मायावी गणित -4
रामू
को
एक
बार
फिर
ज़ोरों
की
भूख
लगने
लगी।
इसलिए
वह
किचन
की
तरफ
बढ़ने
लगा।
और
जल्दी
ही
वहां
पहुंच
गया।
उसने
इधर
उधर
देखा।
पूरा
किचन
खाली
था
सिवाय
कुछ
जूठे
बर्तनों
के।
उसे
पता
था
कि
उसकी
मम्मी
खाने
के
बाद
बची
हुई
चीज़ों
को
सीधे
फ्रिज
में
ठूंस
देती
हैं।
क्योंकि
खुले
में
रखा
खाना
सड़ने
लगता
है।
मम्मी
की
यह
आदत
इस
वक्त
उसके
लिए
मुसीबत
बन
गयी।
फ्रिज
खोलना
कम
से
कम
उसके
बन्दर
वाले
जिस्म
के
लिए
मुमकिन
न
था।
अब
उसके
सामने
एक
ही
चारा
था
कि
जूठे
बर्तनों
को
चाटना
शुरू
कर
दे।
उसने
यही
किया।
उसे
अपनी
हालत
पर
हंसी
भी
आ
रही
थी
और
रोना
भी।
कभी
वह
घर
में
घुसी
बिल्ली
या
चूहे
को
जूठे
बर्तन
चाटते
देखता
था
तो
मारकर
भगा
देता
था।
आज
यही
काम
वह
खुद
कर
रहा
था।
जल्दी
ही
उसने
सारे
बर्तन
इस
तरह
चाट
कर
साफ
कर
दिये
मानो
अभी
अभी
धुले
गये
हों।
लेकिन
पेट
कमबख्त
अभी
भी
और
की
डिमांड
कर
रहा
था।
यानि
अब
इसके
अलावा
और
कोई
चारा
नहीं
था
कि
वह
किसी
तरह
फ्रिज
खोलने
का
जुगाड़
करे।
वह
फ्रिज
के
पास
पहुंचा
और
उसे
खोलने
की
कोशिश
करने
लगा।
लेकिन
उसकी
सारी
कोशिशें
एक
बन्दर
की
जबरदस्ती
की
उछलकूद
से
ज्यादा
कुछ
न
कर
सकीं।
फिर
उसे
कोने
में
पड़ा
चिमटा
दिखाई
दिया
और
उसे
एक
तरकीब
सूझ
गयी।
उसने
फौरन
चिमटा
उठाया
और
उसे
फ्रिज
के
दरवाजे
में
फंसाकर
जोर
लगाने
लगा।
तरकीब
कामयाब
रही
और
फ्रिज
खुल
गया।
अन्दर
से
आने
वाले
पकवानों
की
खुशबू
ने
उसकी
भूख
दोगुनी
कर
दी।
उसने
एक
ढक्कन
उठाया
और
यह
देखकर
उसकी
बाँछें
खिल
गयीं
कि
सामने
उसकी
मनपसंद
डिश
यानि
छोले
मौजूद
थे।
इधर
उधर
देखे
बिना
उसने
दोनों
हाथों
से
छोले
उठाकर
खाने
शुरू
कर
दिये।
पेट
भरने
की
कवायद
ने
उसे
आसपास
के
माहौल
से
बेखबर
कर
दिया।
अचानक
बर्तन
गिरने
की
छनछनाहट
ने
उसे
चौंका
दिया।
उसने
मुंह
उठाकर
देखा
तो
भौंचक्का
रह
गया।
किचन
के
दरवाजे
पर
उसकी
मां
मौजूद
थी
और
डरी
हुई
नजरों
से
उसकी
तरफ
देख
रही
थी।
शायद
वह
किचन
में
बर्तन
रखने
आयी
थी,
जो
उसके
हाथ
से
छूटकर
जमीन
पर
पड़े
हुए
थे।
अब
दोनों
एक
दूसरे
की
आँखों
में
आँखें
डाले
हुए
मूर्ति
बने
हुए
अपनी
अपनी
जगह
एक
ही
एक्शन
