खजाने-की-तलाश (Khazane ki Talash),,-04
"यार,
तुम
लोग तो ऐसी दलीलें देते हो कि
मैं अपने आपको किसी गधे का
भतीजा समझने लगता हूँ जो अपने
मामा की सिफारिश पर सरकारी
नौकरी में भरती हो गया हूँ."
"ठीक है, ठीक है। अब शमशेर सिंह तुम बताओ कि अपने खजाने का क्या करोगे?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"सबसे पहले तो मैं किसी स्विस बैंक में अपना खाता खुलवाऊंगा और उसमें अपना खजाना जमा कर दूँगा।"
"और उसके बाद?""मुझे एडवेंचर का बहुत शौक है। इसलिए उसके बाद मैं दुनिया के खतरनाक स्थानों जैसे अफ्रीका के जंगलों, अमेज़न के बेसिन, अमेरिका के रेड इंडियन प्रदेशों में रोमांचपूर्ण यात्राएं करूंगा और ऐसे ऐसे साहसपूर्ण कारनामे करूंगा कि मेरा नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों द्वारा लिखा जाएगा."
"इन साहसपूर्ण कारनामों से पहले यदि एक साहसी कार्य कर जाओ तो मैं तुम्हारा नाम उसी समय इतिहास की किसी किताब में लिखवा दूँगा." रामसिंह ने कहा.
"एक क्या, चाहे जितने कारनामे कहो मैं कर के दिखला दूँ."
"बस तुम केवल अपना पलंग अपने कमरे की दीवार से मिलाकर उसपर सो जाओ."
"इसमें साहस दिखाने की क्या बात है? मैं समझा नहीं." प्रोफ़ेसर ने आश्चर्य से कहा.
"बात यह है कि विश्व के सबसे साहसी व्यक्ति को छिपकलियों से बहुत डर लगता है. अतः ये अपना पलंग दीवार से लगाकर नही सोते. क्योंकि इससे दीवार पर चढी छिपकलियों के पलंग पर गिरने का डर रहता है."
"अरे यार, तुम कहाँ की बात ले बैठे. छिपकलियों से तो खैर दुनिया का हर व्यक्ति डरता है. मैं भले ही छिपकलियों से डरूं, लेकिन शेर के मुंह में हाथ डालकर उसका जबडा चीर सकता हूँ, हाथी की सूंड मोड़कर उसे पटक सकता हूँ और बड़े से बड़े सूरमा से कुश्ती लड़कर उसे पछाड़ सकता हूँ."
"ठीक है, तुम ज़रूर यह सब काम कर सकते हो. लेकिन मैं यह तभी मानूंगा जब तुम वह सामने जा रहा चूहा पकड़ लोगे. " रामसिंह ने एक कोने में संकेत किया जहाँ एक चूहा बैठा हुआ टुकुर टुकुर इन लोगों की तरफ़ देख रहा था. वह शायद खाने की बू सूंघकर कहीं से निकल आया था.
"इसमें कौन सी बड़ी बात है. मैं अभी उसे पकड़ लेता हूँ." कहते हुए शमशेर सिंह उस तरफ़ धीरे धीरे बढ़ने लगा. उधर चूहा भी बड़े गौर से उसकी तरफ़ देखने लगा लगा था. वह ज़रा भी इधर उधर नहीं हिला था. शायद उसका मूड भी लड़ने का था.
शमशेर सिंह एकदम उसके पास पहुँच गया. अब चूहे के कान खड़े हो गए थे. और उसने अपनी ऑंखें शमशेर सिंह की आँखों में गडा दी थीं. शमशेर सिंह धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा. अचानक चूहे ने किसी कुशल कुंगफू मास्टर की तरह छलांग लगाई और शमशेर सिंह की दाईं हथेली चूमता हुआ पीछे फांदकर किसी पत्थर के पीछे गायब हो गया.
"उई मार डाला." शमशेर सिंह ज़ोर से चीखा और धप्प से पीछे की ओर गिरा. प्रोफ़ेसर और रामसिंह दौड़ कर उसके पास आये.
"क्या हुआ?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
शमशेर सिंह अब उठ बैठा था. उसने कांपते हुए कहा, "वह चूहा ज़रूर पिछले जन्म में कोई बदमाश था. मैं तो सोच भी नही सकता था कि वह मेरे ऊपर हमला कर देगा. मेरा खंजर कहाँ गया, मैं अभी जाकर उसे सबक सिखाता हूँ."
