मायावी गणित -12
रामू
ने
अपनी
अक्ल
लगानी
शुरू
की
और
सूराखों
पर
अपनी
नज़रें
गड़ा
दीं।
सूराख
काफी
ज़्यादा
संख्या
में
थे।
'अगर
उन्हें
बन्द
कर
दिया
जाये
तो?"
रामू
ने
सोचा
और
कमरे
में
इधर
उधर
नज़र
दौड़ाने
लगा
कि
शायद
कोई
चीज़
उन
सूराखों
को
बन्द
करने
के
लिये
मिल
जाये।
उसे
निराश
नहीं
होना
पड़ा।
क्योंकि
कमरे
में
स्टेज
के
पास
ही
लकड़ी
के
ढेर
सारे
गोल
ढक्कन
पड़े
हुए
थे
जो
उन
सूराखों
के
ही
साइज़
के
थे।
'अरे
वाह!
सूराखों
को
बन्द
करने
के
औज़ार
तो
यहीं
पड़े
हैं।"
रामू
ने
खुश
होकर
आठ
दस
ढक्कन
एक
साथ
उठा
लिये
और
मच्छरों
से
बचते
बचाते
उन
सूराखों
की
ओर
बढ़ा।
उसने
पहला
ढक्कन
एक
सूराख
पर
फिट
किया।
लेकिन
यह
क्या?
हाथ
हटाते
ही
वह
ढक्कन
नीचे
गिर
गया
था
क्योंकि
उसे
धक्का
मारते
हुए
उसी
समय
कई
मच्छर
बाहर
निकल
आये
थे।
'क्या
इन
ढक्कनों
को
लगाने
की
भी
कोई
ट्रिक
है?"
रामू
सोचने
लगा।
यहाँ
पर
खड़े
रहकर
सोचना
काफी
मुश्किल
था
क्योंकि
मच्छर
लगातार
डिस्टर्बेंस
पैदा
कर
रहे
थे।
वह
सूराखों
से
निकलते
हुए
मच्छरों
को
गौर
से
देखने
लगा।
और
उसी
समय
उसपर
एक
नया
राज़
खुला।
हालांकि
सूराख
लगभग
पूरी
दीवार
में
वर्गाकार
क्षेत्र
में
बने
हुए
थे।
लेकिन
उन
सबसे
हर
समय
मच्छर
नहीं
निकल
रहे
थे।
बल्कि
उनके
बाहर
आने
में
एक
पैटर्न
नज़र
आ
रहा
था।
एक
खड़ी
लाइन
में
बने
तमाम
सूराखों
में
से
कभी
सभी
सूराखों
में
से
मच्छर
निकल
आते
थे
तो
कभी
कुछ
सूराखों
से।
और
जब
एक
लाइन
के
सूराखों
से
निकलने
वाले
मच्छर
कम
होते
थे
तो
उसके
आसपास
की
कुछ
लाइनों
से
निकलने
वाले
मच्छरों
की
संख्या
बढ़
जाती
थी।
रामू
को
याद
आया
कि
एक
बार
वह
नेहा
के
साथ
लाइब्रेरी
गया
था
और
वहाँ
पर
नेहा
ने
उसे
तरंग
गति
के
बारे
में
कुछ
समझाया
था
और
किताब
में
तरंग
गति
का
डायग्राम
भी
दिखाया
था।
अब
यहाँ
मच्छरों
के
निकलने
में
उसे
तरंग
गति
ही
नज़र
आ
रही
थी।
''तुम
खड़े
सोच
क्या
रहे
हो।
मेरी
ताकत
धीरे
धीरे
कम
हो
रही
है।
जल्दी
कुछ
करो।"
उसके
चारों
तरफ
चकराते
फरिश्ते
ने
उसके
विचारों
को
भंग
कर
दिया।
''बस
थोड़ी
देर
और
इन्हें
झेलो,
मुझे
लगता
है
मैं
किसी
नतीजे
पर
पहुंच
रहा
हूं।"
फरिश्ता
एक
बार
फिर
ज़ोर
शोर
से
उन
मच्छरों
से
मुकाबला
करने
लगा।
जबकि
रामू
मच्छरों
के
निकलने
के
पैटर्न
पर
और
गौर
करने
लगा
था।
किसी
तरंग
की
तरह
एक
खड़ी
लाइन
के
सूराखों
से
निकलने
वाले
मच्छरों
की
संख्या
पहले
बढ़ते