में
खड़े
हुए
थे।
सम्राट
इस
समय
जंगल
में
मौजूद
अपने
अंतरिक्ष
यान
में
मौजूद
था।
उसके
साथी
उसे
घेरे
हुए
थे
और
उनके
बबीच
कोई
गहन
विचार
विमर्श
हो
रहा
था।
हमेशा
की
तरह
सम्राट
रामू
के
हुलिए
में
ही
था।
''हम
अपने
मिशन
में
काफी
हद
तक
कामयाबी
हासिल
कर
चुके
हैं।
अब
बहुत
जल्द
हम
अपने
टार्गेट
तक
पहुंचने
वाले
हैं।"
सम्राट
काफी
उत्साहित
होकर
बता
रहा
था।
''सम्राट,
यदि
आप
उचित
समझें
तो
एक
बात
पूछना
चाहता
हूं।"
सिलवासा
ने
सम्राट
की
ओर
देखा।
''हां
हां।
पूछो।"
''अपना
टार्गेट
तो
हम
सभी
को
मालूम
है।
यानि
इस
ग्रह
को
पूरी
तरह
अपने
कब्जे
में
करना।
लेकिन
इस
टार्गेट
को
हासिल
करने
के
लिए
हम
क्या
रणनीति
अपना
रहे
हैं,
ये
शायद
हममें
से
किसी
को
नहीं
मालूम।"
सम्राट
ने
बारी
बारी
से
सबकी
ओर
नजर
की
फिर
बोला,
''क्या
वास्तव
में
आपमें
से
किसी
को
मेरी
रणनीति
के
बारे
में
कुछ
नहीं
पता?
सभी
ने
नकारात्मक
रूप
में
सर
हिला
दिया।
''ठीक
है
मैं
बताता
हूं।
इस
पृथ्वी
का
सर्वश्रेष्ठ
प्राणी
मानव
है।
जिसका
पूरी
पृथ्वी
पर
लगभग
अधिकार
है।
एक
वही
है
जो
बुद्धि
रखता
है
और
उसके
अनुसार
निर्णय
लेता
है।
अपनी
अक्ल
से
काम
लेकर
उसने
पूरी
पृथ्वी
पर
कब्जा
जमा
लिया
है।
इसलिए
इस
पृथ्वी
को
अपने
अधिकार
में
करने
के
लिए
उसपर
नियन्त्रण
करना
जरूरी
है।"
सम्राट
की
बात
वहां
मौजूद
सभी
लोग
गौर
से
सुन
रहे
थे।
''अब
इनपर
कण्ट्रोल
कैसे
किया
जाये,
इसपर
मैं
इस
ग्रह
पर
उतरने
से
पहले
ही
विचार
कर
रहा
था।
क्योंकि
जिस
प्रजाति
ने
पूरी
पृथ्वी
पर
कब्जा
जमा
रखा
है
उनसे
पार
पाना
बहुत
दुष्कर
होगा,
इतना
तो
तय
था।"
''अगर
हम
पूरी
मानव
प्रजाति
को
समाप्त
कर
दें
तो
बाकी
जीवों
पर
आसानी
से
काबू
पाया
जा
सकता
है।"
डेव
ने
कहा।
''यकीनन
हम
ऐसा
कर
सकते
हैं।
लेकिन
हमारा
टार्गेट
है
इस
ग्रह
के
समस्त
प्राणियों
को
अपने
कण्ट्रोल
में
करना
न
कि
उन्हें
समाप्त
करना।
ऐसे
में
कोई
दूसरा
ही
तरीका
अपनाना
ठीक
रहता।
अब
इत्तेफाक
से
यान
उतरते
वक्त
मेरा
एक्सीडेंट
हो
गया।
और
मेरे
मस्तिष्क
को
पृथ्वी
के
एक
बच्चे
का
शरीर
देना
पड़ा।
यहीं
से
मुझे
एक
अनोखा
रास्ता
मिल
गया।
''कौन
सा
रास्ता
सम्राट?"