फ़िर प्रोफ़ेसर और रामसिंह ने बड़ी मुश्किल से उसकी मोटी कमर थामकर उसे रोका. वे लोग फिर आकर अपने स्थान पर बैठ गए. फिर रामसिंह ने कहा, "प्रोफ़ेसर, हम लोगों ने तो तुम्हें बता दिया कि खजाने का अपने हिस्सों का क्या क्या करेंगे. किंतु तुमने नहीं बताया. अब तुम बताओ."
"भाई मुझे तो एक ही शौक है. नए नए वैज्ञानिक प्रयोग करने का. उदाहरण के लिए मेरी दाढी बहुत तेज़ी से बढती है और मैं शेव बनाते बनाते परेशान रहता हूँ. इसलिए खजाना मिलने पर मैं एक ऐसी शेविंग क्रीम बनाने की सोच रहा हूँ जो चेहरे पर लगाने पर वहां के बाल पूरी तरह साफ कर देगी. और उस जगह पर फिर कभी बाल नहीं निकलेगा."
"और अगर वह शेविंग क्रीम गलती से सर में लग गई तो?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"ओह, ये तो मैंने सोचा ही नही था. आइडिया," प्रोफ़ेसर ने उछल कर कहा, "क्यों न ऐसा तेल बनाया जाए जो गंजों के बाल उगा दे. क्योंकि गंजे इस कारण काफ़ी चिंतित रहते हैं."
"विचार अच्छा है. उस तेल की बहुत बिक्री होगी. " रामसिंह ने कहा, "जब तुम उस तेल का आविष्कार कर लोगे तो मैं उसे बनाने की फैक्ट्री खोल लूँगा. हम तुम मिलकर काफी तरक्की करेंगे."
"उस फैक्ट्री में मैं क्या करूंगा?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"तुम्हें तेल भरी हुई शीशियों पर 'बालदार कोयला तेल' का लेबल लगाने का काम दे दिया जाएगा. मेरा ख्याल है तुम यह काम बहुत अच्छी तरह कर लोगे." रामसिंह बोला.
"इससे अच्छी तरह मैं यह काम करूंगा कि एक हौज़ में सारी शीशियाँ खाली करके तुम्हें उसमें डुबो दूँगा. और जब तुम वनमानुष बनकर बाहर निकलोगे तो बहुत अच्छे लगोगे." शमशेर सिंह ने क्रोधित होकर कहा.
"नाराज़ क्यों होने लगे मेरे प्यारे दोस्त." रामसिंह ने प्रेम से उसका सर हिलाया, "टी.वी. पर हमारे तेल का जो विज्ञापन दिया जाएगा, उसकी माडलिंग तो तुम्हें ही करनी है."
"क्या वास्तव में तुम मुझे इतना सुंदर समझते हो कि मैं विज्ञापन में मॉडल का रोल कर सकता हूँ?" शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.
"अरे तुम तो एलिजाबेथ टेलर से भी अधिक सुंदर हो." रामसिंह ने शमशेर सिंह की ठोडी में हाथ लगाकर उसे ऊंचा कर दिया.
"एलिजाबेथ टेलर नाम तो औरतों का मालूम हो रहा है. क्या तुमने किसी औरत से मेरी तुलना की है?" शमशेर सिंह ने शंकाग्रस्त होकर रामसिंह को देखा.
"अरे नहीं. टेलर का मतलब तो दर्जी होता है. और कोई औरत दर्जी कैसे हो सकती है? वह तो दर्जाइन होगी."
"अब तुम लोग अपनी अपनी बकवासें बंद करो और आगे बढ़ने का इरादा करो." प्रोफ़ेसर ने उठते हुए कहा.
शमशेर सिंह और रामसिंह भी उठ खड़े हुए. अचानक उस कमरे में हलकी रौशनी फैल गई.
"अरे वह सामने देखो, वह क्या है?" शमशेर सिंह ने एक कोने की ओर संकेत किया वे लोग उधर देखने लगे. वहां पर रौशनी के दो गोले पास पास चमक रहे थे.
"ये अंधेरे में रोशनी के गोले कहाँ से आ गए?" रामसिंह ने हैरत से कहा.
"मुझे लगता है जैसे यह किसी जानवर की ऑंखें हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किस जानवर की ऑंखें इतनी बड़ी होती हैं? उन दोनों रोशनी के गोलों का व्यास मेरे विचार से एक एक फिट होगा." रामसिंह ने कहा.
"चलो पास चल कर देखते हैं, अभी पता चल जायेगा." शमशेर सिंह ने सुझाव दिया.
"मेरा ख्याल है वहां चलना खतरे से खाली नहीं होगा. क्योंकि मेरा अब भी विचार है कि वह कोई जानवर है. मैंने किताबों में पढ़ा है कि प्राचीन समय में ऐसे जानवर पाये जाते थे जो हाथी से भी बीसियों गुना विशाल होते थे. उन्हें डाइनासोर कहते थे. मेरा विचार है कि वह कोई डाइनासोर है."
