मायावी गणित -10
लगभग
एक
सेकंड
तक
वह
पाया
दिखाई
दिया
फिर
सभी
स्क्रीनों
के
दृश्य
बदल
गये।
रामू
के
लिये
इतना
इशारा
काफी
था।
वह
उस
पाये
के
पास
आया
और
उसका
व
उसके
आसपास
का
गौर
से
निरीक्षण
करने
लगा।
जल्दी
ही
उसे
पाये
से
टच
करता
हुआ
वह
पत्थर
नज़र
आ
गया
जिसका
रंग
दूसरे
पत्थरों
से
हल्का
सा
अलग
था।
जहाँ
दूसरे
पत्थर
गुलाबी
रंग
के
थे
वहीं
इस
पत्थर
के
गुलाबीपन
में
बैंगनी
रंग
की
भी
झलक
मिल
रही
थी।
हालांकि
यह
झलक
इतनी
नहीं
थी
कि
कोई
आसानी
से
उसे
नोटिस
कर
सकता।
उसने
पाये
को
उस
पत्थर
से
हटाने
की
कोशिश
की,
लेकिन
पाया
पूरी
तरह
जाम
था।
उसने
पत्थर
को
भी
ठोंक
बजाकर
देखा
लेकिन
कोई
फर्क
नहीं
पड़ा।
फिर
उसे
अपने
हाथ
में
पकड़े
ज़ीरो
नुमा
यन्त्र
का
ख्याल
आया
जिसने
इससे
पहले
भी
उसकी
कई
बार
मदद
की
थी।
उसने
उस
यन्त्र
को
पत्थर
से
लगा
दिया।
परिणाम
इस
बार
पाजि़टिव
था।
जैसे
ही
पत्थर
यन्त्र
के
सम्पर्क
में
आया,
शूँ
की
आवाज़
के
साथ
वह
हवा
में
विलीन
हो
गया।
और
उसके
गायब
होते
ही
उससे
मिले
सारे
पत्थर
एक
एक
करके
गायब
होने
लगे।
मज़े
की
बात
ये
थी
कि
एक
तरफ
तो
फर्श
के
पत्थर
गायब
हो
रहे
थे
और
दूसरी
तरफ
वह
मेज़
जिसपर
कटा
सर
रखा
था
वह
हवा
में
धीरे
धीरे
ऊपर
उठती
छत
की
ओर
जा
रही
थी।
फिर
वह
पत्थर
भी
गायब
हो
गया
जिसके
ऊपर
रामू
खड़ा
था।
अब
क़ायदे
से
उसे
नीचे
बने
हुए
गडढे
में
गिर
जाना
चाहिए
था
लेकिन
वह
वहीं
हवा
में
टिका
रहा।
उसे
लग
रहा
था
कि
इस
जगह
की
ग्रैविटी
पूरी
तरह
खत्म
हो
गयी
है।
वह
अब
किसी
नयी
मुसीबत
के
लिये
अपने
को
तैयार
कर
रहा
था
जो
कि
शायद
ज़्यादा
ही
मुश्किल
थी,
जैसा
कि
उस
सर
ने
बताया
था।
सर
जिस
मेज़
पर
रखा
था
वह
मेज़
छत
को
फाड़कर
बाहर
निकल
चुकी
थी,
और
उसके
बाद
छत
फिर
से
बराबर
हो
गयी
थी।
अचानक
उसे
अपने
पैरों
पर
नमी
सी
महसूस
हुई।
उसने
झुककर
देखा
तो
उसे
अपने
पैरों
के
पास
छोटे
छोटे
गुलाबी
रंग
के
बादल
नज़र
आये
जो
धीरे
धीरे
घने
हो
रहे
थे।
साथ
ही
यह
बादल
उसके
पैरों
से
ऊपर
भी
उठकर
पूरे