हुए
सबसे
ऊपर
व
सबसे
नीचे
के
सूराख
तक
पहुंच
जाती
थी
और
फिर
घटते
घटते
एक
समय
के
बाद
शून्य
हो
जाती
थी।
ऐसा
हर
खड़ी
लाइन
में
कुछ
इस
तरह
हो
रहा
था
मानो
कोई
चल
तरंग
आगे
बढ़
रही
है।
फिर
रामू
ने
एक
तजुर्बा
करने
का
फैसला
किया।
एक
खड़ी
लाइन
में
जैसे
ही
मच्छरों
के
निकलने
की
संख्या
शून्य
हुई,
उसने
उसके
बीच
के
सूराख
में
ढक्कन
लगा
दिया।
परिणाम
उसके
अनुमान
से
भी
ज्यादा
आशाजनक
साबित
हुआ।
न
केवल
उस
सूराख
से
मच्छरों
का
निकलना
बन्द
हो
गया
बल्कि
उस
खड़ी
लाइन
के
सभी
सूराखों
से
मच्छरों
का
निकलना
बन्द
हो
गया।
रामू
को
मालूम
हो
चुचुका
था
कि
ढक्कन
लगाने
का
सही
समय
क्या
है।
उसने
यह
क्रिया
सभी
खड़ी
लाइनों
के
साथ
दोहरायी
और
जल्दी
ही
सूराखों
से
मच्छरों
का
निकलना
पूरी
तरह
बन्द
हो
गया।
''वो
मारा।"
फरिश्ता
खुशी
से
चीखा।
लेकिन
उनकी
ये
खुशी
ज्यादा
देर
कायम
न
रह
सकी।
क्योंकि
अब
वह
दीवार
बुरी
तरह
हिल
रही
थी
जिसके
सूराख
बन्द
किये
गये
थे।
''य...ये
क्या
हो
रहा
है?"
रामू
घबराकर
बोला।
''लगता
है
अब
सारे
मच्छर
दीवार
गिराकर
बाहर
आना
चाहते
हैं।"
फरिश्ता
भी
घबराकर
बोला।
अगर
ऐसा
हो
जाता
तो
दोनों
के
लिये
बचना
नामुमकिन
था।
लेकिन
फिलहाल
उन
दोनों
को
गिरती
हुई
दीवार
से
बचना
था।
अत:
वे
कई
कदम
पीछे
हट
गये।
फिर
एक
धमाके
के
साथ
दीवार
नीचे
आ
गयी।
लेकिन
ये
देखकर
उन्होंने
इतिमनान
का
साँस
ली
कि
दीवार
के
पीछे
कोई
भी
मच्छर
नहीं
था,
बल्कि
वहाँ
एक
और
कमरा
दिखायी
दे
रहा
था।
उस
कमरे
में
हर
तरफ
लाल
रंग
की
लेसर
जैसी
किरणें
फैली
हुई
थीं।
उसकी
रोशनी
में
उन्होंने
देखा
कि
कमरे
के
दूसरे
सिरे
पर
एक
बन्द
संदूक़
मौजूद
है।
''वो
संदूक
कैसा
है?"
फरिश्ते
ने
ही
उसकी
ओर
उंगली
से
इशारा
किया।
''बचपन
में
दादी
ने
कुछ
कहानियां
सुनाई
थीं।
जिसमें
किसी
खज़ाने
की
रक्षा
के
लिये
इस
तरह
के
तिलिस्म
बनाये
जाते
थे।
और
उन्हें
सख्त
सुरक्षा
में
रखा
जाता
था।
जिस
तरह
यहाँ
खतरनाक
टाइप
के
मच्छर
घूम
रहे
थे,
और
जिस
तरह
यहाँ
तक
आने
में
रुकावटें
पैदा
हुईं,
हो
न
हो
उस
संदूक़
में
ज़रूर
कोई
खज़ाना
है।"
''तो
क्या
मैं
उस
संदूक़
को
उठा
लाऊं?"
फरिश्ते
ने
पूछा।
रामू
ने
सहमति
में
सर
हिलाया।
फरिश्ते
ने
एक
छलांग
लगायी
और
दूसरे
कमरे
में
पहुंच
गया।
लेकिन
जैसे
ही
वह
उन
लेसर
टाइप
किरणों
से
टकराया,
उसके
जिस्म
में
आग
लग
गयी
और
वह
ज़ोरों
से
चीखा।
''मुझे
बचाओ
मैं
जला
जा
रहा
हूं!"
