ई-लव्ह ( E-Love) – 04
ई-लव्ह
(
E-Love) – 04
विवेक
सायबर कॅफेमें अपने कॉम्प्यूटरपर
बैठा था.
फटाफट
हाथकी सफाई किए जैसे उसने गुगल
मेल खोलतेही उसे अंजलीकी मेल
आई हूई दिखाई दी.
उसका
चेहरा खुशीसे दमकने लगा.
उसने
एक पलभी ना गवांते हूए झटसे
डबल क्लीक करते हूए वह मेल
खोली और उसे पढने लगा -
''
विवेक
...
25 को
सुबह बारा बजे मै एक मिटींगके
सिलसिलेमें मुंबई आ रही हूं
...
12.30 बजे
तक हॉटेल ओबेराय पहूचूंगी...
और
फिर फ्रेश वगैरे होकर 1.00
बजे
मिटींग अटेंड करुंगी....
मिटींग
3
से
4
बजेतक
खत्म हो जाएगी ...
तुम
मुझे बराबर 5.00
बजे
वर्सोवा बिचपर मिलना ...
बाय
फॉर नॉऊ...
टेक
केअर''
विवेकने मेल पढी और खुशीके मारे खडा होकर '' यस्स...'' करके चिल्लाया.
सायबर कॅफेमें बैठे बाकी लोग क्या होगया करके उसकी तरफ आश्चर्यसे देखने लगे. जब उसने होशमें आकर बाकी लोगोंको अपनी तरफ आश्चर्यसे ताकते पाया वह शर्माकर निचे बैठ गया.
वह फिरसे अपने रिसर्चके सिलसिलेमें गुगल सर्च ईंजीनपर जानकारी ढुंढने लगा. लेकिन उसका ध्यान किसी चिजमें नही लग रहा था. कब एक बार वह दिन आता है , कब अंजली मुंबइको आती है और कब उसे वह वर्सोवा बिचपर मिलता है ऐसा उसे हो गया था.
' वर्सोवा बिच' दिमागमें आगया लेकिन उस बिचकी तस्वीर उसके जहनमें नही आ रही थी. वर्सोवा बिचका नाम उसने सुना था लेकिन वह कभी वहां नही गया था. वैसे वह मुंबईमें रहकर पिएचडी कर तो रहा था लेकिन वह जादातर कभी घुमता नही था. मुंबईमें वह वैसे पहले पहले काफी घुमा था. लेकिन वर्सोवा बिचपर कभी नही गया था. अब यहां सायबर कॅफेमें बैठे बैठे क्या करेंगे यह सोचकर उसने गुगल सर्च ओपन किया और उसपर 'वर्सोवा बिच' सर्च स्ट्रींग दिया. इंटरनेटपर काफी जानकारी फोटोज और जानेके रास्ते मॅप्स अवतरीत हूए . उसने वह जानकारी पढकर जानेका रास्ता तय किया. अब और क्या करना चाहिए ? उसका दिमाग सुन्न हो गया था. चलो उसने भेजी हूई पुरानी मेल्स पढते है और उसने भेजे हूए फोटोज देखते है ऐसा सोचकर वह एक एक कर उसकी पुरानी मेल्स खोलने लगा. मेल्सकी तारीखसे उसके खयालमें आ गया की उनका यह 'सिलसिला' वैसे जादा पुराना नही था. आज लगभग 1 महिना हो गया था जब वह पहली बार उसे चॅटींगपर मिल गई थी. लेकिन उसे उनकी पहचान कैसे कितनी पुरानी लग रही थी. उन्होने एकदुसरेको भेजे मेल्स और फोटोजसे वैसे उन्हे एक दुसरेको जाननेका मौका मिला था और एक दुसरेके जहनमें उन्होने एकदुसरेकी एक तस्वीर बना रखी थी. वैसे उन्होने एकदुसरेके स्वभावकाभी एक अंदाजा लगाकर अपने अपने मनमें बसाया था.
' वह अपने कल्पनानूसारही होगी की नही ?' उसके दिमागमें एक प्रश्न उपस्थित हुवा.
या मिलनेके बाद मैने सोचे इसके विपरीत कोई अनजान... कोई कभी ना सोची होगी ऐसी एक व्यक्ती अपने सामने खडी हो जाएगी...
' चलो आमने सामने मिलनेके बाद कमसे कम यह सब शंकाए मिट जाएगी ' उसने उसका फोटो अल्बम देखते हूए सोचा.
अचानक उसे उसके पिछे कोई खडा है ऐसा अहसास हो गया. उसने पलटकर देखा तो जॉनी एक नटखट मुस्कुराहट धारण करते हूए उसकी तरफ देख रहा था.
