सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -07



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -07

अचानक मुझे अपने सर पे किसी के हाथो का स्पर्श महसूस हुवा।
"
उठो व्तस , अब बहुत हुवा " देख लिया मेने जो देखना था ",,,,,, अबकी सन्यासी की अ!वाज़ मे कोमलता भरी थी।
ये क्या ? सन्यासी वॉर करने की बजाय हमे दुलार रहे थे। सुखद अश्चर्य !!!!! मेने गर्दन उठा के वृद्ध सन्यासी की ओर देखा।
उनके होठ ही नही , वरन अ!ख़े भी मुस्कुरा रही थी।
अचानक हमे अपनी जड़ता समाप्त होने का एहसास हुवा। हमारे पैरो मे फीर से जान अ! गई थी
"
उठो वत्स , मे्रे सीने से लग् जाओ मे्रे बच्चे " बहुत इंतज़ार कराया तूने मुझ बूढ़े को। सन्यासी के कोमल वचन हमारे कानो मे मिश्री घोल रहे थे.!

पर् मेरा दिमाग तो अंतरिक्छ मे उड़ा जा रहा था।
क्या सच मे वो हमारा इंतज़ार कर रहे थे ? क्या पूजन समाप्त करके उन्होंने हमारे अ!ने के ब!रे मे ही डोम राज से पूछा था ?
अखिर इतने प्रचंड सन्यासी को हमारे जैसे नवसिखुवो का इंतज़ार क्यों ?
कही कोई जाल तो नही ? कही कोई फरेब तो नही ?
मऩ ने इस तर्क को स्वीकार करने से मना कर दिया। इतने प्रचंड सन्यासी को फरेब की क्या अवश्यकता ? उनके बल के सामने तो उनकी इक्छाए भी उनकी दास बन जाए। वो चाहे तो इसी शमशान ने हमे गर्दन से खीच कर बली चड़ा दे। नही ये फरेब नही वरन प्रेम है। लेकिन क्यों ?

दुविधाये समाप्त होन को अयी। मेने उनकी मुस्कुराती अ!खो मे एक बार फीर देखा , ओर खड़ा होकर लिपट गया उनसे।
सन्यासी ने भी मुझे अपने अंक मे एक शिशु की तरह भर लिया। किसी अंजान भावना से प्रेरित होकर मे्रे मुह से निकला ,,,,,,,,,"बाबा ",,,,,,,,,,,
!की के शब्द मे्रे अ!सुवो मे गुम हो गए। मै रोने लगा था बाबा से लिपट कर।
डोम राज खड़े मुस्कुराते रहे , जैसे उन्हें सब पता हो।
ओर दमन अ!ख़े फाड़े ये दृश्य देख रहे थे. ! जो सन्यासी हमे कुछ पल् पहले तक अपना काल नज़र अ रहे थे , वो अब मुझे अपने अंक मे भरे दुलार रहे थे।
उनकी समझ मे कुछ नही अ! रहा था ,
ओर ना ही मेरी समझ मे अ! रहा था ये घटनाक्रम।
अखिर बाबा इस भयावह जाग्रित शमशान ने मेरा इंतज़ार क्यों कर रहे थे ?  

बाबा से अलग होकर मै अब उनके सम्मुख खड़ा था। उनके अपनत्व ने वतावरण को अभयदान सा दे दिया ।
अचानक सन्यासी घूमे ओर अपनी पूजन पीठ पर् जा बैठे। अनगढ़ पटथरो के रूप मे शुशोभित शक्ति को नमन किया। तीनो नरकपालो के उपर स्थापित दीपक अभी भी प्रज्वलित थे। बाबा ने शक्ती पीठ को ज्योत दिखाई ओर मेरी तरफ घूमकर मुझे पास आने को कहा।
स्वचालित सा चलता मै उनके पास तक गया ओर उनके बगल मे शमशान भूमि पर् बैठ गया। हा , दमन को डोम राज ने अपने पास बुला लिया था।
"
मां को प्रणाम करो वत्स" , बाबा ने निर्देशित किया।
मे संपूर्ण श्रधा से उनके द्वारा स्थापित शक्ति पीठ के सामने नतमस्तक हो गया।

