खजाने-की-तलाश (Khazane ki Talash),,-07

"अरे मेरा पर्स." एक महिला चिल्लाई क्योंकि उसका पर्स एक उचक्का लपककर भागने लगा था. फ़िर कई लोग उस उचक्के के पीछे दौड़ पड़े. इन लोगों में एक व्यक्ति भी था जिसने अपनी कार अभी अभी वहां खड़ी की थी. और इस हड़बड़ी में वह कार की कुंजी इग्निशन में ही लगी छोड़ गया था.



चारों प्राचीन युगवासी अब थाने से काफी दूर सड़क पर निकल आए थे. फ़िर उनकी दृष्टि बिना छत की एक स्पोर्ट्स कार पर पड़ी जो वहीँ खड़ी थी. यह वही कार थी जिसको उचक्के के पीछे भागने वाले व्यक्ति ने छोड़ा था.
"
यह क्या है?" चोतिराज ने आश्चर्य से पूछा.
"
मैं बताता हूँ. यह यटिकम है." सियाकरण ने कहा.
"
यह तुम कैसे कह सकते हो? क्योंकि इसमें यल तो हैं नहीं." मारभट ने अपनी शंका प्रकट की.
"
क्या तुमने सामने नहीं देखा. वहां कई लोग यटिकम में बैठकर यात्रा कर रहे हैं. सियाकरण ने सड़क की और संकेत किया. जहाँ समय समय पर कोई कार निकल जाती थी.
"
तुम सही कह रहे हो. किंतु यह चलेगी कैसे?" मारभट एक बार फ़िर दुविधा में फंस गया.
"
आओ हम लोग इसमें बैठते हैं. तभी कुछ पता चल पायेगा." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार के अन्दर बैठ गए और उसका तियापांचा करने लगे. कभी वे लोग स्टीयरिंग घुमा रहे थे तो कभी डैश बोर्ड के साथ छेड़खानी कर रहे थे. काफ़ी देर प्रयत्न करने के बाद जब ये लोग थक हार कर उतरने की सोच रहे थे तभी चीन्तिलाल बोल उठा,

"
तुम लोग अपनी बुद्धि मत गंवाओ . मुझे यटिकम चलाने की तरकीब समझ में आ गई है."
"
तो फ़िर जल्दी बताओ." सियाकरण ने कहा.
"
वो सामने देखो. वे लोग किस प्रकार यटिकम चला रहे हैं." चीन्तिलाल ने एक ओर संकेत किया और वे सभी उस दिशा में देखने लगे.
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"
कमबख्त स्टार्ट ही नहीं हो रही है. कितनी बार मैंने मालिक से बैट्री चार्ज करवाने के लिए कहा. किंतु वे ध्यान ही नहीं देते." कार में बैठा व्यक्ति जो की उसका ड्राइवर था बडबडाया. एक बार फ़िर उसने कार स्टार्ट करने की कोशिश की किंतु कोई फायदा नहीं हुआ. आख़िर में उसने खिड़की से सर निकाल कर पुकारा, "भाइयों, ज़रा इसमें धक्का लगा दो, बड़ी मेहरबानी होगी."
फ़िर चार पाँच लोकसेवक वहां आ गए ओर कार में धक्का लगाने लगे. धक्का लगाते लगाते वे लोग दूसरी सड़क पर पहुंचकर उन प्राचीन युगवासियों की नज़रों से ओझल हो गए.
और फ़िर दूर कहीं जाकर कार स्टार्ट हो गई.
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"
ओह! तो यह तरकीब थी यटिकम चलाने की. चीन्तिलाल तुम और चोटीराज पीछे से इसे धक्का दो. मैं पहले ही कह रहा था की यदि इस यटिकम को यल नहीं खींचते तो इसी विधि से यह चलनी चाहिए." सियाकरण ने कहा.
फ़िर सियाकरण और मारभट कार की अगली सीट पर बैठ गए और चीन्तिलाल और चोटीराज उसे धक्का लगाने लगे.
"
बहुत अच्छी यटिकम है. कितने आराम से चल रही है." मारभट ने सीट से पीठ टिकाते हुए कहा.
"
किंतु इसमें एक कमी है की यह मनुष्य द्बारा चलाई जाती है. यदि इसे यल चलाते तो बहुत अच्छा होता." सियाकरण ने कहा. तभी कार का स्टार्टिंग लीवर दब गया और वह स्टार्ट हो गई.
"
यह तो बोल रही है." सियाकरण ने आश्चर्य से कहा. चोटीराज और चीन्तिलाल अभी तक कार को धक्का दिए जा रहे थे. मारभट जो कि स्टीयरिंग पर बैठा था अचानक उसका पैर एक्सीलरेटर पर पड़ गया और कर एक झटके के साथ आगे बढ़ गई.

