सन्यासी (तन्त्र-मन्त्र की दुनिया ) -01
सन्यासी
इसमें
लिखे गए सभी वृतांत काल्पनिक
है और केवल मेरे मित्रो के
मनोरंजन के उद्देश्य से लिखे
गए है
रात
के सवा बारह का समय था। अमावश्या
की काली रात थी। सुनसान सड़क
पर हमारी हार्ड टॉप जिप्सी
फर्राटे भरती हुवी यमुना के
किनारे की सड़क पर भागी जा रही
थी। सड़क पर निशाचर जीव जन्तुवो
का भी नामो निशान नहीं था।
शायद दिन भर मई की धुप के थपेड़े
खा के सभी अपने रेन बसेरो में
आराम कर रहे थे। जिप्सी की
हेडलाइट में कुछ कीट अवश्य
अपनी उपस्थित दर्ज करके मानो
ये इंगित करने की कोशिश कर रहे
थे की हम इलाहाबाद का शहरी
इलाका छोड़ अब बियावान के
हवाले है। बुजुर्ग ड्राइवर
प्रह्लाद सिंह यादव जी की चौकस
निगाहे सड़क पे जमी हुवी थी।
६२ साल की उम्र में भी वो बुजुर्ग
फौजी दम ख़म और हिम्मत में आज
के सामान्य जवानों को मात देते
लगते थे। 
शहरी छेत्र में सड़क थोड़ी अच्छी थी तो मैंने और दमन सिंह ने थोड़ी झपकी ले ली थी। बस अब तो खुली आँखों से सड़क के गड्ढों के हवाले थे !
कुछ अपने मित्र दमन सिंह के बारे में बता दू। मेरे हम उम्र , हम प्याला हम निवाला मेरे जिगरी दोस्त। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के पढ़ाई के दौरान शुरू हुवी दोस्ती कब प्रगाढ़ होती चली गई, पता ही न चला। उन्होंने इतिहास से MA किया फिर कुछ और करने को न था तो पीएचडी भी कर डाली। अभी भारत के पुरततव विभाग ने बड़े अफसर है। प्राचीन इतिहास के सम्बन्द में खोज का अच्छा अनुभव रखते है.! परा मानवीय विषयों में खासी दिलचस्पी रखते है।
दमन सिंह , पूरा नाम श्री रिपुदमन सिंह , अपने नाम के अनुरुप थोड़ा गुसैल स्वाभाव के है। हा मूड में हुवे तो हँसा हँसा के पेट में दर्द पैदा कर दे। बस ईश्वर ने दुनिया पर एक ही उपकार किया। वो कहते है न , भगवन गंजे को नाख़ून नहीं देता। महाशय एक दम सिकिया पहलवान के सगे भाई प्रतीत होते है. गुसैल स्वाभाव। किसी की बात सहन करना आता ही नहीं महोदय को। वो तो अपनी हेल्थ से मात खा जाते है नहीं तो क्रुद्ध हो गए तो जलजला ही ला दे सरकार।
दमन सिंह ने ही मुझे काशी से बुलाया था। उन्हें खबर मिली थी की मिल्कीपुर के शमशान के आस पास एक सिद्ध बाबा को भटकता देखा गया है। पैरानॉर्मल विषय में दिलचस्पी और उनकी जिज्ञासा उन्हें मुझे फ़ोन करने पर मजबूर कर गई । तंत्र मंत्र के मेरे शोध की दिशा में कुछ ज्ञानार्जन की अभिलाषा में में भी भागा चला आया। इन विषयों पे दमन कभी अकेले आगे नहीं बढ़ाते। में भी अपंने तंत्र मंत्र के शोध सम्बंधित अभियानों पर सदा उनका साथ चाहता हु।
मिल्की पुर पहुंचते पहुंचते हमें सुबह के 2 बज गए। दमन ने एक परिचित को फ़ोन कर दिया था। वो सज्जन हमारा इंतज़ार कर रहे थे। रस्ते से ही खोज खबर लेनी शुरू कर दी थी उन्होंने। अब पहुंचने पर रात की दो बजे खाने की जिद पकड़ के बैठ गए। बड़ी मुश्किल से हम समझा पाए की हमने खाना और पीना इलाहबाद में कर लिया है। हा ठंडा पानी और इलाहाबादी पड़े को ना नहीं कह सके। वैसे भी पीने के कुछ समय बाद जोरदार प्यास तो लगती ही है। तीनो ने दो दो पड़े खाये और एक एक बोतल पानी खींच लिया। हमारे सोने का इंतज़ाम बाहर वाले कमरे में किया गया था। प्रह्लाद सिंह दालान में सो गए और हम और दमन कमरे में कूलर की पानी की फुहार फेंकती जूट के खुशबु वाली हवा में पसर लिए। लेटते ही हमारे घोड़े कब बिके पता ही न चला।
शहरी छेत्र में सड़क थोड़ी अच्छी थी तो मैंने और दमन सिंह ने थोड़ी झपकी ले ली थी। बस अब तो खुली आँखों से सड़क के गड्ढों के हवाले थे !