"आख़िर वह हिल डुल क्यों नहीं रहा है?" रामसिंह ने पूछा.
"मेरा ख्याल है उसने हम लोगों को देख लिया है. और हमारा शिकार करना चाहता है. इसलिए पोजीशन लेने के कारण वह हिल डुल नहीं रहा."
इस तरह वे लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन रोशनियों के लिए अटकलें लगाते रहे किंतु किसी की हिम्मत वहां जाने की नहीं हुई.
अचानक वह रोशनी गायब हो गई. और इसके साथ ही कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया.
"यह क्या हुआ? प्रोफ़ेसर, जल्दी टॉर्च जलाओ वरना अंधेरे में वह जानवर हम पर हमला कर देगा तो हम लोग कुछ नहीं कर सकेंगे." रामसिंह ने कहा.
प्रोफ़ेसर ने जल्दी से टॉर्च जलाकर उसकी रोशनी वहां पर डाली. किंतु अब वहां पर पत्थर की दीवारें दिख रही थीं. उस काल्पनिक जानवर का कहीं पता नहीं था.
"मेरा विचार हैं वह जानवर नहीं था बल्कि कुछ और था. आओ चलकर वहीँ देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा. फ़िर तीनों डरते डरते वहां पहुंचे. निरीक्षण करते हुए अचानक शमशेर सिंह की दृष्टि पीछे की ओर गई और उसने कहा, "ये देखो, यह क्या है?"
उनहोंने घूमकर पीछे देखा, तो उन्हें दो गोल रोशनदान दिखाई दिए. ये दोनों रोशनदान पास पास थे. वे उसके पास पहुंचे. दोनों रोशनदानों से आसमान साफ़ दिखाई पड़ रहा था.
"अब मेरी समझ में सारी बात आ गई है." प्रोफ़ेसर ने सर हिलाते हुए कहा.
"क्या समझ में आया?" रामसिंह ने पूछा.
"वह रोशनी जो हमें दिखी थी, वास्तव में सूर्य की रोशनी थी. जो इन रोशनदानों द्बारा सामने की दीवार पर पहुँची थी. फ़िर जब कुछ देर के बाद सूर्य की दिशा बदल गई तो वह रोशनी भी गायब हो गई."
"धत तेरे की. इतनी सी बात थी. और हम लोग पता नहीं क्या क्या सोच बैठे." रामसिंह ने अपने सर पर हाथ मारा.
"लेकिन अगर हम यह सारी बातें न सोचते तो शायद सही बात भी पता न कर पाते. मैंने एक किताब में पढ़ा है की कई ग़लत बातों पर अध्ययन के बाद ही मनुष्य सही निष्कर्ष पर पहुँचता है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"अब कौन से सही निष्कर्ष पर पहुंचे हो तुम?" रामसिंह ने पूछा.
"सुनो, यह रोशनदान इस तरह बने हैं कि मानो किसी मनुष्य का हाथ लगा हो. पत्थरों को एकदम गोलाई से काटकर यह रोशनदान बनाए गए हैं."
"इसी कारण इस प्राकृतिक कमरे में घुटन भी नहीं है." रामसिंह बोला.
"इसीलिये मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि यह कमरा प्रकृतिक नहीं है, बल्कि यह किन्हीं मनुष्यों द्बारा बनाया गया है. और यह सुरंग भी प्राकृतिक नहीं है. इस कमरे और सुरंग के चारों ओर के पत्थर एकदम बराबर से कटे हैं. और यह कार्य प्राकृतिक नहीं हो सकता." प्रोफ़ेसर ने चारों ओर देखते हुए कहा.
"यह तो तुम सही कह रहे हो. किंतु इस सुनसान स्थान पर पहाड़ियों को काटकर यह सुरंग किसने बनाई होगी?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"यही बात मेरे विचारों की पुष्टि कर रही है. अर्थात यहाँ पर प्राचीन समय में कोई सभ्यता ज़रूर आबाद थी.
जिसने अपना खजाना छुपाने के लिए इस सुरंग का निर्माण किया. वह खजाना ज़रूर यहीं इसी प्रकार की किसी सुरंग या किसी कमरे में होगा."
"इसका मतलब नक्शे ने हम लोगों का सही मार्गदर्शन किया है. " रामसिंह ने कहा.
