सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -05



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -05

तीव्र वेग से गमन करती हुवे दिमिका मुझसे आ टकराई , और मेने भी उसे बाहों में भर लिया। मेरे शरीर से लगते ही उसे हुवा अपनी गलती का एहसास।
शायद तीव्र वेग ,,,,,,,,और सन्यासी की आज्ञा पूरी करने की अधीरता , में वो मेरे और दमन के कवचो का आभास ना पा सकी थी।
तंत्र कवचो की गर्मी से उसका तामस सुखाना शुरू कर दिया। उसका रुदन अब क्रन्दन में परिवर्तित हो चूका था। वो मुझसे छूटने के लिए अपने पतले हाथ पैर बड़ी व्य्ग्रता से मार रही थी और रात्रि के आसमान की तरफ मुंह उठा के भयानक ढंग से क्रन्दन कर रही थी।
मैंने सन्यासी की तरफ देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी दिलचस्पी के से भाव थे। शायद मेरा इस प्रकार दिमिका को प्रताड़ित करना उसे बाल सुलभ लग रहा था।
दिमिका विधाता द्वारा रचित वो तमो गुण प्रधान अलौकिक जीवो में से एक है जो प्रताड़ित की जा सकती है , कैद की जा सकती है पर एक विशेष अवधी तक मर नहीं सकती।
मैंने भी अपने हाथ खोल दिए और जाने दिया उसे। गिरती पड़ती वो कुछ कदम अपनी जर्जर काया से भागी और फिर शुन्य में लोप हो गई।

मैंने सन्यासी की ओर देखा और बोल उठा ,,,,,,,, . छमा करे बाबा , हम खुद ही आ रहे है आपके सम्मुख , फिर ये बल प्रयोग क्यों ?
हमने एक दो कदम ही बढ़ाए होगे की वो फिर से दहाड़ उठे ,,,,,,,,,,,,,, सवाल करता है उदंड ,,,, ठहर तुझे बताता हु ,
सन्यासी फिर से क्रोधित नजर आने लगे थे।
सन्यासी ने अब अबकी आँखे बंद की , कुछ देर तक कुछ मंत्र बुदबुदाते रहे , फिर अपनी आँखे खोली। अपने दाहिने हाथ पर फुक मारी और मुठी बंद कर हमारी तरफ उछाल दिया। 

सन्यासी की तेज़ी देखने लायक थी। मेरे द्वारा मंत्र प्रहार की दिशा और दशा समझने के पहले ही मंत्र प्रहार हो चूका था। प्रहार फलित होते ही हम दोनों के भीतरी अंगो में भयानक दर्द शुरू हो गया। कुछ कुछ उदर शूल की तरह की विद्या थी ये। लगता था की मानो शरीर के अंग एठ कर गुदा मार्ग से बाहर निकल जाएंगे। तटचन काट आवश्यक थी अन्यथा ज्यादा देर तक खड़े रहना असम्भव था। मैंने उस दर्द के बीच अपनी जेब में हाथ डाला और काली सरसो के दानेनिकाल लिए। हाथ बार बार पेट पकड़ने को मचलता था पर उन दानो को हाथ में लेकर मंत्र पाठ भी आवश्यक था। दमन जी के चहरे पर भरी पीड़ा के निशान दिख रहे थे। वो दोनों हाथो से अपना पेट पकड़े मेरी ओर देख रहे थे।

विद्या की काट के लिए मेरा मंत्र पाठ जारी था। तभी सन्यासी ने एक औघङी अट्टहास किया और कुछ मंत्र पड़कर गरजा ,,,,,, नटुआ। ... सामने आ हरामी
नटुआ बंजारा तंत्र में पारंगत एक महा प्रेत का प्रकार है। तंत्र में पारंगत होने से वो और तंत्र कवचो को भेदने की भी शक्ति रखते है।

