मायावी गणित -11


रामू वहाँ पहुंचा और उसने राक्षस का हाथ थाम लिया।
''रामू! नेहा ने गुस्से में भरी एक चीख मारी जबकि उसकी माँ अपना आँचल आँखों पर रखकर सिसकियां लेने लगी। रामू का दिल एक पल को मचला लेकिन उसे इस वक्त अपने दिमाग से काम लेना था। राक्षस ने उसका हाथ थाम लिया और दरवाज़े की ओर बढ़ा।
''रुक जा मेरे लाल। वह राक्षस तुझे खत्म कर देगा।" उसकी माँ ने पीछे से पुकार लगाई।


एक पल को रामू ठिठका। उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। कहीं उसका डिसीज़न गलत तो नहीं। अगर ऐसा होता तो वह कहीं का नहीं रहता। फिर उसने अपने दिल को दिलासा दिया और माँ नेहा की पुकार अनसुनी करके आगे बढ़ गया।


अब वह उस संरचना के ठीक आगे पहुंच चुका था। उसने घूमकर देखा माँ और नेहा दोनों ही उसे तेज़ी से हाथ हिला हिलाकर बुला रही थीं। उसने राक्षस की ओर देखा।
''अभी मौका है तुम्हारे पास। वापस भी जा सकते हो तुम।" राक्षस ने डरावनी आवाज़ में कहा।
''नहीं। मैंने तय कर लिया है। वापस नहीं जाऊंगा।" रामू ने दृढ़ता के साथ कहा।


उसके इतना कहते ही राक्षस ने उस समीकरण रूपी संरचना पर हाथ रख दिया। दूसरे ही पल उस क्यूब का आगे का हिस्सा गायब हो गया और राक्षस उसे लेकर अन्दर प्रवेश कर गया।
जैसे ही दोनों अन्दर पहुंचे आगे का हिस्सा फिर बराबर हो गया। रामू ने देखा कि आगे का हिस्सा साफ शीशे की तरह बाहर बाग़ का दृश्य दिखा रहा था। जहाँ नेहा और उसकी माँ दोनों का जिस्म धीरे धीरे पारदर्शी हो रहा था। और फिर दोनों के जिस्म बिल्कुल ही दिखना बन्द हो गये।


रामू ने एक गहरी साँस ली और बड़बड़ाया, ''इसका मतलब कि मेरा अंदाज़ा सही था।"
''अगर तुम उन दोनों में से किसी के साथ आते तो तुम भी उनही की तरह गायब हो जाते हमेशा के लिये।" राक्षस ने कहा।


''उस कटे सर ने ठीक कहा था कि होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज्यादा मुश्किल है। इससे पहले तो सिर्फ शारीरिक कष्ट ही झेलना पड़ता था। लेकिन इस बार तो दिमाग़ की भी चूलें हिल गयीं। रामू ने एक गहरी साँस ली और इधर उधर देखने लगा।


फिर उसे एहसास हुआ कि वह एक ऐसे बक्से में मौजूद है जिससे बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं। सामने शीशे की दीवार से सामने बाग़ का मंज़र दिखाई दे रहा था जबकि बाकी तीन तरफ की दीवारें, छत और फर्श सभी स्टील की मोटी चादर के बने मालूम हो रहे थे।


''कहीं तुमने मुझे कैद में लाकर तो नहीं फंसा दिया है?" रामू ने उस राक्षस को घूर कर देखा।
''तुमने ऐसा क्यों सोचा?" राक्षस के चेहरे पर हमेशा की तरह यांत्रिक मुस्कुराहट बनी हुई थी।
''अगर मैं कैद में नहीं हूं तो आगे बढ़ने का रास्ता किधर है?"
''इस समय तुम जिस कमरे में हो यही कमरा तुम्हें आगे ले जायेगा।"


''वह कैसे? यह तो शायद अपनी जगह पर जाम है।" रामू ने उसकी ओर बेयकीनी से देखा।
''मैं ठीक कह रहा हूं। लेकिन इसके लिये तुम्हें अपना ज़ीरो मुझे सौंपना होगा।" राक्षस ने उसकी ओर हाथ फैलाया।


