सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -04



सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -04

अंदर के काम पुरे करके और सभी सामान व्यवस्थित करके में बाहर निकला। दमन और रतन जी दालान में ही बैठे मिल गए।
चले दमन जी , तैयारी करे , मैंने कहा
बिलकुल पंडित जी , लेकिन मई एक बार और नहा लेना चाहता हु। बड़ी गर्मी लग रही है यार।
ठीक है , नहा लो आप में कमरे में आपका इंतज़ार करता हु। कहकर में वापस कमरे की तरफ बढ़ गया। 
दमन जी नहा कर आ चुके थे। हमने कमरा अंदर से बंद कर लिया और तैयारियां शुरू कर दी।
सर्व्प्रथम , सिद्ध श्री बंगलामुखी यन्त्र निकाला और पूजन पश्चात अपने और दमन जी के गले में धारण कर लिया। अस्थि करधन दोनों ने ही धारण किये। मंत्र सिद्ध रुद्राकछ मैंने कलाइयों में लपेट लिए। एक और अस्थि रक्छा कवच दमन जी को पहना दिया। दमन जी मेरे सामने शिष्य भाव से झुके हुवे पूरी श्रद्धा से सब कुछ ग्रहण करते चले गए। ह्रदय प्रदेश की रक्छा हेतु महाकाल पूजित मनको को हमने बाएं भुज दण्ड के रूप में धारण किया।
अब शुरू हुवी अंग पूजा। देवताओ के नाम से हर अंग का पूजन किया गया और देव चिन्ह अंकित किये गए। सन्यासी के सामर्थय का जो मैंने अनुमान लगाया था , उसके अनुसार रकछन पर ज्यादा ही ध्यान दे रहा था। विस्की की एक बोतल और सिद्ध बटुक कपाल मैंने अपने एयर बैग में बाकी पूजन सामग्री के साथ रख लिया ।
भस्म तिलक लगाकर हम निकल पड़े दालान की ओर , जहां द्वार पर प्रह्लाद सिंह यादव जी जिप्सी के साथ हमारा इंतज़ार कर रहे थे।
जिप्सी के बगल में ही रतन जी थोड़े बेचैन से खड़े मिले। उनसे विदा ली और सवार हो गए जिप्सी पर।
रतन जी फिर पास आये। मेरा हाथ आपने हाथो में लिया , आँखों में देखा , और केवल एक बात कही , पंडित जी अपना और दमन का ख्याल रखना। उनके हाथो में कम्पन सा महसूस किया मैंने।
शायद उन्होंने शमशान की विकरालता तो उस दिन हमारे साथ पहली बार महसूस किया था , चिंतित से थे बेचारे। मैंने उनका हाथ आपने हाथो में लिया , कुछ नहीं होगा रतन जी। भोर की पहली किरण के साथ हम आपके पास लौट आएंगे। आप चिंता न करे।

रात के आठ बजे का वक़्त होगा । हमने रस्ते से कुछ खाने पीने का सामान भी पैक कराया।
शमशान की ओर जिप्सी का सफर जारी था

शमशान पहुंचते पहुंचते रात के नौ बज चुके थे। हमने काम शुरू करने से पहले कुछ खा लेने का फैसला किया। तीनो ने ही पैक करा कर लाया संछिप्त सा भोजन ग्रहण किया और बाकी बचा उसी एल्युमीनियम की पन्नी में ही लपेट कर रख दिया।
पानी पीकर में प्रह्लाद सिंह जी की तरफ मुखातिब हुवा ,,, अंकल , जैसा की आप जानते है। कुछ भी संकट महसूस होने पर , चाहे कुछ भी हो जाये जिप्सी के बाहर मत निकालिएगा।
हमेशा की तरह उन्होंने भी मुंण्डी हिला दी। ऐसे मौकों पर सामान्यत तो वो स्थिति की गंभीरता देखते हुवे गाड़ी के अंदर ही रहते है। लेकिन बड़े जीवट वाले है। एक बार तो वो मुझे खतरे में देख व्हील स्पैनर लेकर ही एक बाबा जी की तरफ भाग छूटे थे। वो तो शुक्र है की वो बाबा जी मेरी परीक्छा ले रहे थे और प्रह्लाद जी की कुचेष्ठा को हलके में लेकर मुझे लताड़ लगा कर ( जी भर के गालिया दे कर ) छोड़ दिया था।

