मायावी गणित-3
यह एक अनोखी परीक्षा थी, जिसमें परीक्षा देने वाला केवल एक था और परीक्षक भी केवल एक। लेकिन देखने वाले बेशुमार थे। रामू यानि की सम्राट एक कुर्सी पर बैठा हुआ अग्रवाल सर के आने का इंतिजार कर रहा था। उसके सामने नोटबुक खुली रखी थी। जिसमें उसे अग्रवाल सर के सवालों के जवाब लिखने थे।
उससे थोड़ी दूर पर बाकी स्टूडेन्टस की भीड़ लगी हुइ थी। उनके पास कुछ टीचर्स भी मौजूद थे।
अचानक रामू ने पेन उठाया और नोटबुक पर तेजी से कुछ लिखना शुरू कर दिया।
''क्या लिख रहे हो रामू?" वहाँ मौजूद मिसेज कपूर ने टोका।
''अग्रवाल सर के प्रश्नों के जवाब।" रामू ने जवाब दिया और वहाँ मौजूद सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
''लेकिन अग्रवाल सर तो अभी अपने सवाल लेकर आये ही नहीं।" हैरत से कहा फिजि़क्स के टीचर सक्सेना सर ने।
''मैं जानता हूं वह कौन से प्रश्न लाने वाले हैं।" रामू ने अपना लिखना जारी रखा। सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे से कानाफूसियां करने लगे थे। लग रहा था हाल में ढेर सारी मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हैं।
''तुम्हें किसने बताया उन प्रश्नों के बारे में ?" सक्सेना सर ने फिर पूछा।
''किसी ने नहीं।" रामू का जवाब पहले की तरह संक्षिप्त था।
उसी समय वहाँ अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। उनके हाथ में प्रश्न पत्र भी मौजूद था।
''ये लो और लिखना शुरू करो।" अग्रवाल सर ने प्रश्नपत्र रामू की तरफ बढ़ाया।
जवाब में रामू ने नोटबुक अग्रवाल सर की तरफ बढ़ा दी।
''ये क्या है?" अग्रवाल सर ने नोटबुक की तरफ नज़र की।
''आपके प्रश्नों के जवाब।"
''क्या? लेकिन मैंने तो अभी प्रश्नपत्र दिया ही नहीं।" हैरत का झटका लगा अग्रवाल सर को।
''मुझे मालूम था कि आप कौन कौन से प्रश्न पत्र देने वाले हैं। इसलिए वक्त न बरबाद करते हुए मैंने जवाब पहले ही लिख दिये।"
अविश्वसनीय भाव से पहले अग्रवाल सर ने रामू का चेहरा देखा और फिर नोट बुक पढ़ने लगे। जैसे जैसे वह आगे पढ़ रहे थे उनकी आँखें फैलती जा रही थीं।
''क्या बात है अग्रवाल साहब?" मिसेज कपूर ने पूछा।
''यह कैसे हो सकता है!"
''क्या?" सक्सेना सर भी उधर मुखातिब हो गये।
''इसने बिल्कुल सही जवाब लिखे हैं। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो इसकी किसी ने मदद की है या फिर..!"
''या फिर क्या अग्रवाल साहब?" सक्सेना सर ने पूछा।
''या फिर इसके अंदर कोई दैवी शक्ति आ गयी है।"
''मुझे तो यही बात सही लगती है!" मिसेज कपूर आँखें फैलाकर बोली, ''कल इसने मेरा मोबाइल चुटकियों में सही कर दिया था। इसमें जरूर कोई दैवी शक्ति घुस गयी है।"
''रामू तुम खुद बताओ, क्या है असलियत?" सक्सेना सर ने रामू की तरफ देखा।
रामू बना सम्राट कुछ नहीं बोला। बस मन्द मन्द मुस्कुराता रहा।
घण्टी की आवाज पर मिसेज वर्मा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने उनके पड़ोसी मलखान सिंह मौजूद थे। हाथ में मिठाई का डब्बा लिये हुए।
''नमस्कार जी। लो जी मिठाई खाओ।" मलखान सिंह ने जल्दी से मिठाई का डब्बा मिसेज वर्मा की तरफ बढ़ाया।
मिसेज वर्मा ने इस तरह मलखान सिंह की तरफ देखा मानो उनकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो।