रामू एक बार फिर ज़हनी कशमकश में फंस गया। उस ज़ीरो ने कई बार उसकी मदद की थी। फिर उसे वह उस राक्षस को कैसे सौंप देता। शायद राक्षस ने अभी तक इसीलिए उसे नुकसान नहीं पहुंचाया था क्योंकि वह करिश्माई ज़ीरो उसके हाथ में था। लेकिन ज़ीरो को अपने से अलग करते ही वह ज़रूर किसी किसी नयी मुसीबत में फंस जाता।


''क्या सोच रहे हो?" उसे यूं विचारों में गुम देखकर राक्षस ने पूछा।
''इस बात की क्या गारंटी है कि तुम ज़ीरो लेने के बाद मुझे धोखा नहीं दोगे।" रामू ने उसी से पूछ लिया।
''गारंटी तो कोई नहीं। लेकिन जब तक ज़ीरो मेरे पास नहीं आता मैं कुछ नहीं कर सकता।" राक्षस ने रामू को और उलझन में डाल दिया था।


''तुम्हें कम्प्यूटर के बाइनरी सिस्टम के बारे में सोचना चाहिए।" थोड़ी देर बाद राक्षस फिर इतनी सी बात बोला और चुप हो गया।
'भला यहाँ कम्प्यूटर का बाइनरी सिस्टम कहाँ से टपक पड़ा।" रामू ने झल्लाकर कहा। यह राक्षस भी पहेलियों में बातें कर रहा था। रामू बेचैनी से इधर उधर टहलने लगा। जबकि राक्षस अपनी जगह हाथ बांधे हुए खड़ा था। उसके चेहरे पर सजी फिक्स मुस्कुराहट अब रामू को सुलगा रही थी।


फिर उसने अपने दिमाग को ठंडा किया। अभी तक उसे जो कामयाबी मिली थी वह ठंडे दिमाग से सोचने का ही परिणाम थी। उसने उस राक्षस की बात पर विचार करना शुरू किया और कम्प्यूटर के बाइनरी सिस्टम के बारे में गौर करने लगा। उसके कम्प्यूटर के टीचर ने बताया था कि कम्प्यूटर की पूरी गणित केवल दो अंकों पर आधारित होती है। ज़ीरो और वन। इन दोनों के मिलने से सारी गिनतियाँ बन जाती हैं।


रामू के दिमाग का बल्ब फिर रोशन हो गया। ज़ीरो तो उसके हाथ में था जबकि वह राक्षस क्यूबिक समीकरण के मान 'वन को निरूपित कर रहा था। अब दोनों को अगर मिला दिया जाता तो जिस तरह बाइनरी सिस्टम में समस्त संख्याएं बन जाती हैं, उसी तरह यहाँ पर दोनों के मिला दिया जाता तो जिस तरह बाइनरी सिस्टम में समस्त संख्याएं बन जाती हैं, उसी तरह यहाँ पर दोनों के मिलने से कोई नयी शक्ति पैदा होने का पूरा चाँस था जो रामू को इस मुशिकल से उबार सकती थी।


हालांकि इसमें रिस्क भी था। हो सकता था कि ज़ीरो के मिलते ही वह राक्षस उसके लिये घातक सिद्ध होता। काफी देर सोचने विचारने के बाद रामू ने यह रिस्क लेने का फैसला किया। वैसे भी और कोई चारा नहीं था। अगर वह रिस्क लेता तो शायद पूरी जिंदगी उस छोटे से कमरे में गुज़ार देनी पड़ती।