कमरे
में
फैल
रहे
थे।
कमरे
का
मौसम
अचानक
बदल
गया
था।
ठंडी
ठंडी
हवाएं
चलने
लगी
थीं।
और
उसे
कुछ
ऐसी
ही
महक
महसूस
हो
रही
थी
जैसे
बारिश
के
मौसम
में
पहली
बारिश
के
ठीक
बाद
होती
है।
उसे
लग
रहा
था
जैसे
वह
किसी
बाग़
में
बैठा
हुआ
है
और
मौसम
की
पहली
बारिश
शुरू
हो
गयी
है।
बादल
इतने
घने
हो
गये
थे
कि
उसे
कमरे
की
दीवारें
और
उनपर
लगे
टीवी
स्क्रीन
मुश्किल
से
ही
नज़र
आ
रहे
थे।
फिर
वह
दीवारें
दिखाई
देना
बिल्कुल
ही
बन्द
हो
गयीं।
अब
तो
उसका
पूरा
शरीर
भी
बादलों
में
छुप
गया
था।
लगभग
दस
मिनट
तक
वह
बादल
उसे
घेरे
रहे,
फिर
एकाएक
वह
सभी
बादल
गायब
हो
गये।
लेकिन
अब
वह
कमरा
भी
नज़र
नहीं
आ
रहा
था
जिसमें
वह
मौजूद
था।
बल्कि
यह
तो
बहुत
ही
खूबसूरत
एक
बाग़
था
जिसमें
तरह
तरह
के
फल
लगे
हुए
थे।
थोड़ी
दूर
पर
एक
तालाब
भी
था।
और
वह
खुद
उस
बाग़
में
पड़े
एक
झूले
पर
विराजमान
था।
अचानक
उसे
लगा
कि
उस
बाग़
में
उसके
अलावा
कोई
और
भी
है।
क्योंकि
उसे
अपने
पीछे
हल्की
सी
आहट
महसूस
हुई
थी।
उसने
घूमकर
देखा
तो
एक
और
झूला
नज़र
आया।
और
उस
झूले
पर
कोई
लड़की
बैठी
हुई
हौले
हौले
झूल
रही
थी।
उस
लड़की
की
पीठ
रामू
की
तरफ
थी।
रामू
ने
सुकून
की
एक
साँस
ली।
क्योंकि
पहली
बार
एम-स्पेस
में
कोई
सही
सलामत
इंसान
नज़र
आया
था।
वह
जल्दी
से
अपने
झूले
से
नीचे
कूद
गया
और
उस
लड़की
की
तरफ
बढ़ा।
उसी
वक्त
लड़की
भी
उसकी
आहट
महसूस
करके
उसकी
ओर
घूमी
और
उसका
चेहरा
देखते
ही
रामू
की
मुंह
से
हैरत
से
भरी
हुई
चीख
निकल
गयी।
वह
लड़की
नेहा
थी।
रामू
बेसब्री
से
उसकी
ओर
बढ़ा।
''नेहा!
तुम
तुम यहाँ?
नेहा
कुछ नहीं
बोली। एक
मधुर मुस्कान
के साथ
वह बस
उसकी तरफ
देखे जा
रही थी।
दो तीन
छलांगों
में रामू
उसके ठीक
सामने
पहुंच गया।
''नेहा!
तुम
यहाँ
एम-स्पेस
में क्या
कर रही
हो?"
''मैं
तुम्हें
यहाँ से
बाहर निकालने
आयी हूं।
चलो मेरे
साथ।"
उसने
जवाब दिया।
और झूले
से नीचे
कूद गयी।
''लेकिन
तुम यहाँ
पहुंचीं
कैसे ?
क्या
सम्राट
ने तुम्हें
भी कैद
कर दिया?"
