मायावी गणित -2

मायावी गणित -2


उधर बंदर बना रामू अब शहर की सीमा में प्रवेश कर चुका था। यहाँ आकर उसने राहत की साँस ली। 'चलो जंगली जानवरों से पीछा छूटा। यहाँ पर सिर्फ कुत्तों के भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं। अब कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं।'
लेकिन यह क्या? कुत्ते तो भौंकते हुए उसी की तरफ दौड़े चले आ रहे थे। उसे याद आ गया कि उसका जिस्म बंदर का है। और कुत्ते बंदरों के अव्वल दर्जे के दुश्मन होते हैं।
एक बार फिर उसे दौड़ जाना पड़ा। उसने छलांग लगाई और एक मकान का पाइप पकड़कर जल्दी जल्दी ऊपर चढ़ने लगा। थोड़ी ही देर में वह मकान की छत पर था।
अब वहाँ मौजूद पानी की टंकी पर चढ़कर वह चारों ओर नजारा कर रहा था। उसे एरिया कुछ जाना पहचाना महसूस हुआ। फिर इस घर को भी वह पहचान गया। यह तो नेहा का घर है। एक वही तो थी पूरे क्लास में जो उससे हमदर्दी रखती थी।

अब उसे थोड़ा इत्मिनान हुआ। वह नेहा को पूरी बात बतायेगा। शायद वह उसकी कुछ मदद कर सके।
रामू को किसी के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने झांककर देखा, नेहा गीले कपड़ों को धुप में डालने के लिए ऊपर आ रही थी।
''काम बन गया। लगता है ऊपर वाला  मेरे ऊपर मेहरबान है।" उसने खुश होकर सोचा।
नेहा ऊपर आयी और फिर वहाँ लगे हुए तार पर कपड़े डालने लगी। अभी उसकी नजर बंदर उर्फ रामू पर नहीं पड़ी थी।
''हैलो नेहा! मैं रामू हूँ। प्लीज मेरी मदद करो।" रामू बोला। ये अलग बात है कि उसके मुंह से सिर्फ बंदरों वाली खों खों ही निकल पायी।
नेहा ने घूमकर देखा। और फिर जो कुछ हुआ वह रामू के लिए अप्रत्याशित था।
नेहा ने एक जोर की चीख मारी और मम्मी-बंदर मम्मी-बंदर रटती हुई सीढि़यों से नीचे भागी।
''बंदर-किधर है बंदर.. रामू भी घबरा कर इधर उधर देखने लगा। फिर उसे याद आया कि बंदर तो वह खुद ही बना बैठा है।
''तो नेहा भी मुझे पहचान नहीं पायी।" अफसोस के साथ उसने सोचा।
''किधर है बंदर! नीचे से एक दहाड़ सुनाई दी।" रामू ने घबराकर देखा। नीचे नेहा का बड़ा भाई हाथ में मोटा डंडा लिए नेहा से पूछ रहा था। रामू की रूह फना हो गई। उसने वहाँ से फौरन निकल लेना ही उचित समझा।
फिर एक लम्बी छलांग ने उसे दूसरे मकान की छत पर पहुँचा दिया। यहाँ पहुंचकर वह खुश हो गया। क्योंकि चारों तरफ मूंगफलियां बिखरी हुई थीं। दरअसल उन्हें सुखाने के लिए वहाँ रखा गया था। रामू को जोरों की भूख लग रही थी, लिहाजा उसने आव देखा न ताव और मुटठी भर भर कर मूंगफलियां चबानी शुरू कर दीं।
अभी उसने दो तीन मुटिठयां ही मुंह में डाली थीं कि कोई चीज बहुत जोरों से उसके पैर से टकराई। दर्द की एक जोरदार टीस में वह सी करके रह गया। फिर घूमकर देखा तो थोड़ी दूर पर एक लड़का खड़ा हुआ था हाथ में गुलेल लिए हुए।
''आओ बच्चू, ये गुलेल मैंने तुम लोगों के लिए ही तैयार की है।" कहते हुए लड़का गुलेल में फिर से कंकड़ी लगाने लगा।
अब रामू के पास एक बार फिर भागने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
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उस समय क्लास में गुप्ता जी अंग्रेजी पढ़ा रहे थे जब चपरासी ने वहाँ प्रवेश किया। गुप्ता जी ने पढ़ाना छोड़कर प्रश्नात्मक दृष्टि से चपरासी को देखा।
''मास्टर साहब, रामू को प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।
रामू बने सम्राट ने हैरत से चपरासी को देखा। भला प्रिंसिपल को उससे क्या काम पड़ गया था।
''रामू!" गुप्ता जी ने रामू को पुकारा, ''जाओ, तुम्हें प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।"
रामू अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। एक ही जगह बैठे अमित, गगन और सुहेल ने एक दूसरे को राज़भरी नज़रों से देखा।
