सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -06



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -06

अपने और दमन को सकुशल पाकर में तत्काल पीछे घुमा,,,, ये सोच कर की कही सन्यासी अगले प्रहार का संधान न कर रहा हो।
अब मुझे भी क्रोध आ गया था। ह्रदय शूल मारण का प्रयोग करके सन्यासी में मेरी सारी सहानुभूति, सारा सम्मान खो दिया था। बात मारन तक आ गई तो फिर बचा क्या।
में खड़ा हुवा और बढ़ चला सन्यासी की और। क्रोध वश में सन्यासी की आँखों में घूरते हुवे चिल्ला पड़ा ,,,, बाबा मारन प्रयोग क्यों ??? जबाब दो ,,,,,,,,
क्या किया था हमने ,,,,,????
आखिर मारन प्रयोग क्यों ,,,,,,,,,,,,,, ?

चिता की दूसरी तरफ सन्यासी पहले की तरह शांत चित खड़ा हमें दिलचस्प निगाहो से घूरता रहा। मेरे सवालो को अनसुना कर दिया था उसने। शायद यह जानने की कोशिश कर रहा था की में अब क्या करने वाला हु ,
क्रोध सर पर चढ़ बैठा तो मैंने भी आक्रमण का निर्णय ले किया। वैसे भी बचाव में हम अभी तक संघर्ष ही करते रहे थे। हो सकता है आक्रमण से कुछ बात बने।
मैंने जेब से अपना चाकू निकाला , चाकू से तर्जनी पर एक गहरा चीरा लगाया। नीचे झुक कर अपने कदमो के पास के शमशानी मिटटी उठाई। हाथ खोलकर उस मिटटी को मंत्र जाप करते हुवे अपने रक्त से गीला करने लगा।
में रक्तोदित मंत्र मारण का संधान कर रहा था।

घाव गहरा था और पूरी मिटटी को गीला होने में अधिक समय नहीं लगा। कुछ ही देर में मिटटी गुथने लायक हो गई। गहन मंत्रोचारण के बीच मैंने रक्त मिश्रित उस मिटटी को गुथकर एक मानवाकृति सी तैयार की। सन्यासी को इंगित किया , इष्ट की आन लगाई और नमस्कार की मुद्रा में दोनों हथेलियों की बीच मानवाकृति मिटटी को दबाकर आखिरी चरण का मंत्र जाप प्रारम्भ किया। तामसिक मंत पाठ ने मेरे तामस गुणों में वृद्धि कर दी ,,, मेरा क्रोध अब शिखर पर था , ,,,,,में फिर से चीखा ,,,,,, मारन प्रयोग क्यों बाबा ??????? ,,,,,,अब परिणाम भुगतना पड़ेगा ,,,,,,,
मेरे मस्तिष्क में अब क्रोध नृत्य कर रहा था ,,,,  

ठहरो साधक !!! ... कही देर न होजाये। अचानक बीच में डोम राज बोल पड़े।
होती है तो हो जाए महाराज ,,,,,,, इन्होने कुछ कसर छोड़ी क्या ? दिमिका का प्रयोग , नटुआ का हमला। और अब ये मारण।
बाबा , दया करो बच्चों पर , अब तो जाने दो , डोम राज अबकी बार सन्यासी की तरफ घूम कर बोले।
???? ..
ये क्या है ?? .... रक्तोदित का संधान मैंने कर रखा है और डोम राज सन्यासी से गिड़गिड़ा रहे है ,,,,,,,,,,,, हमें जाने देने के लिए?? मेरे विवेक ने एक छन सोचा जरूर , परन्तु क्रोध ने पुनः अधिपत्य स्थापित कर लिया।
मैंने आँखे बंद की और पूर्णावहन के मंत्र भी पड़ डाले।
साधक !!!! सावधान ,,,, आपने वॉर को रोक ले , डोम राज का स्वर नीरव शमशान में गूंज गया।
मंत्र पाठ संपन्न कर मैंने आँखे खोली। एक बार डोम राज की ओर देखा उनकी बातो अनसुना कर अपना ध्यान लक्छ पर केंद्रित कर लिया ।