भोजनोपरांत हमने शमशान में प्रवेश किया। आदतन शरारती भुत प्रेत हमारी तरफ लपकते हुवे महसूस हुवे ! लेकिन कवचो की मौजूदगी का एहसास होते ही वो भाग छूटे । मसान का जागृत काल था ! उसके अनुचर अपने क्रियाकलापों में वयस्त थे । शमशान में तीन चिताएं धू धू कर के जल रही थी। चन्द्र प्रकाश तो छिण सा ही था लेकिन चिताग्नि की प्रदीप्ति शमशान में बिखरी हुवी थी। हमने चारो तरफ निगाहे दौड़ाई। सन्यासी का कही आता पता ना था। डोम राज भी नदारत थे. ! , शायद कही व्यस्त होंगे , नहीं तो तीन तीन चिताओ को यु ही छोड़कर न जाते वो। शायद भोजन इत्यादि के लिए गए हो।
हमारा ध्येय चुप चाप सन्यासी के क्रिया कलप देखना था , अतः हम लोग बीच शमशान में ना जाकर शमशान के किनारे किनारे चलते हुवे परली तरफ को निकल लिए। वहां एक पुराने अर्धनिर्मित भवन की एक टूटी दीवार हमारे छुपने का ठिकाना बन सकती थी।

मित्रो , हमें आपने मकसद का एहसास था , और इस बात का भी एहसास था की सन्यासी अगर ना ही मिलना चाहें। या हमें यहाँ पा कर अत्यन्त क्रोधित भी हो जाये तो वो उनका हक़ होगा। मैंने निर्णय कर लिया था की मुझे किसी भी सूरत में हमलावर नहीं होना है। हां प्राण रक्छा तो करनी पड़ेगी ही।
अब हमने दीवार के पीछे डेरा लगा लिया जी। और होने लगा उस रहस्यमयी सन्यासी का इंतज़ार। 

दमन जी ने अपने एयर बैग से निकाल कर चादर फोल्ड कर के नीचे बिछा दी और हम दोनों बैठ गए इंतज़ार में। दमन से कार्बोलिक एसिड के भीगा रुई का फाहा भी बगल में रख लिया सर्प आदि से बचाव के लिए। मित्रो इसकी गंध सर्प का बहुत अप्रिय लगती है और वो आस पास नहीं फटकता
सर्प बिचुवो से तो बचाव हो जाता। लेकिन मचछर थे की मान ही नहीं रहे थे। दमन तो अपने आप को कई झापड़ खुद ही लगा चुके थे। हमने ओडोमोस लिक्विड लगाया था , पर अब ये मच्छरों को कौन समझाए की जो ओडोमोस लगाया हो उसे नहीं तंग करना है।

पंडित जी , ये सारे तांत्रिक मर के मच्छर तो नहीं बन जाते ? ...... दमन खीजे स्वर में फुसफुसाया।
क्यों भाई ? क्या हो गया ? .. मैंने मुस्कुराते हुवे पूछा
होना क्या है यार,,,,,,,, देखो तो ,,,, शमशान में कितने मच्छर भरे हुवे है , ये साले मच्छर तो लगता है पहले कान में घुसके मंत्र जाप कर रहे है , फिर नर बलि की फ़िराक में खून पीने लगती है।
मुझे हँसी आ गई , - अरे तो महाराज , उन्हें आपने अपना परिचय देना था न। अजी आप अपना पूरा नाम ही बता देते तो उसी के रोब से वो डर कर भाग जाते
दमन भी मुस्कुरा पड़े , अरे भाई , ये साले सब के सब अनपढ़ है। अब इनसे क्या मुंह लगना। छोड़ो जी , जारी रहने तो मंत्र पाठ इनका।

यु ही बात चीत होती रही और समय गुजरता रहा। रात के ११ का वक़्त होगा। चिताग्नि तनिक मंद पडी थी पर अब भी काफी प्रबलता बाकी थी। सहसा चिता आलोक में एक वृहद् छाया मंदिर के ध्वस्तवशेशो की तरफ से स्मशान के बीचो बीच आती दिखी। मैंने दमन को सचेत कर दिया। वो दो थे। आगे आगे सन्यासी आ रहे थे , हाथ में त्रिशूल , गले में मालाएं , भुज बंद , मनके , अस्थि मॉल। वही रौद्र रूप जो मैंने कीकर के पेड़ के नीचे देखा था। त्रिकोडिय त्रिशूल के कुछ नीचे एक डमरू बंधा था। सन्यासी के पीछे पीछे , हाथ में एक काफी भरी झोला और दूसरे में एक बैग लिए डोम को मैंने पहचान लिया। तो ये महाशय सन्यासी की सेवा हेतु चिताओ को लावारिश छोड़ कर नदारत थे।

