काले जादू की दुनिया -12



सुबह होते ही करण और अर्जुन आचार्य के आश्रम की ओर निकल पड़े. निशा जब सो के उठी तो उसे करण नज़र नही आया.

कम से कम एक बार मिल के तो जाते....” निशा की आँखे फिर से डब डबा गयी और वो वही चादर मे छुप्कर रोने लगी.

इधर करण बहुत मायूस लग रहा था. वो ना तो खुल कर अपनी बीवी को कुछ बता पा रहा था और ना ही उसे कुछ छुपा पा रहा था. अर्जुन ने उसे हिम्मत बाँधते हुए कहा, “सब सही हो जाएगा भाई...भगवान के घर देर है...अंधेर नही...”

करण भी सब कुछ भगवान पर छोड़ कर आगे की सोचने लगा. कुछ घंटो के बाद अर्जुन की गाड़ी आचार्य के आश्रम तक पहुच गयी. इस बार करण को आचार्य की शक्तियो पर कोई संदेह नही था. दोनो तेज़ कदमो के साथ आश्रम मे बने हुए आचार्य की कमरे तक पहुचे.

आओ...आओ...अर्जुन....” आचार्य ने उनका स्वागत करते हुए उनको अंदर बुलाया.

प्रणाम आचार्य...” बोलते हुए दोनो करण और अर्जुन ने आचार्य के पाओ छु लिए.

सदा सुखी रहो बेटा.....तुम दोनो को यहाँ दोबारा देख कर खुशी हो रही है....पर काजल बिटिया कही नज़र नही आ रही...???” आचार्य की आँखे काजल को तलाश कर रही थी, पर जब काजल नही दिखाई दी तब वो समझ गये कि ज़रूर कोई अनहोनी हो गयी है..

आचार्य आपके बताए अनुसार हम ने तांत्रिक त्रिकाल की गुफा खोज निकाली...उस कमीने ने मेरी प्रेमिका का बलात्कार कर के उसकी बलि चढ़ा दी और...और...काजल को भी बंदी बना लिया...” अर्जुन गिड़गिडाता हुआ बोला.

क्या....???” आचार्य चौंक गये. “यानी अब तक तो त्रिकाल अमर हो चुका होगा क्यूकी उसने आख़िरी बलि चढ़ा दी होगी...”

नही आचार्य....मेरी प्रेमिका कुवारि नही थी...इसलिए त्रिकाल के शैतान ने उसकी बलि स्वीकार नही की...इसलिए उसने काजल को बंदी बना लिया.....कृपा कर के आचार्य कोई उपाए बताइए नही तो वो राक्षस हमारी बहन को मार डालेगा..” अर्जुन लगभग रोते हुए बोला और आचार्य के पाओ मे गिर गया.

मूर्ख...मैने तो सिर्फ़ तुम्हे त्रिकाल के बारे मे बताया था....तुम लोग वहाँ गये क्यू...तुम लोगो को अपनी मूर्खता की ही सज़ा मिल रही है....अरे तुम लोगो को क्या लगा कि तुम लोग उसकी काले जादू के सामने टिक पाओगे....मूर्ख हो तुम लोग...मूर्ख..” आचार्य का माथा गुस्से से तम तमा गया.

हमे माफ़ कर दीजिए आचार्य हम तो वहाँ पर अर्जुन की प्रेमिका को बचाने गये थे....हमे क्या मालूम था कि ऐसा करने से हमारी बहन ही त्रिकाल के चंगुल मे फस जाएगी..” करण भी आचार्य के सामने गिडगिडाया और उनके चरणो मे गिर गया.

पर तुम लोग वहाँ पहुचे कैसे...” आचार्य ने गुस्सा के कहा.

फिर करण और अर्जुन ने त्रिकाल तक के गुफा का पूरा सफ़र का वर्णन आचार्य के सामने कर दिया.

इस दुनिया मे अब एक आप ही सबसे बड़े महापुरुष है जो हमारी मदद कर सकते है....कृपया हमारी बहन और माँ को बचा लीजिए...” अर्जुन रोते हुए बोला.

