मायावी गणित -7
अपने
यान
में
सम्राट
अपने
साथियों
के
साथ
मौजूद
था।
थोड़ी
दूरी
पर
असली
रामू
भी
दिखाई
दे
रहा
था
जिसका
बन्दर
का
जिस्म
हरे
रंग
की
किरणों
के
घेरे
में
था।
''हम
काफी
हद
तक
अपने
मकसद
में
कामयाब
हो
चुके
हैं।
बहुत
जल्द
पूरी
दुनिया
में
हमारी
पूजा
शुरू
हो
जायेगी।
हालांकि
कुछ
टेढ़े
दिमाग
वाले
अभी
भी
हमारे
रास्ते
में
टाँग
अड़ाने
की
कोशिश
कर
रहे
हें,
लेकिन
उनकी
औकात
कीड़े
मकोड़ों
से
ज्यादा
नहीं।"
सम्राट
अपने
साथियों
से
कह
रहा
था।
''एक
बार
पूरी
दुनिया
के
दिमागों
पर
हमारा
कब्ज़ा
हो
जाये।
फिर
इस
धरती
पर
हमारी
हुकूमत
होगी।"
रोमियो
ने
खुश
होकर
कहा।
''हां।
यहाँ
के
लोग
हमारे
गुलाम
होंगे।
जो
लोग
अभी
इस
ज़मीन
पर
पहले
दर्जे
पर
क़ाबिज़
है
वह
अब
दूसरे
दर्जे
पर
आ
जायेंगे।
हमेशा
के
लिये।
लेकिन
शायद
उनके
दिमाग
में
विद्रोह
की
भावना
हमेशा
रहेगी।"
सम्राट
ने
कुछ
सोचते
हुए
कहा।
''ऐसा
क्यों
सम्राट?"
सिलवासा
ने
चौंक
कर
पूछा।
''क्योंकि
इन
लोगों
ने
हमेशा
ही
पृथ्वी
पर
शासन
किया
है।
अब
इस
बन्दर
को
ही
देख
लो।
उस
लड़के
का
दिमाग
इस
बन्दर
के
जिस्म
में
आने
के
बाद
भी
अपनी
हार
कुबूल
नहीं
कर
रहा
है।
कुछ
देर
पहले
इसने
मुझे
परेशान
कर
दिया
था।''
''तो
फिर
इसका
पत्ता
साफ
कर
देते
हैं।"
डोव
ने
क्रूरता
के
साथ
कहा।
''नहीं।
हमें
यहाँ
मौजूद
हर
इंसान
के
दिमाग
से
अपने
लिये
विद्रोह
की
भावना
निकालनी
है।
उनसे
अपनी
पूजा
करानी
है।"
''लेकिन
कैसे?"
सिलवासा
ने
पूछा।
''उसके
लिये
हमें
कुछ
तजुर्बे
करने
होंगे।
और
इसके
लिये
यह
बन्दर
बना
रामू
काम
आयेगा।"
''आप
कैसा
तजुर्बा
करना
चाहते
हैं
सम्राट?"