"मेरा तो यही विचार है. इसलिए सबसे पहले हम लोग इसी कमरे की अच्छी तरह तलाशी लेंगे फिर आगे बढ़ेंगे." प्रोफ़ेसर ने दोबारा अपना सामान नीचे रखते हुए कहा. फिर उन लोगों ने उस कमरे का एक एक कोना देखना शुरू कर दिया मानो गिरी हुई सुई ढूँढ रहे हों. हालाँकि उस कमरे में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहाँ खजाना छुपाया जा सकता था. किंतु फिर भी चोर दरवाज़े की आशा में उन्होंने अपनी जगह पर जमे कई पत्थरों को हिलाने का प्रयत्न किया जो असफल रहा.
"मेरा ख्याल है प्रोफ़ेसर, यहाँ पर कोई खजाना नहीं छुपा है. इसलिए हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए." शमशेर सिंह ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.
"ठीक कहते हो चलो आगे बढ़ते हैं."
एक बार फिर सुरंग शुरू हो गई थी. सुरंग में इतना अँधेरा था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था. अतः प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला रखी थी.
"मुझे इस समय पता नहीं क्यों मिस्र के पिरामिडों की याद आ रही है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"यहाँ पर भला मिस्र के पिरामिडों को याद करने की क्या तुक है?" रामसिंह बोला.
"तुक तो है. अब देखो पहाडियाँ भी नीचे से चौडी होती हैं और ऊपर जाते जाते पतली होती जाती हैं. इसी तरह मिस्र के पिरामिड भी नीचे से चौडे हैं और ऊपर जाते जाते पतले होते गए हैं. मिस्र के पिरामिडों के अन्दर कई कक्ष बने हैं. और वे आपस में सुरंगों द्बारा जुड़े हैं. यहाँ भी हम लोगों ने एक कक्ष देखा था और वहां जाने का रास्ता भी सुरंग है. हो सकता है इस पहाड़ी में और भी इस प्रकार के कक्ष हों और वे आपस में इसी प्रकार की सुरंगों द्बारा जुड़े हों." प्रोफ़ेसर ने खड़े होकर पूरा लेक्चर दे डाला था
"तुम्हारा मतलब ये पहाडियाँ नहीं बल्कि पिरामिड हैं." शमशेर सिंह ने उसकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा.
"यस्."
"फ़िर तो यहाँ ममियां भी मौजूद होनी चाहिए."
"किसकी मम्मियां? हम लोगों की मम्मियां तो स्वर्गवासी हो चुकी हैं. क्या स्वर्ग जाने वाला व्यक्ति यहीं आता है?" रामसिंह ने हैरत से पूछा.
"मम्मियां नहीं उल्लू की दम, ममियां. पुराने समय में लोग मरने वालों के मसाला लगाकर उन्हें ताबूत में सुरक्षित कर देते थे. वे लाशें ही ममियां कहलाती हैं." शमशेर सिंह ने स्पष्टीकरण किया.
"मैं भी यही समझता हूँ कि यहाँ ममियां ज़रूर होंगी." प्रोफ़ेसर ने कहा, "और उनके साथ खजाना भी होगा. क्योंकि मिस्र के पिरामिडों में जहाँ जहाँ ममियां मिली थीं वहां वहां उनके साथ विशाल खजाने भी मिले थे." खजाने के ख्याल ने एक बार फिर उन्हें रोमांचित कर दिया.
आगे सुरंग पर एक मोड़ था. जैसे ही वे लोग मोड़ पर पहुंचे, उन्हें सुरंग का मुंह दिखाई पड़ने लगा. वहां से हलकी रोशनी अन्दर आ रही थी जिससे पता चल रहा था कि शाम होने वाली है.
"लो हम लोग सुरंग के मुंह तक तो पहुँच गए, यानी पहाडियों को पार कर गए." रामसिंह ने प्रसन्नता से कहा.
"इसमें दांत निकालने कि क्या बात है. हम लोग पहाडियां पार करने नहीं बल्कि खजाने की तलाश में आये है." शमशेर सिंह ने रामसिंह को घूरा.
"वह भी मिल जाएगा. वह ज़रूर सुरंग के मुंह पर नीचे बिखरा होगा. क्योंकि मुझे नीचे काफी गहराई मालूम हो रही है." रामसिंह ने कहा.
वे लोग सुरंग के मुंह तक पहुँच गए. और वहां से नीचे देख उनकी आशा निराशा में बदल गई. क्योंकि एक तो सुरंग का मुंह भूमि से काफ़ी ऊँचाई पर था और दूसरे वहां भूमि होने की बजाये एक बड़ा सा तालाब था, और यह तालाब पहाडी से एकदम लगा हुआ था. अतः नीचे उतरने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता था.