'' साले बस बात यहीतक पहूंची है तो यह हाल है ... तुझे आजुबाजुकाभी कुछ दिखता नही... शादी होनेके बाद पता नही क्या होगा?'' जॉनीने उसे छेडते हूए कहा.
'' अरे... तुम कब आए ?'' विवेक अपने चेहरेपर आए हडबडाहटके भाव छुपाते हूए बोला.
'' कमसे कम पुरा आधा घंटा हो गया होगा... ऐसा लगता है शादी होनेके बाद तु हमें जरुर भुल जाएगा '' जॉनी फिरसे उसे छेडते हूए बोला.
'' अरे नही यार... ऐसा कैसे होगा ?... कमसे कम तुम्हे मै कैसे भूल पाऊंगा ?'' विवेक उसके सामने आए हूए तोंदमें मुक्का मारनेका अविर्भाव करते हूए बोला.
अंजली वर्सोवा बीचपर आकर विवेककी राह देखने लगी. उसने फिरसे एकबार अपनी घडीकी तरफ देखा. विवेकके आनेको अभी वक्त था. इसलिए उसने समुंदरके किनारे खडे होकर दुरतक अपनी नजरे दौडाई. नजर दौडाते हूए उसके विचार जा चक्र भूतकालमें चला गया. उसके दिलमें अब उसकी बचपनकी यादे आने लगी...
वर्सोवा बीच यह अंजलीका मुंबईमें स्थित पसंदीदा स्थान था. बचपनमें वह उसके मां बापके साथ यहां अक्सर आया करती थी. उसे उसके मां बाप की आज बहुत याद आ रही थी. भलेही आज वह समुंदर का किनारा इतना साफ सुधरा नही था लेकिन उसके बचपनमें वह बहुत साफ सुधरा रहा करता था. सामने समुंदरके लहरोंका आवाज उसके दिलमें एक अजीबसी कसक पैदा कर रहा था.
उसने अपने कलाईपर बंधे घडीकी तरफ फिरसे देखा. विवेकको उसने शामके पांचका वक्त दिया था.
पांच तो कबके बज चूके थे ... फिर वह अबतक कैसे नही पहूंचा ?...
उसके जहनमें एक सवाल उठा ...
कही ट्रॅफिकमें तो नही फंस गया? ...
मुंबईकी ट्रॅफिक में कब कोई और कहां फंस जाएं कुछ कहा नही जा सकता....
उसने लंबी आह भरते हुए फिरसे चारों ओर अपनी नजरे दौडाई.
सामने किनारेपर एक लडका समुंदरके किनारे रेतके साथ खेल रहा था. वह देखकर उसके विचार फिरसे भूतकालमें चले गए और फिर एक बार उसकी बचपनकी यादोंमे डूब गए.
वह तब लगभग 12-13 सालकी होगी जब वह अपने मां और पिताके साथ इसी बीचपर आई थी. वह लडका जहां खेल रहा था, लगभग वही कही रेतका किला बना रहे थे. तभी उसके पिताने कहा था,
'' देखो अंजली उधर तो देखो...''
समुंदर के किनारे एक लडका कुछ चिज समुंदरके अंदर दुरतक फेंकनेका जीतोड प्रयास कर रहा था. वह लेकिन समुंदरकी लहरे उस चिजको फिरसे किनारेपर वापस लाती थी. वह लडका बार बार उस चिजको समुंदरमें बहुत दुरतक फेकनेकेका प्रयास करता था और बार बार वह लहरें उस चिजको किनारेपर लाकर छोडती थी.
फिर उसके पिताजीने अंजलीसे कहा -
'' देखो अंजली वह लडका देखो ... वह चिज वह समुंदरमें फेकनेकी कोशीश कर रहा है और वह वस्तू बार बार किनारेपर वापस आ रही है... अपने जिवनमेंभी दु:ख और सुखका ऐसेही होता है... आदमी जैसे जैसे अपने जिवनमें आए दुखको दुर करनेका प्रयास करता है... उस वक्त के लिए लगता है की दुख चला गया है और वह फिरसे वापस कभी नही आएगा... लेकिन दुखका उस चिज जैसाही रहता है ... जितना तुम उसे दुर धकेलनेकी कोशीश करो वह फिरसे उतनेही जोरसे वापस आता है... अब देखो वह लडका थोडी देर बाद अपने खेलनेमें व्यस्त हो जाएगा... और वह उस चिजको पुरी तरहसे भूल जाएगा... फिर जब उसे उस चिजकी याद आएगी... वह चिज किनारेपर ढूंढकरभी नही मिलेगी... वैसेही आदमीने अगर दुखको जादा महत्व ना देते हूए ... सुख और दूखका एकही अंदाजसे सामना किया तो उसे दुखसे तकलिफ नही होगी... ...देअर विल बी पेन बट टू सफर ऑर नॉट टू सफर वील बी अप टू यू!''