किसी को एक गिलास पानी भी न पिलाने वाले मक्खीचूस मलखान सिंह के हाथ में जो मिठाई का डब्बा था उसमें काफी मंहगी मिठाइयां थीं।
''आपके यहां सब ठीक तो है?" मिसेज वर्मा ने हमदर्दी से पूछा।
''अरे अपने तो वारे न्यारे हो गये। और सब तुम्हारे सुपुत्र की वजह से हुआ है।" मलखान जी ख़ुशी से झूम रहे थे।
''मैं कुछ समझी नहीं। ऐसा क्या कर दिया रामू ने।" चकराकर पूछा मिसेज वर्मा ने।
''उसने परसों मुझे राय दी कि जॉली कंपनी के शेयर खरीद लो। फायदे में रहोगे। मैंने खरीद लिये। आज तीसरे दिन उसके शेयरों के भाव तीन गुना बढ़ चुके हैं। मैं तो मालामाल हो गया। कहाँ है वो, मैं उसको अपने हाथों से मिठाई खिलाऊँगा।"
''उसने जरूर आपको राय दी होगी। इधर कई दिनों से उसका दिमाग कुछ गड़बड़ चल रहा है। मैं तो उनसे भी कह चुकी हूं लेकिन वो कुछ सुनते ही नहीं।"
''बहन जी, आपके लड़के में जरूर कोई पुण्य आत्मा घुस गयी है।"
''मतलब उसके अंदर कोई भूत प्रेत घुस गया है। भगवान, तूने मुझे ये दिन भी दिखाना था।" फिर मिसेज वर्मा अपनी ही परेशानी में पड़ गयी और मलखान सिंह मौका देखकर वहां से खिसक लिए।
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बंदर रामू इस समय एक पाइप के अंदर दुबका बैठा था। उसका पूरा जिस्म फोड़े की तरह दर्द कर रहा था। उस नासपीटे बंदरिया के आशिक ने बुरी तरह उसकी पिटाई की थी और फिर दोनों बाहों में बाहें डाले वहां से कूद कर नज़दीक के पार्क में निकल गये थे। वह वहीं आंसू बहाता हुआ बैठा रह गया था। गणित से जी चुराने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी, यह तो उसने सोचा ही नहीं था।
जब उसे थोड़ा सुकून हुआ तो उसने पाइप के अंदर झांका। काफी लम्बा पाइप मालूम हो रहा था। उसे काफी दूर पर रौशनी दिखाई दी। 'यानि वह पाइप का दूसरा सिरा है। उसने सोचा और धीरे धीरे दूसरी तरफ बढ़ने लगा।
जल्दी ही वह दूसरे सिरे पर पहुंच गया। यह सिरा एक गली में खुलता था। गली के उस पार एक और मकान दिखाई दे रहा था।
उसने छलांग लगाई और उस मकान की छत पर पहुंच गया।
''यह मकान तो जाना पहचाना लगता है।" उसने चारों तरफ देखा, दूसरे ही पल उसके दिमाग को झटका सा लगा, ''अरे ये तो मेरा ही घर है।
उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसका मन चाहा दौड़कर नीचे जाये और अपने मम्मी पापा से लिपट जाये।
लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान आ गया कि वह इस समय रामू नहीं बल्कि एक बंदर है और इस हालत में दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं पहचान सकती। उसके माँ बाप भी नहीं। उसकी खुशियों पर ओस पड़ गयी और वह ठण्डी साँस लेकर वहीं कोने में बैठ गया।
पीरियड अभी अभी खत्म हुआ था। नेहा अपनी सहेलियों पिंकी और तनु के साथ बाहर निकल आयी।
''आज क्लास में रामू नहीं दिखाई दिया, कहां रह गया?" नेहा ने इधर उधर देखा।
''कालेज तो आया था वह। कहीं चला गया होगा।" पिंकी ने ख्याल जाहिर किया।
''आजकल वह अजीब अजीब हरकतें कर रहा है। कभी गुमसुम हो जाता है तो कभी ऐसा मालूम होता है जैसे वह आइंस्टीन की तरह बहुत बड़ा साइंटिस्ट हो गया है।"
''लेकिन मैं देख रही हूं कि तू आजकल उसकी कुछ ज्यादा ही फिक्र करने लगी है। कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं?" शोख अंदाज में कहा तनु ने।
''गड़बड़ कुछ नहीं। मुझे हैरत है कि अचानक वह इतना जीनियस कैसे हो गया?"