हे बाबा विश्वनाथ , ये तो नटुआ का प्रहार होने वाला है , वो भी उदर शूल से व्यथित शिकार पर। नटुआ को देखू तो उदर शूल लहू चाट जाएगी ,और उदर शूल को देखा तो नटुआ से कौन बचाएगा ! सन्यासी की केवल मंत्र शक्ति से दिमिका और नटुआ जैसे शक्तियों को हाज़िर करने और आक्रमण के चातुर्य से में चमत्कृत सा हो गया। शायद सन्यासी को अपनी पूजन स्थापना का फायदा मिल रहा था।
जा रे नटुआ ,,,,, पकड़ ला उन्हें ,,,,,,, सन्यासी ने आदेश सा दिया
मैंने अपना उदर शूल की काट के लिए मंत्र पाठ जारी रखा।
नटुआ उछलता कूदता बड़ा हमारी ओर और सवार हो गया सिर पर हमारे। हमारे तंत्र कवचो का निदान कर लिया था उसने। हा हमारे कवच अभी भी उसे हमको चोट पहुंचने से रोके हुवे थे।
तभी मेरा मंत्र जाप पूर्ण हुवा। नटुआ हमें गर्दन से पकड़े था इस लिए मेरे हाथ अब भी खाली ही थे। मैंने सरसो के दानो पर फुक मारी और आधी अपने ऊपर और आधी दमन के ऊपर उछाल दी।
ततचन शूल का नाश हुवा और हमारी जान में जान आयी।
लेकिन वो जान तो अभी भी नटुआ की गिरफ्त में थी। जो तंत्र कवचो के कारन और कुछ करने में असमर्थ हो हमें गले से पकड़े खड़ा था 

नटुआ हमें अपने साथ घसीटता हुवा सन्यासी की ओर चला। बस दर्द से ही राहत मिली थी अभी। नटुआ का खतरा अभी भी सर पे सवार था।
पंडित जी ,यार ये बड़े मिया हमारी चटनी बनाने पे क्यों तुले हुवे है। कौन सी भैंस खोल ली हमने इनकी भाया ,,,दमन के स्वर में गुस्से का पतु था। , मुझे ये एहसास था की अब तक दमन पहलवान को गुस्सा आ गया होगा।
पता नहीं भाई , पहले इस काले पहाड़ से छुटकारा लेने दो ,,,,,,,,,,,,,,,, मैंने उनको चुप कराते हुवे कहा।
उदर शूल कटाने के बाद अब नटुआ से निपटना मेरे लिए कोई मुश्किल काम ना था। वैसे भी हमारे प्रबल तांत्रिक कवच के कारन उसके तमो गुण सीमित हो रहे थे।
मैंने फिर से अपनी जेब में हाथ डाला। और एल्युमीनियम फॉयल में लपेटी हुवे काले मुर्गे की कलेजी निकाली। मुंह में डाला चबाया जिससे उसके चार टुकड़े हो गए। फिर से हाथ में लिया और मंत्र पड़ता हुवा कपलिका से मदत की गुहार लगाने लगा ।
नटुआ अब तब हमें गर्दन पर हाथ रखे धकेलता घसीटता चिता के पास तक आ चूका था , तभी मेरा मन्त्र जाप पूर्ण हुवा और मैंने कलेजी के चारो टुकड़े हवा में उछाल कर रक्छा करने की गुहार लगाई ।
हमारे प्रबल तंत्र कवचो के पहले से ही अशक्त नटुआ इस नए वॉर को न सह सका और अचानक ही हमारे पीछे से अदृश्य हो गया। अब तक हम नटुआ द्वारा चिता के पास तक पहुचाये जा चुके थे।
लगभग बुझती हुवी चिता के इस तरफ हम थे , और दूसरी तरफ वो विकराल सन्यासी। चिता धूम्र के बीच हम दोनों ने एक दूसरे की आँखों में ध्यान से देखा। मंदिर के संछिप्त मुलाकात के बाद ये सन्यासी से हमारा पहला पूर्ण आमना सामना था।

अचानक बीच में डोम राज का विनयशील स्वर सुनाई दिया। ,,,,, बाबा , ,,, अब बस भी करो ,,,,दया करो बच्चों पर। 

 सन्यासी पर डोम राज की बातो का कोई असर नहीं हुवा था । वो अनसुना सा करके हमें देखता रहा।
मैंने एक बार फिर से उसकी आँखों में देखा। उसकी आँखे थोड़ी दिलचंसपी से और थोड़ा हमें तौलने के अंदाज में मुझे एक टक घूरे जा रही थी। पता नहीं क्यों , इस बार मुझे उसकी आँखों में वो तामस ताप नजर नहीं आया जो मैंने उसकी जलती आँखों में कीकर के पेड़ के नीचे देखा था।
हम दोनों अंतिम साँसे ले रही चिता के दोनों तरफ खड़े , एक दूसरे के अगले कदम का इंतज़ार कर रहे थे !