चोटीराज और चीन्तिलाल धडाम से मुंह के बल आगे की ओर गिरे.
"
क्या हम लोगों ने ज्यादा ज़ोर से धक्का लगा दिया?" चोटीराज उठकर अपना सर सहलाते हुए बोला.
"
ऐसी कोई बात नहीं है. बल्कि वह अपने आप चलने लगी लगी." चीन्तिलाल इत्मीनान से बोला.
"
अरे तो उसे पकडो. वरना हम बिछड़ जायेंगे." चोटीराज कार के पीछे दौड़ा. चीन्तिलाल ने उसका अनुसरण किया. किंतु वे कार का मुकाबला कहा कर पाते. कुछ ही देर में कार उनकी नज़रों से ओझल हो गई और वे हाथ मलते रह गए

"ओ चीन्तिलाल, तुम लोग तो इस यातिकम को बहुत तेज़ चलाने लगे. कहीं यह किसी से टकरा न जाए." मारभट ने पीछे देखे बिना कहा. जब पीछे से कोई जवाब न आया तो उसने मुड़कर देखा, "अरे वे लोग कहाँ चले गए?"
सियाकरण ने भी पीछे मुड़कर देखा. फ़िर किसी को न पाकर उनके मुंह खुले रह गए.
"
वे लोग कहाँ गए? और यह यटिकम कैसे चल रही है?" सियाकरण ने हैरत से कहा.
"
यह तो बाद में सोचना कि यह कैसे चल रही है. पहले इसे रोको वरना सामने जो बड़ी यटिकम है उससे यह टकरा जायेगी." सामने से आ रही एक मिनी बस को देखकर मारभट ने कहा.
"
किंतु जब तक यह न मालुम हो जाए कि यह कैसे चल रही है, हम इसको कैसे रोक सकते हैं?"
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"
कंडक्टर जी, ज़रा माचिस देना बीड़ी सुलगानी है." बस के ड्राइवर ने पीछे सर घुमाकर कहा.
"
दे रहा हूँ. किंतु तुम सामने देखो वरना कोई एक्सीडेंट कर बैठोगे." कंडक्टर ने जेब से माचिस निकालते हुए कहा.
"
अरे मैं पिछले बीस सालों से बस चला रहा हूँ. अब तो आँख बंद करके भी बस चला दूँ तो यह सरपट अपने रास्ते पर दौड़ पड़ेगी...........!" ड्राइवर अकड़ कर बोला. उसी समय उसकी दृष्टि सामने पड़ी.
"
अरे बाप रे. .....यह कौन पागल कार चला रहा है." उसने जल्दी से बस किनारे की और प्राचीन युगवासियों की कार बस से रगड़ खाती हुई निकल गई.
बचते बचते भी बस एक पेड़ से हलकी सी टकरा गई थी. और अब पेड़ पर निवास करने वाले कौवे चीख चीख कर बस के ड्राइवर को कोस रहे थे.