''गगन को भी हैरत है कि अचानक तूने उससे मुंह क्यों मोड़ लिया।"
''एवरीवन वान्टस बेस्ट। तुम लोगों को पता है कि मैं मैथ में कमजोर हूं। इसीलिए मैंने गगन को घास डाली कि वह मेरी हेल्प करेगा। लेकिन मुश्किल सवालों में वह भी फंस जाता है। बट रामू तो जबरदस्त है। आँख बन्द करके जवाब देता है। चाहे जितना मुश्किल सवाल ले जाओ उसके सामने।"
''लो हटाओ। तुम्हारा पुराना आशिक तो इधर ही आ रहा है।" पिंकी ने एक तरफ इशारा किया, जिधर से गगन चला आ रहा था। उसके हाथों में फूलों का एक गुलदस्ता था।
''यहां से जल्दी निकल चलो, वरना अभी जख्म बन जायेगा आकर।"
लेकिन इससे पहले कि वे वहां से खिसकतीं, गगन ने उन्हें देख लिया था और रुकने का इशारा भी कर दिया था। फिर वह तेजी से उनकी ओर आया।
''हाय नेहा! हैप्पी बर्थ डे।" उसने गुलदस्ता नेहा की ओर बढ़ाया।
''लगता है रामू ने गणित के साथ तुम्हारी मेमोरी भी चौपट कर दी है। मेरा बर्थ डे अगले महीने है।" नेहा ने उसकी तरफ हमदर्दी से देखा। उसे यकीन हो गया था कि रामू की कामयाबियों ने गगन का दिमाग उलट दिया है।
''मैंने पुरातन काल के शक संवत कैलेण्डर के हिसाब से तुम्हारे जन्म दिन की गणना की है। और उस कैलकुलेशन के हिसाब से तुम्हारा जन्म दिन आही है।"
''बड़ी मेहनत कर डाली तुमने तो। लेकिन मैं पहले ये कैलकुलेशन रामू से जँचवाऊंगी। अगर सही निकली तब तुम्हें थैंक्यू कहूंगी।" नेहा का ये जुमला गगन को सुलगाने के लिए काफी था। फिर नेहा तो आगे बढ़ गयी और वह वहीं खड़ा हाथ में पकड़े गुलदस्ते को गुस्से से घूरने लगा मानो सारी गलती उसी गुलदस्ते की है।
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बंदर बना रामू चूंकि अपने घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था, इसलिए वह आराम से अपने ड्राइंग रूम में पहुंच गया। अभी तक उसकी मुलाकात अपनी मम्मी से नहीं हुई थी। और पापा से इस वक्त मिलने का सवाल ही नहीं था। क्योंकि ये उनके आफिस का वक्त था।
उसने देखा सारी किताबें कायदे से रैक में सजी हुई थीं।
'शायद मेरे पीछे मम्मी ने ये सब किया है।' उसने सोचा। किताबों के बीच मैथ की टेक्स्ट बुक देखकर उसके तनबदन में आग लग गयी। उसी किताब की वजह से तो आज उसकी ये हालत हुई थी। अब न तो वो जानवरों के रेवड़ में शामिल था और न ही इंसानों के।
'मम्मी पापा ने मुझे कितना ढूंढा होगा।' उसे अफसोस हो रहा था, 'क्यों वह खुदकुशी करने के लिए भागा। उसके मम्मी पापा का क्या हाल होगा। मम्मी तो रो रोकर बेहाल हो गयी होगी।'
उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी, और वह जल्दी से एक अलमारी के पीछे छुप गया। अन्दर दाखिल होने वाली उसकी मम्मी ही थी और किसी नयी फिल्म का रोमांटिक गाना गुनगुना रही थी।
'मम्मी तो पूरी तरह खुश दिखाई दे रही है। यानि उसे मेरे गायब होने का जरा भी दु:ख नहीं। पूरी दुनिया में किसी को मेरी परवाह नहीं।' दु:ख के साथ उसने सोचा और वहीं जमीन पर बैठ गया।
अब मम्मी ने वहां की सफाई शुरू कर दी थी।
''रामू, मैंने तुम्हारा नाश्ता लगा दिया है। जल्दी से कर लो वरना स्कूल की देर हो जायेगी।' मम्मी ने पुकार कर कहा और रामू को हैरत का एक झटका लगा। वह तो बंदर की शक्ल में वहां मौजूद था, फिर मम्मी किसे आवाज दे रही थीं?