शक्ती पीठ को प्रणाम कर जब मे वापस बैठा तो सन्यासी ने अज मुंड से रक्त लेकर मुझे रक्त तिलक किया। फिर पूर्ण सम्मान के साथ पूजन सामग्री समेट कर छोटे बैग मे रख दिया।
तब तक डोम राज भी आ गए थे औऱ उन्होंने बाकी बचा सामन समेट लिया ।
"
मे्रे पीछे आओ सागर" ,,,,,,,, सन्यासी की गंभीर आवाज सुनाई दी।
मैन चोक कर उनकी तरफ देखा , उन्हें मेरा नाम कैसे पता है ? लेकिन वो तो लंबे लंबे डग भरते पुराने मंदिर की तरफ चलना शुरू कर चुके थे!
मेने दमन को साथ लिया ओर चल पड़ा सन्यासी के पीछे।
घूप अंधेरे ने सन्यासी बेधड़क बढ़ते हुवे , मंदिर के प्रवेश द्वार के द्वसतवशेषों को पार कर परिक्रमा तक जा पहुचे। पीछे मुड कर देखा , थोड़ा रूखे , हमारे पास आते ही पुनः चल पड़े।
अब उनका रुख मन्दिर के गर्भ गृह की ओर था।
अचानक दमन फुसफुसाए , पंडित जी , ये हमे गर्भ गृह मे क्यों ले जा रहे है?
अचानक मेरी निगाहो मे अष्टभुजाकार गर्भ गृह की रक्त पूजित बली वेदी घूम गई

 तत्काल विवेक ने उस सोच का गाला घोटा। ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नही ,,,,,,,,,, बाबा चाहते तो हमारी जड़ता वाली परिस्थिति मे ही किसी महा प्रेत इत्यादि से घसीटवा लाते ,,,,,,,,,, उन्हें ये प्रपंच करने की आवश्यकता नही थी।
"
नही दमन ,,,,,,,,,,,,, सन्यासी के अंदर कोई दुर्भावना नही है। आप भी अपने मन से शंशय निकाल दे"। मैने भी फुसफुसाते हुवे दमन जी को उत्तर दिया।

सन्यासी के पीछे पीछे चलते हुवे हम गर्भ गृह तक पहुच गए। गर्भ गृह मे उन्नत विग्रह स्थल पे दायी तरफ एक लालटेन प्रज्वलित थी ,,, जिसकी पीली रोशनी मे गर्भ गृह काफी रहस्यमय ओर डरावना लग् रहा था। पुरे गर्भ गृह के फर्श को बुहारा गया था लेकिन गहरा हवन कुंड जस का तस था। हा बलि वेदी की कुशलता से सफाई की गई थी ,ओर उसपर कुछ ताजी पूजन सामग्री पड़ी हुवी थी , अज अर्पण से पहले वेदी की भी पूजा हुवी प्रतीत हो रही थे। वेदी के नजदीक कभी मात्रा मे रक्त था जो आज की ताज़ा अज बलि का परिचायक था।

उन्नत विग्रह स्थल पर् एक अनगड़ सी परंतु आकर मे काफी छोटी एक मूर्ति स्थापित थी ! ओर मूर्ति के सामने कुछ पूजन सामग्री भी पड़ी थी। मूर्ति का रक्ताभिषेक किया गया लगता था। मूर्ति के सामने भूमि पर् एक छोटी सी दरी को आसन के रूप मे बिछाया गया था।
मूर्ति के सामने पहुच कर सन्यासी खड़े हो गए ओर मेरी तरफ देखा।
मैने आसय समझ कर भूमि पर् घुटनो के बल बैठ कर स्त्री शक्ति मूर्ति को प्रणाम किया। दमन ने भी मेरा अनुशरण किया।
मैने और दमन ने मिल् कर जमीन पर् बिछे आसन को पूरा खोल दिया। अब वो पुरे आकार की एक दरी बान चुकी थी जिसपर कम से कम चार मनुष्य बैठ सकते थे.
सर्व प्रथम सन्यासी बैठे , फ़िर उन्होंने हमे बैठने का इशारा किया। हम भी उनके चरणों मे बैठ गए। मे्रे दिमाग मे कोतुहल के कीड़े बिलबिला रहे थे पर् बात कहा से सुरु करू समझ नही आ रहा था।
बाबा , छमा करे , कुछ पूछने की अनुमति चाहता हु ,,,,,,, मैने इजाजत मागी।
अवश्य वत्स , पूछो क्या पूछना चाहते हो। पर् शीघ्रता करो ,,,,,,,,,सूर्योदय के बाद मुझे कुछ कर्म कांड निपटाने है। सन्यासी की अवाज़ मे कोमलता छलक रही थी जो महातामसिक पुजारियों मे विरले ही देखने को मिलती है। 