कुछ अपने मित्र दमन सिंह के बारे में बता दू। मेरे हम उम्र , हम प्याला हम निवाला मेरे जिगरी दोस्त। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के पढ़ाई के दौरान शुरू हुवी दोस्ती कब प्रगाढ़ होती चली गई, पता ही न चला। उन्होंने इतिहास से MA किया फिर कुछ और करने को न था तो पीएचडी भी कर डाली। अभी भारत के पुरततव विभाग ने बड़े अफसर है। प्राचीन इतिहास के सम्बन्द में खोज का अच्छा अनुभव रखते है.! परा मानवीय विषयों में खासी दिलचस्पी रखते है।
दमन सिंह , पूरा नाम श्री रिपुदमन सिंह , अपने नाम के अनुरुप थोड़ा गुसैल स्वाभाव के है। हा मूड में हुवे तो हँसा हँसा के पेट में दर्द पैदा कर दे। बस ईश्वर ने दुनिया पर एक ही उपकार किया। वो कहते है न , भगवन गंजे को नाख़ून नहीं देता। महाशय एक दम सिकिया पहलवान के सगे भाई प्रतीत होते है. गुसैल स्वाभाव। किसी की बात सहन करना आता ही नहीं महोदय को। वो तो अपनी हेल्थ से मात खा जाते है नहीं तो क्रुद्ध हो गए तो जलजला ही ला दे सरकार।
दमन सिंह ने ही मुझे काशी से बुलाया था। उन्हें खबर मिली थी की मिल्कीपुर के शमशान के आस पास एक सिद्ध बाबा को भटकता देखा गया है। पैरानॉर्मल विषय में दिलचस्पी और उनकी जिज्ञासा उन्हें मुझे फ़ोन करने पर मजबूर कर गई । तंत्र मंत्र के मेरे शोध की दिशा में कुछ ज्ञानार्जन की अभिलाषा में में भी भागा चला आया। इन विषयों पे दमन कभी अकेले आगे नहीं बढ़ाते। में भी अपंने तंत्र मंत्र के शोध सम्बंधित अभियानों पर सदा उनका साथ चाहता हु।
मिल्की पुर पहुंचते पहुंचते हमें सुबह के 2 बज गए। दमन ने एक परिचित को फ़ोन कर दिया था। वो सज्जन हमारा इंतज़ार कर रहे थे। रस्ते से ही खोज खबर लेनी शुरू कर दी थी उन्होंने। अब पहुंचने पर रात की दो बजे खाने की जिद पकड़ के बैठ गए। बड़ी मुश्किल से हम समझा पाए की हमने खाना और पीना इलाहबाद में कर लिया है। हा ठंडा पानी और इलाहाबादी पड़े को ना नहीं कह सके। वैसे भी पीने के कुछ समय बाद जोरदार प्यास तो लगती ही है। तीनो ने दो दो पड़े खाये और एक एक बोतल पानी खींच लिया। हमारे सोने का इंतज़ाम बाहर वाले कमरे में किया गया था। प्रह्लाद सिंह दालान में सो गए और हम और दमन कमरे में कूलर की पानी की फुहार फेंकती जूट के खुशबु वाली हवा में पसर लिए। लेटते ही हमारे घोड़े कब बिके पता ही न चला।
सुबह
जरा देर से ही नींद खुली। रतन
जी ने सत्तू के पराठे और परवल
की सुखी सब्जी नाश्ते में