रोमियो
ने
पूछा।
''दरअसल
इस
ग्रह
की
सर्वाधिक
शक्तिशाली
प्रजाति
एक
अनदेखी
ताकत
से
भय
खाती
है।
और
उसकी
पूजा
या
इबादत
करती
है।
वह
अनदेखी
ताकत
कहीं
ईश्वर
कहलाती
है,
कहीं
खुदा
तो
कहीं
गॉड
।"
''आप
सही
कह
रहे
हैं
सम्राट।
यहां
आने
से
पहले
जब
हम
पृथ्वी
का
अध्ययन
कर
रहे
थे
तो
यह
बात
काफी
गहराई
से
हमने
पढ़ी
थी।"
सिलवासा
ने
सर
हिलाया।
''इसी
तथ्य
ने
मुझे
रास्ता
दिखाया
इन
मानवों
को
अपने
कण्ट्रोल
में
करने
का।
हम
वैज्ञानिक
रूप
से
इन
पृथ्वीवासियों
से
बहुत
ज्यादा
विकसित
हैं।
और
ऐसे
कारनामे
कर
सकते
हैं
जो
इनको
किसी
चमत्कार
से
कम
नहीं
दिखाई
देंगे।
रामू
के
रूप
में
मैंने
ऐसे
बहुत
से
कारनामे
कर
भी
दिये
हैं।
जिसके
बाद
मेरे
आसपास
रहने
वाले
लोग
मानने
लगे
हैं
कि
मेरे
अन्दर
कोई
ईश्वरीय
ताकत
आ
गयी
है।"
''यह
तो
बहुत
बड़ी
कामयाबी
है
सम्राट।"
डेव
के
चेहरे
पर
प्रसन्नता
थी।
''हां।
अब
मेरा
अगला
टार्गेट
है
पूरी
दुनिया
के
मनुष्यों
में
यह
विश्वास
जगाना
कि
मैं
ईश्वर
का
अवतार
हूं।
और
जब
पूरी
दुनिया
इसपर
यकीन
कर
लेगी
तो
उसी
समय
मैं
यह
घोषणा
कर
दूंगा
कि
मैं
ही
ईश्वर,
अल्लाह
या
गॉड
हूं।"
सम्राट
ने
अपना
पूरा
मंसूबा
उनके
सामने
जाहिर
कर
दिया।
सब
ने
ख़ुशी
से
सर
हिलाया।
''फिर
तो
पूरी
पृथ्वी
बिना
कुछ
कहे
हमारे
कदमों
में
आ
गिरेगी।"
सिलवासा
ने
खुश
होकर
कहा।
''लेकिन
ये
काम
इतना
आसान
भी
नहीं।
इस
पृथ्वी
पर
एक
से
एक
खुराफाती
मनुष्य
भी
मौजूद
हैं।
जो
अक्सर
आँखों
देखी
को
भी
झुठलाने
पर
तुले
रहते
हैं।
इसी
पृथ्वी
पर
ऐसे
लोग
भी
हैं
जो
अपने
ईश्वर
की
सत्ता
को
भी
स्वीकार
नहीं
करते।
ऐसे
में
वह
मुझे
ईश्वर
के
रूप
में
कुबूलेंगे
या
नहीं,
ये
एक
बड़ा
प्रश्न
है।"
सम्राट
ने
फौरन
ही
उनकी
उम्मीदों
को
बहुत
आगे
बढ़ने
से
रोका।
''उन्हें
मानना
ही
पड़ेगा।
कब
तक
वे
हमारे
चमत्कारों
को
झुठलायेंगे।
और
अगर
मुटठी
भर
लोग
न
भी
माने
तो
हम
उन्हें
चुपचाप
मौत
के
घाट
उतार
देंगे।"
डेव
ने
क्रोधित
होकर
कहा।
''ये
इतना
आसान
भी
नहीं
है।
सम्राट
मौन
होकर
कुछ
सोचने
लगा।
-------
कुछ
पलों
तक
रामू
और
उसकी
माँ
जड़वत
बने
एक
दूसरे
को
देखते
रहे।
फिर
