मायावी गणित -9


उसने दीवार के सबसे पास वाले फानूस पर नज़रें गड़ायीं। जो कि धीरे धीरे खिसकती दीवार के पास हो रहा था। जैसे ही दीवार उस फानूस के पास पहुंची, फानूस इस तरह हवा में विलीन हो गया जैसे वहाँ था ही नहीं। रामकुमार ने एक गहरी साँस ली। लटकते फानूस भी कोई क्लू देने से लाचार ही सिद्व हुए थे।


लेकिन नहीं। क्लू तो मौजूद था। सभी फानूस छत में इस तरह लगे हुए थे कि उनसे एक के भीतर एक कई वर्ग बन रहे थे। उसने दीवारों की तरफ देखा। हर दीवार आयताकार थी जबकि फर्श छत वर्गाकार। उसने जब आगे गौर किया तो एक बात और समझ में आयी। चारों दीवारों के क्षेत्रफल को अगर जोड़ दिया जाता तो यह जोड़ फिलहाल फर्श के क्षेत्रफल से कम ही निकल कर आता। लेकिन जिस तरह दीवारें सिमट रही थीं बहुत जल्द ये क्षेत्रफल फर्श के बराबर हो जाना था।


फिर उसने मन ही मन कैलकुलेशन करनी शुरू की। और जल्द ही उसे वह स्पाट मिल गया जहाँ पर अगर दीवार पहुंच जाती तो दीवारों का कुल क्षेत्रफल फर्श के क्षेत्रफल के बराबर हो जाता। उसने सर उठाकर छत की तरफ देखा तो वहाँ के फानूस उसे बाकी फानूसों से रंग रूप में अलग नज़र आये। जहाँ सारे फानूसों में सुर्खी लिये हुए गहरा पीलापन झलक रहा था वहीं इन फानूसों में हरापन था। इसका मतलब कि इन फानूसों में ही दीवार रोकने का और इस मुसीबत से बाहर निकलने का राज़ था। लेकिन वह राज़ क्या था?


इस बारे में रामू को कोई आइडिया नहीं था। फिर उसकी नज़र अपने हाथ पर गयी जिसमें ज़हरीले साँपों कीड़े मकोड़ों को मारने वाला गोल ज़ीरोनुमा हथियार अब भी मौजूद था। उसने एक दाँव फिर खेलने का निश्चय किया और उस ज़ीरोनुमा हथियार को हरे फानूस की तरफ उछाल दिया। जैसे ही उसका हथियार फानूस से टकराया वह फानूस हलकी चमक के साथ ग़ायब हो गया। इसका मतलब उसका ज़ीरोनुमा हथियार किसी भी चीज़ का अस्तित्व मिटा सकता था।


उसने यह क्रिया सारे हरे फानूसों के साथ की और थोड़ी ही देर में वह सब फानूस ग़ायब हो चुके थे, और उनकी जगह पर सपाट वर्ग बन चुका था। अब उसने दीवार की तरफ नज़र की। लेकिन यह देखकर उसका दिल डूबने लगा कि दीवारें अभी भी उसकी तरफ खिसक रही थीं।


'हो सकता है यह ज़ीरो दीवारों का अस्तित्व भी मिटा दे। ऐसा सोचकर वह एक दीवार के पास पहुंचा और ज़ीरो को उससे टच करा दिया। लेकिन दीवार पर कोई भी असर नहीं हुआ। गहरी निराशा से उसका दिल भर गया। यानि अब उसका अंतिम समय चुका था। वह जाकर चुपचाप हाल के बीचोंबीच लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा। हो सकता है सोते में मौत का एहसास ही हो। लेकिन जब दिमाग ही डिस्टर्ब हो तो कैसी नींद - कहाँ की नींद?






दीवारें पास रही थीं और उनके सम्पर्क में आने वाले फानूस गायब हो रहे थे। अब दीवारें उस जगह के काफी पास पहुंच गयी थीं जहाँ पहले हरे फानूस मौजूद थे। लगभग पाँच मिनट बाद दीवारें उस जगह पहुंच गयीं। फिर रामू यह देखकर उछल गया कि उस जगह पहुंचते ही दीवारें भी फानूस ही की तरह हवा में विलीन हो गयीं। रामू ने देखा बिना दीवारों के सपोर्ट के छत नीचे गिर रही थी। हालांकि उसके गिरने की रफ्तार धीमी थी। उसने छलांग लगायी और छत की सीमा से बाहर गया। छत फर्श से टकराया और फिर ज़मीन में सुराख बनाता हुआ नीचे जाने लगा