रामू
ने
भी
चीख
कर
उसे
आवाज़
लगायी।
लेकिन
उसके
पास
हाथ
मलने
के
अलावा
और
कोई
चारा
नहीं
था।
देखते
ही
देखते
वह
फरिश्ता
धूं
धूं
करके
पूरा
जल
गया
और
वह
बेबसी
से
उसे
देखता
रह
गया।
अब
तो
वहाँ
उसकी
राख
भी
नहीं
दिख
रही
थी।
रामू
पछताने
लगा।
क्यों
उसने
बिना
सोचे
समझे
उसे
संदूक
लाने
के
लिये
भेज
दिया
था।
दूसरे
कमरे
में
बिखरी
हुई
किरणें
काफी
खतरनाक
थीं।
अपने
सर
को
दोनों
हाथों
से
थामकर
वह
वहीं
ज़मीन
पर
बैठ
गया।
जब
वह
राक्षस
पहली
बार
मिला
था
तो
रामू
को
उससे
बहुत
डर
लगा
था।
लेकिन
इतनी
देर
में
वह
रामू
से
इतना
घुलमिल
गया
था
और
इतनी
मदद
की
थी
कि
वह
उसे
अपना
बहुत
करीबी
दोस्त
मानने
लगा
था।
और
अब
उस
दोस्त
की
इस
तरह
जुदाई
उससे
सहन
नहीं
हो
रही
थी।
थोड़ी
देर
बाद
जब
उसके
दिल
को
कुछ
तसल्ली
हुई
तो
उसने
अपने
सर
को
उठाया
और
चारों
तरफ
देखने
लगा।
उसे
बहरहाल
आगे
बढ़ना
था
और
उस
कन्ट्रोल
रूम
को
ढूंढना
था
जो
उसे
एम-स्पेस
से
आज़ादी
दिला
देता।
उसने
अपने
चारों
तरफ
देखा।
लेकिन
फिलहाल
उसे
आगे
बढ़ने
का
कहीं
कोई
रास्ता
नज़र
नहीं
आया।
जो
यान
उसे
लेकर
आया
था
वह
अपने
प्लेटफार्म
पर
टिका
हुआ
था।
लेकिन
उसका
आगे
उड़ना
अब
नामुमकिन
था
क्योंकि
उसे
बढ़ाने
के
लिये
फरिश्ते
के
रूप
में
जो
एनर्जी
थी
वह
खत्म
हो
चुकी
थी।
काफी
देर
सोच
विचार
करने
के
बाद
उसकी
समझ
में
यही
आया
कि
फिलहाल
उस
संदूक
तक
पहुंचने
के
अलावा
उसके
पास
करने
को
और
कुछ
नहीं।
हो
सकता
है
उस
बन्द
संदूक
के
अंदर
आगे
बढ़ने
का
कोई
राज़
छुपा
हो।
या
ज़ीरो
जैसा
कोई
हथियार।
लेकिन
उस
संदूक
तक
जाना
निहायत
खतरनाक
था।
क्योंकि
लेसर
रूपी
किरणें
रास्ते
में
फैली
हुई
थीं
और
संदूक
तक
जाने
के
लिये
उसे
उनसे
हर
हाल
में
बचना
था।
उसने
ये
खतरा
उठाने
का
निश्चय
किया।
मरना
तो
ऐसे
भी
था।
उस
बन्द
कमरे
में
बिना
खाना
व
पानी
के
वह
कितनी
देर
जिंदा
रहता।
वह
उठ
खड़ा
हुआ
और
सामने
मौजूद
लाल
किरणों
को
गौर
से
देखने
लगा।
किरणों
के
बीच
के
गैप
से
उसने
अंदाज़ा
लगाया
कि
उसका
जिस्म
उनके
बीच
से
निकल
सकता
था।
हालांकि
उसमें
काफी
खतरा
था।
ज़रा
सी
चूक
उसे
किरणों
के
सम्पर्क
में
ला
सकती
थी
और
वह
मिनटों
में
स्वाहा
हो
जाता।
वह
धड़कते
दिल
के
साथ
आगे
बढ़ा।
इस
समय
उसका
दिमाग
और
जिस्म
पूरी
तरह
ऐक्टिव
था
क्योंकि
यह
जिंदगी
और
मौत
का
मामला
था।
उसने
किरणों
वाले
कमरे
में
कदम
रखा
और
धीरे
धीरे
आगे
बढ़ने
लगा।
किरणों
से
बचते
बचाते
वह
आगे
बढ़
रहा
था।
उसकी
एक
आँख
संदूक
पर
जमी
हुई
थी
और
दूसरी
किरणों
पर।
चींटी
की
चाल