उसकी
माँ
ने
चीखने
के
लिए
अपना
मुंह
खोला।
एक
बन्दर
अगर
किसी
के
सामने
आ
जाये
तो
चीखने
के
अलावा
और
कोई
चारा
ही
कहां
होता
है।
उसी
वक्त
रामू
को
एक
तरकीब
सोची।
उसने
फौरन
अपने
दोनों
हाथ
जोड़
दिये
और
मां
के
कदमों
में
लोट
गया।
आखिर
उसकी
मां
ही
तो
उसकी
उम्मीदों
का
आखिरी
सहारा
थी।
और
माँ
के
कदमों
में
गिरना
तो
किसी
के
लिए
भी
गर्व
की
बात
होती
है।
मिसेज
वर्मा
ने
जब
एक
बन्दर
को
अपने
कदमों
में
लोटते
देखा
तो
उसका
डर
हैरत
में
बदल
गया।
उसने
अब
गौर
से
बन्दर
की
आँखों
में
देखा
तो
वहां
उसे
आंसुओं
की
बूंदें
चमकती
दिखाई
दीं।
मिसेज
वर्मा
का
दिल
करुणा
से
भर
उठा।
न
मालूम
इस
बन्दर
को
कौन
सा
कष्ट
था।
जो
वह
इस
तरह
रो
रहा
था।
वह
घुटनों
के
बल
जमीन
पर
बैठ
गयी
और
उसके
सर
पर
हाथ
फेरने
लगी।
अपनी
माँ
का
स्नेह
पाकर
बन्दर
बने
रामू
की
आँखों
से
आँसू
और
तेजी
से
गिरने
लगे।
उसे
यूं
रोता
देखकर
मिसेज
वर्मा
ने
उसे
अपने
सीने
से
लगा
लिया।
''मत
रो।
तुम्हें
जरूर
कोई
बड़ी
तकलीफ
है।
शायद
तुम्हें
भूख
लगी
है।
मैं
अभी
तुम्हें
कुछ
खिलाती
हूं।"
वह
उसे
पुचकारती
हुई
फ्रिज
की
ओर
बढ़ी
जो
पहले
से
ही
खुला
हुआ
था।
उसने
गौर
से
फ्रिज
के
पास
पड़े
हुए
चिमटे
को
देखा,
फिर
रामू
की
तरफ।
''अरे
वाह
तुम
तो
बहुत
अक्लमन्द
बन्दर
हो।
कैसी
तरकीब
लगाकर
फ्रिज
को
खोला
है।"
मिसेज
वर्मा
ने
चार
पाँच
डिशेज
निकालकर
किचन
के
काउंटर
पर
रख
दीं,
''बताओ,
क्या
खाओगे?
बन्दर
बने
रामू
ने
फौरन
छोलों
की
तरफ
इशारा
किया।
''कमाल
है।
तुम्हारी
पसन्द
तो
बिल्कुल
मेरे
बेटे
रामू
से
मिलती
है।
उसे
भी
छोले
बहुत
पसन्द
हैं।
लो
खा
लो।
उसके
लिए
मैं
और
बना
दूंगी।
वह
शायद
उस
बहुरूपिये
की
तरफ
इशारा
कर
रही
थी।
जो
उसकी
जगंह
उसी
के
मेकअप
में
जमा
हुआ
था।
मिसेज
वर्मा
ने
एक
प्लेट
में
छोले
निकालकर
उसके
सामने
रख
दिये।
रामू
उसे
खाने
लगा।
उसे
इतिमनान
था,
कि
अब
कोई
भगायेगा
नहीं।
यही
फर्क
होता
है
माँ
में
और
दूसरों
में।
उसकी
मां
बन्दर
के
जिस्म
में
भी
उसकी
भावनाओं
को
समझ
गयी
थी
और
उससे
प्यार
कर
रही
थी।
जबकि
दूसरे
उसे
देखते
ही
दुत्कार
देते
थे।
उसे
सबसे
ज्यादा
गुस्सा
नेहा
के