बनवाई थी। नास्ता किया गया
और हम लोग आये अब मुद्दे पर।
सोचा क्यों न अपनी तलाश का
श्रीगणेश रतन जी से ही किया
जाये। रतन जी ४० के फेटे में
पहुंचे बलिष्ट शरीर का व्यक्ति
थे। और अपने इलाके में रतन
पहलवान के नाम से जाने जाते
थे। 
द्वार पर कुर्सियां डाली हुवी थी , आमने सामने बैठ कर वार्ताल!भ शुरू हुवा।
रतन जी , सुना है कोई सिद्ध बाबा इलाके में आये हुवे है? ,,,,,, दमन ने पूछा
सिद्ध बाबा ?,,,,,, अरे तुम भी कहा कहा की सुन लेते हो दमन भाई। ,,,,, रतन जी बोले
भाई पक्की खबर है। तभी तो पंडित जी को भी खींच लाया में।,,,,, दमन ने मेरी और इशारा किया
कही तुम उस शमशान वाले पागल की तो न कह रहे हो.? ,,,,,,,,,,,,रतन जी तनिक चौक कर बोले
कुछ डिटेल में बताओ जी. , तब तो कुछ पता पड़े ,,,,,,,,, दमन में टोक दिया
अरे डिटेल क्या , वो पागल सा एक साधु है। लोगो को देखा नहीं की गाली देता रहता है। पत्थर मारने को धमकता है। इतना गन्दा है की पास पहुंचो तो हैजा हो जावे। रतन जी नक भो सुकोदते हुवे बोले।
करता क्या है। पहली बार मैंने पूछा
करने का क्या है जी। पागल आदमी , दिन भर सोया रहता है शमशान के काली मंदिर के सामने वाले पेड़ के नीचे। कभी कभी तो कुत्ते भी आ के मुंह चाट जाते है। बस वो तो मानो इंसानो से ही खार खाये है। बाकी तो कोई भी जानवर कुछ भी कर ले। ,,,,,,, रतन जी ने समझाया
कभी उसके रात के क्रिया कलापो की कोई जानकारी मिली क्या। ,,, , मुझे थोड़ी उत्सुकता हुवी।
अब रात तो कौन जावे शमशान में। फिर भी सुना है वो पागल, जानवरों को मार कर खा जाता है। कुछ तो बोले की कच्चा ही खावे है ।,,,,, रतन जी ने बताया
जानवर मतलब ?,,,, मैंने पूछा
ज्यादातर मुर्गी ही मारता है। कुछ ने बताया है की बकरा भी। बस बकरा खाता नहीं। बस भभूत छिड़क के शमशान के कुत्तो के लिए डाल देता है। रतन जी ने बताया
मेरे मन में आया ,,,,,,,, "महा भैरव भोज " , में चौकन्ना हुवा थोड़ा
कुछ तो कहे है की वो कटे बकरे की गर्दन से मुंह लगा के एक दो घुट ,,,,,,,,,,, रतन जी का मुंह कहते कहते कसैला हो गया
सुनते ही मेरी आँखे चौड़ी सी हो आयी , रीढ़ की हड्डी में एक ठंडी लहर सी दौड़ पड़ी , ,,,, मन में विचार कौंध गया !!!!!!!!!! कही माँ छिन्नमस्ता का पुजारी तो नहीं ,,,,,,, हे बाबा विश्वनाथ , रक्छा करना
द्वार पर कुर्सियां डाली हुवी थी , आमने सामने बैठ कर वार्ताल!भ शुरू हुवा।
रतन जी , सुना है कोई सिद्ध बाबा इलाके में आये हुवे है? ,,,,,, दमन ने पूछा