''मुझे
कौन कैद
कर सकता
है। उसे
तो मेरा
आभास भी
नहीं हो
सकता।"
नेहा
ने आसमान
की तरफ
देखते हुए
कहा।
''समझा
यानि
तुम्हारे
पास भी
कोई अनोखी
शक्ति आ
चुकी है।"
रामू
ने अंदाज़ा
लगाया।
''अब
बातों में
वक्त न
बरबाद करो
और मेरे
साथ आओ।
हमें यहाँ
से बाहर
निकलना
है।"
वह
आगे बढ़
गयी। रामू
भी उसके
पीछे पीछे
चल पड़ा।
उसे लग
रहा था
कि भगवान
ने नेहा
के रूप
में उसके
पास मदद
भेजी है।
लेकिन नेहा
यहाँ तक
पहुंची
कैसे यह
सवाल किसी
पहेली से
कम नहीं
था। 
जल्दी
ही
वे
बाग़
के
किनारे
पहुंच
गये
जहाँ
सामने
एक
ऊंची
बाउण्ड्री
वाल
नज़र
आ
रही
थी।
''आगे
तो
रास्ता
ही
बन्द
है।
भला
इस
ऊंची
दीवार
को
कौन
पार
कर
पायेगा।"
रामू
बड़बड़ाया।
''दीवार
के
बीच
में
एक
दरवाज़ा
भी
है।
वह
देखो
उधर।"
नेहा
ने
जिस
तरफ
इशारा
किया
था
जब
उधर
रामू
ने
नज़र
की
तो
अजीबोगरीब
संरचना
दिखाई
दी।
ये
संरचना
नीचे
से
ठोस
घनाकार
थी
और
सफेद
संगमरमर
जैसे
किसी
पत्थर
की
बनी
हुई
थी।
वह
घन
दीवार
में
फिट
था
और
आगे
की
ओर
निकला
हुआ
था।
उस
घन
के
ऊपर
एक
काले
रंग
का
वर्ग
बना
हुआ
था।
फिर
उस
वर्ग
के
ऊपर
भी
सफेद
रंग
की
छड़
निकल
कर
और
ऊपर
गई
हुई
थी,
और
उस
छड़
के
ऊपर
काले
रंग
से
1
लिखा
हुआ
स्पष्ट
दिखाई
दे
रहा
था।
उस
संरचना
से
सफेद
रंग
की
अलग
ही
रोशनी
निकल
रही
थी
जो
बाग़
में
फैली
रोशनी
से
थोड़ी
अलग
थी
और
उस
संरचना
को
स्पष्ट
देखने
में
मदद
कर
रही
थी।
लेकिन
नेहा
ने
जो
कहा
था
कि
वहाँ
पर
एक
दरवाज़ा
है
तो
ऐसे
दरवाज़े
का
कहीं
दूर
दूर
तक
पता
नहीं
था।
''लेकिन
दरवाज़ा
कहाँ
है?
वहाँ
पर
तो
मुझे
ठोस
संरचना
दिखाई
दे
रही
है।"
रामू
ने
पूछ
ही
लिया।
''जिस
संरचना
को
तुम
देख
रहे
हो
वही
तो
दरवाज़ा
है
बाहर
जाने
का।
तुम
चलो
तो
सही।"
नेहा
ने
मुस्कुराते
हुए
कहा।
अचानक
रामू
के
दिमाग़
में
ख्याल
आया
कि
जिस
तरह
यहाँ
कदम
कदम
पर
गणितीय
पहेलियों
के
दर्शन
हो
रहे
हैं,
और
उस
संरचना
के
ऊपर
भी
एक
संख्या
लिखी
हुई
है
तो
हो
सकता
है
कि
वह
संरचना
वाकई
आगे
जाने
का
दरवाज़ा
ही
हो
और
किसी
तकनीक
से
खुलता
हो।
ऐसा
सोचकर
उसने
आगे
कदम
बढ़ाया।
अब
दोनों
लगभग
उस
संरचना
के
पास
पहुंच
चुके
थे।
अचानक
पीछे
से
कोई
चिल्लाया,
''रुक
जाओ
रामू
बेटा।"
जानी
पहचानी
आवाज़
सुनकर
रामू
फौरन
पीछे
घूम
गया।