चिता की संछिप्त रोशनी में दूसरी तरफ खड़े किसी भव्य छायाचित्र की तरह प्रतीत होते सन्यासी की आँखे शांत पर बहुत तिक्छन् लगी।
सन्यासी की आँखे मुझपर ही गड़ी थी , तभी उनका धीर गम्भीर स्वर गूंजा ,,,,,, अर्ध मारण था वो , जान नहीं जाती तुम्हारी।
अर्ध मारण ,,,,,,, मैंने अनजाने में ही उनकी बात दोहरा सी दी।
मुझे सन्यासी की बातो पर यकीन करने में कठिनाई हो रही थी।
क्यों बाबा , अपने भुगतने की बारी आयी तो लगे बहानेबाजी करने। मेरे क्रोध ने फिर से मेरे संस्कारो और विवेक को कुचल दिया !
बहानेबाजी बोलता है घमंडी , मारना ही होता तो अब तक राख बन के पड़ा होता तू।
अपने प्रयोग पर इतना ही घमंड है तो वॉर कर मुझपे। .... सन्यासी का रुखा स्वर गूंजा।
सावधान साधक , कही पछतावा करने का मौका न मिले , डोम राज ने फिर से चेताया।
वार कर बच्चे ,,,, अबकी सन्यासी की आवाज़ में आदेश का पटु था।

दोनों के विपरीतार्थी संवादों से में तनिक थथम सा गया। डोम राज प्रारम्भ से ही हमारे पक्छ में बोलते दिख रहे थे. ! अब जी जान से मुझे प्रहार करने से रोकने की गुहार कर रहे है। क्या मतलब है इसका। आखिर क्यों। क्या उनका ध्येय सन्यासी की मेरे प्रहारों से रक्छा है ! नहीं तो और क्या???
लेकिन क्या सचमुच सन्यासी ने अर्ध मारण किया था। क्या यही कारन है की हमें ज्यादा नुकसान नहीं हुवा ? या हमारे रक्छा मन्त्र कारगर रहे और ये मिथ्या प्रलाप कर रहे है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
परन्तु सन्यासी में भी तो प्रहार किया ही था। भीषड़ प्रहार थे। बड़ी शक्तियों के प्रहार।
सन्यासी का प्रहार उचित था तो मेरा अनुचित क्यों ? !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
"
प्रहार कर बच्चे ",,,,,,,, सन्यासी के धीर गंभीर स्वर ने मेरी तन्द्रा तोड़ी। और इसके साथ ही मैंने फैसला भी कर लिया।

मानवाकृति वाली मेरे रक्त सिंचित माटी की लघु मूर्ति को मैंने अपने सर से लगाया। इष्ट को स्मरण किया , फिर से उनकी आन लगाई और उछाल दिया सन्यासी की ओर।
रात का चौथा प्रहर शुरू होने को था। सुबह की मंद मंद चलती पवन से सन्यासी की हिलती लटाए सन्यासी के सर से लिपटे हजारो भुजंगो का भ्रम सा पैदा कर रही थी । सन्यासी अभी भी चिता की दूसरी तरफ वैसे ही अविचलित खड़े दिखे। वार रोकने का जैसे कोई मंसूबा ही न हो उनका।

हवा में उड़ती हुवी लघु मूर्ति ने मानो सजीव वस्तु की तरह पहलू बदला। अल्हड से गढ़े गए हाथ सहसा सजीव हो गए और सामने की तरह फ़ैल गए। आँखों की जगह बनाए गए गढ्डे सहसा सजीव हो उठे। चिंगारिया सी निकलने लगी उन सर्वथा जागृत आँखों में। सब कुछ बस सेकण्ड्स में ही सजीव हो गया और तीव्र गति से उड़ चला अपने लक्छ की ओर ।
मुझमे और सन्यासी में कोई विशेष दूरी तो थी नहीं। पलक झपकते ही पूर्ण जागृत मारण प्रयोग सन्यासी के वक्चस्थल से जा टकराया। टकराते ही वो ह्रदय प्रदेश पर जा चिपका । मानो उस लघु मूर्ति के हाथो और पैरो में तीक्चन नख निकल आये हो। सन्यासी में अब अपनी गर्दन घुमा कर अपने सीने की तरफ दृष्टि पात किया । पर शायद अब किसी भी काट के लिए देर हो चुकी थी
उस लघु मूर्ति के मुख प्रदेश से एक छोटी सर्पाकार अति लघु जिव्हा बाहर निकली और सन्यासी का सीना चाटने लगी।  