मैने अपने रेडियम डायल वाली घड़ी की सुइयों पे दृष्टि डाली । सुबह होने मे केवल एक घंटे की ही देरी थी। यानी सन्यासी जी के कथनानुसार उनसे ज्ञानार्जन का हमारे पास आज केवल १ का ही समय था।
"
बाबा कुछ कौतूहल है , आग्या हो तो व्यक्त करू ? ",,,,,,,,, मैने अ!ज्ञा मांगी
"
अवश्य वत्स , पूछो क्या पूछता चाहते हो ",,,,,, सन्यासी ने कहा।
"
बाबा , इस उजाड़ शमशान ने हमारे इंतज़ार का प्रयोजन ? ",,, मैने प्रश्न रखा।
लालटेन की बीमार सी पीली रोशनी मे मैने सन्यासी के अधरो पर् एक मोहक मुस्कान उभरती देखी। जैसे कोई पिता अपने नासमझ पुत्र के बचकाने सवाल पर् मुस्कुराता है।
"
तुम्हारी एक वस्तु है मे्रे पास , वो तुम्हे लौटनी थी । वैसे भी तुम्हारे बिना मै रुक्सत नही हो सकता था । ",,,,,,,,, सन्यासी ने मुस्कुराते हुवे कहा।
"
बाबा क्या है वो वस्तु ?",,,,,,,,,, , मेरा कोतुहल थोड़ा ओर बड़ा।
"
खुद देख लेना। तुम्हारी ही है , बस शाम तक का इंतज़ार करो ",,,,,,,,, सन्यासी ने गंभीर स्वर मे कहा।
"
बाबा , क्या आप मुझे पहले से जानते है। ",,,,,,,,, मैने अगला सवाल किया ,
"
ह वत्स , हम जानते है तुम्हे , शायद जन्म जन्मांतर से जानते है तुझे। ",,,,,,,,,
"
बाबा कुछ बताइये",,,,,,,,, ", मैने कोतुहल वश पहलू बदला ,
"
अब समय नही रहा। अपने गुरु के थोड़े ओर पैर दबाओ , समय आने पर् सब पता चल जाएगा । फ़िर भी शाम को जितना जरूरी होगा , बता दूंगा। ",,,,,,,,,,,,"सन्यासी की अवाज़ मे गंभीरता भरी हुवी थी।
क्या दमन भी ? ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मेरा प्रश्न संकेतिक था।
"
नही , वो सिर्फ तुम्हारे साथी है। ",,,,,,,,,,,,
"
अपको कैसे पता चला की हम आने वाले है ",,,,,,,,,,, मैने पूछा
"
नियति खीच लायी तुम्हे।"
"
नियति जानी जा सकती है ?",,,,,, मैने चोक कर पूछा
वे फ़िर मुश्कुराए , ,,,"अभासी रूप से , बहुत सी विद्याये है "
"
फ़िर भी हमे देर हुवी ?" मेरा अगला प्रश्न था।
"
कर्म फल ओर उसका विधान ",,,,,,,,,,
"
तंत्र विद्या की जांच तो ठीक है,,बाबा ,,,,,,,,,,,,,,,पर् मुझे छोड़ कर दमन पर् अर्ध मारण प्रयोग का औचित्य ?" मैन अलग सवाल किया
"
पर् कल्याण की योग निष्ठा का परीक्छन। ",,,,,,,,बाबा बोले
"
असफलता क्या साबित करती ?",,,,,,, मेरा प्रश्न था
"
अधारभूत चारित्रिक पतन",,,,,,,,,, , बाबा बोले
"
असफलता का परिणाम क्या होता ?" ,,,,,,मेरा अगला प्रश्न था
"
उस वस्तु का दहन , ओर मेरा पश्त्याताप। " ,,,,,, बाबा ने गंभीरता से उत्तर दिया।
मुझे एक झुरझुरी सी अ!यी ,
धन्य हो ,,,,,,,,,,,
सन्यासी का कोई भी कार्य अधारहीन नही था।
मे्रे प्रश्न अभी बाकी थे। पर् सूर्य रथ की रश्मिया घरा पर् दस्तक देने आ गयी थी  