उसने आगे झांक कर देखा, फर्श अब बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा था और ज़मीन में एक गहरी अँधेरी सुरंग बनती जा रही थी। वह पीछे हट गया और चारों तरफ देखने लगा। घना जंगल हर तरफ फैला हुआ था।
धीरे धीरे रात का अँधेरा उस जंगल को अपनी आगोश में ले रहा था और रामू महसूस कर रहा था कि नयी मुसीबत उसके सामने आने वाली है। क्योंकि हो सकता था अभी तक दिखने वाले जंगली जानवर अँधेरे में अपने अपने ठिकानों से निकल आये। ऐसे वक्त में उनसे बचना मुश्किल होता। एक हल्की सी आवाज़ वहाँ गूंज रही थी जो शायद फर्श के नीचे जाने की आवाज़ थी। फिर अचानक वह आवाज़ बन्द हो गयी। रामकुमार एक बार फिर ज़मीन में बने उस वर्गाकार सूराख में झाँकने लगा। बहुत नीचे जाकर फर्श रुक गया था।


रामू फिर पलट आया। लेकिन फिर उसकी आँखों में चौंकने के लक्षण पैदा हुए। अगर फर्श बहुत नीचे था तो अँधेरे में उसे दिखाई कैसे दिया? उसने दोबारा वहाँ झाँका तो मालूम हुआ कि नीचे हल्की सी रोशनी फैली हुई थी। जो फर्श की साइड से निकल रही थी। और उस साइड में शायद कोई दरवाज़ा मौजूद था, जिसके भीतर से वह रोशनी रही थी। उसने और गौर किया तो ये भी समझ में गया कि वह उस दरवाज़े तक पहुंच सकता था।


हालांकि गहराई काफी थी, लेकिन नीचे उतरने के लिये उस चौकोर कुएं नुमा सुरंग की दीवारों में छोटे छोटे सूराख बने हुए थे जो कि नीचे तक गये थे। उन सूराखों में हाथ पैर फंसाकर वह आसानी से नीचे उतर सकता था। लेकिन इस उतरने में रिस्क भी था। वह महल के अन्दर बिना सोचे समझे दाखिल होने का अंजाम देख चुका था। ऐसा हो कि नीचे मौजूद दरवाज़े के अन्दर कोई नयी मुसीबत उसका इंतिज़ार कर रही हो।


वह वहीं ज़मीन पर बैठ गया और अगले कदम के बारे में ग़ौर करने लगा। उसके सामने दो रास्ते थे। या तो वापस जंगल की तरफ चला जाता या फिर उस कुएं में उतर जाता। लेकिन शायद जंगल में प्रवेश करने पर वह वहीं जिंदगी भर भटकता रहा जाता, जबकि उस कुएं का दरवाज़ा इस मायावी दुनिया में आगे बढ़ने का शायद कोई नया रास्ता था। और इस तरह नये रास्ते की दरियाफ्त करते करते शायद वह एक दिन इस तिलिस्मी दुनिया से बाहर आने में कामयाब हो जाता।


उसे सम्राट का मैडम वान से कहा जुमला याद गया, ''शायद तुम ये कहना चाहती हो कि अगर किसी ने एम-स्पेस पार कर लिया तो वह हमें हमेशा के लिये अपने कण्ट्रोल में कर लेगा। यानि अगर वह इस मायावी दुनिया यानि एम-स्पेस को पार करने में कामयाब हो जाता तो सिर्फ खुद आज़ाद होता बल्कि सम्राट उसके साथियों को भी सबक़ सिखा सकता था। अब तक की कामयाबियों ने उसके आत्मविश्वास में काफी बढ़ोत्तरी कर दी थी। उसने नीचे उतरने का निश्चय किया।


हाथ में पकड़े ज़ीरो को उसने दाँतों में दबाया और दीवार में बने सूराखों के सहारे वह नीचे उतरने लगा। यह चमकदार ज़ीरो काफी काम का है इतना तो वह देख ही चुका था। जल्दी ही वह नीचे पहुंच गया। जिस जगह से वह रोशनी फूट रही थी वह वास्तव में एक दरवाज़ा ही था। एक सुनहरे रंग का चमकता हुआ दरवाज़ा। रोशनी उसी चमक की थी।


उसने आगे बढ़कर दरवाज़े को धक्का दिया। दरवाज़ा आसानी से खुल गया एक पल को वह अन्दर जाने से ठिठका। क्योंकि इससे पहले वह दरवाज़ें से अन्दर दाखिल होने का अंजाम भुगत चुका था। लेकिन फिर सारी आशंकाओं को किनारे फेंककर वह अन्दर दाखिल हो गया। अन्दर उसे एक बार फिर हैरतज़दा करने वाला नया मंज़र नज़र आया।