उसे याद आ रहा था की उसके पिता कैसे उसे छोटी छोटी बातोंसे बहुत कुछ सिखकी बाते कह जाते थे.
जब अंजली अपनी पुरानी यादोंसे बाहर आ गई, उसके सामने विवेक खडा था. उंचा, गठीला शरीर, चेहरेपर हमेशा मुस्कान और उसकी हर एक हरकतसे दिखता उसका उत्साह. उसने देखे उसके फोटोसे वह बहुत अलग और मोहक लग रहा था. वे एकदुसरेसे पहली बारही मिल रहे थे इसलिए दोनोंके चेहरे खुशीसे दमक उठे थे. दोनों एकदुसरे की तरफ सिर्फ एकटक देखने लगे.
अंजली और विवेक दोनो न जाने कितनी देर सिर्फ एक दुसरे की तरफ ताक रहे थे. भलेही वे एकदुसरे को एक महिने से जानते थे लेकिन वे एक दुसरे के सामने पहली बार आ रहे थे. वैसे वे एकदुसरे को सिर्फ जानते ही नही थे तो उन्होने एक दुसरेको अच्छी तरह से समझ लिया था. एकदुसरे के स्वभाव की खुबीया या खामीयां वे भली भांती जानते थे. फिरभी एक दुसरे के सामने आते ही उन्हे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था. वे इतने चूप थे की मानो दो-दो तिन-तिन पेजेस की मेल करनेवाले वे हमही है क्या? ऐसी उन्हे आशंका आए. आखिर विवेकने ही पहल करते हूए शुरवात की,
'' ट्रॅफिकमें अटक गया था... इसलिए देर हो गई ...''
'' मै तो साडेचार बजेसेही तुम्हारी राह देख रही हूं ..'' अंजलीने कहा.
'' लेकिन तूमने तो पांच का वक्त दिया था. '' विवेकने कहा.
सिर्फ शुरु करनेकी ही देरी थी, अब वे आपस में अच्छे खासे घुल मिलकर बाते करने लगे, मानो इंटरनेट पर चॅटींग कर रहे हो. बाते करते करते वे धीरे धीरे बीचके रेतपर समुंदरके किनारे किनारे चलने लगे. चलते चलते कब उनके हाथ एकदुसरे में गुथ गए, उन्हे पताही नही चला. न जाने कितनी देर तक वे एक दुसरेके हाथ पकडकर बीचपर घुम रहे थे.
सुर्यास्त हो चुका था और अब अंधेराभी छाने लगा था. बिचमेंही अचानक रुककर, गंभीर होकर विवेकने कहा,
'' अंजली... एक बात पुछू ?''
उसने आखोंसेही मानो हा कह दिया.
'' मुझसे शादी करोगी ?'' उसने सिधे सिधे पुछा.
उसके इस अनपेक्षित सवालसे वह एक पल के लिए गडबडासी गई. अपने गडबडाए हालातसे संभलकर उसने कुछ ना बोलते हूए अपनी गर्दन निचे झूकाई.
विवेकका दिल अब जोरजोरसे धडकने लगा था.
मैने बडा ढांढस कर यह सवाल तो पुछा....
लेकिन वह 'हां' कहेगी या 'नही' ?...
वह उसके जवाबकी प्रतिक्षा करने लगा.
मैने यह सवाल पुछनेमें कुछ जल्दी तो नही कर दी ?...
उसने अगर 'नही' कहा तो ?...
उसके जहनमें अलग अलग आशंकाएं आने लगी.
थोडी देरसे वह बोली,
'' चलो हमें निकलना चाहिए ..''
उसने बोलने के लिए मुंह खोला तब उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा था.
लेकिन यह क्या ... वह उसके सवालके जवाबसे बच रही थी....
लेकिन वह एक पीएचडी का छात्र था. किसी भी सवाल के जवाब का पिछा करना उसके खुनमें ही भिना हूवा था.
'' .. तूमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया ..'' उसने उसे टोका.
'' चलो मै तुम्हे छोड आती हूं '' वह फिर से उसके सवाल के जवाब से बचते हूए बोली.
लेकिन वहभी कुछ कम नही था.