सन्यासी रोबदार चाल से चलते हुवे दूर वाली चिता तक गए। चिता को नमन किया। ५ परिक्रमा की और खड़े होकर कोई मंत्र बुदबुदाने लगे। उधर डोम राज ने चिता से कुछ दूर एक आसान सा लगा दिया। भरी थैला एक तरफ रख दिया गया था।
सन्यासी पीछे मुड़े और थोड़ा पीछे आके आसान पर विराजमान हो गए। अब छोटे बैग में से डोम ने सामन निकाल निकाल कर रखना शुरू कर दिया। तीन कपाल सामने रखे गए। तीनो के ऊपर एक एक दीपक सजाया गया। कुछ अनगढ़ पुराने पत्थर रखे गए जो किसी पूजित शक्ति के प्रतीक लग रहे थे उन्हें एक ऊँचे आसान पर रख गया । बाकी पूजन सामग्री भी निकल कर सन्यासी ने आपने बगल में रख लिया।
पूजन आरम्भ होने को था। 

सन्यासी ने आसन एवं स्थान पूजन सम्पन किया। चिता को नमन किया। दिग्पालो को नमन किया।
शमशान पूजन पछ्यात शमशान वासी पारलौकिक प्राणियों को भी भोग अर्पित किया गया !
सारी पूजन सामग्री यथास्थान व्यवस्थित करने के साथ साथ वो अपुष्ट स्वर में मंत्र जाप भी करते जा रहे थे।
तीनो कपालो के ऊपर रखे दीप प्रजलित कर दिए गए थे और उन्हें शक्ति स्वरुप पथ्थरो को जोत दिखाकर वापस अपने स्थान पर सजा दिया गया।
सन्यासी का मंत्रोच्चारण अब तीव्र होता जा रहा था।
अचानक , सन्यासी में डोम को इशारा किया। बड़ा थैला खोल जा रहा था। हम चौक गए जब डोम ने उसमे से एक बलि भोग कृत बकरे को निकाला । बकरे को चिता और सन्यासी के बीच रख कर वो फिर थैले के तरफ बढ़ा ,
इस बार सिंदूर के टीके और पुष्प हार से सुसज्जित और पूजित अजमुंड निकाला और सन्यासी के सामने रख दिया।
सन्यासी ने अजमुंड पर फिर से कुछ पूजन सामग्री चढाई और फिर छोटे थैले से एक ढक्कन लगा बर्तन निकाल। बर्तन लेकर अजमुंड पर रक्त अर्पित किया और चारो दिशाओं में छिड़कने के बाद अपने को रक्त तिलक से शुशोभित करने लगा।
तीन तीन हाहाकारी दग्न चिताओ के आलोक में सन्यासी का रूप बड़ा विहंगम दिखा रहा था। मंत्रोचार अब और भी तीक्चण होता जा रहा था। डोम राज अब शायद साधना के ताप को ना सहन कर पाने के कारन कुछ दूर होक बैठ गए।
में और दमन मंत्र मुग्द से बैठे साधना रत सन्यासी को निहार रहे थे।
अचानक दमन फुसफुसाए , पंडित जी , बकरे की बलि कहा दी गई होगी ? .
भूल गए क्या मंदिर की बलि वेदी का रक्त भोग ? मैने भी फुसफुसाते हुवे जबाब दिया।
हमारा ध्यान फिर से सन्यासी और उनकी साधना की रतफ गया।
मुझे अब तक कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये साधना किसकी की जा रही है और इस साधना का ध्येय क्या है
सन्यासी का मंत्रोचारण जारी था। 