यह एक गोल कमरा था। जिसकी दीवारों पर हर तरफ बड़े बड़े टीवी स्क्रीन लगे हुए थे। और हर स्क्रीन पर पृथ्वी के किसी किसी हिस्से का सीन नज़र रहा था। कहीं बर्फ से ढंके हिमालय के पहाड़ दिख रहे थे, कहीं ब्राज़ील के घने जंगल, कहीं टोकियो शहर की भरी पूरी सड़क का ट्रैफिक तो कहीं भारत के किसी भरे बाज़ार का सीन दिखाई दे रहा था।


लेकिन उन सब से भी ज़्यादा आश्चर्यजनक कमरे के बीचों बीच रखी छोटी सी गोल मेज़ थी जिसपर किसी बहुत बूढ़े व्यक्ति की कटी हुई गर्दन रखी थी। उसके लंबे सफेद बाल मेज़ पर फैले हुए थे। गर्दन हालांकि दिखने में ताज़ी थी लेकिन इसके बावजूद उसके आसपास कहीं खून गिरा नहीं दिखाई दे रहा था।


'ऐसा लगता है कि यहाँ से पूरी पृथ्वी को देखा जा सकता है और उसकी घटनाओं को कण्ट्रोल किया जा सकता है। तो क्या मैं कथित एम-स्पेस के कण्ट्रोल रूम में पहुंच गया हूं?' उसके दिमाग में यह विचार आया। लेकिन उसी वक्त एक आवाज़ ने उसके विचारों को भंग कर दिया।
'तुम गलत सोच रहे हो। उसने देखा यह आवाज़ उस कटे सर से रही थी। उसके होंठ हिल रहे थे। ऐसे .दृश्य को देखकर रामू की उम्र का कोई भी लड़का भूत भूत चिल्लाते हुए भाग निकलता। लेकिन इस दुनिया के पल पल बदलते रंगों में रामू पहले ही इतना हैरतज़दा हो चुका था कि अब कोई नयी घटना उसके ऊपर अपना प्रभाव नहीं डालती थी। वह उस कटे सर के पास पहुंचा।


''मैं क्या गलत सोच रहा हूं?" उसने उस सर से पूछा। इतना तो उसे एहसास हो ही गया था कि यह सर मायावी एम स्पेस की कोई नयी माया है।
''जिस जगह तुम खड़े हो वह एम-स्पेस का कण्ट्रोल रूम नहीं है। लेकिन कण्ट्रोल रूम तक जाने का रास्ता ज़रूर है।" उस सर ने कहा।


''वह रास्ता किधर है?"
''मैं मजबूर हूँ नहीं बता सकता। वरना मेरी मौत हो जायेगी। वह रास्ता तुम्हें खुद ढूंढना होगा।"
''लेकिन तुम्हारे कटे सर से तो यही मालूम हो रहा है कि तुम मर चुके हो। फिर अब कैसा मरना?"
''एम-स्पेस की एक तकनीक ने मेरे सर को धड़ से जुदा कर दिया है। लेकिन मैं जिंदा हूं।"


''अच्छा यह बताओ कि मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं कण्ट्रोल रूम पहुंच गया?" रामू ने फिर पूछा। उसके मुंह से हालांकि बन्दर की ही खौं खौं की भाषा निकल रही थी लेकिन वह कटा सर उस भाषा को बखूबी समझ रहा था। रामू की बात के जवाब में वह सर बोला, ''जिस जगह तुम मेरा कटा हुआ धड़ देखोगे वही जगह होगी कण्ट्रोल रूम।"


''लेकिन तुम हो कौन?"
''मैं कौन हूं, इसका पता तुम्हें उसी वक्त चलेगा जब तुम कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने में कामयाब हो जाओगे। और अब होशियार रहना क्योंकि आगे का रास्ता ज़्यादा मुश्किल है।"


रामू ने सर हिलाया और चारों तरफ देखने लगा। अब इससे ज़्यादा मुश्किल और क्या होगी कि वह तेज़ाबी बारिश और साँप बिच्छुओं का सामना करके चुका था। वैसे उस सर ने काफी हद तक उसका मार्गदर्शन कर दिया था। यानि एम स्पेस के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिये कण्ट्रोल रूम तक पहुंचना ज़रूरी था। उसे तलाश थी अब कण्ट्रोल रूम तक पहुंचने के रास्ते की। जिसके बाद सिर्फ उसकी जान बच जाती बल्कि वह सम्राट की साजि़शों को भी बेनक़ाब कर देता जो कि ईश्वर बनकर पूरी दुनिया पर कब्ज़ा करने का ख्वाब देख रहा था। उसके मकसदों पर पानी फेरने के लिये इस दुनिया के तिलिस्म को तोड़ना ज़रूरी था।