उसने अपने हाथ में मौजूद ज़ीरो को राक्षस की ओर बढ़ा दिया। जैसे ही ज़ीरो राक्षस के हाथ में पहुंचा उसके शरीर से तेज़ रोशनी कुछ इस तरह फूटी कि रामू को अपनी आँखें बन्द कर लेनी पड़ीं। उसने आँखें मिचमिचाते हुए देखा राक्षस के शरीर का रंग पल पल बदल रहा था। उसका कालापन गायब हो चुका था और उसके जिस्म में ऊपर से नीचे तक रंगीन रोशनियां लहरा रही थीं। फिर धीरे धीरे उन रोशनियों की तीव्रता कम होकर इस लायक हो गयी कि रामू अपनी पूरी आँखें खोल सका।


उसने देखा राक्षस के जिस्म से निकलने वाली रोशनियों ने पूरे कमरे को जगमगा दिया था और अब वह राक्षस भी नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके सर का सींग गायब हो गया था और चेहरा निहायत खूबसूरत हो गया था। लेकिन उसका जिस्म अभी भी मानव का जिस्म नहीं मालूम हो रहा था। क्योंकि उसके पूरे धड़ में तरह तरह के रंगों की रोशनियां इस तरह लहरा रही थीं मानो बादलों में बिजलियां चमक रही हैं।


''अरे वाह। तुम तो अब खूबसूरत हो गये। फिर तुमने मेरा ज़ीरो बाहर ही क्यों नहीं माँग लिया था?" रामू ने खुश होकर पूछा।
''मैं उसे बाहर नहीं माँग सकता था। इसके दो कारण थे। पहला तो ये कि वहाँ मेरे माँगने पर तुम उसे देते ही नहीं।"


रामू ने दिल में सोचा, ''यह ठीक कह रहा है। यकीनन अगर वहाँ पर कोई भी उससे उसका यन्त्र माँगता तो वह हरगिज़ उसे नहीं देता।
''और दूसरा कारण?" उसने पूछा।


''दूसरा कारण ये था कि अगर मैं उस ज़ीरो को बाहर ले लेता तो इस क्यूबिक समीकरण रूपी दरवाज़े को खोलना मुमकिन होता। क्योंकि ज़ीरो ग्रहण करने के बाद मेरा मान 'वन' नहीं रह जाता।"
''ठीक है। मैं समझ गया। अब तुम आगे क्या करने जा रहे हो?"


''अब हम अपनी मंजि़ल की ओर बढ़ने जा रहे हैं।" कहते हुए उसने एक छलांग लगायी और कमरे की छत से चिपक गया। उसके छत से चिपकते ही कमरा हवा में ऊपर उठने लगा। थोड़ी ऊँचाई पर जाकर कमरा एक दिशा में तेज़ी से आगे की तरफ उड़ने लगा था। ऐसा मालूम हो रहा था कि कमरे को वह राक्षस अपने ज़ोर से हवा में उड़ा रहा है। वैसे अब उसे राक्षस कहना मुनासिब नहीं था। बल्कि वह तो कोई फरिश्ता मालूम हो रहा था।


रामू ने एक तरफ बनी पारदर्शी दीवार से बाहर की ओर देखा। यह कमरा आसमान में किसी हवाई जहाज़ की ही तरह उड़ रहा था। और उस कमरे के बाहर आसमान में तरह तरह की रंग बिरंगी किरणें लहरा रही थीं और एक निहायत खूबसूरत दृश्य देखने को मिल रहा था।


''एक बात बताओ!" रामू ने उस राक्षस या फरिश्ते को मुखातिब किया, ''इस कमरे को उड़ाने में तुम जितनी ताकत लगा रहे हो। उससे कम ताकत में तुम अकेले मुझे उड़ाकर ले जा सकते थे। फिर इतना झंझट क्यों मोल लिया?"


''मैं इस कमरे को उड़ने के लिये केवल एनर्जी सप्लाई कर रहा हूं। जबकि उड़ने का मैकेनिज्म इसके अन्दर ही बना हुआ है। और सबसे अहम बात ये है कि अगर तुम इस कमरे से बाहर निकलोगे तो आसमान में नाचती ये रंग बिरंगी किरणें तुम्हारे शरीर को नष्ट कर देंगी। क्योंकि ये किरणें काफी घातक हैं।"
''तो अब हम जा कहाँ रहे हैं?"