''मम्मी मैं नाश्ता कर रहा हूं।" अंदर से आवाज आयी और रामू को एक बार फिर चौंकना पड़ा। ये तो हूबहू उसी की आवाज थी, जिसको मुंह से निकालने के लिए वह कई दिन से तरस रहा था।
"लेकिन यह कौन बहुरूपिया है जिसने उसकी जगह पर उसके घर में कब्जा जमा लिया है?" उसके दिल में उसे देखने की इच्छा जागृत हो गयी। लेकिन इसके लिए जरूरी था कि वह डाइनिंग रूम में पहुंचे और वह भी बिना किसी की नजर में आये। वरना वहां अच्छा खासा बवाल खड़ा हो जाता।
उसकी मां वहां सफाई करके निकल गयी। वह भी छुपते छुपाते उसके पीछे पीछे चला, यह देखने के लिए कि कौन सा चोर उसके बहुरूप में उसकी जगह घेरे हुए है।
जब वह डाइनिंग रूम के पास पहुंचा तो उसने स्कूल की ड्रेस में एक लड़के को बाहर निकलते देखा। लेकिन पीठ उसकी तरफ होने की वजह से वह उसकी शक्ल देखने से वंचित रहा। इससे पहले कि वह उसकी शक्ल देखने की कोशिश करता, लड़का साइकिल पर सवार होकर दूर निकल चुका था। उसी समय रामू को किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह एक पुराने कबाड़ के पीछे छुप गया।
जबकि रामू की शक्ल में मौजूद सम्राट साइकिल पर सवार स्कूल की ओर बढ़ा जा रहा था। इस रोड पर अपेक्षाकृत सन्नाटा रहता था। उसने देखा दूर पेड़ की एक मोटी सी डाल ने रास्ता घेर रखा है। वह डाल के पास पहुंचा और साइकिल से नीचे उतरकर डाल को हटाने लगा। उसी समय झाडि़यों के पीछे से तीन लड़के निकलकर उसके सामने आ गये। तीनों ने अपने चेहरों पर मुखौटे डाल रखे थे और उनके हाथों में चेन तथा हाकियां मौजूद थीं। उसमें से एक उसकी साइकिल के पास पहुंचा और उसके पहिए से हवा निकालने लगा।
''क्या कर रहे हो भाई?" सम्राट उसकी तरफ घूमा।
''अबे दिखाई कम देता है क्या। हम तेरी हवा निकाल रहे हैं।" हवा निकालने वाला लड़का बोला और बाकी दो लड़के कहकहा लगाकर हंसने लगे।
''तुम बहुत गलत कर रहे हो। इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।" सम्राट पूरी तरह शांत स्वर में बोला।
''अरे। ये तो हमें धमकी दे रहा है।" हवा निकालने वाले लड़के ने बाकियों की ओर घूमकर देखा।
''ओह। फिर तो इसकी मौत आ गयी है।" दूसरे लड़के ने अपनी हाकी रामू बने सम्राट की ओर घुमाई। सम्राट ने हाकी से बचने की कोई कोशिश नहीं की। दूसरे ही पल उन लड़कों को हैरत का झटका लगा क्योंकि हाकी सम्राट के जिस्म से दो इंच पहले ही झटके के साथ पलट गयी थी। हाकी पकड़ने वाले लड़के को एक जोरदार झटका लगा और वह गिरते गिरते बचा।
''गगन, अमित क्यों जबरदस्ती अपना और मेरा टाइम खराब कर रहे हो?" रामू उर्फ सम्राट सुकून के साथ बोला। उसकी बात सुनकर लड़कों को मानो साँप सूंघ गया। और वे सब सकपका गये।
''तो तूने हमें पहचान लिया।" उनमें से एक जो वास्तव में अमित था, बोला।
''हमारे चेहरे तो छुपे हुए हैं। लगता है इसने हमें आवाज से पहचान लिया।" सुहैल बोला, जो वास्तव में रामू की साइकिल की हवा निकालने के लिए झुका था।
''अगर तुम लोग अपनी आवाज़ भी बदल लेते तब भी मैं पहचान जाता।" सम्राट ने कहा।
''क्यों? क्या तेरे अन्दर कोई ईश्वरीय शक्ति समा गयी है?" गगन के स्वर में व्यंग्य था।
''कुछ हद तक सही अनुमान लगाया है तुमने।" गंभीर स्वर में बोला सम्राट।
उसकी इस बात ने मानो वहां धमाका किया और तीनों लड़के उछल पड़े।
''क्या मतलब? क्या कहा तुमने?" अमित तेजी से उसकी तरफ घूमा।