वह आगे के रास्ते की तलाश में पूरे कमरे का निरीक्षण करने लगा। फिलहाल कहीं कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था। दीवारों पर तो टीवी स्क्रीन लगे हुए थे जबकि फर्श छत बिल्कुल सपाट थी। एक गोल मेज़, जिसपर कटा सर रखा हुआ था, उसके अलावा कमरे में कोई सामान भी नहीं था।


'लेकिन रास्ता यकीनन है यहाँ पर।' रामू ने अपने मन में कहा। और उस गुप्त रास्ते का सम्बन्ध या तो मेज़ से है या फिर टीवी स्क्रीनों से। इन दोनों के अलावा और कोई वस्तु तो यहाँ पर है नहीं।
उसने मेज़ से शुरूआत करने का इरादा किया। पहले उसने मेज़ को हिलाने की कोशिश की। लेकिन वह फर्श से जड़ी हुई थी, अत: टस से मस नहीं हुई मेज़ को किसी भी तरह हिलाने डुलाने की उसकी कोशिश नाकाम रही। उसने हाथ में पकड़े करिश्मायी ज़ीरो से भी मेज़ को टच किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। फिर उसने फर्श को भी जगह जगह अपने ज़ीरो से टच करके देखा लेकिन कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने टीवी स्क्रीनों के आसपास कोई स्विच ढूंढने की कोशिश की लेकिन उसकी ये कोशिश भी कामयाब हो सकी।


थक हार कर वह वहीं फर्श पर बैठ गया। और स्क्रीन पर पल पल बदलते दृश्यों को देखने लगा। कुछ देर उन दृश्यों को देखने के बाद उसपर एक नया रहस्योदघाटन हुआ। टीवी स्क्रीन थोड़ी देर विभिन्न दृश्य दिखाने के बाद एक सेकंड के लिये बन्द हो जाती थी।


वहाँ पर कुल पाँच टीवी स्क्रीनें उस गोलाकार दीवार पर एक के बाद एक मौजूद थीं और सभी में यह बात दिखाई दे रही थी। हालांकि उनके बन्द होने का वक्त अलग अलग था।


'लगता है इनके बन्द होने के वक्त में ही कोई गणितीय पहेली मौजूद है।' ऐसा सोचकर उसने एक स्क्रीन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जब उसने मन ही मन हिसाब लगाया तो उसे अंदाज़ा हुआ कि हर पाँच सेकंड के बाद ये स्क्रीन बन्द हो जाती थी। फिर उसने दूसरी स्क्रीन को देखा तो मालूम हुआ कि : सेंकड बाद वह स्क्रीन बन्द होती थी। तीसरी स्क्रीन दस सेंकड बाद बन्द हो रही थी जबकि चौथी बारह सेकंड बाद। सबसे ज्यादा देर पाँचवीं स्क्रीन में लग रही थी। वह पद्रह सेंकड बाद बन्द हो रही थी।


'क्या इन गिनतियों में कोई सम्बन्ध है?' थोड़ी देर विचार करने के बाद उसे इसका जवाब में मिला। इन गिनतियों में तो कोई खास क्रम था और ही कोई सम्बन्ध। फिर उसने एक बात और सोची।
'वह कौन सी सबसे छोटी संख्या है जिसे ये सभी संख्याएं विभाजित कर देती हैं?' इसे निकालना आसान था क्योंकि अग्रवाल सर ने क्लास में एल.सी.एम. निकालना काफी अच्छी तरह समझाया था। थोड़ी देर की गणना के बाद उसे मालूम हो गया कि यह संख्या साठ है।


मतलब ये कि साठ सेंकड अर्थात हर एक मिनट के बाद सभी टीवी स्क्रीनें एक साथ बन्द हो जाती थीं। उसने एक बार फिर टीवी स्क्रीनों पर दृष्टि केन्द्रित कर दी। उसे ये देखना था कि जब सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द होती हैं तो उसके बाद उनपर कौन से दृश्य सबसे पहले आते हैं।


उसे ज़्यादा इंतिज़ार नहीं करना पड़ा। जल्दी ही सभी स्क्रीनें एक साथ बन्द हुईं और एक सेंकंड बाद फिर चालू हो गयीं। और उनके चालू होने के बाद जो पहला दृश्य आया वह रामू के लिये आशाजनक साबित हुआ।
क्योंकि वह दृश्य उसी कमरे के एक भाग का था। सभी स्क्रीनें एक ही दृश्य दिखा रही थीं और वह दृश्य कमरे में मौजूद मेज़ के एक पाये का था। यह पाया मेज़ पर रखे सर के पीछे की ओर दायीं तरफ था। सभी स्क्रीनें उस पाये के निचले हिस्से को दिखा रही थीं।

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