आचार्य वही समाधि पर बैठ गये और ध्यान लगाने लगे. कुछ देर के ध्यान के बाद उन्होने अपनी आँखो को खोला और करण अर्जुन से कहा, “अगर त्रिकाल अमर नही हुआ है तो उसे मारा जा सकता है...”

वो कैसे गुरुदेव....?” कारण ने पूछा.

एक रास्ता है पर वो बहुत कठिनाइयों से भरा हुआ है...क्या तुम दोनो मे इतनी हिम्मत है..” आचार्य बोले.

अपनी माँ और बहन को बचाने के लिए हम हर बाधा को पार करने के लिए तय्यार है...” करण और अर्जुन ने एक साथ बोला.

तो ठीक है सुनो....यहाँ से दूर राजस्थान मे एक वीरान पुराना शिव जी का मंदिर है...वहाँ के लोगो का मान ना है कि जो शिव जी की मूर्ति का त्रिशूल है वो असली शिव जी के त्रिशूल का एक अंश है जिससे बड़ा से बड़ा शैतान भी मर सकता है...अतीत मे बहुत से लोगो ने उस त्रिशूल की शक्ति को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना चाहा पर कोई वहाँ से जिंदा नही लौटा क्यूकी उस शिव जी की मूर्ति की रक्षा करते है ज़हरीले नाग....जो इंसान के मन मे छुपि लालच को पहचान लेते है और उन्हे डॅस लेते है....माना जाता है कि कोई ऐसा आदमी जिसे वास्तव मे बिना लालच के उस त्रिशूल की ज़रूरत हो...सिर्फ़ उसे ही वो नाग नही डन्सते....वहाँ पर एक साधु ने अपना पूरा जीवन उसी मंदिर मे भगवान शिव की आराधना मे गुज़ार दिया....पर कुछ लोगो ने उस त्रिशूल को पाने के लिए वहाँ के सारे नागो को ज़हरीला दूध पिला के मार दिया....तब उन साधु ने मरते हुए यह श्राप दिया कोई भी उस गाँव मे जिंदा नही रहेगा और उनका शरीर कयि सारे नागो मे बदल गया....और उन मरे हुए नागो की जगह ले ली... ” आचार्य एक साँस मे बोलते चले गये.

तो क्या आप चाहते है कि हम वो त्रिशूल ले आए...” अर्जुन बोला.

हाँ...क्यूकी सिर्फ़ वो ही एक हथियार है जिसपर त्रिकाल का काला जादू नही चलता....लेकिन वो भी अगली अमावस्या से पहले...नही तो वो तुम्हारी कुवारि बहन की बलि चढ़ा कर हमेशा के लिए अमर हो जाएगा...”

आचार्य की यह बात करण और अर्जुन के दिलो दिमाग़ पर बैठ गयी थी. उन्होने आचार्य से आशीर्वाद लिया और जयपुर के पास रामपुरा नामक गाँव था जहाँ पर उनकी माँ का मायका था वहाँ की ओर रवाना हो गये.

इधर त्रिकाल की गुफा मे काजल के साथ रोज छेड़ छाड़ हो रही थी. लेकिन इन सब का पूरा ख़याल रखा जाता था कि किसी भी हालत मे काजल का कौमार्य भंग ना हो, इसलिए त्रिकाल के आदमी सिर्फ़ काजल के जिस्म से खेलते थे

त्रिकाल हमेशा की तरह काजल की माँ रत्ना से बेरहमी से संभोग करता था. बारह साल हो चुके थे रत्ना को भीमकए त्रिकाल के साथ .
 
त्रिकाल अपने कोठरी मे तन्त्र मन्त्र से अपनी काले जादू की ताक़त बढ़ा रहा था. वो समाधि मे लगा हुआ था. तभी उसकी आँखो मे अंगारे उमड़ आए, और वो चिल्लाते हुए दहाडा, “शत्य प्रकाश.......”
त्रिकाल तम तमा गया और किसी घायल शेर की तरह आस पास रखी चीज़ो को तोड़ने और उठाके फेंकने लगा. वही त्रिकाल के शिष्यो मे खलबली मच गयी कि आख़िर उनके मालिक को इतना गुस्सा क्यू आया.