वे लोग कुछ देर तक एक दूसरे की शक्लें देखते रहे, फिर प्रोफ़ेसर ने नीचे पैर लटकाकर बैठते हुए कहा, "क्या ख्याल है, नीचे तालाब में उतरा जाए?"
"अरे नहीं. ऐसा विचार भी अपने मन में मत लाना. अगर तुम तालाब में उतर गए तो कहीं सहारा भी नहीं ले पाओगे. क्योंकि तालाब के चारों ओर चिकनी पहाडियाँ हैं. और उनपर हाथ जम ही नहीं सकता." शमशेर सिंह ने प्रोफ़ेसर के बाजू पूरे जकड़ लिए.
"मुझे तो अब झल्लाहट होने लगी है. अगर अब भी खजाना नहीं मिला तो मैं वापस लौट जाऊंगा. तुम लोग आराम से फिर खजाना खोजते रहना." रामसिंह बोला.
"वापस तो अब लौटना ही पड़ेगा. क्योंकि आगे का रास्ता पूरी तरह बंद है." शमशेर सिंह बोला.
"खैर छोड़ो इन बातों को. यह देखो, सामने का दृश्य कितना सुंदर है." प्रोफ़ेसर ने सामने देखते हुए कहा.
"तुम्हें यह ऊबड़ खाबड़ पहाडियां सुंदर दिखाई पड़ रही हैं और यहाँ हम लोगों को इतना क्रोध आ रहा है कि यदि ताजमहल भी सामने आ जाए तो हम लोगों को कुरूप महल दिखाई देगा." रामसिंह पूरी तरह झल्लाया हुआ था.
"खैर झल्लाहट तो मुझे भी महसूस हो रही है. लेकिन मैंने किताबों में पढ़ा था कि यदि पहाडियों के नीचे कोई नदी तालाब इत्यादि दिखाई दे रहा हो और उसमें डूबते सूरज का प्रतिबिम्ब दिख रहा हो , आकाश अपनी लालिमा बिखेर रहा हो तो वह दृश्य बहुत सुंदर माना जाता है."
"मुझे तो सबसे अच्छा दृश्य वह लगेगा जब खजाना मेरे सामने होगा." रामसिंह ने कहा.
"मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि या तो हम रास्ता भूल गए हैं या प्रोफ़ेसर ने कहीं से ग़लत नक्शा निकाल लिया है." शमशेर सिंह बोला.
"नक्शा तो ग़लत होने का सवाल ही नहीं. हाँ यह हो सकता है कि हम लोग रास्ता भूल गए हों. मैं एक बार फिर नक्शा देखे लेता हूँ." प्रोफ़ेसर ने जेब से नक्शा निकाला और देखने लगा.
"मेरी तो अब इसमें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है. यह नक्शा तो लग रहा है कि यहाँ का है ही नहीं."
"मरवा दिया प्रोफ़ेसर तूने हमें. मुझे पहले ही डर था कि यह नक्शा खजाने का नहीं है. अब इन पहाडियों से सर टकरायें या तालाब में कूद पड़ें." रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"अरे तो हिम्मत क्यों हार रहे हो." प्रोफ़ेसर ने ढाढस बंधाई, "अभी खजाना मिलने कि हमारी आशाएं जीवित हैं. मैंने थोडी देर पहले कहा था कि ये पहाडियां मिस्र के पिरामिडों से मिलती हैं. अतः उन पिरामिडों की तरह यहाँ भी हमें प्राचीन सभ्यता द्बारा छुपाया गया खजाना मिलना चाहिए."
"तो फिर यहाँ बैठकर अपनी किस्मत को रोने से क्या फायेदा. हमें दोबारा अन्दर चलकर कोशिश करनी चाहिए." शमशेर सिंह ने कहा.
वे तीनों उठ खड़े हुए और दोबारा सुरंग में घुसने लगे. जल्दी ही वे लोग फिर उसी कमरे में पहुँच गए. इस बार वहां रुकने की बजाये वे और आगे बढ़ने लगे. उनका विचार था कि पहाडियों से निकलकर फिर से कोई और रास्ता ढूँढा जाएगा. हो सकता है उस रास्ते से जाने पर खजाना मिल जाए.
कुछ दूर जाने के बाद अचानक उनके सामने एक दोराहा आ गया.
"यह दोराहा कहाँ से आ गया? जब हम लोग आ रहे थे तब तो यह था नहीं." रामसिंह ने कहा.
"यह कैसे हो सकता है कि आने में दोराहा न रहा हो. दोराहा तब भी था लेकिन हम लोग केवल आगे देखते हुए चल रहे थे अतः यह हमें दिखाई न दिया." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किंतु समस्या ये है कि यह कैसे पता चले कि हम लोग किस रास्ते से आये थे?" शमशेर सिंह ने असमंजस के भाव में कहा.