सिलवासा
ने
पूछा।
''मैं
देखना
चाहता
हूं
कि
कोई
इंसान
कितनी
बेबसी
के
हालात
से
गुज़रने
के
बाद
हमारा
गुलाम
बन
सकता
है।
अत:
तुम
लोग
इसे
'एम-स्पेस
में
भेज
दो।"
सम्राट
की
बात
सुनकर
वहां
मौजूद
सभी
के
चेहरे
पर
एक
मुस्कुराहट
आ
गयी।
''एम-स्पेस।
वो
तो
मैथेमैटिकल
समीकरणों
का
ऐसा
चक्रव्यूह
है
जहां
से
निकलना
लगभग
नामुमकिन
है।
वहां
पर
तो
ये
नाचता
रह
जायेगा।"
सिलवासा
ने
गहरी
साँस
लेकर
कहा।
''लेकिन
मुझे
एक
डर
है।"
बहुत
देर
से
खामोश
मैडम
वान
ने
अपनी
ज़बान
खोली।
''शायद
तुम
ये
कहना
चाहती
हो
कि
अगर
किसी
ने
एम-स्पेस
पार
कर
लिया
तो
वह
हमें
हमेशा
के
लिये
अपने
कण्ट्रोल
में
कर
लेगा।"
सम्राट
ने
कहा।
मैडम
वान
ने
सर
हिलाया,
''जी
हाँ।
क्योंकि
एम
स्पेस
हमारा
कण्ट्रोल
रूम
भी
है।
और
उसी
के
द्वारा
हमें
अपने
ग्रह
से
शक्तियां
मिलती
हैं।
''यह
नामुमकिन
है
कि
पृथ्वी
का
कोई
दिमाग
एम-स्पेस
की
गणितीय
पहेलियों
को
समझ
ले।
और
ये
बच्चा
तो
बिल्कुल
ही
नहीं
समझ
सकेगा।
क्योंकि
मैं
इसकी
पूरी
हिस्ट्री
से
वाकिफ
हूं।
गणित
तो
इसके
लिये
हमेशा
एक
हव्वे
की
तरह
रही
है।
और
बिना
एम
स्पेस
की
गणितीय
पहेलियों
को
समझे
कोई
उसे
पार
नहीं
कर
सकता।"
''तो
फिर
ठीक
है।
हम
इसे
एम-स्पेस
में
डाल
देते
हैं।"
कहते
हुए
मैडम
वान
ने
डोव
को
इशारा
किया
और
डोव
जो
कि
यान
के
स्विच
बोर्ड
के
पास
था
उसने
एक
स्विच
दबा
दिया।
दूसरे
ही
पल
यान
में
उस
जगह
का
फर्श
गोलाई
में
हट
गया
जहाँ
पर
बन्दर
बना
रामू
मौजूद
था।
एक
क्षण
के
अन्दर
रामू
का
जिस्म
उस
रिक्त
स्थान
में
गायब
हो
चुका
था।
-------
यह
अँधेरी
सुरंग
पता
नहीं
कितनी
लंबी
थी
जिसमें
रामू
गिरता
ही
जा
रहा
था।
उसे
कुछ
नहीं
सुझाई
दे
रहा
था।
वह
तो
बस
उस
पल
का
इंतिज़ार
कर
रहा
था
जब
वह
किसी
पक्के
फर्श
से
टकरायेगा
और
उसके
चिथड़े
उड़
जायेंगे।
उसने
अपनी
आँखें
भी
बन्द
कर
ली
थीं।
फिर
उसे
लगा
कि
उसके
चारों
तरफ
रोशनी
फैल
गयी
है।
और
उसी
पल
वह
किसी
नर्म
स्थान
पर
गिरा
था।
क्योंकि
उसे
ज़रा
भी
चोट
नहीं
आयी
थी।
उसने
अपनी
आँखें
खोल
कर
देखा।
यह
तो
किसी
रेलवे
स्टेशन
का
प्लेटफार्म
मालूम
हो
रहा
था।
एक
ऊँचा
स्थान
जिसकी
साइड
में
रेलवे
ट्रैक
भी
मौजूद
था।
जैसे
ही
उसने
अपनी
आँखें
खोलीं,
उस
ट्रैक
पर
कहीं
से
एक
ट्राली
आकर
रुक
गयी।
उस
प्लेटफार्म
पर
उसके
अलावा
और
कोई
मुसाफिर
नहीं
था।
अचानक
वहाँ
एक
अनाउंसमेन्ट
होने
लगा।
उसने
सुना,
अनाउंसमेन्ट
उसी
की
भाषा
में
हो
रहा
था।
'समस्त
यात्रियों
से
अनुरोध
है
कि
दस
मिनट
के
अन्दर
इस
जगह
से
दो
सौ
किलोमीटर
दूर
चले
जायें
क्योंकि
दस
मिनट
के
बाद
दो
सौ
किलोमीटर
के
दायरे
में
तेज़ाबी
बारिश
शुरू
हो
जायेगी।
जिसमें
हर
व्यक्ति
गल
जायेगा।"
अनाउंसमेन्ट
सुनते
ही
उसके
होश
उड़
गये।
दस
मिनट
में
दो
सौ
किलोमीटर
कोई
कैसे
दूर
जा
सकता
है?