सिद्ध बाबा ?,,,,,, अरे तुम भी कहा कहा की सुन लेते हो दमन भाई। ,,,,, रतन जी बोले
भाई पक्की खबर है। तभी तो पंडित जी को भी खींच लाया में।,,,,, दमन ने मेरी और इशारा किया
कही तुम उस शमशान वाले पागल की तो न कह रहे हो.? ,,,,,,,,,,,,रतन जी तनिक चौक कर बोले
कुछ डिटेल में बताओ जी. , तब तो कुछ पता पड़े ,,,,,,,,, दमन में टोक दिया
अरे डिटेल क्या , वो पागल सा एक साधु है। लोगो को देखा नहीं की गाली देता रहता है। पत्थर मारने को धमकता है। इतना गन्दा है की पास पहुंचो तो हैजा हो जावे। रतन जी नक भो सुकोदते हुवे बोले।
करता क्या है। पहली बार मैंने पूछा
करने का क्या है जी। पागल आदमी , दिन भर सोया रहता है शमशान के काली मंदिर के सामने वाले पेड़ के नीचे। कभी कभी तो कुत्ते भी आ के मुंह चाट जाते है। बस वो तो मानो इंसानो से ही खार खाये है। बाकी तो कोई भी जानवर कुछ भी कर ले। ,,,,,,, रतन जी ने समझाया
कभी उसके रात के क्रिया कलापो की कोई जानकारी मिली क्या। ,,, , मुझे थोड़ी उत्सुकता हुवी।
अब रात तो कौन जावे शमशान में। फिर भी सुना है वो पागल, जानवरों को मार कर खा जाता है। कुछ तो बोले की कच्चा ही खावे है ।,,,,, रतन जी ने बताया
जानवर मतलब ?,,,, मैंने पूछा
ज्यादातर मुर्गी ही मारता है। कुछ ने बताया है की बकरा भी। बस बकरा खाता नहीं। बस भभूत छिड़क के शमशान के कुत्तो के लिए डाल देता है। रतन जी ने बताया
मेरे मन में आया ,,,,,,,, "महा भैरव भोज " , में चौकन्ना हुवा थोड़ा
कुछ तो कहे है की वो कटे बकरे की गर्दन से मुंह लगा के एक दो घुट ,,,,,,,,,,, रतन जी का मुंह कहते कहते कसैला हो गया
सुनते ही मेरी आँखे चौड़ी सी हो आयी , रीढ़ की हड्डी में एक ठंडी लहर सी दौड़ पड़ी , ,,,, मन में विचार कौंध गया !!!!!!!!!! कही माँ छिन्नमस्ता का पुजारी तो नहीं ,,,,,,, हे बाबा विश्वनाथ , रक्छा करना
मैंने
सोच में पहलू बदला तो रतन जी
मेरी तरफ मूड कर बोले ,
,, अजी
पूरा पागल है पंडित जी। कोई
फायदा नहीं उससे मिलने जाने
का। व्यर्थ की गाली गलोज होगी
वो अलग से। 
कोई बात नहीं रतन जी , अब जब यहाँ तक आ ही गए है तो क्यों न मुलाकात कर ली जाये ,,,,, मैंने मन में घुमड़ते प्रश्नों के बीच अपना पक्छ रखा
दमन तो वैसे भी कोई मौका नहीं छोड़ते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अब इतनी दूर आये है तो बाबे को नापे बगैर तो न जाऊ में।