''वही, जो तुम लोगों ने सुना।" सम्राट अपनी साइकिल के पास पहुंचा और हवा निकला हुआ टायर टयूब एक झटके में खींच लिया। अब वह खाली रिम लगे हुए पहिए की साइकिल पर सवार हुआ और तेजी से पैडिल मारते हुए आगे बढ़ गया। तीनों लड़के वहां खड़े एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे।
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उससे थोड़ी दूर पर बाकी स्टूडेन्टस की भीड़ लगी हुइ थी। उनके पास कुछ टीचर्स भी मौजूद थे।
अचानक रामू ने पेन उठाया और नोटबुक पर तेजी से कुछ लिखना शुरू कर दिया।
''क्या लिख रहे हो रामू?" वहाँ मौजूद मिसेज कपूर ने टोका।
''अग्रवाल सर के प्रश्नों के जवाब।" रामू ने जवाब दिया और वहाँ मौजूद सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
''लेकिन अग्रवाल सर तो अभी अपने सवाल लेकर आये ही नहीं।" हैरत से कहा फिजि़क्स के टीचर सक्सेना सर ने।
''मैं जानता हूं वह कौन से प्रश्न लाने वाले हैं।" रामू ने अपना लिखना जारी रखा। सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे से कानाफूसियां करने लगे थे। लग रहा था हाल में ढेर सारी मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हैं।
''तुम्हें किसने बताया उन प्रश्नों के बारे में ?" सक्सेना सर ने फिर पूछा।
''किसी ने नहीं।" रामू का जवाब पहले की तरह संक्षिप्त था।
उसी समय वहाँ अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। उनके हाथ में प्रश्न पत्र भी मौजूद था।
''ये लो और लिखना शुरू करो।" अग्रवाल सर ने प्रश्नपत्र रामू की तरफ बढ़ाया।
जवाब में रामू ने नोटबुक अग्रवाल सर की तरफ बढ़ा दी।
''ये क्या है?" अग्रवाल सर ने नोटबुक की तरफ नज़र की।
''आपके प्रश्नों के जवाब।"
''क्या? लेकिन मैंने तो अभी प्रश्नपत्र दिया ही नहीं।" हैरत का झटका लगा अग्रवाल सर को।
''मुझे मालूम था कि आप कौन कौन से प्रश्न पत्र देने वाले हैं। इसलिए वक्त न बरबाद करते हुए मैंने जवाब पहले ही लिख दिये।"
अविश्वसनीय भाव से पहले अग्रवाल सर ने रामू का चेहरा देखा और फिर नोट बुक पढ़ने लगे। जैसे जैसे वह आगे पढ़ रहे थे उनकी आँखें फैलती जा रही थीं।
''क्या बात है अग्रवाल साहब?" मिसेज कपूर ने पूछा।
''यह कैसे हो सकता है!"
''क्या?" सक्सेना सर भी उधर मुखातिब हो गये।
''इसने बिल्कुल सही जवाब लिखे हैं। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो इसकी किसी ने मदद की है या फिर..!"
''या फिर क्या अग्रवाल साहब?" सक्सेना सर ने पूछा।
''या फिर इसके अंदर कोई दैवी शक्ति आ गयी है।"
''मुझे तो यही बात सही लगती है!" मिसेज कपूर आँखें फैलाकर बोली, ''कल इसने मेरा मोबाइल चुटकियों में सही कर दिया था। इसमें जरूर कोई दैवी शक्ति घुस गयी है।"
''रामू तुम खुद बताओ, क्या है असलियत?" सक्सेना सर ने रामू की तरफ देखा।
रामू बना सम्राट कुछ नहीं बोला। बस मन्द मन्द मुस्कुराता रहा।
घण्टी की आवाज पर मिसेज वर्मा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने उनके पड़ोसी मलखान सिंह मौजूद थे। हाथ में मिठाई का डब्बा लिये हुए।
''नमस्कार जी। लो जी मिठाई खाओ।" मलखान सिंह ने जल्दी से मिठाई का डब्बा मिसेज वर्मा की तरफ बढ़ाया।
मिसेज वर्मा ने इस तरह मलखान सिंह की तरफ देखा मानो उनकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो।