क्या हुआ मालिक...हम से कोई भूल हो गयी क्या..?” एक आदमी ने त्रिकाल से कहा.

तुमसे नही लेकिन उस आचार्य से ज़रूर भूल हो गयी है....उसने हमे मारने का इक लौता तरीका उन दोनो कुत्तो को बता दिया है....इस भूल की सज़ा आचार्य को भुगतनी पड़ेगी...” दहाड़ता हुआ त्रिकाल तन्त्र साधना करने दोबारा बैठ गया.
इधर आचार्य के आश्रम के लोग आने वाले तूफान से अंजान थे. रात ढल चुकी थी और बाहर बारिश ज़ोरो की बरस रही थी.

चलिए जी सोने का समय हो गया है...रात्रि बहुत हो गयी है...” आचार्य सत्य प्रकाश की पत्नी सुनीता देवी बोली.

आप चलिए...हम थोडा यही विश्राम करेंगे...” आचार्य ने विनम्रता से कहा.
सुनीता उनकी बात मान कर अपनी जवान लड़की पायल के साथ कमरे मे चली गयी जब अचानक एक भूकंप सा आने लगा. पूरा आश्रम थर्रा गया. सब लोग डर के मारे इधर उधर भागने लगे. आचार्य को भी अबतक किसी अनहोनी का आभास हो गया था.

तुम और पायल जल्दी से यहाँ से निकालो....मैं पीछे से आता हू...” हड़बड़ाये हुए आचार्य अपने कमरे मे पहुचे जहाँ उनकी पत्नी और बेटी सो रहे थे.

भूकंप से वो लोग भी डरे हुए थे, बाहर बहुत ज़ोरो से आँधी चल रही थी और पूरी ज़मीन काँप रही थी. वो तीनो उठे और आश्रम के गलियारो से होते हुए पास मे बने एक मंदिर मे जाने की कोशिश करने लगे.

जल्दी आओ...इस मंदिर मे छुप जाओ...” आचार्य चिल्लाते पायल का हाथ पकड़ते हुए आगे आगे भाग रहे थे. वो और पायल जल्दी से मंदिर मे जाकर शरण ले लिए. तभी सुनीता देवी जो पीछे पीछे भाग रही थी भूकंप से काँप रही धरती पर लड़खड़ा के गिर गयी.

माँ....” मंदिर के अंदर पहुच चुकी पायल चिल्लाई.

तभी एक काले से धुन्ध ने ज़मीन पर गिरी हुई सुनीता देवी को अपने आगोश मे ले लिया. जैसे जैसे वो धुन्ध छाँटा वैसे वैसे वो हँसने की भयंकर आवाज़ सुनाई देने लगी.

अब वो धुन्ध किसी आदमी का रूप लेने लगी. आचार्य की आँखो मे भय सॉफ देखा जा सकता था. उनको अपनी नही बल्कि अपनी पत्नी की जान की परवाह थी.

उस धुन्ध ने अब तक त्रिकाल का रूप ले लिया था. पायल उसके भयंकर चेहरे को देख कर डर गयी. सुनीता देवी अब त्रिकाल की गिरफ़्त मे थी जो मंदिर तक पहुच पाने से पहले ही गिर पड़ी थी.

अगर इस औरत की भलाई चाहते हो तो इस कच्ची कली को मंदिर से बाहर भेजो....” त्रिकाल ने पायल की तरफ इशारा करते हुए कहा.

पायल यह देख कर बहुत बुरी तरह से डर गयी. आचार्य, त्रिकाल के काले जादू की ताक़त को जानता था और वो अब तक समझ चुका था कि अब उसकी प्यारी पत्नी नही बचेगी. आचार्य की आँखे नम हो गयी.