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जब सम्राट प्रिंसिपल के रूम में दाखिल हुआ तो वहाँ अग्रवाल सर पहले से मौजूद थे।
''आओ रामकुमार!" प्रिंसिपल ने बड़े प्यार से रामू को बुलाया। रामू बना सम्राट आगे बढ़ा।
''मुझे यह सुनकर ख़ुशी हुई कि तुमने अग्रवाल सर को चैलेंज किया है कि तुम इन्हें गणित में हरा सकते हो।" प्रिंसिपल भाटिया ने अग्रवाल सर की ओर देखकर कहा। अग्रवाल सर रामू को व्यंगात्मक तरीके से देख रहे थे।
''मैंने!" हैरत से सम्राट ने कहा। फिर तुरंत ही सिचुएशन उसकी समझ में आ गयी। यानि गगन वगैरा ने अग्रवाल सर और प्रिंसिपल के कान भरे थे।
''चलो अच्छा है। इससे मेरा ही मकसद हल होगा।" उसने सोचा।
''जवाब दो रामकुमार।" प्रिंसिपल भटिया ने उसे टोका।
''मेरे दिल ने कहा था, इसलिए मैंने ऐसा चैलेंज किया।" रामू ने जवाब दिया।
अग्रवाल सर का चेहरा तपते लोहे की तरह लाल हो गया जबकि मैडम भाटिया अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचीं।
''मैं इसका चैलेंज कुबूल करता हूँ।" अग्रवाल सर ने भर्राई आवाज में कहा, ''लेकिन मेरी एक शर्त है।"
''कैसी शर्त?" प्रिंसिपल ने पूछा।
''अगर ये सवाल नहीं हल कर पाया तो स्कूल के पीछे बह रहे गन्दे नाले में इसे डुबकी लगानी पड़ेगी।"
''यह तो बहुत सख्त सजा है अग्रवाल जी...!" प्रिंसिपल ने कहना चाहा किन्तु रामू बने सम्राट ने बीच में बात काट दी, ''मुझे शर्त मंजूर है।"
''ठीक है। मैं क्वेश्चन पेपर सेट करता हूँ।" अग्रवाल सर उठ खड़े हुए।
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''यह तुमने क्या किया रामू! माना कि तुम मैथ में तेज हो गये हो। लेकिन इतने भी नहीं कि अग्रवाल सर को चैलेंज कर दो। वो अपने जमाने के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं।" नेहा इस समय रामू से बात कर रही थी।
''देखा जायेगा।" लापरवाही के साथ कहा रामू बने सम्राट ने।
''सोचता हूँ, पीछे के नाले में एकाध बाल्टी सेन्ट डलवा दूं।" अचानक पीछे से एक आवाज उभरी। दोनों ने चौंक कर देखा गगन, अमित और सुहेल की तिकड़ी थोड़ी दूर पर मौजूद थी। यह जुमला अमित ने कहा था।
''हाँ। वरना कोई बेचारा बदबू से मर जायेगा।" सुहेल ने जवाब दिया था।
''चलो यहाँ से चलते हैं।" नेहा ने रामू का हाथ पकड़कर कहा। दोनों वहाँ से चलने को हुए। उसी समय गगन ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।
''हाय नेहा!" उसने नेहा को मुखातिब किया।
''हाय!" बोर अंदाज में जवाब दिया नेहा ने।
''क्या बात है। आजकल तो लिफ्ट ही नहीं दे रही हो।" गगन ने शिकायत की।
''लिफ्ट खराब हो गयी है। तुम सीढि़यों का इस्तेमाल कर सकते हो।" गंभीर स्वर में नेहा ने जुमला उछाला। आसपास मौजूद दूसरे लड़कों ने मुस्कुराहट छुपाने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिए।
गगन कोई सख्त जुमला कहने जा रहा था। उसी समय मिसेज कपूर उधर से गुजरने लगीं। फिर इन लड़कों को भीड़ लगाये हुए देखा तो टोक भी दिया, ''ऐ तुम लोगों ने यहाँ भीड़ क्यों लगा रखी है। जाओ अपनी क्लास में।"
''मैडम, आज आपके पास बहुत देर से फोन नहीं आया।" अमित ने टोक दिया। मिसेज कपूर इतिहास की शिक्षक थीं और मोबाइल पर बात करने के लिए बदनाम थीं। रांग नंबर भी लगता था तो फोन पर ही उसका पूरा इतिहास खंगाल डालती थीं।
''क्या बताऊं।" मिसेज कपूर के चेहरे से उदासी झलकने लगी, ''मेरे पास एक हथौड़ा है जिससे महान स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी बेडि़यां तोड़ी थीं। यह उस जमाने की बात है जब वह अंग्रेजों की जेल तोड़कर फरार हुए थे...।"
''मैडम मोबाइल की बात...।" सुहेल ने बीच में टोका।
''वही बता रही हूँ नालायक।" मैडम कपूर ने उसे घूरा, ''आज सुबह की बात है। मेरे भांजे ने वही हथौड़ा मेरी सेफ से निकाल लिया, और मेरे मोबाइल को उससे पीट डाला। तभी से उसकी आवाज गायब हो गयी है।" मैडम कपूर पर्स से मोबाइल निकालकर सबको दिखाने लगी।