अब मिलना धाण ही चुके है आप लोग तो तो चलो जी फिर देर किस बात की है। दोपहर के भोजन के पश्च्यात निकल पड़ते है। ,,,,,,,, रतन जी बोल उठे
विलम्ब से उठने के कारन नाश्ते पानी में ही साढ़े ११ हो गए थे. हमने रतन जी की भोजन की बात मान ली।
फिर हैंड पंप के शीतल जल से स्नान इत्यादि किया गया। और जम गए जी भोजन पर।
स्वादिस्ट चावल के साथ अरहर के देसी घी में तड़के वाली दाल बनाई गई थी। साथ में आलू की भुजिया। आम के आचार और घर के बने पापड़ों के साथ। बस खाने का मजा ही आ गया।
निकलने को हुवे तो दमन जी नट गए। अरे भाई अब इतनी तेज़ धुप में कहा भटकेंगे गए। बाहर निकलते ही पॉपकॉर्न की तरह भून जाएंगे।
रतन जी ने उन्हें छेड़ा , दमन जी पॉपकॉर्न की तरह या "पापड़ " की तरह। ,,,,,, उनका इशारा दमन के दुबलेपन की तरफ था
शुकर है जी , कद्दू की तरह तो नहीं फुट जाएंगे न ,,,,,, उनका इशारा रतन जी के बलिष्ट शरीर से उभरती तोंद की तरफ था
चलो जी कोई बात नहीं , न पापड़ सिकवओ न ही कद्दू का बेडा गर्क करो , एक दो घंटे लोट ही लेते है , दमन जी ने मानो फैसला सा सुनाया
भरा पेट और मई की दोपहर की गर्मी का मेल हुवा तो मन थोड़ा अलसा सा गया। जी लोट लिए हम सभी और कुछ ही देर में बजने लगी खर्राटों की सरगम
शाम हुवी , सूर्य देव का अग्नि रथ का तेज़ तनिक मंद पड़ा , गर्मी अब भी जानलेवा ही थी। रतन जी ने मट्ठे का इंतज़ाम करवाया था भुना जीरा डाल के। खींच गए हम सब दो दो गिलास और फिर चल पड़ी जिप्सी रतन जी बताये रस्ते पर।
चलने के पहले मैंने और दमन में गुरु विजयानंद का दिया तांबे का अभिमंत्रित सिक्का अपनी अपनी जेबो में रख लिया। ये अति प्राचीन तांबे के अभिमंत्रित सिक्के रक्छा कवच के लिए अद्भुत है। कोई बड़ी शक्ति ही इन्हे भेद कर अहित करने की सोचे तो सोचे , साधारण भुत प्रेत तो इनका आभास पाते ही भाग खड़े होते है। रात्रि कालीन शमशाम की खोज यात्राओं में मैंने इन्हे बड़ा उपयोगी पाया है। कोई विशेष तैयारी नहीं की मैंने क्योकि मुझे कोई खास खतरा नहीं दिख रहा था अभी। वो सन्यासी कोई महा पुजारी भी हो सकता था और एक मेडिकल केस भी।
कोई बात नहीं रतन जी , अब जब यहाँ तक आ ही गए है तो क्यों न मुलाकात कर ली जाये ,,,,, मैंने मन में घुमड़ते प्रश्नों के बीच अपना पक्छ रखा
दमन तो वैसे भी कोई मौका नहीं छोड़ते ,,,,,,,,,,,,,,,,,,, अब इतनी दूर आये है तो बाबे को नापे बगैर तो न जाऊ में।
अब मिलना धाण ही चुके है आप लोग तो तो चलो जी फिर देर किस बात की है। दोपहर के भोजन के पश्च्यात निकल पड़ते है। ,,,,,,,, रतन जी बोल उठे