यहाँ क्यों आया पापी ? मेरी साधना में विघ्न डालने ? ... सन्यासी का रोष पूर्ण स्वर गुंजा।
नहीं बाबा , हम भला ऐसा क्यों करेंगे ? ,, मैंने संतुलित सा जबाब दिया
दमन जी चुप ही रहे। पारलौकिक घटनाओं के क्रियान्वयन या विवाद पर वो सदा चुप ही रहते है। उन्हें अपनी सीमा पता है और वो सदा इसका पालन करते है।
सवाल करता है मुर्ख !!!!!!!! ,,,,,,, अपने टोटको पर बड़ा घमंड है न तुझे ? इन्ही के बल पर विघ्न डालने आया है न तू ,,,,, सन्यासी की आवाज़ में अब फिर से रोष दिखने लगा था।
छमा करे बाबा , ये मित्या आरोप है , ,,,, मैंने प्रतिरोध किया लेकिन यथा संभव स्वर को संयमित बनाए रखा।
.
मिथ्या !!!!!!!!! ,,,,,,,,,,,,,,उदंड ,,,,, मुझे मिथ्या भाषी कहा तुमने , सन्यासी इस बार तो बिफर ही गए। ,,,,,,
बाबा ,,,,,,,,,,,, अब बस भी करे ,,,,, बीच में कमजोर सी आवाज में डोम राज बोल पड़े। जाने क्यों वो हमारे पक्छ में बोल रहे थे।
चुप कर करिया ,,,,,,, नहीं तो ससुरे तेरा भी गला टीप के तुझे तेरे ही शमशान में फुक दूंगा ,,,,, सन्यासी दहाड़ उठे।
डोम राज सहम कर चुप हो गए।
सन्यासी वापस घूमे हमारी तरफ , ,
तुझे तंत्र कवचो पे बड़ा नाज़ है न। दिमिका और नटुआ को अशक्त कर दिया तो इतरा रहा है। देख मुर्ख देख। ,,,,..
सन्यासी ने आँखे बंद कर ली और हुवा उनका मंत्र पाठ शुरू । 

पुरववर्ती प्रहरों सा ये मंत्र प्रहार भी त्वरित था। हमारे अनुमान लगाते लगाते जप सम्पूर्ण हुवा और सन्यासी ने प्रहार का संधान कर दिया।
हम इसके पहले की काटने की सोचा भी पाते , मेरी कलाई में बंधी अभिमंत्रित रुद्राछ की माला खंडित हो कर बिखर गई. !
मैने मुड़ कर दमन की आओ देखा,,,,, , वो अपनी करधन सँभालते दिखे। शायद उनकी करधन भी टूट गई थी।
तंत्र माल तब तक ही कारगर है जब तक वो एक माल के रूप में जुड़ कर ऊर्जा का वृत बनाए रहता है । खंडित होते ही उसकी ऊर्जा तो नहीं नष्ट होती पर वो केंद्रित भी नहीं रह पाती। अतः फलित नहीं होती है।
प्रहार अभी भी जारी था। दूसरे तंत्र कवच भी चरमरा से रहे थे। न जाने कब खंडित हो जाए।
तभी मेरा ह्रदय रक्छा सूत्र , बाजु बंद टूट कर भूमि पर गिर पड़ा। शायद दमन का भी यही हाल होगा।
मुझे अब स्थिति की गम्भीरता का तीव्र एह्साह हुवा। में और दमन इस जागृत शमशान रात्रि में एक महा भीषण औघड़ के सामने अपने तंत्र कवचो से एक के कर हाथ धोते जा रहे थे।
बिना समय गवाए मैंने प्रबल रक्छा मंत्रो का जाप प्रारम्भ कर दिया।
तभी मेरा ध्यान सन्यासी के गगनभेदी आट्टाहास ने आकृष्ट किया।
क्या हुवा रेs s , टोटके टूट गए। अब ले वार सम्भाल , सन्यासी की रोबीली आवाज शमशान में गूंज उठी।
वार !!!!!!! ,,,,, अब कौन सा वार ???? ...अब क्या करने वाला है ये सन्यासी
सन्यासी कुछ कदम आगे आया , झुका और दम तोड़ती चिता के अंगारो की बीच से एक मुट्ठी चिता भष्म उठा ली। आँखे बंद की इष्ट की आन लगा कर मंत्र पाठ प्रारम्भ किया।
ह्रदय शूल मंत्र मारण , हे भगवन , मेरी आँखे चौड़ी हो गई। ह्रदय रक्छा कवच भूमि पर खंडित पड़ा था और सामने ह्रदय शूल का संधान चल रहा था।
थोड़ा समय होता तो मेरी जेब में पड़े सामान के सहारे या वेदिका के सम्मुख होने पर ह्रदय शूल की काट सम्भव हो सकती थी, पर मुझे सन्यासी की तवरित प्रहार की शक्ति पता थी।
लेकिन ह्रदय शूल एक बार में एक पर ही प्रयोग किया जा सकता था। फिर प्रहार किसपर होगा। क्या मुझपर , जो शायद अपनी प्राण रक्छा करने की कुछ कोशिश कर सके ,,,,,
या या या फिर अशक्त दमन पर ,,,,,,,,,, ??????????  