से
वह
आगे
बढ़
रहा
था।
आखिर
में
लगभग
आधे
घंटे
बाद
जब
वह
संदूक
तक
पहुंचा
तो
सर
से
पैर
तक
वह
पसीने
में
नहा
चुका
था।
यह
आधा
घंटा
उसे
सदियों
के
बराबर
लग
रहा
था।
संदूक
तक
पहुँचने
के
बाद
उसने
सुकून
की
एक
गहरी
साँस
ली
और
कुछ
मिनट
आराम
करने
के
बाद
वह
संदूक
का
निरीक्षण
करने
लगा।
फिर
उसने
संदूक
का
कुंडा
पकड़
लिया।
कुंडा
पकड़ते
ही
कमरे
में
बिखरी
सारी
किरणों
गायब
हो
गयीं।
और
वहाँ
घुप्प
अँधेरा
छा
गया।
अँधेरे
में
ही
टटोलकर
उसने
कुंडे
की
मदद
से
संदूक
का
ढक्कन
उठाया
और
फिर
पछताने
लगा
कि
संदूक
तक
आने
के
लिये
उसने
इतना
खतरा
क्यों
मोल
लिया।
उस
संदूक
के
अन्दर
हल्की
रोशनी
फैली
हुई
थी।
और
उस
रोशनी
में
उसे
किसी
बच्चे
का
सर
कटा
धड़
साफ
दिखाई
दे
रहा
था।
धड़
गहरे
पीले
रंग
का
था
और
उस
धड़
के
अलावा
उस
संदूक
में
और
कुछ
नहीं
था।
''क्या
इसी
सरकटी
लाश
को
देखने
के
लिये
मैंने
इतना
खतरा
मोल
लिया?"
उसने
झल्लाकर
संदूक
बन्द
कर
दिया।
लेकिन
संदूक
बन्द
करते
ही
कमरे
में
फिर
घना
अँधेरा
छा
गया।
अचानक
उसके
ज़हन
में
एक
नया
विचार
चमका।
इससे
पहले
उसने
एक
मुकाम
पर
कटा
हुआ
सर
देखा
था।
और
उस
सर
ने
कहा
था
कि,
''जिस
जगह
तुम
मेरा
कटा
हुआ
धड़
देखोगे
वही
जगह
होगी
कण्ट्रोल
रूम।
लेकिन
वह
सर
तो
बूढ़े
का
था
जबकि
सर
बच्चे
का।
फिर
उसे
याद
आया
कि
जिस
ग्रह
के
लोगों
ने
उसे
एम-स्पेस
में
कैद
किया
था
वह
बच्चे
के
साइज़
के
बौने
प्राणी
ही
मालूम
होते
थे।
और
अगर
बूढ़ा
जिसका
सर
उसने
देखा
था
उसी
ग्रह
का
था
तो
यह
धड़
उसका
हो
सकता
था।
''तो
क्या
यही
कण्ट्रोल
रूम
है?
लेकिन
ऐसा
कोई
आसार
तो
नज़र
नहीं
आ
रहा
था।
चारों
तरफ
घुप्प
अँधेरा
फैला
हुआ
था।
उसने
संदूक
का
ढक्कन
फिर
उठा
दिया,
क्योंकि
संदूक
से
निकलती
हल्की
रोशनी
में
कमरे
का
अँधेरा
कुछ
हद
तक
दूर
हो
रहा
था।
रोशनी
में
भी
रामू
को
आसपास
ऐसा
कुछ
नज़र
नहीं
आया
कि
वह
उसे
कण्ट्रोल
रूम
मान
लेता।
हर
तरफ
की
दीवारें
सपाट
थीं।
कहीं
कोई
भी
मशीनरी
दिखाई
नहीं
दे
रही
थी।
एक
बार
फिर
उसने
अपना
ध्यान
संदूक
की
तरफ
किया।
क्योंकि
वही
एक
चीज़
थी
जो
कुछ
खास
थी।
वह
बारीकी
से
संदूक
का
निरीक्षण
करने
लगा।
उसने
देखा
कि
ताबूत
में
मौजूद
धड़
ताबूत
के
फर्श
पर
न
होकर
नुकीली
कीलों
के
ऊपर
टिका
हुआ
था
जो
ताबूत
के
पूरे
तल
में
जड़ी
हुई
थीं।
रामू
ने
उन
कीलों
को
गिनने
की
कोशिश
की,
लेकिन
वे
संख्या
में
बहुत
ज़्यादा
थीं।
शायद
उनकी
संख्या
दस
हज़ार
से
भी
ऊपर
थी।
 
 
 
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