''मैं देखता हूँ।" रामू बने सम्राट ने मैडम कपूर के हाथ से मोबाइल ले लिया और उसे खोल डाला।
''क्या करता है बे। क्या मैडम के फोन को कब्र में पहुंचा देगा।" सुहेल ने रामू को आँखें दिखाईं । मिसेज कपूर भी सकपका गयी थीं।
लेकिन इन सब से बेपरवाह रामू ने जेब से पेन निकाला और उसकी निब से मोबाइल के सर्किट से छेड़छाड़ करने लगा। चार पाँच सेकंड बाद उसने मोबाइल बन्द करके मिसेज कपूर की ओर बढ़ा दिया।
''मोबाइल ठीक हो गया।"
''क्या!" मिसेज कपूर के साथ साथ वहाँ मौजूद सारे लड़के उछल पड़े।
मिसेज कपूर ने जल्दी जल्दी अपने फोन को चेक किया।
''ये तो चमत्कार हो गया। मेरा फोन बिल्कुल ठीक हो गया। जियो मेरे लाल।" मिसेज कपूर ने तड़ाक से रामू के गालों पर एक चुंबन जड़ दिया और रामू मुंह बनाकर अपना गाल सहलाने लगा।
''कमाल है, हमें पता ही नहीं था कि ये ससुरा मैकेनिक भी है।" मिसेज कपूर के आगे बढ़ने के बाद अमित बोला।
इसके बाद वहां की भीड़ तितर बितर हो गयी, क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि प्रिंसिपल मैडम भाटिया राउंड पर निकल चुकी हैं।
उधर असली रामू के सामने एक के बाद एक इस तरह मुसीबतें आकर गिर रही थीं जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते गिरा करते हैं। इतनी समस्याएं तो गणित के सवाल हल करने में नहीं झेलनी पड़ी थीं जितनी जीवन की उस पहेली को हल करने में दुश्वारियां आ रही थीं।
जिस छत पर भी वह पहुंचता था, वहीं से उसे खदेड़ दिया जाता था। पतंग की एक डोर उसकी नाक को भी घायल कर चुकी थी। दौड़ते भागते दोनों टाँगें बुरी तरह दुख रही थीं।
डार्विन ने कहा था इंसान के पूर्वज बंदर थे। लेकिन अगर ऐसा था तो इंसानों को बंदरों की इज्जत करनी चाहिए। लेकिन यहां इज्जत तो क्या मिलती उलटे मार पीट कर भगाया जा रहा था।
फिर एक छत पर पहुंच कर उसे ठिठक जाना पड़ा। उस छत की मुंडेर पर बैठी एक बंदरिया उसे प्रेमभरी नज़रों से देख रही थी।
बंदर बना रामू घबराकर साइड से कटने का रास्ता ढूंढने लगा। अब बंदरिया धीरे धीरे उसके करीब आ रही थी। और अपनी भाषा में कुछ कह भी रही थी। शायद किसी मुम्बइया फिल्म का रोमांटिक मीठा गीत गा रही थी।
लेकिन रामू के दिल से तो बेतहाशा कड़वी गालियां ही निकल रही थीं।
बंदरिया ने उसपर छलांग लगाईं और बंदर बना रामू परे हो गया। नतीजे में वह मुंह के बल गिरी धड़ाम से।
बंदरिया को शायद रामू से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसलिए वह थोड़ा गुस्से से और थोड़ा हैरत से रामू को देखने लगी। फिर उसने सोचा कि शायद यह शरारती बंदर उससे खेलना चाहता है। इसलिए इसबार उसने संभल संभल कर कदम बढ़ानाशुरू कर दिया।
इसबार भी रामू ने सरकना चाहा लेकिन बंदरिया ने झट से उसकी पूंछ पर पैर रख दिया। रामू ने उससे अपनी पूंछ छुड़ाने के लिए जो़र लगाना शुरू कर दिया। बंदरिया को भी शरारत सूझी और उसने झट से पूंछ पर से पैर उठा लिया। नतीजे में एक जोरदार झटके के साथ रामू सामने मौजूद खम्भे से टकरा गया और उसके सामने तारे नाच गये।
अब वह भी तैश में आ गया और उस नामाकूल बंदरिया को सबक सिखाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा।
बंदरिया ने झट से अपने मुंह पर हाथ रख लिया। पता नहीं डर की वजह से, या शरमा कर।
रामू ने उसे थप्पड़ जड़ने के लिए अपना हाथ उठाया, लेकिन बीच ही में किसी के द्वारा थाम लिया गया।
उसने घूम कर देखा, ये कौन हीरो बीच में टपक पड़ा था। देखकर उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह उससे भी तगड़ा बंदर था और इस तरह उसे घूर रहा था मानो अभी उसे कच्चा चबा जायेगा।
फिर उस बदमाश ने उसकी पिटायी शुरू कर दी। बगल में खड़ी बंदरिया उसकी इस दुर्दशा पर खी खी करके हंस रही थी।

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