लघु मूर्ति की जिव्वा सन्यासी के सीने पे फिरते ही वहा रक्त छलक आया था। मानो उस मंत्र जीव की जिव्हा में शूल उगे हो।
मंत्र जीव बड़ी तन्मयता से सन्यासी का सीना चाटता रहा। सन्यासी अजीब सी दृस्टि से उस मंत्र जीव को बस देखते रहे। कुछ भी करने या मन्त्र जाप इत्यादि की कोशिश नहीं की उन्होंने।
सहसा मंत्र जीव का नन्हे नन्हे दांतों से भरा मुंह खुला और उसने सन्यासी के सीने का मांस का एक छोटा लोथड़ा सा काट खाया। मैंने कमजोरी के निशान तलाशने को सन्यासी के चहरे की तरफ देखा। यु मारण मंत्र जीव से प्रकोपित होकर और ह्रदय भक्चन शुरू होने के बाद भी मुझे उनका वही शांत चेहरा देखकर आश्चर्य हुवा। अबतक तो गिर पड़ना था बाबा को। आखिर बाबा ने मारण काटा भी तो नहीं था। लेकिन ये तो शांत छित खड़े रहे

उधर मंत्र जीव के कटाने से बने सुक्छम घाव से रक्त बह निकला और मंत्र जीव को भिगोने लगा। रक्त पोषित होते ही मानो मंत्र जीव ने एक किलकारी सी मारी और अपना छोटा सा मुंह खोल कर रक्त पान करने लगा।
अचानक रक्त पान करता मंत्र जीव कुछ असहज सा हुवा। उसका रक्त पान बंद हुवा और उसके बदन में ऐठन सी होने लगी। वो चौक गया , और अपनी गर्दन घुमा कर सन्यासी के चहरे की तरफ उनकी आँखों में देखने लगा।
और सहसा वो किलकारी भरता रक्त पिपासु जीव चीत्कार कर उठा। न जाने उसे सन्यासी की आँखो में क्या दिखा था। उसके नन्हे शरीर की ऐठन अब तक और तीव्र हो चुकी थी। उसने सन्यासी के सीने में मांस में घुसे अनपे हाथो के नख निकाले , हाथो से मानो अपना गाला पकड़ा और बड़ी पतली आवाज के क्रन्दन करने लगा। सन्यासी के घाव से अभी भी रक्त की कुछ बुँदे टपक रही थी पर अब तो बाजी तो पलट चुकी थी। मंत्र जीव रक्त पान छोड़ कर कारुणिक क्रन्दन कर रहा था।

मंत्र जीव का क्रन्दन सुनकर सन्यासी के अधरों पर एक छीड़ सी मुस्कान आ गई। मानो वो अब तक इसी का इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने अपना दाहिना हाथ बढ़ाया और क्रन्दन करते मन्त्र जीव को अपनी मुट्ठी में दबोच कर अपने सीने से अलग किया । हाथ को सामने लाया और मुट्ठी खोल दी। प्रताड़ित मंत्र जीव अब भी सन्यासी की हथेली पर पड़ा एठ रहा था। अचानक सन्यासी ने अपनी मुस्ठिका बल पुरवक बंद कर ली जैसे वो उस मंत्र जीव को पीस देना चाहते हो और सामने उछाल दी।
हवा में मिटटी सी उडी , वही मिटटी जिससे मैंने रक्तोदित का संधान किया था। मंत्र जीव नष्ट हो चूका था। मारण समाप्त हो गया था।
और हम आँखे फाड़े सन्यासी की विराट साधना शक्ति का चमत्कार देखते रहे जिन्होंने रक्तोदित जैसी संहारक शक्ति को सिर्फ अपने आत्म बल से धूल धुसित कर दिया था .! 

रकतोदित के संहार के बाद सन्यासी में अपना रुख पुनः हमारी तरफ किया ,,,, क्या रे घमंडी , बड़ा व्याकुल था वार करने को ,,,,,,,,,, क्या हुवा ?
"
बाबा हम लड़ने नहीं आये है , हम तो बस दर्शन करने आये थे ",,,,,,,, मैंने अपने स्वर को यथा संभव विनयशील बनाते हुवे कहा !
"
दर्शन करने आये थे की मुझे परिणाम भुगतवाने आये थे ".,,,,,, सन्यासी मेरी रोष में कही गयी बातो को दोहरा रहे थे!
"
बाबा हम तो सिर्फ रक्छा कर रहे थे " ,,,,,,,, मैंने आपने पक्छ रखा !
रक्तोदित प्रहार कर रक्छा कर रहे थे ? ,,,,,,,,,,,, मुर्ख समझा है मुझे ?,,,,,,,,,,,,अब में प्रहार करुगा , सावधान ,,,,,,, सन्यासी दहाड़ उठे । शायद मेरे प्रहार ने उन्हें भड़का दिया था।
अब मेरे हाथो के तोते उड़े ,,, इतने प्रचण्ड साधक का यदि सही में वार हुवा तो बचाव आसान न होगा । मुझे अपने प्रहार करने के निर्णय पर पछतावा होने लगा। शायद मैंने प्रहार ना किया होता और केवल रक्चण से काम चलाया होता तो बात यहाँ तक ना बिगड़ती।