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ये लोग जितना कार को रोकने का प्रयत्न कर रहे थे उतनी ही कार की गति बढती जा रही थी. क्योंकि मारभट का पैर एक्सीलरेटर पर से हट ही नहीं रहा था.
"
जब तक हमें यह न मालूम हो जाए की इस यटिकम के यल कहाँ हैं, हम इसको नहीं रोक सकते." सियाकरण ने कहा.
"
इसके यल लगता है आगे अन्दर छुपे बैठे हैं." मारभट ने कार के बोनट की ओर संकेत किया.
फ़िर इन्होंने बोनट के अन्दर छुपे बैलों को पुचकारना शुरू कर दिया, किंतु वे उसी तरह अड़ियल रूख अपनाए रहे और कार अपनी गति से भागती रही. इस सड़क पर अधिकतर सन्नाटा रहता था वरना अब तक कई एक्सीडेंट हो चुके होते.
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इंसपेक्टर शेरखान अपनी मोटरसाइकिल पर 'चीनी भगोड़ों' को ढूंढते ढूंढते बहुत दूर निकल आया था. फ़िर अचानक उसकी मोटरसाइकिल बंद हो गई. उसने पेट्रोल बताने वाली सुई पर नज़र डाली तो वह शून्य पर रुकी थी.
"
ओह, न जाने मेरी भूलने वाली आदत कब जायेगी. मुझे आज पेट्रोल डलवाना था. अब क्या करुँ." तभी उसे सामने से एक कार तेज़ गति से आती दिखाई दी.
"
ओह! वह कार तो बहुत तेज़ आ रही है. मैं अपनी मोटरसाइकिल किनारे कर लूँ." वह नीचे उतर कर मोटरसाइकिल किनारे करने लगा. लेकिन उससे पहले ही कार पूरी स्पीड के साथ मोटरसाइकिल से आकर टकरा गई. वह तो छिटक कर दूर जा गिरा और मोटरसाइकिल हवा में कलाबाजियां खाती हुई कार की पिछली सीट पर जाकर विराजमान हो गई.
"
अरे मेरी मोटरसाइकिल लेकर चोर भाग रहे हैं. कोई पकडो उन्हें." वह चीखता हुआ कार के पीछे भागा. फ़िर चौंक पड़ा, "मैंने शायद इन लोगों को कहीं देखा है. याद आया, ये तो वही चीनी भगोडे हैं. उन्हें तो तुंरत पकड़ना चाहिए. मेरी मोटरसाइकिल कहाँ गई." वह इधर उधर अपनी मोटरसाइकिल देखने लगा और जब उसे याद आया की मोटरसाइकिल भी उन लोगों के साथ चली गई तो वह अपना सर पकड़कर वहीँ बैठ गया.