ऊपर
था
जो
कहने
को
उसकी
बहुत
बड़ी
हमदर्द
थी
लेकिन
इस
हुलिये
में
देखकर
ऐसा
बुरी
तरह
दुत्कारा
था
जैसे
वह
कोई
चोर
हो।
''तुम
ज़रूर
पास
के
जंगल
से
आये
होगे।
लेकिन
बिल्कुल
मालूम
नहीं
होता
कि
तुम
जंगली
हो।
ऐसा
लगता
है
कि
तुम
किसी
बहुत
ही
सभ्य
घर
में
पले
बढ़े
हो।"
मिसेज
वर्मा
ने
कहा।
और
रामू
की
हलक
में
निवाला
अटक
गया।
वह
बुरी
तरह
खांसने
लगा।
''आराम
से
खाओ।
जल्दी
करने
की
जरूरत
नहीं।"
मिसेज
वर्मा
जल्दी
से
गिलास
में
पानी
निकाल
लायी,
''लो
इसे
पी
लो।
इसको
ऐसे
पीते
हैं।
वह
अपने
मुंह
के
पास
गिलास
ले
गयी
और
दो
तीन
घूंट
लिये।
शायद
उसने
सुन
रखा
था
कि
बन्दर
इंसानों
की
नकल
करते
हैं।
रामू
ने
उसके
हाथ
से
गिलास
ले
लिया
और
बाकायदा
पीते
हुए
पूरा
गिलास
खाली
कर
दिया।
मिसेज
वर्मा
उसे
हैरत
से
देख
रही
थी।
ऐसा
सभ्य
बन्दर
उसने
पहली
बार
देखा
था।
****************
तीनों
लड़कों
के
मुंह
उतरे
हुए
थे।
अग्रवाल
सर
के
ड्राइंग
रूम
में
अमित,
गगन
और
सुहेल
की
तिकड़ी
मौजूद
थी।
तीनों
अग्रवाल
सर
के
आने
का
इंतिजार
कर
रहे
थे।
''आखिर
कहां
से
आ
गयी
रामू
में
इतनी
पावर?"
अमित
हाथ
मलते
हुए
बोला।
''कहीं
उसकी
बात
सच
तो
नहीं?"
सुहैल
ने
आँखें
फैलाते
हुए
सबकी
तरफ
देखा।
''कौन
सी
बात?"
''यही
कि
अल्लाह
उसके
ऊपर
मेहरबान
हो
गया
है,
और
उसे
ताकत
बख्श
दी
है?"
''जबरदस्ती
की
मत
उड़ाओ।
भला
अल्लाह
उसे
ताकत
क्यों
देने
लगा!"
अमित
ने
सुहेल
को
घूरा।
''लेकिन
अगर
तुम
गहराई
से
सोचो।
जो
रामू
क्लास
का
सबसे
घोंचू
लड़का
था,
वह
गणित
में
एकाएक
इतना
तेज़
हो
गया
कि
अग्रवाल
सर
को
मात
देने
लगा।
फिर
उसने
मिसेज
कपूर
का
फोन
सिर्फ
पेन
की
नोक
की
मदद
से
ठीक
कर
दिया।
उसके
इक्ज़ाम
में
जो
कुछ
आने
वाला
था
वह
उसको
पहले
से
पता
चल
गया।
और
अब
यह
ताज़ा
घटना।......"
दोनों
ने
उसकी
बात
का
कोई
जवाब
नहीं
दिया।
वे
भी
अन्दर
ही
अन्दर
सुहेल
की
बात
से
कायल
थे।
अग्रवाल
सर
ने
अन्दर
प्रवेश
किया
और
तीनों
उनके
सम्मान
में
खड़े
हो
गये।
''बैठो
बैठो
तुम
लोग।
कहो
क्या
हाल
है?"
''ठीक
है
सर।"
गगन
ने
धीरे
से
कहा।
''क्या
बात
है,
आज
तुम
लोग
काफी
बुझे
बुझे
नज़र
आ
रहे
हो!