"हाँ. यह तो वास्तव में समस्या है. अगर हम लोगों ने ग़लत रास्ता पकड़ लिया तो शायद यहीं पहाडियों की सुरंगों में भटकते रह जायेंगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"फ़िर क्या किया जाए? कैसे पता लगाया जाए कि कौन सा सही रास्ता है?" रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"ऐसा करते हैं. टॉस कर लेते हैं. यदि हेड आया तो दाएँ ओर और यदि टेल आया तो बाएँ ओर चलेंगे. तुममें से किसी के पास रूपया होगा?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"मेरे पास है. यह लो." कहते हुए रामसिंह ने रूपया दिया.
"यह तो कागज़ का रूपया है उल्लू. टॉस करने के लिए सिक्का चाहिए."
"फ़िर तो सॉरी. हममें से किसी के पास रूपया नहीं है." दोनों ने एक साथ कहा.
"कोई तो सिक्का होगा तुम्हारे पास?"
"वास्तव में हम लोगों के पास कुछ नहीं है. हम लोग यह सोचकर खली हाथ आये थे कि खजाना मिलने पर अपने आप हाथ भर जायेंगे." शमशेर सिंह बोला.
"मेरी जेब में एक चवन्नी पड़ी थी. देखते हैं." कहते हुए रामसिंह ने अपनी जेब टटोली फिर निराशा से सर हिलाया, "लगता है यह वहां पर गिर गई जहाँ मैं कीचड़ में गिरा था."
"तुम लोगों के पास कुछ अक्ल नहीं है." प्रोफ़ेसर ने दोनों को घूरा, "ऐसा करते हैं कि मेरे पास जो किताब है, उससे टॉस कर लेते हैं."
......अगले सिल्वर जुबली एपिसोड में पढ़ें, कुछ ख़ास.
"ठीक है, ठीक है। अब शमशेर सिंह तुम बताओ कि अपने खजाने का क्या करोगे?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"सबसे पहले तो मैं किसी स्विस बैंक में अपना खाता खुलवाऊंगा और उसमें अपना खजाना जमा कर दूँगा।"
"और उसके बाद?""मुझे एडवेंचर का बहुत शौक है। इसलिए उसके बाद मैं दुनिया के खतरनाक स्थानों जैसे अफ्रीका के जंगलों, अमेज़न के बेसिन, अमेरिका के रेड इंडियन प्रदेशों में रोमांचपूर्ण यात्राएं करूंगा और ऐसे ऐसे साहसपूर्ण कारनामे करूंगा कि मेरा नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों द्वारा लिखा जाएगा."
"इन साहसपूर्ण कारनामों से पहले यदि एक साहसी कार्य कर जाओ तो मैं तुम्हारा नाम उसी समय इतिहास की किसी किताब में लिखवा दूँगा." रामसिंह ने कहा.
"एक क्या, चाहे जितने कारनामे कहो मैं कर के दिखला दूँ."
"बस तुम केवल अपना पलंग अपने कमरे की दीवार से मिलाकर उसपर सो जाओ."
"इसमें साहस दिखाने की क्या बात है? मैं समझा नहीं." प्रोफ़ेसर ने आश्चर्य से कहा.
"बात यह है कि विश्व के सबसे साहसी व्यक्ति को छिपकलियों से बहुत डर लगता है. अतः ये अपना पलंग दीवार से लगाकर नही सोते. क्योंकि इससे दीवार पर चढी छिपकलियों के पलंग पर गिरने का डर रहता है."
"अरे यार, तुम कहाँ की बात ले बैठे. छिपकलियों से तो खैर दुनिया का हर व्यक्ति डरता है. मैं भले ही छिपकलियों से डरूं, लेकिन शेर के मुंह में हाथ डालकर उसका जबडा चीर सकता हूँ, हाथी की सूंड मोड़कर उसे पटक सकता हूँ और बड़े से बड़े सूरमा से कुश्ती लड़कर उसे पछाड़ सकता हूँ."
"ठीक है, तुम ज़रूर यह सब काम कर सकते हो. लेकिन मैं यह तभी मानूंगा जब तुम वह सामने जा रहा चूहा पकड़ लोगे. " रामसिंह ने एक कोने में संकेत किया जहाँ एक चूहा बैठा हुआ टुकुर टुकुर इन लोगों की तरफ़ देख रहा था. वह शायद खाने की बू सूंघकर कहीं से निकल आया था.