'' अभी तक तूमने मेरे सवालका जवाब नही दिया ''
वह शर्मके मारे चूर चूर हो रही थी. उसकी गर्दन झूकी हूई थी और उसका गोरा चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था. वह अपनी भावनाए छुपानेके लिए पैर के अंगुठेसे जमीन कुरेदने लगी.
'' मैने थोडी ना कहा है '' वह किसी तरह, अभीभी अपनी गर्दन निची रखते हूए बोली.
अपने मुंहसे वह शब्द बाहर पडे इसका उसे खुदको ही आश्चर्य लग रहा था. विवेक का अब तक मायूस हुवा चेहरा एकदम से खुशीके मारे खिल उठा. उसे इतनी खुशी हुई थी की वह उसे कैसे व्यक्त करे कुछ समझ नही पा रहा था. उसने अपने आपको ना रोक पाकर उसे अपने बाहोंमें कसकर भरकर उपर उठा लिया.
अंजली गाडी ड्राईव्ह कर रही थी और गाडीमें आगे उसके बगलकीही सिटपर विवेक बैठा हुवा था. गाडीमें काफी समयतक दोनो अपने आपमें खोए हूए गुमसुमसे बैठे हूए थे.
सच कहा जाए तो विवेक उसने सोचे उससेभी जादा चुस्त , तेज तर्रार और देखनेमें उमदा है ... और उसका स्वभाव कितना सिधा और सरल है ...
पहलेही मुलाकातमें शादीके बारेमें सवाल कर उसने अपनी भावनाएं जाहिर की यह एक तरहसे अच्छा ही हुवा.. सच कहा जाए तो उसने वह सवाल पुछकर मुझेभी उसके बारेमें अपनी भावनाएं व्यक्त करनेका मौका दिया है...
उसे अब उसके बारेंमे एक अपनापन महसूस हो रहा था. उसने अब उसमें अपना भावी सहचारी ... एक दोस्त... जो हमेशा दुख और सुखमें उसका साथ देगा ... देखना शुरु किया था.
उसने सोचते हूए उसकी तरफ एक कटाक्ष डाला. उसनेभी उसकी तरफ देखकर एक मधूर मुस्कुराहट बिखेरी.
लेकिन अब वहभी अपनेही बारेमें सोच रहा होगा क्या?...
'' तूम पढाई वैगेरा कब करते हो... नही .. मतलब .. हमेशा तो चॅटींग और इंटरनेटपरही बिझी रहते हो '' अंजली कुछ तो बोलना है और विवेकको थोडा छेडनेके उद्देश्यसे बोली.
विवेक उसके छेडनेका मुड पहचानकर सिर्फ मुस्कुरा दिया.
'' हालहीमें तुम्हारे कंपनीका प्रोग्रेस क्या कहता है ? '' विवेकने पुछा.
'' अच्छा है ... क्यों?... हमारी कंपनी तो दिनबदीन प्रोग्रेस करती जा रही है '' अंजलीने कहा.
'' नही मैने सोचा ... हमेशा चॅटींग और इंटरनेटपर बिझी होनेसे उसका असर कंपनीके कामपर हुवा होगा. ... नही?'' विवेकभी उसे वैसाही नटखट जवाब देते हूए बोला.
वहभी उसके तरफ देखकर सिर्फ हंस दी. वह उसके इस बातोंमें उलझानेके खुबीसे वाकीफ थी और उसे उसका इस बारेमें हमेशा अभिमान रहा करता था.
अंजलीकी गाडी एक आलीशान हॉटेलके सामने - हॉटेल ओबेरायके सामने आकर रुकी. गाडी पार्कींगमें ले जाकर अंजलीने कहा, '' एक मिनीट मै मेरा मोबाईल हॉटेलमें भूल गई हूं ... वह झटसे लेकर आती हूं और फिर हम निकलेंगे... नही तो एक काम कर सकते है ... कुछ ठंडा या गरम हो जाए तो मजा आ जाएगा ... नही?... और फिर निकलेंगे '' अंजली गाडीके निचे उतरते हूए बोली.
अंजली उतरकर हॉटेलमें जाने लगी और विवेकभी उतरकर उसके साथ हो लिया.
हॉटेलका सुईट जैसे जैसे नजदिक आने लगा, वैसे एक अन्जानी भावनासे अंजलीके दिलकी धडकन तेज होने लगी थी. एक अनामिक डरने मानो उसे घेर लिया था. विवेक भलेही उसके पिछे पिछे चल रहा था लेकिन उसके सासोंकी गति विचलीत हो चुकी थी. अंजलीने सुईटका दरवाजा खोला और अंदर चली गई.