''जहाँ ये कमरा हमें ले जा रहा है।" राक्षस ने जवाब तो दे दिया था लेकिन वह जवाब रामू के लिये किसी काम का नहीं था। वह खामोश हो गया।


कमरा अपनी गति से उड़ा जा रहा था या राक्षस उसे उड़ाये ले जा रहा था। लगभग एक घंटे तक उड़ने के बाद कमरा अचानक एक अँधेरी सुंरग में घुस गया। हालांकि रामू के लिये वहाँ पूरी तरह अँधेरा नहीं था क्योंकि राक्षस के जिस्म से फूटती रोशनी में उसे आसपास की चीज़ें नज़र रही थीं। थोड़ी देर उस सुरंग में उड़ने के बाद कमरा अचानक रुक गया। और साथ ही उसका शीशे का दरवाज़ा भी खुल गया।


रामू ने देखा, कमरा एक चौकोर प्लेटफार्म पर आकर रुका था। और उस प्लेटफार्म से नीचे जाने के लिये सीढि़यां भी मौजूद थीं। वह जल्दी जल्दी सीढि़यों से नीचे उतरने लगा। वहाँ पर एक हल्की सी आवाज़ गूंज रही थी। जो मच्छरों के भनभनाने जैसी थी। इस अँधेरी सुरंग में मच्छरों का होना कोई हैरत की बात नहीं थी। रामू ने सीढ़ी के आखिरी डण्डे से नीचे कदम रखा लेकिन फिर उसे पछताने का मौका भी नहीं मिल सका।


क्योंकि उसे मच्छरों की वह फौज सामने ही नज़र गयी थी जो तेज़ी से उसपर हमला करने के लिये आगे बढ़ रही थी। और मच्छर भी कैसे। हर एक का साइज़ टेनिस बाल से कम नहीं था। उनके सामने लगे तेज़ डंक किसी नुकीले खंजर की तरह नज़र रहे थे।


इससे पहले कि वह नुकीले डंक रामू के शरीर को पंचर कर देते रामू का मददगार यानि वह राक्षस या फरिश्ता तेज़ी से सामने आया और उन मच्छरों को दोनों हाथों से मारने लगा। जैसे ही उसका हाथ किसी मच्छर से टकराता था एक चिंगारी के साथ वह मच्छर गायब हो जाता था।


''वेरी गुड!, रामू चीखा, ''सबको खत्म कर दो।"
''मैं तुम्हें ज़्यादा देर नहीं बचा सकता। इससे पहले कि ये बहुत ज़्यादा बढ़ जायें तुम्हें इनका स्रोत ढूंढकर नष्ट करना होगा। हवा में हाथ लहराते हुए उस फरिश्ते ने भी चीखकर कहा।


रामू ने देखा मच्छरों की संख्या धीरे धीरे बढ़ रही थी। और वाकई में अगर उनके निकलने को रोका जाता तो थोड़ी ही देर में ये इतने ज़्यादा हो जाते कि उनसे बचना नामुमकिन हो जाता। फरिश्ते के जिस्म से निकलती रोशनी में वह देख रहा था कि ये मच्छर सामने मौजूद एक दीवार के सूराखों से निकल रहे हैं। ये सूराख भी टेनिस की बाल जितनी गोलाई के थे और संख्या में बीसियों थे।


''मैं क्या कर सकता हूं? मेरा ज़ीरो भी तुमने ले लिया।" रामू हाथ मलते हुए बोला।
''अकेले ज़ीरो से इन मच्छरों का कुछ भला नहीं होने वाला था। यहाँ तुम्हें कोई और तरकीब लगानी होगी।"
''कौन सी तरकीब?"


''मैं नहीं जानता। तुम्हें अपनी अक्ल लगानी होगी। लेकिन जो कुछ करना है जल्दी करो।" फरिश्ता मच्छरों को तेज़ी से मारते हुए फिर चीखा।

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