सूर्योदय की आहट सूनी तो मैंने जल्दी जल्दी कुछ और प्रश्न पूछ लेने चाहे !.
'"
हे महात्मा , क्या पूर्व जन्म में में आपका सम्बन्धी था ",,,,, मैंने पूछा !
"
हा वत्स , तुम मेरे पिछले जनम के संबंधी हो . लेकिन पिछले जनम की बाते हम शाम को करेंगे" !,
"
क्या नियति का उससे भी कुछ सम्भन्ध है ?",,,,,,,,,,, मैंने पूछा !
"
हा वत्स , नियती तुम्हे खुद इसका पूरा उत्तर दे देगी ",,,,,,,,,, सन्यासी ने कुछ रहस्यमय सा जबबा दिया !.
"
बाबा , क्या आप मेरे गुरु थे?" .. में अपना कोतुहल रोक ना सका .!
बाबा मुस्कुराये , और संछिप्त सा उत्तर दिया ,,,," शाम को . कुछ कारण है ".!
में अपने पिछले जन्मों के बारे में जानने को मरा जा रहा था पर मुझे ये अच्छी तरह समझ आ गया की में कुछ भी कर लु , महात्मा टस से मस नहीं होने वाले . !
"
बाबा , कुछ साधना और उनके प्रकार के बारे में बताये",,,,,,,,,,,,,, . मैंने विषय बदला .!
"
तुम्हारे गुरु ने तुम्हे तुम्हारे लिए जो पर्याप्त है,, वो बता दिया है! . तुम भी जानते हो की यह विषय बहुत विराट है! लोगो को जन्मों लग जाते है इसे समझने में . अभी पर्याप्त समय नहीं की में तुम्हे इस विषय पर पर्याप्त ज्ञान दे सकु !. ,,,,और अर्ध ज्ञान तो विष के सामान होता है",,,,,,,,,,,,, . , सन्यासी बोले !
सहसा सन्यासी ने पहलू बदल कर मंदिर की ध्वस्त परिक्रमा की तरफ देखा जिसकी टूटी दीवार से शमशान के बाहर का नज़ारा भी दिखता था .!
सूर्योदय की लाली पूरब में फ़ैलाने लगी थी , पंछीयो का कलरव सुनाई देने लगा था . सूर्य रथ तैयार खड़ा था . सूर्योदय होने को ही था . !
,,,,,,,,,"
सागर ",,,,,,,,,,,,,,, सन्यासी ने मुझे सम्भोदित किया !
"
आज्ञा महात्मन ",,,,,,,,,,,, में हाथ जोड़े सम्मान में झुक गया , मुझे देख ददन जी भी सम्म्मान में झुक गए .!
"
मुझपर भरोषा है ? ",,,,,,,,,,,,,,,उन्होंने प्रष्ट किया !
"
बाबा शर्मिंदा न करे . खुद से भी ज्यादा ",,,,,,,,,,,,,, मैंने झुके झुके ही उत्तर दिया . इतने प्रचण्ड शक्ति स्रोत को किसी प्रपंच की आवश्यकता नहीं थी !
"
आज रात्रि के दूसरे पहर तुम्हे इसी श्मशान में आना है",,,,,,,,,,,,,, . ,,, उन्हेंने आदेशित किया !
"
अकेले , और केवल लगोट में . ध्यान रहे , कोई कवच नहीं , कोई लौकिक या पारलौकिक जीव साथ नहीं ".! उन्होंने अपना अादेश पूर्ण किया
"
पर बाबा , जागृत श्मशान के जीव ?" मैंने शंका प्रगट की . !
सन्यासी दो कदम आगे आये , मेरे झुके कंधो पर हाथ रख , मेरे आँखों में देख कर बोले ,,,,,,,"चिंता ना कर मेरे बच्चे , कल ये शमशान सो जायेगा . और बाकी मैं हु ना "!  

 "जो आज्ञा महात्मन ,"
,,,,,,,"
मैं सेवा में हाज़िर रहूगा ". मैंने आने की हामी भरी "
दमन ने मेरी ओर अचरज से देखा . शायद उन्हें अभी तक कुछ संदेह था! .
मैंने चुपके से , आँखों ही आँखों में उन्हें आस्वश्त किया और फिर से सन्यासी की और मुखातिब हुवा !
"
बाबा आपकी साधना में वो करुण स्वर के मंत्र क्या थे? ऐसा न मैंने कभी देखा है न सुना है " अब मैंने तंत्र सम्बंधित आज का अपना सबसे बड़ा कोतुहल प्रस्तुत किया !
वो , वही है जो तुम समझ रहे हो सागर ,,,,,,,, बाबा एक बार फिर फिर मुस्कुराये . तुम उन्हें तांत्रिक भजन जैसा कुछ कह सकते हो .
"
तांत्रिक भजन " महा तामसिक सन्यासी के तांत्रिक भजन ,,,,,,,,,मेरे दिमाग में अधिया चलने लगी .