किसी को एक गिलास पानी भी न पिलाने वाले मक्खीचूस मलखान सिंह के हाथ में जो मिठाई का डब्बा था उसमें काफी मंहगी मिठाइयां थीं।
''आपके यहां सब ठीक तो है?" मिसेज वर्मा ने हमदर्दी से पूछा।
''अरे अपने तो वारे न्यारे हो गये। और सब तुम्हारे सुपुत्र की वजह से हुआ है।" मलखान जी ख़ुशी से झूम रहे थे।
''मैं कुछ समझी नहीं। ऐसा क्या कर दिया रामू ने।" चकराकर पूछा मिसेज वर्मा ने।
''उसने परसों मुझे राय दी कि जॉली कंपनी के शेयर खरीद लो। फायदे में रहोगे। मैंने खरीद लिये। आज तीसरे दिन उसके शेयरों के भाव तीन गुना बढ़ चुके हैं। मैं तो मालामाल हो गया। कहाँ है वो, मैं उसको अपने हाथों से मिठाई खिलाऊँगा।"
''उसने जरूर आपको राय दी होगी। इधर कई दिनों से उसका दिमाग कुछ गड़बड़ चल रहा है। मैं तो उनसे भी कह चुकी हूं लेकिन वो कुछ सुनते ही नहीं।"
''बहन जी, आपके लड़के में जरूर कोई पुण्य आत्मा घुस गयी है।"
''मतलब उसके अंदर कोई भूत प्रेत घुस गया है। भगवान, तूने मुझे ये दिन भी दिखाना था।" फिर मिसेज वर्मा अपनी ही परेशानी में पड़ गयी और मलखान सिंह मौका देखकर वहां से खिसक लिए।
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बंदर रामू इस समय एक पाइप के अंदर दुबका बैठा था। उसका पूरा जिस्म फोड़े की तरह दर्द कर रहा था। उस नासपीटे बंदरिया के आशिक ने बुरी तरह उसकी पिटाई की थी और फिर दोनों बाहों में बाहें डाले वहां से कूद कर नज़दीक के पार्क में निकल गये थे। वह वहीं आंसू बहाता हुआ बैठा रह गया था। गणित से जी चुराने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी, यह तो उसने सोचा ही नहीं था।
जब उसे थोड़ा सुकून हुआ तो उसने पाइप के अंदर झांका। काफी लम्बा पाइप मालूम हो रहा था। उसे काफी दूर पर रौशनी दिखाई दी। 'यानि वह पाइप का दूसरा सिरा है। उसने सोचा और धीरे धीरे दूसरी तरफ बढ़ने लगा।
जल्दी ही वह दूसरे सिरे पर पहुंच गया। यह सिरा एक गली में खुलता था। गली के उस पार एक और मकान दिखाई दे रहा था।
उसने छलांग लगाई और उस मकान की छत पर पहुंच गया।
''यह मकान तो जाना पहचाना लगता है।" उसने चारों तरफ देखा, दूसरे ही पल उसके दिमाग को झटका सा लगा, ''अरे ये तो मेरा ही घर है।
उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसका मन चाहा दौड़कर नीचे जाये और अपने मम्मी पापा से लिपट जाये।
लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान आ गया कि वह इस समय रामू नहीं बल्कि एक बंदर है और इस हालत में दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं पहचान सकती। उसके माँ बाप भी नहीं। उसकी खुशियों पर ओस पड़ गयी और वह ठण्डी साँस लेकर वहीं कोने में बैठ गया।
पीरियड अभी अभी खत्म हुआ था। नेहा अपनी सहेलियों पिंकी और तनु के साथ बाहर निकल आयी।
''आज क्लास में रामू नहीं दिखाई दिया, कहां रह गया?" नेहा ने इधर उधर देखा।
''कालेज तो आया था वह। कहीं चला गया होगा।" पिंकी ने ख्याल जाहिर किया।
''आजकल वह अजीब अजीब हरकतें कर रहा है। कभी गुमसुम हो जाता है तो कभी ऐसा मालूम होता है जैसे वह आइंस्टीन की तरह बहुत बड़ा साइंटिस्ट हो गया है।"
''लेकिन मैं देख रही हूं कि तू आजकल उसकी कुछ ज्यादा ही फिक्र करने लगी है। कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं?" शोख अंदाज में कहा तनु ने।
''गड़बड़ कुछ नहीं। मुझे हैरत है कि अचानक वह इतना जीनियस कैसे हो गया?"