असंभव।"
उसने
देखा
न
तो
प्लेटफार्म
और
न
ही
ट्राली
के
ऊपर
कोई
छत
जैसी
संरचना
थी।
जो
उस
बारिश
से
बचाने
वाली
होती।
फिर
उसके
दिमाग
में
एक
विचार
आया
और
वह
दौड़कर
ट्राली
पर
चढ़
गया।
उसके
चढ़ते
ही
ट्राली
तेज़
गति
से
ट्रैक
पर
भागने
लगी।
उसने
देखा
सामने
दो
इंडिकेटर
मौजूद
हैं।
पहला
इंडिकेटर
ट्राली
की
स्पीड
को
बता
रहा
था,
सौ
किलोमीटर
प्रति
मिनट।
जबकि
दूसरा
इंडिकेटर
समय
को
बता
रहा
था।
उसके
फेफड़ों
से
इत्मीनान
की
एक
गहरी
साँस
निकली।
इस
स्पीड
से
तो
ट्राली
दो
मिनट
में
ही
दो
सौ
किलोमीटर
का
रास्ता
तय
कर
लेती।
उसने
खुश
होकर
कोई
गीत
गुनगुनाना
शुरू
कर
दिया।
ये
अलग
बात
है
कि
मुंह
से
केवल
बंदर
की
खौं
खौं
ही
निकल
कर
रह
गयी।
झल्लाकर
उसने
गाना
बन्द
कर
दिया
।
और
ट्राली
के
इंडिकेटर
को
देखने
लगा।
समय
बताने
वाले
इंडिकेटर
ने
एक
मिनट
पूरा
किया,
और
उसी
समय
ट्राली
को
एक
झटका
लगा।
उसने
चौंक
कर
देखा,
अब
ट्राली
की
स्पीड
सौ
से
कम
होकर
पचास
हो
गयी
थी।
'कोई
बात
नहीं।
दो
मिनट
न
सही,
तीन
मिनट
में
तो
ट्राली
दो
सौ
किलोमीटर
के
दायरे
से
निकल
ही
जायेगी।
तब
भी
सात
मिनट
रह
जायेंगे।'
उसने
अपने
लड़खड़ाते
दिल
को
संभाला।
और
आसमान
की
ओर
देखा
जहाँ
अब
अजीब
से
बादल
छाने
लगे
थे।
ये
बादल
पूरी
तरह
सुर्ख
थे
और
शायद
यही
तेज़ाबी
बारिश
लाने
वाले
थे।
एक
मिनट
और
बीता,
और
ट्राली
को
फिर
एक
झटका
लगा।
अब
इंडिकेटर
उसकी
स्पीड
पच्चीस
किलोमीटर
प्रति
मिनट
ही
बता
रहा
था।
अचानक
एक
विचार
ने
उसके
दिल
की
धडकनें
फिर
बढ़ा
दीं।
यानि
हर
मिनट
ट्राली
की
स्पीड
कम
होकर
आधी
रही
जा
रही
थी।
इसका
मतलब
कि,
वह
मन
ही
मन
कैलकुलेट
करने
लगा
कि
अगर
इसी
तरह
हर
मिनट
ट्राली
की
स्पीड
आधी
होती
रही
तो
दो
सौ
मीटर
दूर
जाने
में
उसे
कितना
समय
लगेगा।
गणित
में
हमेशा
फिसडडी
रहने
वाला
उसका
दिमाग
इस
समय
अपने
को
मुसीबत
से
घिरा
देखकर
बिजली
की
रफ्तार
से
चलने
लगा
था।
जब
उसने
अपनी
कैलकुलेशन
का
रिज़ल्ट
देखा
तो
उसके
होश
उड़
गये।
इस
तरह
तो
अनंत
समय
तक
चलने
के
बाद
भी
ट्राली
कभी
भी
दो
सौ
मीटर
के
दायरे
को