विलम्ब से उठने के कारन नाश्ते पानी में ही साढ़े ११ हो गए थे. हमने रतन जी की भोजन की बात मान ली।
फिर हैंड पंप के शीतल जल से स्नान इत्यादि किया गया। और जम गए जी भोजन पर।
स्वादिस्ट चावल के साथ अरहर के देसी घी में तड़के वाली दाल बनाई गई थी। साथ में आलू की भुजिया। आम के आचार और घर के बने पापड़ों के साथ। बस खाने का मजा ही आ गया।
निकलने को हुवे तो दमन जी नट गए। अरे भाई अब इतनी तेज़ धुप में कहा भटकेंगे गए। बाहर निकलते ही पॉपकॉर्न की तरह भून जाएंगे।
रतन जी ने उन्हें छेड़ा , दमन जी पॉपकॉर्न की तरह या "पापड़ " की तरह। ,,,,,, उनका इशारा दमन के दुबलेपन की तरफ था
शुकर है जी , कद्दू की तरह तो नहीं फुट जाएंगे न ,,,,,, उनका इशारा रतन जी के बलिष्ट शरीर से उभरती तोंद की तरफ था
चलो जी कोई बात नहीं , न पापड़ सिकवओ न ही कद्दू का बेडा गर्क करो , एक दो घंटे लोट ही लेते है , दमन जी ने मानो फैसला सा सुनाया
भरा पेट और मई की दोपहर की गर्मी का मेल हुवा तो मन थोड़ा अलसा सा गया। जी लोट लिए हम सभी और कुछ ही देर में बजने लगी खर्राटों की सरगम
शाम हुवी , सूर्य देव का अग्नि रथ का तेज़ तनिक मंद पड़ा , गर्मी अब भी जानलेवा ही थी। रतन जी ने मट्ठे का इंतज़ाम करवाया था भुना जीरा डाल के। खींच गए हम सब दो दो गिलास और फिर चल पड़ी जिप्सी रतन जी बताये रस्ते पर।
चलने के पहले मैंने और दमन में गुरु विजयानंद का दिया तांबे का अभिमंत्रित सिक्का अपनी अपनी जेबो में रख लिया। ये अति प्राचीन तांबे के अभिमंत्रित सिक्के रक्छा कवच के लिए अद्भुत है। कोई बड़ी शक्ति ही इन्हे भेद कर अहित करने की सोचे तो सोचे , साधारण भुत प्रेत तो इनका आभास पाते ही भाग खड़े होते है। रात्रि कालीन शमशाम की खोज यात्राओं में मैंने इन्हे बड़ा उपयोगी पाया है। कोई विशेष तैयारी नहीं की मैंने क्योकि मुझे कोई खास खतरा नहीं दिख रहा था अभी। वो सन्यासी कोई महा पुजारी भी हो सकता था और एक मेडिकल केस भी।
सन्यासी
को ज्यादातर शमशान के आस पास
ही भटकते सुना गया था। अतः
हमने पहले शमशान क्षेत्र का
ही निरीक्छन करने की ठानी।
नदी छेत्र तक पहुंच कर हमने
कच्ची सड़क पे जिप्सी मोड़
ली। रतन जी को वहा के रास्तो
की अच्छी जानकारी थी!
वो
ही आगे की सीट पर बैठ कर प्रह्लाद
सिंह को मार्गदर्शन दे रहे
थे । शाम हो चली थी ,
सूर्य
देव की थकान सतत दृष्टिगोचर
हो रही थी !