मारभट, अभी हमारे पीछे कोई आवाज़ आई थी."
"
पीछे देखो, क्या है?" मारभट ने कहा. सियाकरण ने घूमकर देखा तो वहां एक मोटरसाइकिल खड़ी थी.
"
अरे यह क्या है? और कहाँ से आ गया?" उसने आश्चर्य से कहा.
मारभट ने भी पीछे मुड़कर देखा और बोला, "यह कैसा युग है? अभी वहां कुछ नहीं था अब कुछ आ गया. क्या यहाँ वस्तुएं आसमान से टपकती हैं? सियाकरण तुम पीछे जाकर देखो की वह क्या चीज़ है."
सियाकरण कूदकर पीछे चला गया. कुछ देर तक ध्यान से उसको देखता रहा फ़िर बोला, "मेरा विचार है की यह इस यटिकम का यल है.
इसके सर पर दो सींगें भी हैं. किंतु यह तो बिल्कुल हिलडुल नहीं रहा है."
"
बेचारे ने इतनी तेज़ यटिकम चलाई कि थक कर मर गया." मारभट ने दुःख प्रकट किया.
"
किंतु यटिकम तो अभी भी चल रही है."
"
हो सकता है कोई और भी यल हो. हमारे युग में भी तो दो यल एक यटिकम को खींचते थे."
कार की गति अब धीमी होने लगी थी क्योंकि मारभट का पैर एक्सीलरेटर पर से हट गया था.
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"
वे लोग तो पता नहीं कहाँ निकल गए. अब हम लोग क्या करें?" चोटीराज ने कहा. वे लोग बहुत देर से अपने दोनों साथियों को ढूंढ रहे थे जो कार में बैठकर निकल गए थे.
"
आओ फ़िर हम दोनों अकेले ही यह युग घूमते हैं. हम लोगों को यटिकम में जो मनुष्य मिले थे वह बहुत दुष्ट थे. हमें कोठरी में बंद कर दिया था. अब हम उनके सामने नही जायेंगे." चीन्तिलाल बोला.
फ़िर वे आगे बढे. यह कोई बाज़ार था और वहां काफ़ी चहल पहल थी. फ़िर वे चलते चलते एक दूकान के सामने रूक गए जहाँ एक रेडियो रखा हुआ पूरे वोल्यूम में गला फाड़ रहा था.
"
घोर आश्चर्य." चीन्तिलाल बोला, "इतने छोटे डिब्बे में एक मनुष्य बंद हो गया."
"
इतना छोटा मनुष्य तो न हमने अपने युग में देखा न इस युग में." चोटीराज ने हैरत से कहा.
"
किंतु उसे डिब्बे में क्यों बंद कर दिया गया? वह तो चिल्ला रहा है."
"
आओ, उन लोगों से पूछते हैं जो वहां बैठे हैं." फ़िर वे लोग दुकान में पहुंचे. चीन्तिलाल ने पूछा, "तुम लोगों ने उसे बंद क्यों कर दिया?" यह शब्द उसने अपनी भाषा में कहे थे.
"
ये कोई अजीब भाषा बोल रहे हैं. अभी हमने जिस चोर को दुकान के अन्दर बंद किया है वह भी अजीब भाषा बोल रहा था. लगता है ये लोग उसके साथी हैं." दूकानदार बोला, फ़िर अपने साथियों को संबोधित किया, "इन्हें पकड़कर खूब मारो और फ़िर इन्हें भी उस चोर के साथ बंद कर दो."
दूकानदार के साथी आगे बढे और इनपर पिल पड़े.
"
अच्छा, एक तो बेचारे को डिब्बे में बंद कर दिया, फ़िर कुछ बोलने पर मारते हो. अभी बताता हूँ." चोटीराज और चीन्तिलाल भी हाथ पैर चलाने लगे. फ़िर इन लोगों के सामने कलयुगी मानवों की एक न चली और कुछ ही देर में वे सब लंबे लेटे नज़र आए. चोटीराज ने रेडियो उठाया और दोनों दूकान के बाहर आ गए.
"
अरे मेरा रेडियो!" दूकानदार चिल्लाते हुए उनके पीछे दौड़ा किंतु दूकान से बाहर निकलने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. और बडबडाते हुए वापस लौट गया.
उधर चीन्तिलाल चोटीराज से बोला, "डिब्बा खोलकर उस व्यक्ति को जल्दी से आजाद करो. वह बहुत देर से चिल्ला रहा है."
"
किंतु यह खुलेगा किस प्रकार? यह तो हर ओर से बंद है." चोटीराज ने डिब्बे को उलट पलट कर देखते हुए कहा.
"
मैं बताता हूँ की किस प्रकार खुलेगा." चीन्तिलाल ने रेडियो पर एक हाथ जमाया और वह दो टुकडों में बँट गया
"
इसमें तो कोई भी नहीं है." चोटीराज ने अन्दर का अंजर पंजर देखते हुए कहा.
"
हाँ, वह मनुष्य कहाँ गया?"
"
शायद वह स्वर्गवासी हो गया. तुम्हें डब्बा धीरे से खोलना चाहिए था." चोटीराज ने चीन्तिलाल को घूरा.
"
बेचारा." दोनों ने एक ठंडी साँस ली और रेडियो का कबाड़ वहीँ छोड़कर आगे बढ़ गए.