लगता है तुझे अपनी माँ से ज़रा भी प्यार नही है कुतिया....” त्रिकाल ने पायल के तरफ घूर कर कहा. पायल को लगा कि वो त्रिकाल को देख कर ही वही ख़ौफ्फ से मर जाएगी.

तो फिर ठीक है....अंजाम भुगतने को तय्यार रहना...” दहाड़ते हुए त्रिकाल ने सुनीता देवी के साड़ी का आँचल खीच कर फाड़ दिया . इसे देख कर सुनीता देवी तड़प उठी और त्रिकाल से रहम की भीख माँगने लगी.
यह दृश्य आचार्य और पायल दोनो की आँखो मे चुभ रहा था. तभी त्रिकाल ने फिर दहाडा, “अगर चाहते हो कि यह औरत जिंदा बच जाए तो इस लड़की को मंदिर से बाहर आने को कहो...”

इसे सुनकर पायल बहुत डर गयी, पर अपनी आँखो के सामने अपनी माँ की ऐसी दयनीए हालत उसे देखा ना गया और उसने अपने कदम मंदिर की चार दीवारी के बाहर पड़ने के लिए उठ गये.

रूको बेटी...मंदिर के बाहर मत जाओ...यह दुष्ट पापी इस मंदिर के अंदर कभी नही आ सकता है.” आचार्य ने अपनी बेटी को रोकते हुए कहा.

त्रिकाल यह देख कर गुस्सा और भड़क गया. उसने मन्त्र पढ़ा और सुनीता देवी के सारे कपड़े गायब हो गये और वो सबके सामने नंगी हो गयी. आचार्य और पायल ने ऐसी घिनोनी हरकत देख कर अपनी आँखे बंद कर ली.

वाह क्या माल है तेरी बीवी सत्य प्रकाश....इसे भोगने मे तो बड़ा ही आनंद आएगा...हा हा हा.” त्रिकाल ठहाके लगाते हुए बोला.

फिर त्रिकाल ने अपना बड़ा सा काला लबादा आगे से थोड़ा हटाया | पायल समझ गयी कि उसकी माँ के साथ क्या होने वाला है इसलिए उसने अपने पिता का हाथ छुड़ा कर मंदिर की चार दीवारो से भाग कर त्रिकाल के सामने आ गयी. आचार्य यह सब ख़ौफ्फ भरी निगाहो से देखते रहे.

ले दुष्ट मैं आ गयी हू...अब मेरी माँ को छोड़ दे...” भोली भाली पायल त्रिकाल की बातो मे आ गयी थी.

हा..हा..हा..अरे ओ सत्य प्रकाश...क्या तूने अपनी इस चिकनी जवान लड़की को यही शिक्षा दी है कि मुझ जैसे कमीने शैतान पर इतनी जल्दी भरोसा कर ले...” त्रिकाल अपने लिंग को हाथो से सहलाता हुआ बोला.

आचार्य की तो मानो दुनिया ही बर्बाद हो गयी थी. उन्होने चिल्ला कर कहा, “त्रिकाल मैने तेरा क्या बिगाड़ा है जो तू मेरे परिवार के साथ ऐसा कर रहा है...”

तूने उन दोनो लौन्डो को मेरी मौत का राज़ बता कर अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल कर दी है....अब यह त्रिकाल तेरी इन आँखो के सामने तेरी बीवी और बेटी को भोगेगा...हा..हा.हा.”

आचार्य को मानो दिन मे तारे दिखाई देने लगे. उन्होने भगवान से पूछा कि उनके पुण्य की सज़ा उन्हे और उनके परिवार को क्यू मिल रही है.

इधर पायल को एहसास हुआ कि अब वो कितनी बड़ी मुसीबत मे फस चुकी है. उसने सोचा कि भाग कर वापस मंदिर मे चली जाए लेकिन तभी त्रिकाल ने काला जादू कर के उसे वही रस्सी से बाँध दिया. आश्रम के बाकी सेवको का भी यही हाल था.