रक्त तिलक से शुशोभित सन्यासी ने वापस रक्त पात्र उठाया और अनगढ़ पत्थरो के रूप में शुशोभित शक्ति पीठ को रक्त स्नान कराया। रक्तस्नान के बाद कुछ और पूजन सामग्री अर्पित की गयी और शक्ति पीठ के सामने एक चौमुखी दीपक जलाया सन्यासी ने। रात की गहन नीरवता को चीर गहन मत्रोचार की ध्वनियां शमशान में गूंजती रही ।
मंत्रोचारण कुछ देर और चलता रहा फिर रुक गया । कुछ देर बाद सन्यासी ध्यान मग्न से प्रतीत होने लगे। शमशान की सांय सांय करती भयानक नीरवता लौट आई थी। चिताग्नि पहले की तरह लपलपा रही थी। ध्यान मग्न बाबा की आँखे बंद थी और शरीर बज्रासन में तना हुवा था।

करीब ३० मिनट के गहन ध्यान के बाद अब सन्यासी के होठ फिर हरकत में आये,,,,,,,, लेकिन इस बार मंत्रोचारण कुछ अजीब सा प्रतीत हो रहा था मुझे। तामसिक मंत्रो की तीक्चनता मंत्रो से गायब हो गई थी । ये शाबर मंत्र या संस्कृत मंत्र नहीं थे। कुछ था जो मेरे समझ से परे था।

मेने दमन की ओर देखा , आँखे मिली , दोनों की आँखों में यही सवाल तैर रहा था। ये क्या हो रहा है। कौन से मंत्र है ये। क्या असमिया भाषा में मंत्र पाठ किया जा रहा है। बलि कर्म के तरीके और शक्ति पीठ स्थापना विधि से ये तो स्पष्ट हो गया की ये किसी महाशक्ति की ही पूजन साधना चल रही है। साधना का उद्देश भी मुझे सिर्फ अपनी आराध्या की आराधना ही लगी क्योकि अभी तक कोई भी प्रयोग करने की चेष्टा नहीं की गई थी।

सन्यासी के मंत्रोचारण धीरे धीरे मंत्रोचारण न लग कर भजन से प्रतीत होने लगे। धीरे धीरे गायन में करुणा भी घुलने लगी। वो तन्मयता से आँखे बंद किये उस महा तामसिक वातावरण में उन भजन सदृश्य मंत्रो का गायन करते रहे।
हमारी समझ से सब कुछ बाहर था। इस तामसिक वातावरण मे इन स्वर लहरियों के गायन का कारण ????? . क्या है ये????? कई प्रश्न हमारे दिमागों में भूचाल ल रहे थे।
करीब एक घंटे के मंत्रोचारण या कहे गायन के बाद सन्यासी चुप हुवे। धीरे धीरे आँखे खोली। दूर से स्पष्ट तो नहीं हो पाया पर अब मुझे उनकी आँखो में अब वो तामसिक क्रोध कम महसूस हो रहा था जिसे मैंने कीकर के पेंड के नीचे झेला था। क्रोध की जगह अब उन आँखों में शांति का वास दिख रहा था। शायद ये उनके उस भजन रूपी मंत्रोचार का फल था।
सन्यासी ने शक्ति स्थापना को नमन किया। दिशा नमन किया , भूमि और आकाश को नमन किया। गुरु नमन किया और उठ कर खड़े हुवे ।
टहलते हुवे चिता की तरफ गए और चिता को फिर से नमन किया। अब वो डोम की तरफ खुम कर बोले ,,,,,,, क्या रे करिया ,,,,,,,,वो आया की नहीं ?
नहीं महाराज , नहीं आया ,,,,,,,, डोम राज ने उत्तर दिया। अब तकऊंघना छोड़ सजग हो चुके थे वे .
मेरे और ददन के कान खड़े हो गए , अब ये क्या चक्कर है ? किसका इंतज़ार कर रहे है ये सन्यासी और डोम राज?
क्या ये किसी का आह्वाहन था ?
यही हा तो इतने प्रचण्ड पूजन के बाद भी वो क्यों नहीं आया ?
वो नहीं आया फिर भी सन्यासी की आँखों में शांति क्यों ?
प्रश्न हज़ारो थे , लेकिन उत्तर दे सक्ने वाला हमसे ५०-६० मीटर दूर चिता के बराबर में खड़ा था। 