उनका
मुंह गहरा लाल हो उठा था । निशा
रानी की सहेलियों थके मादे
भगवान भास्कर को चिढ़ाने आने
लगी थी। लेकिन उनपे ध्यान न
देते हुवे सूर्य देव ने विश्राम
करना ही उचित समझा और चल पड़े
यमुना जी के उस पार के झुर्मुठो
पे रात्रि विश्राम को। 
श्मशान तक पहुंचते पहुंचते गधबेर हो गई थी लेकिन दृष्टि सुलभ रोशनी उपलभ्द थी। हम स्मशान के सिरे पर ही उतर लिए। वातावरण में चिता धूम्र गंध वयाप्त थी। ३ चितए जल रही थी और शाम होने के कारण अब तो लपटों की रोशनी भी महसूस होने लगी थी ! चौथी चिता सजाई जा रही थी । डोम राज चौथी चिता के वाहको को कुछ समझा रहे थे। पहली नज़र में मैंने भाप लिया ये एक साधारण न होके एक जागृत श्मशान है। सोचा, डोम राज से ही सन्यासी का पता पूछ लु , पर उन्हें व्यस्त देखकर इरादा बदल दिया की कही महोदय भड़क ही न पड़े ।
तभी मुझे वहां के काली मंदिर का स्मरण हो आया जिसकी चर्चा रतन जी ने की थी। घाट से नज़रे घूमी तो घाट से काफी दूर हमें शाम के धुंधलके में एक भव्य छायाचित्र सा मंदिर दृष्टिगोचर हुवा। बरबस ही कदम चल पड़े मंदिर की ओर। शमशान के माहौल में बेचारे रतन जी थोड़े असहज से दिखा रहे थे ! मैंने दमन को इशारा किया और फिर हमने रतन जी को बीच ही रख कर मंदिर की ओर चलना शुरू किया ।
निकट पहुंच कर थोड़ी निराशा सी हुवी। मंदिर आधे से ज्यादा ध्वस्त नज़र आया। शायद अब वहा कोई पूजा पाठ नहीं होती थी। प्रवेश द्वार की जगह केवल दो खंभे ही बचे थे उनके ही सहारे पत्थरो द्वारा निर्मित एक दीवार जाती सी लग रही थी जो की अब केवल खँडहर सा ही बोथ दे रही थी। प्रवेश द्वार के नीचे के सारी सीढ़िया वक़्त के थपेड़ो की भेट चढ़ गयी थी। बस कुछ टूटे फूटे पत्थर ही पुरानी कहानी बयां करने को बचे थे।
पुराने मंदिर को देखते ही दमन के अंदर का पुरततवविद जाग उठा। लपक कर टूटे फूटे पथरो पर पैर जमता वो ऊपर चढ़ गया। जोर लगाके हम और रतन जी भी अब मुक्य द्वार के पार पहुंच गए। अचानक दमन खम्भों पर घिस चुके भित्ति चित्रों की तरफ आकर्षित हुवे।
पंडित जी , जरा इधर देखना। ,,,, दमन सिंह ने आवाज दी. ! वो जेब से निकाल कर अपना चश्मा आखो पर चढ़ा चुके थे !
मैंने जेब से पेंसिल टोर्च निकाली और स्तम्भ पर उस जगह रोशनी की जहां दमन ने बताया था
ये उर्ध्वगामी बाराह देवता की तांत्रिक छवि ही है न। ,,,,,, दमन ने मानो मेरी गवाही चाही
हा दमन , लगता तो यही है , छवि थोड़ी घिसी हुवी है और देवता के दन्त पर विराजमान पृथ्वी थोड़ी अश्पष्ट है , लेकिन लगाती तो वही है। मैंने अपनी राय दी
चलो पहले मंदिर में निरीक्छन ही कर ले , कही सन्यासी महोदय यही न विराजमान हो ,,,, मैंने कहा
सही कहा पंडित जी। पता चला वो अंदर हो और हमारे इस तरह अचानक आ जाने से व्यर्थ का झगड़ा शुरू हो जाये।
फिर क्या था , हम लोग सरसरी निगाहो से पूरा मंदिर घूम गए। पर सन्यासी का कही नामो निशान ना पा सके
सन्यासी मंदिर परिसर में नहीं थे।
शंका का समाधान होते ही हम फिर से मंदिर के बनावट और उसके खंडहरों के भब्यता में खो से गए। निसंदेह बड़ा ही भव्य और विशाल मंदिर रहा होगा किसी समय ये। उसपर से शक्ति मंदिर और शमशान का मेल किसी प्रभावशाली साधना केंद्र की और इशारा करता था। हा अब माँ की मूर्ति मंदिर में विद्यमान नहीं थी। शायद पहले ही स्थानांतरित कर दी गई हो