"इसमें कौन सी बड़ी बात है. मैं अभी उसे पकड़ लेता हूँ." कहते हुए शमशेर सिंह उस तरफ़ धीरे धीरे बढ़ने लगा. उधर चूहा भी बड़े गौर से उसकी तरफ़ देखने लगा लगा था. वह ज़रा भी इधर उधर नहीं हिला था. शायद उसका मूड भी लड़ने का था.
शमशेर सिंह एकदम उसके पास पहुँच गया. अब चूहे के कान खड़े हो गए थे. और उसने अपनी ऑंखें शमशेर सिंह की आँखों में गडा दी थीं. शमशेर सिंह धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा. अचानक चूहे ने किसी कुशल कुंगफू मास्टर की तरह छलांग लगाई और शमशेर सिंह की दाईं हथेली चूमता हुआ पीछे फांदकर किसी पत्थर के पीछे गायब हो गया.
"उई मार डाला." शमशेर सिंह ज़ोर से चीखा और धप्प से पीछे की ओर गिरा. प्रोफ़ेसर और रामसिंह दौड़ कर उसके पास आये.
"क्या हुआ?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
शमशेर सिंह अब उठ बैठा था. उसने कांपते हुए कहा, "वह चूहा ज़रूर पिछले जन्म में कोई बदमाश था. मैं तो सोच भी नही सकता था कि वह मेरे ऊपर हमला कर देगा. मेरा खंजर कहाँ गया, मैं अभी जाकर उसे सबक सिखाता हूँ."
फ़िर प्रोफ़ेसर और रामसिंह ने बड़ी मुश्किल से उसकी मोटी कमर थामकर उसे रोका. वे लोग फिर आकर अपने स्थान पर बैठ गए. फिर रामसिंह ने कहा, "प्रोफ़ेसर, हम लोगों ने तो तुम्हें बता दिया कि खजाने का अपने हिस्सों का क्या क्या करेंगे. किंतु तुमने नहीं बताया. अब तुम बताओ."
"भाई मुझे तो एक ही शौक है. नए नए वैज्ञानिक प्रयोग करने का. उदाहरण के लिए मेरी दाढी बहुत तेज़ी से बढती है और मैं शेव बनाते बनाते परेशान रहता हूँ. इसलिए खजाना मिलने पर मैं एक ऐसी शेविंग क्रीम बनाने की सोच रहा हूँ जो चेहरे पर लगाने पर वहां के बाल पूरी तरह साफ कर देगी. और उस जगह पर फिर कभी बाल नहीं निकलेगा."
"और अगर वह शेविंग क्रीम गलती से सर में लग गई तो?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"ओह, ये तो मैंने सोचा ही नही था. आइडिया," प्रोफ़ेसर ने उछल कर कहा, "क्यों न ऐसा तेल बनाया जाए जो गंजों के बाल उगा दे. क्योंकि गंजे इस कारण काफ़ी चिंतित रहते हैं."
"विचार अच्छा है. उस तेल की बहुत बिक्री होगी. " रामसिंह ने कहा, "जब तुम उस तेल का आविष्कार कर लोगे तो मैं उसे बनाने की फैक्ट्री खोल लूँगा. हम तुम मिलकर काफी तरक्की करेंगे."
"उस फैक्ट्री में मैं क्या करूंगा?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"तुम्हें तेल भरी हुई शीशियों पर 'बालदार कोयला तेल' का लेबल लगाने का काम दे दिया जाएगा. मेरा ख्याल है तुम यह काम बहुत अच्छी तरह कर लोगे." रामसिंह बोला.
"इससे अच्छी तरह मैं यह काम करूंगा कि एक हौज़ में सारी शीशियाँ खाली करके तुम्हें उसमें डुबो दूँगा. और जब तुम वनमानुष बनकर बाहर निकलोगे तो बहुत अच्छे लगोगे." शमशेर सिंह ने क्रोधित होकर कहा.
"नाराज़ क्यों होने लगे मेरे प्यारे दोस्त." रामसिंह ने प्रेम से उसका सर हिलाया, "टी.वी. पर हमारे तेल का जो विज्ञापन दिया जाएगा, उसकी माडलिंग तो तुम्हें ही करनी है."
"क्या वास्तव में तुम मुझे इतना सुंदर समझते हो कि मैं विज्ञापन में मॉडल का रोल कर सकता हूँ?" शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.
"अरे तुम तो एलिजाबेथ टेलर से भी अधिक सुंदर हो." रामसिंह ने शमशेर सिंह की ठोडी में हाथ लगाकर उसे ऊंचा कर दिया.