क्या
समस्या
है?"
''सर
समस्या
तो
हमारी
एक
ही
है।
रामू।"
''वह
तो
हम
सब
के
लिए
समस्या
बन
गया
है।
एक
स्टूडेन्ट
की
नालेज
टीचर
से
ज्यादा
हो
गयी
है।
कहीं
स्कूल
वाले
मुझे
निकालकर
उसे
टीचर
न
रख
लें।"
अग्रवाल
सर
के
माथे
पर
चिन्ता
की
लकीरें
साफ
दिख
रही
थीं।
''लेकिन
वो
लोग
ऐसा
क्यों
करेंगे?
आपके
पास
तो
क्वालिफिकेशन
है।
जबकि
रामू
तो
अभी
हाईस्कूल
भी
पास
नहीं
है।"
गगन
ने
हमदर्दी
से
सर
की
ओर
देखते
हुए
कहा।
''तुम
इस
स्कूल
के
ट्रस्टी
को
नहीं
जानते।
महाकंजूस
और
चीकट
टाइप
का
है।
अगर
वो
रामू
को
रखेगा
तो
इसे
सैलरी
भी
कम
देनी
पड़ेगी
और
उसका
काम
भी
हो
जायेगा।
वो
मेरी
क्वालिफिकेशन
को
चाटेगा
भी
नहीं।"
मामला
वाकई
गंभीर
था।
सभी
अपनी
अपनी
जगंह
सोच
में
पड़
गये।
जबकि
बन्दर
बने
असली
रामू
ने
भरपेट
खाना
खा
लिया
था
और
अब
उसे
नींद
आ
रही
थी।
''लगता
है
तुम
काफी
थक
गये
हो
और
अब
तुम्हें
नींद
आ
रही
है।"
मिसेज
वर्मा
ने
उसकी
तरफ
देखा।
रामू
ने
सहमति
में
सर
हिलाया।
''मेरे
साथ
आओ।"
मैं
तुम्हारे
सोने
का
इंतिजाम
कर
देती
हूं।
मिसेज
वर्मा
ने
किचन
से
बाहर
जाने
के
लिये
कदम
बढ़ाया।
रामू
उसके
पीछे
पीछे
हो
लिया।
उसे
देखकर
सुखद
आश्चर्य
हुआ
कि
वह
उसे
रामू
के
यानि
उसी
के
कमरे
की
तरफ
ले
जा
रही
थी।
'तो
क्या
मम्मी
ने
उसे
पहचान
लिया
है?
हो
सकता
है।
भला
कौन
मां
होगी
जो
अपने
लाल
को
नहीं
पहचानेगी।'
वह
ख़ुशी
ख़ुशी
उसके
पीछे
बढ़ने
लगा।
उसकी
मम्मी
रामू
के
कमरे
के
दरवाजे
पर
पहुंच
गयी।
लेकिन
वहां
न
रुककर
वह
आगे
बढ़
गयी।
और
एक
छोटे
से
खुले
स्थान
के
पास
जाकर
खड़ी
हो
गयी
जो
रामू
के
कमरे
की
बगल
में
मौजूद
था।
यहां
एक
पाइप
था
जो
छत
की
तरफ
गया
हुआ
था।
उस
पाइप
से
बरसात
के
मौसम
में
छत
का
गंदा
पानी
नीचे
बहता
था।
''तुम
यहां
आराम
करो।
मैं
जाती
हूं।
कुछ
और
काम
निपटाना
है।"
उसकी
मम्मी
वहाँ
इशारा
करके
वहां
से
चली
गयी
और
वह
हसरत
से
उस
छोटी
सी
गंदी
जगह
को
घूरने
लगा।
उसके
कमरे
की
एक
खिड़की
उसी
तरफ
खुलती
थी
और
वह
अक्सर
उसका
इस्तेमाल
थूकने
के
लिए
करता
था।
अब
इस
जगंह
को
आराम
के
लिए
इस्तेमाल
करना,
उसे
सोचकर
ही
उबकाई
आ
गयी।
 
 
 
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