विवेक दरवाजेमेही इधर उधर करता हुवा खडा हो गया.
'' अरे आवोना अंदर आवो '' अंजली उनके बिच बनी, असहजता, एक तणाव दूर करनेका प्रयास करती हुई बोली.
'' बैठो '' अंजली उसे बैठनेका इशारा करती हुई बोली और वही कोनेमें रखा फोन उठानेके लिए उसके पासही बैठ गई.
अंजलीने विवेकके पास रखा हुवा फोन उठानेके लिए हाथ बढाया और बोली, '' क्या लोगे ठंडा या गरम''
फोन उठाते हूए अंजलीके हाथका हल्कासा स्पर्ष विवेकको हुवा था. उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा. अंजलीको भी वह स्पर्श आल्हाददायक और अच्छा लगा था. लेकिन चेहरेपर वैसा कुछ ना बताते हूए उसने ऑर्डर देनेके लिए फोनका क्रेडल उठाया.
फोनका नंबर डायल करनेके लिए अब उसने अपना दुसरा हाथ बढाया. इसबार इस हाथकाभी हल्कासा स्पर्ष विवेकको हुवा. इस बार वह अपने आपको रोक नही सका. उसने अंजलीने आगे बढाया हुवा हाथ हल्केही अपने हाथमें लिया. अंजली उसकी तरफ देखकर शर्माकर मुस्कुराई. उसे वह हाथ उसके हाथसे छुडाकर लेना नही हो रहा था. मानो वह हाथ सुन्न हो गया हो. विवेकने अब वह हाथ कसकर पकडकर उसे खिंचकर अपनी बाहोंमे भर लिया. सबकुछ कैसे तेजीसे घट रहा था और वह सब अंजलीकोभी अच्छा लग रहा था. उसका पुरा बदन गर्म हो गया था और होंठ कांपने लगे थे. विवेकनेभी अपने गर्म और बेकाबू हूए होंठ उसके कांपते होंठोपर रख दिए. अंजलीका एक मन प्रतिकार करनेके लिए कह रहा था. लेकिन दुसरा मन तो विद्रोही होकर सारी मर्यादाए तोडने निकला था. वह उसपर हावी होता जा रहा था और अंजलीकी मानो होशोहवास खोए जैसी स्थिती हो गई थी. विवेकने उसे झटसे अपने मजबुत बाहोंमे उठाकर बगलमें रखे बेडपर लिटाया. उसके उस उठानेमें उसे एक आधार देनेवाली मर्दानी और हक जतानेवाली भावना दिखी इसलिए वह इन्कारभी नही कर सकी. या यू कहिए उसके पास प्रतिकार करनेके लिए कुछ शक्तीही नही बची थी.
उसे उसका वह सवाल याद आगया, '' अंजली मुझसे शादी करोगी ?''
और उसे अपना जवाबभी याद आगया, '' मैने ना थोडीही कहा है ''
उसे अब उसके बाहोमें एक सुरक्षा का अहसास हो रहा था. वहभी अब उसके हर भावनाको उतनीही उत्कटतासे प्रतिसाद दे रही थी.
'' विवेक आय लव्ह यू सो मच'' उसके मुंहसे शब्द बाहर आ गये.
'' आय टू'' विवेक मानो उसके गलेका चुंबन लेते हूए उसके कानमें कह रहा था.
धीरे धीरे उसका मजबुत मर्दानी हाथ उसके नाजूक बदनसे खेलने लगा. और वहभी किसी लतीका की तरह उसको चिपककर अपने भविष्यके आयुष्यका सहारा ढुंढ रही थी.
' हां मैही तुम्हारे आगेके आयूष्य का सहारा ... साथीदार हुं ' इस हकसे अब वह उसके बदनसे एक एक कपडे हटाने लगा था.
' हां मैने भी अब तुम्हे सब कुछ अर्पन कर दिया है .. ' इस विश्वास के साथ समर्पन करके वहभी उसके शरीर से एक एक कपडे हटाने लगी.
अंजली अचानक हडबडाकर निंदसे जाग गई. उसने बेडपर बगलमें देखा तो वहा विवेक निर्वस्त्र अवस्थामें चादर बदनपर ओढे गहरी निंद सो रहा था. लेकिन निंदमेंभी उसका एक हाथ अंजलीके निर्वस्त्र बदनपर था. इतने दिनोंमे रातको अचानक बुरे सपनेसे जगनेके बाद उसे पहली बार उसके हाथका एक बडा सहारा महसूस हुवा था.
continued
credit
- hindinovels.net, Google
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