श्मशान तक पहुंचते पहुंचते गधबेर हो गई थी लेकिन दृष्टि सुलभ रोशनी उपलभ्द थी। हम स्मशान के सिरे पर ही उतर लिए। वातावरण में चिता धूम्र गंध वयाप्त थी। ३ चितए जल रही थी और शाम होने के कारण अब तो लपटों की रोशनी भी महसूस होने लगी थी ! चौथी चिता सजाई जा रही थी । डोम राज चौथी चिता के वाहको को कुछ समझा रहे थे। पहली नज़र में मैंने भाप लिया ये एक साधारण न होके एक जागृत श्मशान है। सोचा, डोम राज से ही सन्यासी का पता पूछ लु , पर उन्हें व्यस्त देखकर इरादा बदल दिया की कही महोदय भड़क ही न पड़े ।
तभी मुझे वहां के काली मंदिर का स्मरण हो आया जिसकी चर्चा रतन जी ने की थी। घाट से नज़रे घूमी तो घाट से काफी दूर हमें शाम के धुंधलके में एक भव्य छायाचित्र सा मंदिर दृष्टिगोचर हुवा। बरबस ही कदम चल पड़े मंदिर की ओर। शमशान के माहौल में बेचारे रतन जी थोड़े असहज से दिखा रहे थे ! मैंने दमन को इशारा किया और फिर हमने रतन जी को बीच ही रख कर मंदिर की ओर चलना शुरू किया ।
निकट पहुंच कर थोड़ी निराशा सी हुवी। मंदिर आधे से ज्यादा ध्वस्त नज़र आया। शायद अब वहा कोई पूजा पाठ नहीं होती थी। प्रवेश द्वार की जगह केवल दो खंभे ही बचे थे उनके ही सहारे पत्थरो द्वारा निर्मित एक दीवार जाती सी लग रही थी जो की अब केवल खँडहर सा ही बोथ दे रही थी। प्रवेश द्वार के नीचे के सारी सीढ़िया वक़्त के थपेड़ो की भेट चढ़ गयी थी। बस कुछ टूटे फूटे पत्थर ही पुरानी कहानी बयां करने को बचे थे।
पुराने मंदिर को देखते ही दमन के अंदर का पुरततवविद जाग उठा। लपक कर टूटे फूटे पथरो पर पैर जमता वो ऊपर चढ़ गया। जोर लगाके हम और रतन जी भी अब मुक्य द्वार के पार पहुंच गए। अचानक दमन खम्भों पर घिस चुके भित्ति चित्रों की तरफ आकर्षित हुवे।
पंडित जी , जरा इधर देखना। ,,,, दमन सिंह ने आवाज दी. ! वो जेब से निकाल कर अपना चश्मा आखो पर चढ़ा चुके थे !
मैंने जेब से पेंसिल टोर्च निकाली और स्तम्भ पर उस जगह रोशनी की जहां दमन ने बताया था
ये उर्ध्वगामी बाराह देवता की तांत्रिक छवि ही है न। ,,,,,, दमन ने मानो मेरी गवाही चाही
हा दमन , लगता तो यही है , छवि थोड़ी घिसी हुवी है और देवता के दन्त पर विराजमान पृथ्वी थोड़ी अश्पष्ट है , लेकिन लगाती तो वही है। मैंने अपनी राय दी
चलो पहले मंदिर में निरीक्छन ही कर ले , कही सन्यासी महोदय यही न विराजमान हो ,,,, मैंने कहा
सही कहा पंडित जी। पता चला वो अंदर हो और हमारे इस तरह अचानक आ जाने से व्यर्थ का झगड़ा शुरू हो जाये।
फिर क्या था , हम लोग सरसरी निगाहो से पूरा मंदिर घूम गए। पर सन्यासी का कही नामो निशान ना पा सके
सन्यासी मंदिर परिसर में नहीं थे।
शंका का समाधान होते ही हम फिर से मंदिर के बनावट और उसके खंडहरों के भब्यता में खो से गए। निसंदेह बड़ा ही भव्य और विशाल मंदिर रहा होगा किसी समय ये। उसपर से शक्ति मंदिर और शमशान का मेल किसी प्रभावशाली साधना केंद्र की और इशारा करता था। हा अब माँ की मूर्ति मंदिर में विद्यमान नहीं थी। शायद पहले ही स्थानांतरित कर दी गई हो
यह
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