कार अब पूरी तरह रूक गई थी.
"
यटिकम तो रूक गई. क्या कारण है?" मारभट ने पूछा.
"
शायद दूसरा यल भी थक गया है." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे कार से उतर गए और इधर उधर देखने लगे. यह एक सुनसान स्थान था, किंतु पूरी तरह नहीं. क्योंकि यहाँ एक बड़ी इमारत दिख रही थी. जो शायद कोई फैक्ट्री थी. उसकी बाहरी बनावट से ऐसा ही लग रहा था.
"
वो देखो, सामने कोई मकान है. आओ हम लोग वहां चलते हैं." सियाकरण ने कहा. फ़िर वे दोनों फैक्ट्री की ओर जाने लगे.
"
मेरे तो अब भूख लग रही है. वहां भोजन तो मिलना ही चाहिए." मारभट ने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा.
"
आओ चल कर देखते हैं."
फ़िर जैसे ही वे फैक्ट्री के पास पहुंचे, दो पहरेदारों ने उन्हें रोक लिया. तभी अन्दर से दो व्यक्ति निकले और उनमें से एक कहने लगा, "आइये सर, आपका यहाँ स्वागत है. मैं यहाँ का प्रबंधक गुप्ता हूँ. और ये मेरा सहायक रामप्रकाश है." वह इन दोनों को अन्दर ले जाने लगा और उसके सहायक ने पहरेदारों से कहा, "मी.गुप्ता को आज एक फोन काल से मालुम हुआ था की आज कुछ सरकारी अफसर इस फैक्ट्री का निरीक्षण करने आ रहे हैं. उनका विचार है कि ये वही अफसर हैं."

उधर गुप्ता दोनों से कह रहा था, "आइये सर, आपको हमारी फैक्ट्री में कोई अनिमियतता नहीं दिखेगी. यहाँ हम साबुन के अलावा डिटर्जेंट पाउडर और शेविंग क्रीम भी बनाते हैं. हमारी फैक्ट्री अच्छी चल रही है. बस केवल आप अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. आपके मालपानी की हमारी पूरी ज़िम्मेदारी है." अन्तिम वाक्य गुप्ता ने धीरे से कहा था.
"
क्या यहाँ कुछ खाने को मिल सकता है?" सियाकरण को बहुत जोरों की भूख लग रही थी.
"
अरे क्यों नहीं, क्यों नहीं. सब कुछ आप ही का तो है. बस आप हमारे फेवर में एक अच्छी सी रिपोर्ट तैयार कर दीजिये. फ़िर आप जो कुछ कहेंगे, हम हाज़िर कर देंगे." गुप्ता सियाकरण की बात का कुछ और ही मतलब समझा.
वे तीनों कुछ देर मौन खड़े रहे फ़िर मैनेजर ही दुबारा बोला, "आइये सर, पहले आप फैक्ट्री का निरीक्षण कर लीजिये." उसने उनको अपने पीछे आने का इशारा किया और वे बिना कुछ समझे उसके पीछे चल पड़े.
फ़िर वह फैक्ट्री दिखाने लगा जहाँ विभिन्न प्रकार के कार्य हो रहे थे. कहीं साबुन बनाया जा रहा था, कहीं मशीन से ठोस साबुन की टिकियाँ काटी जा रही थीं तो कहीं डिटर्जेंट पाउडर बन रहा था. वे लोग घुमते हुए वहां भी पहुंचे जहाँ साबुन की पैकिंग हो रही थी.