पार
नहीं
कर
सकती
थी।
एक
मिनट
और
बीत
चुका
था
और
अब
ट्राली
की
स्पीड
मात्र
साढ़े
बारह
किलोमीटर
प्रति
मिनट
ही
रह
गयी
थी।
उसने
सोचा
कि
ट्राली
से
कूद
जाये
और
दौड़ना
शुरू
कर
दे।
लेकिन
उसकी
कैलकुलेशन
के
अनुसार
अभी
भी
13
किलोमीटर
का
फासला
बाकी
था
और
ये
फासला
वह
बचे
हुए
छ:
मिनट
में
हरगिज़
तय
नहीं
कर
सकता
था।
वह
ट्राली
के
फर्श
पर
बेचैनी
से
टहलने
लगा।
आसमान
में
सुर्ख
बादल
लगातार
गहरे
होते
जा
रहे
थे।
और
उसके
दिल
पर
मायूसी
भी
उतनी
ही
गहरी
होती
जा
रही
थी।
लेकिन
फिर
अचानक
सम्राट
की
बात
उसके
ज़हन
में
गूंजी
जिसने
उसके
दिल
में
रोशनी
की
किरण
पैदा
कर
दी।
उसने
कहा
था,
''बिना
एम
स्पेस
की
गणितीय
पहेलियों
को
समझे
कोई
उसे
पार
नहीं
कर
सकता।
और
ट्राली
की
स्पीड
का
हर
मिनट
इस
तरह
कम
होना
भी
यकीनन
कोई
गणितीय
पहेली
ही
थी।
एक
बार
फिर
उसने
अपने
दिमाग़
को
दौड़ाना
शुरू
किया
और
आखिरकार
उसे
इस
पहेली
का
हल
मिल
गया।
यकीनन
वह
तेज़ाबी
बारिश
से
बच
सकता
था।
लेकिन
उसे
जो
कुछ
करना
था
वह
आखिरी
नौवें
मिनट
में
ही
करना
था।
जिस
तरह
हर
मिनट
ट्राली
की
स्पीड
कम
हो
रही
थी
उस
आधार
पर
नौवें
मिनट
की
समाप्ति
पर
ट्राली
एक
सौ
निन्यानवे
किलोमीटर
और
छ:
सौ
मीटर
की
दूरी
तय
कर
लेती।
यानि
अगर
वह
उस
समय
ट्राली
से
कूदकर
आगे
की
तरफ
भागना
शुरू
कर
देता
तो
एक
मिनट
में
ये
बचे
हुए
चार
सौ
मीटर
तय
कर
सकता
था।
अब
वह
इत्मीनान
से
बैठकर
नौ
मिनटों
के
खत्म
होने
का
इंतिज़ार
करने
लगा।
वक्त
गुज़र
रहा
था
और
ट्राली
अब
लगभग
कछुए
की
रफ्तार
से
रेंगने
लगी
थी।
सुर्ख
बादलों
ने
पूरे
वातावरण
को
ही
सुर्ख
कर
दिया
था।
अजीब
डरावना
मंज़र
था
वह।
फिर
नौवां
मिनट
भी
खत्म
हुआ
और
उसने
फौरन
ट्राली
से
छलांग
लगा
दी।
अब
वह
जान
छोड़कर
आगे
की
तरफ
भाग
रहा
था।
इस
समय
उसका
बन्दर
का
जिस्म
काफी
काम
आ
रहा
था
जिसमें
बन्दरों
की
ही
फुर्ती
भरी
हुई
थी।
बादलों
में
अब
रह
रहकर
बिजलियां
कड़क
रही
थीं।
दसवाँ
मिनट
खत्म
होने
में
कुछ
ही
मिनट
रह
गये
थे
जब
उसे
आगे
ज़मीन
पर
एक
चमकदार
पीली
रेखा
दिखाई
दी।
शायद
ये
दो
