कता गिरता भागा और बाबा के रस्ते में बुहारी करने लगा !

सन्यासी के पीछे पीछे चलते हुवे हम नदी के दूर वाले हिस्से तक पहुंच गए ! वो हिस्सा शमशान के दहन स्थल से थोड़ा हटके एक नितांत ही निर्जन क्षेत्र में था ! थोड़ी सी झाड़ियों के बाद नदी का सुन्दर रेतीला रमणीय किनारा दृष्टिगोचर हुवा !
रेत पर कुछ कदम और चलते ही मुझे चाँद की मद्धम रोशनी में एक तरफ कुछ साये से दिखे !

थोड़ा और आगे बड़े तो दृश्य कुछ और स्पष्ठ हुवा ! वहा किसी महा पूजा की तैयारी सी की गई थी ! एक तरफ एक अलख वेदी बनी हुवी थी . उससे कुछ दूर पर एक आसान सा बिछा हुवा था ! वेदी के दोनों तरफ बॉस की तशतरियों में दूर दूर तक सामग्री सखी हुवी थी ! सामग्री इतनी थी और इतने प्रकार की थी जितनी मैंने कभी भी एक साथ नहीं देखी थी !
शायद ये थी वो महापूजा , जिसकी तैयारी के लिए महात्मा ने कक्ष ने डोम राज को आदेशित किया था ! लेकिन ये पूजा थी किसकी और इतनी बड़ी पूजा के संधान का प्रयोजन मेरी समझ से परे था ! .
मूर्ति हाथ में लिए मेने महात्मा की तरफ देखा जो हमारे आगे आगे किसी गजराज की तरह चल रहे थे , पूजन का प्रयोजन पूछने की इक्छा तो जगी परन्तु , पीछे से पूछना उचित न समझा !

सहसा महात्मा रुक गए और पुकारा , ,,,,,,,सेरिया ,,,,,,,,
आगे आगे चलता शमशान का मालिक रुका और पलट कर बाबा के चरणों में आ गया ! ""हुक्म करे महात्मा ""
सुन ,,,,,,, अब तू जा . पहरा दे यहाँ ! देख की कोई सांसारिक न आने पाये यहाँ ! महात्मा ने कहा !
"
जो आज्ञा महात्मन कोई नहीं आएगा यहाँ ,, किसकी मजाल जो सेरिया के होते इधर दृष्टि भी डाले "
अंधे को क्या चाहिए ,,,,, दो आँखे ,,,,,,, सेरिया ऐसे भगा जैसे उसकी पूंछ में आग लगी हो !
अरे सुन तो , महात्मा ने फिर घुड़का !
सेरिया पलटा और फिर से हाथ जोड़ लिए !
"
जानता है न की चौथा पहर शुरू होने के पहले तुझे भी भाग जाना है " ,,,,,,,,, एक दम मत रुकना यहाँ ,,,, वरना जल कर रख हो जायेगा !" ,,,,,,,,महात्मा का स्वर गम्भीर था !
सेरिया ने एक झुरझुरी सी ली ,,,,,,, अपनी डरावनी पतली सी गर्दन हिलाई ! हा महात्मा ,,, जैसा आपका आदेश !
सेरिया अँधेरे में दो तीन कदम चला, ,,, और फिर सहसा हवा में ही घुल गया !

यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !






Comments

Popular posts from this blog

Rule Change: क्रेडिट कार्ड, LPG दाम से UPI तक... आज से बदल गए ये 7 बड़े नियम, हर जेब पर होगा असर!

भूल से भी ना करवाएं कार में ये 5 मॉडिफिकेशन्स, गाड़ी होगी सीज और भरना पड़ेगा हजारों का चालान