अब वापस प्रहार की गलती तो में सोच भी नहीं सकता था। बस रक्छा कवच का संधान ही उपयुक्त था। वही शुरू किया। वृहदमुण्डिका की स्तुति और कवच संधान शुरू किया। मुझे उम्मीद थी की ये अमोघ कवच हमें सन्यासी के कोप से कुछ समय के लिए तो बचा ही लेगा ।

उधर सन्यासी ने एक औघडी ठहाका लगाया , जैसे उन्हें सब पता हो। ,,
"
साधक ,, ले सम्भाल ,,,," इस बार सन्यासी की आवाज़ में ठहराव सा था।
मेरा वृहदमुण्डिका कवच का संधान जारी था। अभी उस कुपित सन्यासी से प्राण रक्छा का यही एकमात्र उपाय सूझ रहा था।

बाबा , बस करो , .... डोम राज ने फिर से अंतर्नाद सा किया।
सन्यासी ने डोम राज की तरफ देखा , कुछ सोचा , परन्तु फिर से उनका ध्यान हमारी तरफ केंद्रित हो गया।
अचानक , सन्यासी के हाथ प्रणाम की मुद्दा में जुड़े , किसी शक्ति को को नमन किया। किसे ??? शायद वृहदमुण्डिका को ???? . ! फिर अपने दोनों हाथ हमारी ओर हवा में उठा दिया। उनकी हथेलिया आशीर्वाद की मुद्रा में खुली हुवी थी !
मेरी आँखे मंत्र जाप के साथ साथ सन्यासी पर भी लगी हुवी थी। उनकी ये मुद्रा और उनका प्रयोग मेरी समझ से बाहर था।
सन्यासी ने एक संछिप्त सा मंत्र जाप किया , प्रणाम की मुद्रा में हाथ जोड़े , हाथ फिर से आशीर्वाद की मुद्रा में खुले और हमारी तरफ इस प्रकार नीचे आये जैसे वो किसी चीज को दबा रहे हो "
अचानक लगा की मेरी जुबान तालु से चिपक गयी हो। मेरा मंत्र जाप तत्काल बंद हो गया था। में मंत्र पाठ के सर्वथा अयोग्य हो चूका था।वृहदमुण्डिका कवच का संधान पूर्ण नहीं हो पाया था।
तभी मुझे ऐसा लगा की मेरे घुटनो में शक्ति ही नहीं रही हो , मेरे घुटने मुड़े और शमशान की भूमि से जा लगे। गर्दन घुमाकर देखा तो मेरे साथ दमन को भी उनके घुटनो पर बैठे देखा। सन्यासी के प्रयोग का उनपर भी वही असर हुवा था।
अब हम कुछ भी करने में सर्वथा असमर्थ थे !
मुझे अपनी निरीहता का तीव्र एहसास हुवा। अब हम उस घनघोर शमशान में उस उस कुपित सन्यासी की दया पर जीवित थे।
मैंने सन्यासी की ओर देखा ,,,,, वो सधे हुवे कदमो से लगभग बुझ चुकी चिता का चक्कर सा काट कर हमारी तरफ आते दिखे।

क्या आख़िरी प्रहार को ???
क्या हमें हमारी आखिरी नियति इस प्रचण्ड सन्यासी के सामने खींच लाई है ???
क्या सन्यासी हमें मारकर अपने गुलाम प्रेतों की सेना में शामिल कर लेंगे??? 

हम संज्ञा शुन्य से सन्यासी को अपनी तरफ बढ़ते देखते रहे। सन्यासी अiये ओर हमारे सामने खड़े हो कर कुछ मंत्र पाठ सा करने लगे।
कुछ भी कर सकने मे असमर्थ , किसी अनिष्ट की अ!शंका से मेरा मऩ काप गया।
क्या अखिरी वॉर की तैयारी ?
क्या यही अंत है !!!!!!!! ?
यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !






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