''माँ,
तुम
यहाँ।"
वह
चीखा।
यकीनन
वह
उसकी
माँ
थी
जो
हाथ
फैलाये
हुए
उसकी
तरफ
बढ़
रही
थी।
उसने
भी
उससे
मिलने
के
लिये
आगे
बढ़ना
चाहा
लेकिन
उसी
समय
नेहा
उसके
सामने
आ
गयी।
''कहाँ
जा
रहे
हो
रामू।
वह
तुम्हारी
माँ
नहीं
है।"
वह
केवल
एक
धोखा
है।
उसी
समय
उसकी
माँ
ने
उसे
आवाज़
दी,
''रामू
उस
डायन
के
साथ
आगे
मत
जाना
वरना
हमेशा
के
लिये
कैद
हो
जाआगे।
अगर
तुम्हें
यहाँ
से
बाहर
निकलना
है
तो
मेरे
साथ
चलो।"
अब
तक
उसकी
माँ
उसके
काफी
पास
आ
चुकी
थी
और
रामू
देख
रहा
था
कि
वह
वाकई
उसकी
माँ
थी,
न
कोई
धोखा
थी
और
न
कोई
और
उसके
मेकअप
में
था।
लेकिन
दूसरी
तरफ
नेहा
भी
कोई
डायन
तो
मालूम
नहीं
हो
रही
थी।
''रामू
इस
बुढि़या
की
बातों
में
मत
आना
वरना
कभी
एम-स्पेस
से
बाहर
नहीं
निकल
सकोगे।
वह
एक
फरेब
है
जो
तुम्हारी
माँ
की
शक्ल
में
है।
नेहा
ने
फिर
उसे
सावधान
किया।
''फरेब
तो
तू
है
डायन!
जो
मेरे
भोले
भाले
बेटे
को
अपने
साथ
ले
जाकर
हमेशा
के
लिये
कैद
कर
देना
चाहती
है।"
उसकी
माँ
ने
दाँत
पीसकर
कहा,
फिर
रामू
से
मुखातिब
हुई
,
''बेटा
मैंने
तुझे
अपना
दूध
पिलाया
है।
क्या
तू
मुझे
नहीं
पहचान
रहा।
अपनी
सगी
माँ
को
नहीं
पहचान
रहा।"
रामू
ने
देखा
उसकी
माँ
आँचल
से
अपने
आँसू
पोंछ
रही
थी।
वह
तड़प
गया।
''नहीं
माँ,
मैं
तुझे
छोड़कर
कहीं
नहीं
जाऊंगा।
पूरी
दुनिया
धोखा
दे
दे
लेकिन
माँ
कभी
नहीं
धोखा
देती।"
वह
उसकी
तरफ
बढ़ा
लेकिन
उसी
समय
पास
के
एक
घने
पेड़
से
कोई
धप
से
ज़मीन
पर
कूदा।
रामू
ने
देखा,
यह
निहायत
काला
भुजंग
मोटा
सा
व्यक्ति
था
जिसके
सर
पर
एक
सींग
भी
मौजूद
था।
इस
कुरूप
व्यकित
के
चेहरे
पर
निहायत
वीभत्स
मुस्कुराहट
सजी
हुई
थी।
''किधर
जा
रहा
है
रे।
बहुत
बड़ा
धोखा
खायेगा
तू।"
वह
राक्षस
अपनी
खौफनाक
मुस्कुराहट
के
साथ
बोला।
''राक्षस
दूर
हो
जा
यहाँ
से।
मैं
अपने
बेटे
को
इस
जगह
से
निकालने
के
लिये
आयी
हूं।"
उसकी
माँ
ने
गुस्से
से
उस
वीभत्स
राक्षस
को
लताड़ा।
''तू
इसे
निकालेगी
या
और
फंसा
देगी।
इसे
यहाँ
से
सुरक्षित
सिर्फ
मैं
निकाल
सकता
हूं।
फिर
वह
रामू
से
मुखातिब
हुआ,
''देख
क्या
रहा
है।
मेरे
साथ
आ।
मैं
तुझे
यहाँ
से
निकालता
हूं।"
वह
कुरूप
राक्षस
रामू
की
तरफ
बढ़ा।
रामू
के
दिमाग़
की
चूलें
इस
वक्त
हिली
हुई
थीं।
उसका
मन
कर
रहा