हा वत्स , बहुत संछेप में सुनो , ,,,,,,
सामान्य शक्तियों और पारलौकिक जीवो को मंत्रादि से पूर्ण या आंशिक रूप से प्रभावित किया जाता है और मनोकामनाएं पूरी की या कराइ जाती है ! इन्हे उनकी खुद की सिद्धि के आशीर्वाद , मंत्रो की या इष्ट की आन के लिए आना ही होता है !
परन्तु एक सीमा से आगे महाशक्तियों को कोई आन नहीं लगती! , और जहां तक बंधन की बात है तो जिनके नाम मात्र से सारे बंधन टूट जाये ,,,,,,,,, उन्हें कौन सा बंधन ! रही सिद्धि की बात तो उनकी सिद्धि प्राप्त करना तो मोक्छ ही है . वही मिल गया तो फिर बचा क्या ? !
प्रारंभिक स्तर पर मंत्र पूजन , तंत्र पूजन , सात्विक , तामसिक , सब कुछ होता है . पर जैसे जैसे ज्ञान , सिद्धि और इष्ट से निकटता बढ़ती है . बस भक्ति ही शेष रहती है ! समर्पण शेष रहता है .! हा , उस स्थिति में अर्जित तामसिक या सातविक शक्तियां तो साधक के पीछे पीछे चलती है !

सागर खुद सोचो ,,,,,,,,,,,,, शिव तो सब है , जड़ भी है चेतन भी है .,,,,,,, पुरे संसार का हर तृण ही शिव से जन्मा है ,,,,,,,,,,, . फिर हम भला उन्हें क्या अर्पण करे . कैसे करे . तामसिक करे , सात्विक करे , मंत्र पड़े , भजन गाये?????????????
पूजन पद्धति सम्मान्य सांसारिक जीवो के लिए है ! .सिद्धि की एक स्थिति से ऊपर केवल भक्ति है , बाकी कुछ नहीं !

,,,,,,,,,,,
वो मंत्र भी मंत्र ही थे ,,,,,,,, पर भक्ति के मंत्र थे .! " बाबा ने उपसंहार प्रस्तुत किया


परन्तु बाबा ,,,,,,,? मैंने कहना चाहा!
शंशय है अभी , ? सन्यासी महात्मा ने मेरी बात काटी और बोल पड़े
महात्मन रामकृष्ण परमहंस के बारे में सोचो , जिसके प्रेम के आगे , महा काली खुद उनके हाथो भोजन करने आती थी . क्या वो भक्ति का करिश्मा नहीं था ,
तारापीठ के बामाखेपा को याद करो . जो माँ तारा के चढ़ावे को ही खा जाया करते थे . पुजारियों ने उन्हें जब मंदिर से निकाल दिया तो महामाया माँ तारा खुद हाथ में खड्ग लेकर सपने में महारानी पर चढ़ दौड़ी की मेरे पुत्र को वापस मंदिर में लाओ . कौन से तंत्र मंत्र किये बामा खेपा ने , बस प्रेम से तारा माँ को माँ समझ उनका खाना ही तो खाया .!

किसी ज्ञानी और सिद्ध मनुष्य का शुद्ध अंतःकरण से इष्ट को प्रेममय आत्मसमर्पण सर्वोपरि है सागर!!!!!! .हर मंत्र से ऊपर ,,,,,,,, हर तंत्र से ऊपर ,,,,,,,,, हर यन्त्र से ऊपर .,,,,,,,,,,,,,हर पूजा विधान के ऊपर

सूर्योदय हो चूका था , महात्मा मुड़े ,,,,,और गर्भगृह की टूटी हुवी सीढ़िया चढ़ते चले गए ! .

,,,,,,,,,,
और,,,,,,,,,,,,,,, , हमारे मन मस्तिष्क में भी ज्ञान का एक नया सूर्योदय हो चूका था,,,,,,,, .! 




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