सौ
किलोमीटर
की
सीमा
को
दर्शा
रही
थी।
उसकी
एक
लंबी
छलांग
ने
उसे
रेखा
को
पार
करा
दिया।
उसी
समय
उसे
अपने
पीछे
शोर
सुनाई
दिया।
उसने
घूमकर
देखा,
बारिश
शुरू
हो
गयी
थी।
लेकिन
वह
बारिश
रेखा
के
इस
पर
नहीं
आ
रही
थी।
लगता
था
मानो
किसी
ने
वहाँ
शीशे
की
दीवार
खड़ी
कर
दी
है।
फिर
उसने
ये
भी
देखा
कि
चींटी
की
रफ्तार
से
रेंगती
ट्राली
धीरे
धीरे
उस
पानी
में
पिघलती
जा
रही
है।
उसके
बदन
में
सिहरन
दौड़
गयी।
अगर
वह
उस
ट्राली
पर
होता
तो
उसका
भी
यही
अंजाम
होता।
उसने
एक
इतिमनान
की
गहरी
साँस
ली
और
आगे
बढ़ने
लगा।
आगे
बढ़ते
हुए
उसे
लग
रहा
था
कि
वह
किसी
जंगल
के
अन्दर
घुस
रहा
है।
क्योंकि
पहले
इक्का
दुक्का
मिलने
वाले
पेड़
धीरे
धीरे
बढ़ते
जा
रहे
थे।
जल्दी
ही
वह
एक
घने
जंगल
में
पहुंच
गया।
इस
जंगल
में
साँप
बिच्छू
भी
हो
सकते
थे,
अत:
वह
एहतियात
के
साथ
अपने
कदम
बढ़ाने
लगा।
फिर
उसे
ध्यान
आया
कि
उसका
जिस्म
तो
बन्दर
का
है।
उसने
फौरन
छलांग
लगाकर
एक
पेड़
की
डाल
पकड़
ली
और
फिर
एक
डाल
से
दूसरी
डाल
पर
कूदते
हुए
वह
आगे
बढ़ने
लगा।
फिर
उसे
भूख
का
एहसास
हुआ
जो
इस
धमाचौकड़ी
का
नतीजा
थी।
रामू
ने
एक
डाल
पर
ठिठककर
पेड़ों
की
तरफ
देखा।
उसे
तलाश
थी
ऐसे
फलों
की
जो
उसकी
भूख
मिटा
सकें।
यह
देखकर
उसकी
बांछें
खिल
गयीं
कि
पेड़
तो
तरह
तरह
के
फलों
से
लदे
हुए
थे।
उसने
फौरन
फलों
के
नज़दीकी
गुच्छे
की
तरफ
हाथ
बढ़ाया
लेकिन
उसी
समय
एक
महीन
आवाज़
उसके
कानों
में
पड़ी,
'मर
जायेगा,
मर
जायेगा
उसने
घबराकर
अपना
हाथ
खींच
लिया
और
इधर
उधर
देखने
लगा
कि
ये
आवाज़
किधर
से
आयी।
उसने
फिर
गुच्छे
की
तरफ
हाथ
बढ़ाया
और
वही
आवाज़
फिर
आने
लगी।
अब
उसने
ध्यान
दिया
कि
आवाज़
उसी
गुच्छे
में
से
आ
रही
है।
यानि
कि
ये
फल
ही
इंसानों
की
तरह
बोल
रहे
थे,
और
शायद
ज़हरीले
थे,
तभी
तोड़ने
वाले
को
वार्निंग
दे
रहे
थे।
रामू
ने
दूसरे
पेड़
की
ओर
देखा।
उसकी
डालियां
भी
फलों
से
लदी
हुई
थीं।
वह
फल
भी
दूसरी
तरह
के
थे।
वह
छलांग
लगाकर
उस
पेड़
पर
पहुंच
गया
और
फल
तोड़ने
के
लिये
हाथ
बढ़ाया।
'मरा
मरा
मरा....