था
कि
अपने
सर
के
सारे
बाल
नोच
डाले।
''वहीं
रूको।
मैं
खुद
ही
यहाँ
से
बाहर
निकल
जाऊंगा।"
उसने
चीख
कर
कहा
और
उस
संरचना
की
ओर
तेज़
तेज़
कदमों
से
जाने
लगा
जिसे
नेहा
ने
दरवाज़े
का
नाम
दिया
था।
वह
उस
विशाल
संरचना
के
सामने
पहुंचा
और
उसमें
किसी
दरवाज़े
का
निशान
ढूंढने
की
कोशिश
करने
लगा।
लेकिन
उस
संरचना
में
कहीं
कोई
दरार
भी
नहीं
दिखाई
दी।
उसने
घूमकर
देखा।
नेहा,
उसकी
माँ
और
वह
राक्षस
अपनी
जगह
चुपचाप
खड़े
उसी
की
तरफ
देख
रहे
थे।
उसने
अपने
हाथ
में
पकड़े
ज़ीरो
को
उस
संरचना
से
टच
कराया।
टच
कराते
ही
उस
संरचना
से
बादलों
की
गरज
जैसी
आवाज़
पैदा
हुई
जो
कि
शब्दों
में
बदल
गयी।
उस
संरचना
से
आने
वाली
आवाज़
कह
रही
थी,
''मेरे
अन्दर
आने
के
लिये
तुम्हें
उन
तीनों
में
से
एक
को
साथ
लाना
पड़ेगा।
इतना
कहकर
आवाज़
बन्द
हो
गयी।
रामू
ने
दोबारा
अपना
ज़ीरो
उससे
टच
कराया
और
संरचना
ने
फिर
यही
शब्द
दोहरा
दिये।
यानि
रामू
के
पास
इसके
अलावा
और
कोई
रास्ता
नहीं
था
कि
वह
उन
तीनों
में
से
किसी
एक
को
साथ
लेकर
आता।
लेकिन
किसको?
उन
तीनों
की
आपसी
सर
फुटव्वल
से
यही
ज़ाहिर
हो
रहा
था
कि
उनमें
से
दो
गलत
हैं
और
एक
ही
सही
है।
गलत
का
साथ
पकड़ने
का
मतलब
था
कि
वह
हमेशा
के
लिये
किसी
अंजान
जगह
पर
कैद
हो
जाता।
लेकिन
उनमें
सही
कौन
था
इसे
ढूंढ़ना
टेढ़ी
खीर
था।
वह
वहीं
ज़मीन
पर
बैठ
गया
और
इस
नयी
पहेली
को
सुलझाने
की
कोशिश
करने
लगा।
लेकिन
बहुत
देर
सर
खपाने
के
बाद
भी
इस
पहेली
का
कोई
हल
उसे
समझ
में
नहीं
आया।
एक
तरफ
नेहा
थी,
उसकी
स्कूल
की
दोस्त।
जिसने
अक्सर
मैथ
के
सवाल
हल
करने
में
उसकी
मदद
की
थी।
और
उससे
पूरी
हमदर्दी
रखती
थी।
दूसरी
तरफ
माँ
थी
जिसने
उसे
जन्म
दिया
था,
उसकी
हमेशा
हर
ख्वाहिश
को
पूरा
किया
था
और
जब
जब
वह
किसी
मुश्किल
में
पड़ा
तो
उसकी
माँ
ने
आसानी
से
उसे
उस
मुश्किल
से
उबार
लिया।
फिर
तीसरा
वह
राक्षस
था
जो
खुद
ही
कोई
नयी
मुसीबत
मालूम
हो
रहा
था।
लेकिन
इस
मायावी
दुनिया
का
कोई
भरोसा
नहीं।
वही
वास्तविक
मददगार
भी
हो
सकता
था।
बहुत
देर
सर
खपाने
के
बाद
भी
जब
वह
किसी
नतीजे
पर
नहीं
पहुंच
सका
तो
उसने
अपने
सामने
मौजूद
संरचना
पर
दृष्टि
की
और
सोचने
लगा
कि
आखिर
इस
तरह
की
संरचना
क्या
सोचकर
बनायी
गयी।
एकाएक
उसकी
अक्ल
का
बल्ब