"
आप स्वयें देख लीजिये, की यहाँ केवल साबुन पैक हो रहा है. हम लोग अफीम इत्यादि का व्यापार बिल्कुल नहीं करते." उसने इन्हें पैकिंग दिखाई.
सियाकरण और मारभट ने एक दूसरे की तरफ़ देखा. उनकी समझ में मैनेजर की बात बिल्कुल नहीं आई.
"
देख क्या रहे हो, एक तुम लो और एक मैं लेता हूँ." सियाकरण ने कहा. और एक टिकिया मुंह में उठाकर रख ली. मारभट ने भी उसकी देखा देखी एक टिकिया मुंह में रख ली.
"
यह कैसा भोजन है. इस युग में तो लोग अजीब भोजन करते हैं." सियाकरण ने बुरा सा मुंह बनाया

"हाँ, यह तो बहुत बेकार है. किंतु पेट तो भरना ही पड़ेगा. यह टुकड़ा तो पूरा खा ही जाओ." फ़िर दोनों ने मुंह बना बना कर साबुन की टिकियाँ गटक लीं. गुप्ता हवन्नक होकर दोनों की शक्लें देख रहा था.
"
अजीब अधिकारी हैं ये लोग. आज तक किसी ने मेरी फैक्ट्री का इस तरह निरीक्षण नहीं किया." वह सर खुजलाते हुए बडबडाया.
"
आओ, हम लोग यहाँ से चलते हैं. यहाँ के भोजन से तो अच्छा है की हम पेड़ों के फल तोड़कर खा लें." मारभट ने कहा और दोनों वापस मुड़ लिए. "अरे सर, आप लोग कहाँ जा रहे हैं? ये तो बताते जाइए की आप अपनी रिपोर्ट कैसी बनायेंगे? मैं आपकी हर प्रकार की सेवा करने के लिए तैयार हूँ. अरे सुनिए तो." मैनेजर पुकारते हुए इनके पीछे भागा किंतु इन्होने उसकी एक न सुनी और फैक्ट्री से बाहर आ गए.
"
मूड ख़राब कर दिया कमबख्तों ने." उन लोगों के जाने के बाद गुप्ता बडबडाया फ़िर पहरेदारों से बोला, "अब कोई भी आए उसे फैक्ट्री के अन्दर मत घुसने देना." कहकर वह तेज़ क़दमों से चलता हुआ अन्दर चला गया.

कुछ देर बाद दो व्यक्ति वहां पहुंचे और अन्दर जाने लगे.
"
आप अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदारों ने उन्हें रोका.
"
क्यों? हमारे पास इस बात का आज्ञापत्र है कि हमें फैक्ट्री के अन्दर जाने दिया जायेगा. हम लोग इसका निरीक्षण करने आए हैं."
"
हमारे मैनेजर कि सख्त आज्ञा है कि किसी को अन्दर न आने दिया जाए. अतः आप लोग बिल्कुल अन्दर नहीं जा सकते." पहरेदार अपनी बात पर अडे रहे.
फ़िर उनमें बहस होने लगी. और यह बहस तब तक चली जब तक उन अफसरों का पारा सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक न पहुँच गया. उसी समय गुप्ता किसी काम से बाहर आया और उन लोगों को लड़ता देखकर उसने मामला समझना चाहा. फ़िर जब उसे यह मालूम हुआ कि ये लोग सरकारी अफसर हैं और फैक्ट्री का निरीक्षण करने आए हैं तो वह एक बार फ़िर चकरा कर रह गया.
उसने अपने को संभाला और बोला, "आइये सर! इन पहरेदारों से भूल हो गई है. आप लोग फैक्ट्री का निरीक्षण करिए."
"
हम लोग फैक्ट्री का निरीक्षण कर चुके. और अब जो रिपोर्ट हम सरकार को देंगे उसे तुम लोग सदेव याद रखोगे." उन अफसरों ने क्रोधित होकर कहा और वापस मुड़ गए.
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अरे सर सुनिए तो..." मैनेजर उनके पीछे दौड़ा किंतु उन अफसरों ने सुनी अनसुनी कर दी. फ़िर गुप्ता सर पकड़कर वहीँ बैठ गया.







     


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