इस
फल
से
भी
लगातार
आवाज़ें
लगीं
और
उसने
घबराकर
अपना
हाथ
खींच
लिया।
यानि
कि
इस
फल
का
तोड़ना
भी
खतरनाक
था।
'ऐसा
तो
नहीं
कि
ये
फल
अपने
को
बचाने
के
लिये
इस
तरह
की
आवाज़
लगा
रहे
हैं।
उसके
दिमाग
में
विचार
आया
और
उसने
तय
किया
कि
इस
बार
ये
फल
कुछ
भी
बोलें,
वह
उन्हें
तोड़
लेगा।
उसने
फल
की
तरफ
हाथ
बढ़ाया
और
उसकी
वार्निंग
के
बावजूद
उसे
तोड़
लिया।
तोड़ते
ही
फल
से
आवाज़
आनी
बन्द
हो
गयी।
फिर
उसने
उसे
खाने
के
लिये
मुंह
की
तरफ
बढ़ाया,
लेकिन
उसी
समय
किसी
ने
झपटटा
मारकर
उसके
हाथ
से
उस
फल
को
लपक
लिया।
उसने
भन्नाकर
लुटेरे
को
देखा।
वो
भी
एक
बन्दर
ही
था,
लेकिन
असली।
फिर
उस
बन्दर
ने
जल्दी
जल्दी
उस
फल
को
खाना
शुरू
कर
दिया
और
साथ
ही
रामू
को
इस
तरह
देखता
भी
जा
रहा
था
जैसे
ठेंगा
दिखा
रहा
हो।
रामू
ने
तय
किया
कि
उसे
सबक
सिखाये
और
इसके
लिये
उसने
किसी
मज़बूत
डण्डे
की
तलाश
में
इधर
उधर
नज़रें
दौड़ायीं।
लेकिन
उसी
वक्त
उसने
देखा
कि
बन्दर
अपना
पेट
पकड़कर
तड़पने
लगा
था।
फिर
तड़पते
तड़पते
वह
ज़मीन
पर
गिर
गया
और
कुछ
ही
पलों
में
वह
ठण्डा
हो
चुका
था।
रामू
जल्दी
से
उसके
पास
पहुंचा
और
हिला
डुलाकर
देखने
लगा।
लेकिन
उसे
यह
देखकर
निराशा
हुई
कि
बन्दर
मर
चुका
था।
इसका
मतलब
कि
फलों
की
वार्निंग
सही
थी।
वे
वाकई
ज़हरीले
थे।
अगर
वह
उस
फल
को
खा
लेता
तो?
वह
अपने
अंजाम
को
सोचकर
काँप
गया।
उसने
तय
कर
लिया
कि
वह
वहाँ
की
कोई
चीज़
नहीं
खायेगा।
लेकिन
कब
तक?