रोशन
हो
गया।
उसे
अफसोस
हुआ
कि
उसने
इस
संरचना
पर
पहले
गौर
क्यों
नहीं
किया।
यह
संरचना
तो
खुद
ही
सही
मददगार
की
ओर
इशारा
कर
रही
थी।
दरअसल
यह
संरचना
एक
गणितीय
समीकरण
को
बता
रही
थी।
वह
समीकरण
क्यूबिक
इक्वेशन
थी।
अगर
उस
अज्ञात
दरवाज़े
को
एक्स
माना
जाता
तो
नीचे
का
सफेद
क्यूब
पाजि़टिव
एक्स
क्यूब
बना।
फिर
उसके
ऊपर
काला
स्क्वायर
निगेटिव
एक्स
स्क्वायर
हो
गया।
उसके
ऊपर
सफेद
छड़
पाजि़टिव
एक्स
को
बता
रही
थी
और
फिर
सबसे
ऊपर
निगेटिव
वन
था।
इस
तरह
यह
क्यूबिक
समीकरण
मुकम्मल
हो
रही
थी।
अब
जहाँ
तक
रामू
को
जानकारी
थी
कि
इस
क्यूबिक
समीकरण
के
दो
हल
तो
काल्पनिक
मान
रखते
हैं
और
एक
ही
हल
वास्तविक
होता
है
और
इस
वास्तविक
हल
का
मान
वन
के
बराबर
होता
है।
इसका
मतलब
ये
हुआ
कि
बाग़
में
मौजूद
तीनों
प्राणी
इस
क्यूबिक
समीकरण
के
तीन
हल
थे।
और
इस
समीकरण
को
ज़ीरो
करने
के
लिये
यानि
दरवाज़े
को
खोलने
के
लिये
उनमें
से
एक
को
साथ
लाना
ज़रूरी
था।
लेकिन
अगर
रामू
गलती
से
काल्पनिक
मान
को
ले
आता
तो
समीकरण
रूपी
संरचना
के
अन्दर
जाते
ही
वह
खुद
भी
काल्पनिक
बन
जाता
और
उसका
वास्तविक
दुनिया
से
हमेशा
के
लिये
नाता
टूट
जाता।
जबकि
वास्तविक
मान
को
साथ
में
लाकर
वह
दरवाज़ा
भी
खोल
लेता
और
वास्तविक
दुनिया
में
भी
मौजूद
रहता।
अब
वह
सोचने
लगा
कि
उन
तीनों
में
से
कौन
से
दो
मान
काल्पनिक
हो
सकते
हैं
थोड़ा
दिमाग
लगाने
पर
यह
राज़
भी
उसपर
खुल
गया।
थोड़ी
देर
पहले
नेहा
ने
उससे
कहा
था,
''मुझे
कौन
कैद
कर
सकता
है।
उसे
तो
मेरा
आभास
भी
नहीं
हो
सकता।"
इसका
मतलब
कि
नेहा
एक
काल्पनिक
मान
के
रूप
में
यहाँ
मौजूद
थी।
क्योंकि
काल्पनिक
मान
का
वास्तविक
दुनिया
में
आभास
नहीं
होता।
और
अगर
नेहा
काल्पनिक
थी
तो
उसकी
माँ
भी
काल्पनिक
थी।
वैसे
भी
दोनों
का
इस
दुनिया
में
मौजूद
रहना
अक्ल
से
परे
था।
क्योंकि
वह
खुद
तो
सम्राट
द्वारा
वहाँ
लाया
गया
था
जबकि
उन
दोनों
की
वहाँ
मौजूदगी
का
कोई
कारण
नहीं
दिखाई
देता
था।
वह
दोबारा
उन
तीनों
की
ओर
बढ़ने
लगा।
नेहा
और
उसकी
माँ
मुस्कुराने
लगीं
क्योंकि
दोनों
को
लग
रहा
था
कि
रामू
उनके
ही
पास
आ
रहा
है।
जबकि
राक्षस
के
चेहरे
पर
पहले
की
तरह
वीभत्स
मुस्कान
सजी
हुई
थी।
 
 
 
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