''गगन को भी हैरत है कि अचानक तूने उससे मुंह क्यों मोड़ लिया।"
''एवरीवन वान्टस बेस्ट। तुम लोगों को पता है कि मैं मैथ में कमजोर हूं। इसीलिए मैंने गगन को घास डाली कि वह मेरी हेल्प करेगा। लेकिन मुश्किल सवालों में वह भी फंस जाता है। बट रामू तो जबरदस्त है। आँख बन्द करके जवाब देता है। चाहे जितना मुश्किल सवाल ले जाओ उसके सामने।"
''लो हटाओ। तुम्हारा पुराना आशिक तो इधर ही आ रहा है।" पिंकी ने एक तरफ इशारा किया, जिधर से गगन चला आ रहा था। उसके हाथों में फूलों का एक गुलदस्ता था।
''यहां से जल्दी निकल चलो, वरना अभी जख्म बन जायेगा आकर।"
लेकिन इससे पहले कि वे वहां से खिसकतीं, गगन ने उन्हें देख लिया था और रुकने का इशारा भी कर दिया था। फिर वह तेजी से उनकी ओर आया।
''हाय नेहा! हैप्पी बर्थ डे।" उसने गुलदस्ता नेहा की ओर बढ़ाया।
''लगता है रामू ने गणित के साथ तुम्हारी मेमोरी भी चौपट कर दी है। मेरा बर्थ डे अगले महीने है।" नेहा ने उसकी तरफ हमदर्दी से देखा। उसे यकीन हो गया था कि रामू की कामयाबियों ने गगन का दिमाग उलट दिया है।
''मैंने पुरातन काल के शक संवत कैलेण्डर के हिसाब से तुम्हारे जन्म दिन की गणना की है। और उस कैलकुलेशन के हिसाब से तुम्हारा जन्म दिन आही है।"
''बड़ी मेहनत कर डाली तुमने तो। लेकिन मैं पहले ये कैलकुलेशन रामू से जँचवाऊंगी। अगर सही निकली तब तुम्हें थैंक्यू कहूंगी।" नेहा का ये जुमला गगन को सुलगाने के लिए काफी था। फिर नेहा तो आगे बढ़ गयी और वह वहीं खड़ा हाथ में पकड़े गुलदस्ते को गुस्से से घूरने लगा मानो सारी गलती उसी गुलदस्ते की है।
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बंदर बना रामू चूंकि अपने घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था, इसलिए वह आराम से अपने ड्राइंग रूम में पहुंच गया। अभी तक उसकी मुलाकात अपनी मम्मी से नहीं हुई थी। और पापा से इस वक्त मिलने का सवाल ही नहीं था। क्योंकि ये उनके आफिस का वक्त था।
उसने देखा सारी किताबें कायदे से रैक में सजी हुई थीं।
'शायद मेरे पीछे मम्मी ने ये सब किया है।' उसने सोचा। किताबों के बीच मैथ की टेक्स्ट बुक देखकर उसके तनबदन में आग लग गयी। उसी किताब की वजह से तो आज उसकी ये हालत हुई थी। अब न तो वो जानवरों के रेवड़ में शामिल था और न ही इंसानों के।
'मम्मी पापा ने मुझे कितना ढूंढा होगा।' उसे अफसोस हो रहा था, 'क्यों वह खुदकुशी करने के लिए भागा। उसके मम्मी पापा का क्या हाल होगा। मम्मी तो रो रोकर बेहाल हो गयी होगी।'
उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी, और वह जल्दी से एक अलमारी के पीछे छुप गया। अन्दर दाखिल होने वाली उसकी मम्मी ही थी और किसी नयी फिल्म का रोमांटिक गाना गुनगुना रही थी।
'मम्मी तो पूरी तरह खुश दिखाई दे रही है। यानि उसे मेरे गायब होने का जरा भी दु:ख नहीं। पूरी दुनिया में किसी को मेरी परवाह नहीं।' दु:ख के साथ उसने सोचा और वहीं जमीन पर बैठ गया।
अब मम्मी ने वहां की सफाई शुरू कर दी थी।
''रामू, मैंने तुम्हारा नाश्ता लगा दिया है। जल्दी से कर लो वरना स्कूल की देर हो जायेगी।' मम्मी ने पुकार कर कहा और रामू को हैरत का एक झटका लगा। वह तो बंदर की शक्ल में वहां मौजूद था, फिर मम्मी किसे आवाज दे रही थीं?