मिनटो में सन्यासी ने मंत्र पाठ सम्पूर्ण किया और अपनी आँखे खोल दी। में विचलित सा उसकी आँखों में देखता रहा। मेरा रक्छा मंत्रो का जाप तो जारी था परन्तु,,,, स्थिति बड़ी नाज़ुक हो चुकी थी।
तभी सन्यासी ने कनखियों से तांत्रिक रूप से अशक्त दमन की तरफ देखा। मुझे उसके भद्दे होठो पे एक छडिक छिड़ सी मुस्कान खेलती दिखी।
मेरे मस्तिष्क ने मुझे चेताया ,,,, हो न हो ये ह्रदय शूल दमन पर ही प्रयोग करेगा।
हे बाबा विश्वनाथ , कैसे बचाउ अपने दोस्त को। रक्छा मंत्र से पोषित होने से पहले ही वार हो गया तो ? .
उधर मंत्र का संधान पूर्ण हो चूका था , बस वार करना बाकी था। वो भी मुझ पर नहीं ,,,,,,, दमन पर
दमन मेरे भरोसे था। सिर्फ मेरे भरोसे ।,,,,,,,,,,,,,,,,,,, में किसी भी कीमत पर अपने यार को ह्रदय घात से इस शमशान में एड़िया रगड़ रगड़ कर मरने नहीं दे सकता था।
सन्यासी का हाथ ऊपर की तरफ उठा प्रहार करने को।
मेरे मस्तिष्क में हथोड़े से बज रहे थे ,,,,,,,,,,,,,,नहीं ,,,,,,, किसी भी कीमत पर नहीं ,,,,,,,,,,,,
कीमत ,,,,,,???????
अचानक में पीछे घुमा और लिपट गया दमन से।
अरे क्या कर रहे हो पंडित ,???? ,,,,,,,,,,, दमन हक्का बक्का सा रह गया। उसे स्थिति की गंभीरता का पता नहीं कितना एहसास था।
बस चुप रहो ,,,,,, मैं यथा संभव दमन के पुरे शरीर से किसी सर्प की भाति ही लिपट गया था। दमन का पतला दुबला शरीर मेरे शरीर से ढक सा गया
उधर सन्यासी का वार हुवा !!!!! जो मेरी पीठ से टकराया। ....
लगा जैसे कोई रेल इंजन सा टकरा गया हो मेरी पीठ से।
दोनों लिपटे हुवे दो तीन फ़ीट पीछे जा गिरे।
दमन पहले गिरे ,,, और दमन से लिपटा दमन के ऊपर में गिरा।
मर गया रेs s ,,,,,,,,.,,,,,,,,,,,.. दमन के मुंह से दर्द भरे स्वर निकलने लगे ,,,, 

गिरते ही मैंने करवट बदली और घुटनो के बल दमन के पास ही बैठ गया। मुझे कोई खास दर्द या सीने में जकड़न जैसा कुछ नहीं लग रहा था। शायद रक्छा मंत्रो ने मेरा बचाव कर लिया था। लेकिन दमन की दर्द भरी आवाज़ से में थोड़ा घबरा सा गया ।
,,,,,,,,
क्या हुआ दमन , ? .. मंत्र प्रहार के कारण सीने में दर्द है क्या ? मैंने उसका हाथ पकड़ते हुवे पूछा।
मंत्र प्रहार नहीं , पंडित प्रहार का दर्द है । वो अब भी काख छींक रहे थे. ! अरे क्यों चढ़ दौड़े मेरे ऊपर भाई ? .
खतरा अभी टला नहीं था ! उनको समझाने का समय नहीं था मेरे पास ,,,,,,,
बस इतना ही बोला उन्हें ,,,,,,,,,,,,,, दमन जी , बस ये समझो की भीषण मंत्र प्रहार था। अब मेरे पीछे ही रहना।



यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !




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