त्रिकाल अगले पल सुनीता देवी को भोगने की तैयारी करने  लगा. आचार्य अब टूट चुके थे. वह वही बैठ गये और किसी पुतले की तरह अपनी पत्नी की लूट ती हुई इज़्ज़त को देखने लगे.

त्रिकाल ने ज़बरदस्ती सुनीता देवी को वही लिटा दिया और उन्हे ज़बरदस्ती चौपाया बना  दिया और एक करारा झटका मार कर सुनीता देवी  के परखच्चे उड़ा दिए.

नाआहहिईीईईईईई........” एक लंबी चीख मार कर सुनीता देवी वही ढेर हो गयी.

अरे यह तो मर गयी.....मेरा एक भी वार कुतिया झेल ना सकी...हा हा हा”
पायल यह सब दहशत भरी निगाहो से देख रही थी सुनीता देवी त्रिकाल  के बार को झेल ना पाई और दर्द की वजह से मर गयी. उधर आचार्य को मानो लकवा मार गया हो वो बस पुतले की तरह अपनी पत्नी को मरता हुआ देख रहे थे. उनका जिस्म जवाब दे चुका था बस उनकी आँखो से आँसू लगतार बह रहे थे.
अब त्रिकाल पायल की तरफ मुड़ा. इसे देख कर पायल के रोंगटे खड़े हो गये और वो रस्सी से बँधी छटपटाने लगी और इधर उधर हाथ पाँव मारने लगी. त्रिकाल ने चुटकी बजाई और पायल के जिस्म पर बँधी रस्सी गायब हो गयी पर इससे पहले वो भाग पाती त्रिकाल के विशाल हाथो ने उसे कमर से उठा लिया.

हा...हा...हा...क्या चिकना माल है ...इसे तो मैं अभी के अभी भोगुंगा...”

त्रिकाल के जिस्म पर सुनीता देवी का खून लगा हुआ था. उसने फिर से तन्त्र किया और इस बार पायल के जिस्म से उसके कपड़े गायब हो गये.

उसने ज़बरदस्ती पायल को भी अपनी माँ की तरह कुतिया जैसे चौपाया बनाया और उसे भोगने की तैयारी करने लगा. पायल को लग रहा था कि उसकी माँ की तह वो भी मर जाएगी.

तभी त्रिकाल ने एक जर्दस्त झटका मारा और पायल के कुंवारे जिस्म के चीथड़े उड़ाता हुआ अंदर घुस गया.

आअहह...........” यह पायल की आख़िरी चीख थी क्यूकी उसके बाद वो कभी नही उठी. खून की नादिया तो ऐसे बह रही थी जैसे वहाँ कोई मौत का नंगा नाच हुआ हो.

दोनो कुतिया माँ बेटी एक झटके मे ही मर गयी....हा..हा..हा.” त्रिकाल हंसता हुआ पायल की लाश पर से उठा और आचार्य की तरफ एक बार देखा और चिल्लाया, “देख लिया त्रिकाल से दुश्मनी का नतीजा....हा.हा.हा.”

पर आचार्य के शरीर मे कोई हरकत नही हुई. अपनी बेटी की लाश देख कर उनको भी दिल का दौरा पड़ गया और उनकी भी वही मृत्यु हो गयी. इसे देख त्रिकाल विजय की हुंकार भरने लगा और चिल्लाया, “सत्य प्रकाश...तू भी मर गया....खैर अगर तू जिंदा होता तो मैं आज मार- मार के तुझे मृत्यु लोक भेजता...हा.हा.हा.." कहते हुए त्रिकाल का शरीर धुन्ध बन गया और हवा मे समा गया.

उसके जाते ही काले जादू का असर ख़तम हुआ तो आश्रम के सेवक आज़ाद हो गये. वो दौड़ते भागते आए तो देखा की सुनीता देवी की लाश नंगी पड़ी है और खून की नादिया बह रही है. पास ही में पायल की लाश भी नंगी पड़ी थी जिससे भी बहुत खून बह रह था. वो सब भाग कर आचार्य के पास गये तो उनकी भी मृत्यु हो चुकी थी. पूरे आश्रम मे मातम फैला हुआ था


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