''मम्मी मैं नाश्ता कर रहा हूं।" अंदर से आवाज आयी और रामू को एक बार फिर चौंकना पड़ा। ये तो हूबहू उसी की आवाज थी, जिसको मुंह से निकालने के लिए वह कई दिन से तरस रहा था।
"लेकिन यह कौन बहुरूपिया है जिसने उसकी जगह पर उसके घर में कब्जा जमा लिया है?" उसके दिल में उसे देखने की इच्छा जागृत हो गयी। लेकिन इसके लिए जरूरी था कि वह डाइनिंग रूम में पहुंचे और वह भी बिना किसी की नजर में आये। वरना वहां अच्छा खासा बवाल खड़ा हो जाता।
उसकी मां वहां सफाई करके निकल गयी। वह भी छुपते छुपाते उसके पीछे पीछे चला, यह देखने के लिए कि कौन सा चोर उसके बहुरूप में उसकी जगह घेरे हुए है।
जब वह डाइनिंग रूम के पास पहुंचा तो उसने स्कूल की ड्रेस में एक लड़के को बाहर निकलते देखा। लेकिन पीठ उसकी तरफ होने की वजह से वह उसकी शक्ल देखने से वंचित रहा। इससे पहले कि वह उसकी शक्ल देखने की कोशिश करता, लड़का साइकिल पर सवार होकर दूर निकल चुका था। उसी समय रामू को किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह एक पुराने कबाड़ के पीछे छुप गया।
जबकि रामू की शक्ल में मौजूद सम्राट साइकिल पर सवार स्कूल की ओर बढ़ा जा रहा था। इस रोड पर अपेक्षाकृत सन्नाटा रहता था। उसने देखा दूर पेड़ की एक मोटी सी डाल ने रास्ता घेर रखा है। वह डाल के पास पहुंचा और साइकिल से नीचे उतरकर डाल को हटाने लगा। उसी समय झाडि़यों के पीछे से तीन लड़के निकलकर उसके सामने आ गये। तीनों ने अपने चेहरों पर मुखौटे डाल रखे थे और उनके हाथों में चेन तथा हाकियां मौजूद थीं। उसमें से एक उसकी साइकिल के पास पहुंचा और उसके पहिए से हवा निकालने लगा।
''क्या कर रहे हो भाई?" सम्राट उसकी तरफ घूमा।
''अबे दिखाई कम देता है क्या। हम तेरी हवा निकाल रहे हैं।" हवा निकालने वाला लड़का बोला और बाकी दो लड़के कहकहा लगाकर हंसने लगे।
''तुम बहुत गलत कर रहे हो। इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।" सम्राट पूरी तरह शांत स्वर में बोला।
''अरे। ये तो हमें धमकी दे रहा है।" हवा निकालने वाले लड़के ने बाकियों की ओर घूमकर देखा।
''ओह। फिर तो इसकी मौत आ गयी है।" दूसरे लड़के ने अपनी हाकी रामू बने सम्राट की ओर घुमाई। सम्राट ने हाकी से बचने की कोई कोशिश नहीं की। दूसरे ही पल उन लड़कों को हैरत का झटका लगा क्योंकि हाकी सम्राट के जिस्म से दो इंच पहले ही झटके के साथ पलट गयी थी। हाकी पकड़ने वाले लड़के को एक जोरदार झटका लगा और वह गिरते गिरते बचा।
''गगन, अमित क्यों जबरदस्ती अपना और मेरा टाइम खराब कर रहे हो?" रामू उर्फ सम्राट सुकून के साथ बोला। उसकी बात सुनकर लड़कों को मानो साँप सूंघ गया। और वे सब सकपका गये।
''तो तूने हमें पहचान लिया।" उनमें से एक जो वास्तव में अमित था, बोला।
''हमारे चेहरे तो छुपे हुए हैं। लगता है इसने हमें आवाज से पहचान लिया।" सुहैल बोला, जो वास्तव में रामू की साइकिल की हवा निकालने के लिए झुका था।
''अगर तुम लोग अपनी आवाज़ भी बदल लेते तब भी मैं पहचान जाता।" सम्राट ने कहा।
''क्यों? क्या तेरे अन्दर कोई ईश्वरीय शक्ति समा गयी है?" गगन के स्वर में व्यंग्य था।
''कुछ हद तक सही अनुमान लगाया है तुमने।" गंभीर स्वर में बोला सम्राट।
उसकी इस बात ने मानो वहां धमाका किया और तीनों लड़के उछल पड़े।
''क्या मतलब? क्या कहा तुमने?" अमित तेजी से उसकी तरफ घूमा।
''वही, जो तुम लोगों ने सुना।" सम्राट अपनी साइकिल के पास पहुंचा और हवा निकला हुआ टायर टयूब एक झटके में खींच लिया। अब वह खाली रिम लगे हुए पहिए की साइकिल पर सवार हुआ और तेजी से पैडिल मारते हुए आगे बढ़ गया। तीनों लड़के वहां खड़े एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे।
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