भूख
उसकी
आँतों
में
ऐंठन
पैदा
कर
रही
थी।
अगर
वह
कुछ
नहीं
खाता
तो
भले
ही
कुछ
समय
तक
जिंदा
रह
जाता
लेकिन
ज्यादा
समय
तक
तो
नहीं।
अचानक
उसके
दिल
में
फिर
उम्मीद
की
किरण
जागी।
जैसा
कि
सम्राट
ने
कहा
था
कि
इस
दुनिया
में
हर
तरफ
गणितीय
पहेलियां
बिखरी
हुई
हैं।
और
उन्हें
हल
करके
सलामती
की
उम्मीद
की
जा
सकती
है।
तो
इन
ज़हरीले
फलों
के
बीच
जीवन
देने
वाले
फल
भी
मौजूद
होने
चाहिए
जो
शायद
किसी
गणितीय
पहेली
को
हल
करने
पर
मिल
जायें।
यह
विचार
दिमाग
में
आते
ही
वह
उठ
खड़ा
हुआ
और
पेड़ों
पर
लदे
फलों
पर
गौर
करने
लगा।
यहाँ
पर
जिंदगी
और
मौत
का
सवाल
था।
अत:
उसका
दिमाग
अपनी
पूरी
क्षमता
झोंक
रहा
था।
इसके
नतीजे
में
जल्दी
ही
वह
एक
नतीजे
पर
पहुंच
गया।
उसने
देखा
कि
एक
पेड़
पर
फलों
के
जितने
भी
गुच्छे
लगे
हुए
थे,
उनमें
फलों
की
संख्या
निशिचत
थी।
जिस
पेड़
के
नीचे
वह
खड़ा
था
उसमें
हर
गुच्छे
में
पाँच
पाँच
फल
लगे
हुए
थे।
जबकि
उसके
पड़ोसी
पेड़
में
सात
सात
फलों
के
गुच्छे
थे।
उसने
आसपास
के
सारे
पेड़
देख
डाले।
किसी
में
हर
गुच्छे
में
पाँच
फल
थे,
किसी
में
दो,
किसी
में
तीन
तो
किसी
में
सात
फल
थे।
कहीं
कहीं
ग्यारह
फल
भी
दिखाई
दिये।
उसने
इन
गिनतियों
को
वहीं
कच्ची
ज़मीन
पर
एक
डंडी
की
सहायता
से
लिख
लिया
और
उनपर
गौर
करने
लगा।
जल्दी
ही
ये
तथ्य
उसके
सामने
ज़ाहिर
हो
गया
कि
ये
सभी
संख्याएं
अभाज्य
थीं।
यानि
किसी
दूसरी
संख्या
से
विभाजित
नहीं
होती
थीं।
तो
अगर
कोई
गुच्छे
के
फल
को
तोड़ता
तो
वह
एक
अभाज्य
संख्या
को
विभाजित
करने
की
कोशिश
करता
जो
की
असंभव
था।
इसीलिए
फलों
का
ज़हर
उसका
काम
तमाम
कर
देता।
इस
नतीजे
पर
पहुंचते
ही
वह
फुर्ती
से
उठ
खड़ा
हुआ।
अब
उसे
ऐसे
पेड़
की
तलाश
थी
जिसके
गुच्छे
में
विभाज्य
संख्या
में
यानि
चार,
छ:,
आठ
इत्यादि
संख्या
में
फल
लगे
हों।
थोड़ी
दूर
जाने
पर
आखिरकार
उसे
ऐसा
पेड़
मिल
गया।
इस
पेड़
के
हर
गुच्छे
में
छ:
फल
लगे
हुए
थे।
वह
फुर्ती
के
साथ
पेड़
पर
चढ़
गया
और
एक
गुच्छे
की
तरफ
डरते
डरते
अपना
हाथ
बढ़ाया।
जब
उसका
हाथ
गुच्छे
के
पास
पहुंचा
तो
उसके
फलों
से
आवाज़
आने
लगी
-
'आओ...आओ।
इसका
मतलब
उसका
निष्कर्ष
सही
था।
ये
फल
खाने
के
लायक़
थे।
उसने
उन
फलों
को
तोड़ा
और
खाना
शुरू
कर
दिया।
काफी
स्वादिष्ट
और
चमत्कारी
फल
थे।
न
केवल
उसकी
भूख
मिटी
थी
बलिक
प्यास
और
थकान
भी
मिट
गयी
थी।
रामू
अपने
को
पूरी
तरह
तरोताज़ा
महसूस
कर
रहा
था।
 
 
 
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