सन्यासी की सजग निगाहे शमशान का जायजा लेते घूम रही थी । डोम राज सजग हो अब तक सन्यासी के पास आ चुके थे ! पूजन सामग्री और बलि भोग अभी भी जो का त्यों ही पड़ा था।
करिया ,, अँधा है क्या ? ... वो आया है। सन्यासी ने कुछ अनुभव सा किया।
किधर महाराज ,,,,,,,,,,, डोम सकपकाते हुवे बोल।
अचानक सन्यासी की दृष्टि उस दीवार की तरफ पडी और जम सी गई , जिसकी ओट में हम और दमन जी छुपे हुवे थे !
दिल ने एक बड़ी धड़कन से शरीर को किसी खतरे के लिए तैयार किया। में दमन की ओर घुमा ,,, दोनों बैग उठा लो दमन जी। शायद सन्यासी ने हमें देख लिया है। कुछ जरूरी तांत्रिक सामान तो में पहले ही जेब में डाल चूका था।
कौन हे वहां ??? ,,,,,,,, सन्यासी की कड़कती हुवी रोबदार आवाज शमशान में गूंज गई।
सामने आ , नहीं तो नष्ट कर दूंगा ,,,,,, इस बार आवाज़ में रोष भरा था।
मैंने दमन की ओर देखा और फुसफुसाया । अब तो सामनेचलना ही होगा दमन , चलो चलते है।
उधर शायद सन्यासी का क्रोध जग गया था। ,,,,,आवाज़ गूंजी ,,,,,,,, भेखिया,,,,,, जा पकड़ ला उसे।
आवाज़ ने हमारा ध्यान फिर से चिता की तरफ कर दिया।
अचानक हमें हवा का एक गर्म झोका सा अपनी तरफ आता महसूस हुवा।
ओह्ह , सन्यासी ने हमें पकड़ लेन को किसी प्रेत को कहा था।
हवा का वो गर्म झोका हमारे पास तक और भी तापयुक्त हो गया मानो झुलसा ही देगा । फिर सहसा ही वो झुलसाता सा ताप गायब हो गया।
हमारे विशिष्ट कवचो ने हमारी रक्छा कर ली थी।
प्रेत प्रहार असफल देख , सन्यासी ने कुछ बुदबुदाया और फिर से गरजा ,,,,,,,,,,, दिमिका ,,,, इधर आ ,,,,,,
तत्काल एक बुढ़िया जिसकी कमर झुकी हुवी थी रुदन करती , सन्यासी के बाए हाथ को प्रगट हुवी।
सन्यासी ने उसके बाल पकड़ लिए और उन्हें हिलाते हुवे गरजा । ,,,,,,,,... जा रे चोट्टी पकल ला उसे। खाली हाथ आयी तो ये सारे बाल उखाड़ कर तुझे ही खिला दूंगा।
दिमिका एक शाकिनी शक्ति है , सन्यासी का उससे इस प्रकार का का वयवहार उसकी साधना शक्ति को दर्शाता था।
अब छुपे रहने का कोई कारण नहीं था। मैंने दमन को इशारा किया। हम दोनों वो छोटी सी टूटी दीवार फाद कर खुले में आ गए.
दिमिका तीव्र वेग से हमारी तरफ झुकी कमर को लहराते हुवे भाग छूटी।
उसका रुदन और भी विभत्स्य हो उठा था ,,,,,,,,,, जो शमशान के वातावरण और भी डरावना बना रहा था 

हम दोनों दीवार फाद कर खुले में सन्यासी के सामने खड़े हो चुके थे।
आँखे अपनी तरफ आती भयानक रुदन करती दिमिका पर जमी हुवी थी। दमन जी को मैंने आपने पीछे कर लिया था। दिमिका मेरे लिए जानी पहचानी शक्ति थी और मुझे पूरा विश्वाश था की वो तो हमारे तंत्र कवचो का भेदन नहीं कर पायेगी। इसी विश्वाश पर मैंने भी किसी भी मंत्र कवच का संधान करने की कोशिश नहीं की।
आ जा दिमिका ,,, आ जा। . लिपट जा मुझसे ,,,,,,,,,, मैंने आपने दोनों हाथ खोल के फैला लिए , ,,,,और दिमिका को पुकारा।
मेरी बात सुन कर दिमिका का रुदन और तीव्र हो था। उसका मुंह और बड़ा खुल गया.! पोपला मुंह एक सुरंग की तरह दिखाई देने लगा। रोते रोते वह अपनी काली जीभ भी निकल लेती थी। उस छन् उसका रुदन और भी डरावना हो जाता था।
यह कहनी आपको कैसी लगी कृपया अपने विचार व्यक्त करे !






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