"एलिजाबेथ टेलर नाम तो औरतों का मालूम हो रहा है. क्या तुमने किसी औरत से मेरी तुलना की है?" शमशेर सिंह ने शंकाग्रस्त होकर रामसिंह को देखा.
"अरे नहीं. टेलर का मतलब तो दर्जी होता है. और कोई औरत दर्जी कैसे हो सकती है? वह तो दर्जाइन होगी."
"अब तुम लोग अपनी अपनी बकवासें बंद करो और आगे बढ़ने का इरादा करो." प्रोफ़ेसर ने उठते हुए कहा.
शमशेर सिंह और रामसिंह भी उठ खड़े हुए. अचानक उस कमरे में हलकी रौशनी फैल गई.
"अरे वह सामने देखो, वह क्या है?" शमशेर सिंह ने एक कोने की ओर संकेत किया वे लोग उधर देखने लगे. वहां पर रौशनी के दो गोले पास पास चमक रहे थे.
"ये अंधेरे में रोशनी के गोले कहाँ से आ गए?" रामसिंह ने हैरत से कहा.
"मुझे लगता है जैसे यह किसी जानवर की ऑंखें हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किस जानवर की ऑंखें इतनी बड़ी होती हैं? उन दोनों रोशनी के गोलों का व्यास मेरे विचार से एक एक फिट होगा." रामसिंह ने कहा.
"चलो पास चल कर देखते हैं, अभी पता चल जायेगा." शमशेर सिंह ने सुझाव दिया.
"मेरा ख्याल है वहां चलना खतरे से खाली नहीं होगा. क्योंकि मेरा अब भी विचार है कि वह कोई जानवर है. मैंने किताबों में पढ़ा है कि प्राचीन समय में ऐसे जानवर पाये जाते थे जो हाथी से भी बीसियों गुना विशाल होते थे. उन्हें डाइनासोर कहते थे. मेरा विचार है कि वह कोई डाइनासोर है."
"आख़िर वह हिल डुल क्यों नहीं रहा है?" रामसिंह ने पूछा.
"मेरा ख्याल है उसने हम लोगों को देख लिया है. और हमारा शिकार करना चाहता है. इसलिए पोजीशन लेने के कारण वह हिल डुल नहीं रहा."
इस तरह वे लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन रोशनियों के लिए अटकलें लगाते रहे किंतु किसी की हिम्मत वहां जाने की नहीं हुई.
अचानक वह रोशनी गायब हो गई. और इसके साथ ही कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया.
"यह क्या हुआ? प्रोफ़ेसर, जल्दी टॉर्च जलाओ वरना अंधेरे में वह जानवर हम पर हमला कर देगा तो हम लोग कुछ नहीं कर सकेंगे." रामसिंह ने कहा.
प्रोफ़ेसर ने जल्दी से टॉर्च जलाकर उसकी रोशनी वहां पर डाली. किंतु अब वहां पर पत्थर की दीवारें दिख रही थीं. उस काल्पनिक जानवर का कहीं पता नहीं था.
"मेरा विचार हैं वह जानवर नहीं था बल्कि कुछ और था. आओ चलकर वहीँ देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा. फ़िर तीनों डरते डरते वहां पहुंचे. निरीक्षण करते हुए अचानक शमशेर सिंह की दृष्टि पीछे की ओर गई और उसने कहा, "ये देखो, यह क्या है?"
उनहोंने घूमकर पीछे देखा, तो उन्हें दो गोल रोशनदान दिखाई दिए. ये दोनों रोशनदान पास पास थे. वे उसके पास पहुंचे. दोनों रोशनदानों से आसमान साफ़ दिखाई पड़ रहा था.
"अब मेरी समझ में सारी बात आ गई है." प्रोफ़ेसर ने सर हिलाते हुए कहा.
"क्या समझ में आया?" रामसिंह ने पूछा.
"वह रोशनी जो हमें दिखी थी, वास्तव में सूर्य की रोशनी थी. जो इन रोशनदानों द्बारा सामने की दीवार पर पहुँची थी. फ़िर जब कुछ देर के बाद सूर्य की दिशा बदल गई तो वह रोशनी भी गायब हो गई."
"धत तेरे की. इतनी सी बात थी. और हम लोग पता नहीं क्या क्या सोच बैठे." रामसिंह ने अपने सर पर हाथ मारा.
"लेकिन अगर हम यह सारी बातें न सोचते तो शायद सही बात भी पता न कर पाते. मैंने एक किताब में पढ़ा है की कई ग़लत बातों पर अध्ययन के बाद ही मनुष्य सही निष्कर्ष पर पहुँचता है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"अब कौन से सही निष्कर्ष पर पहुंचे हो तुम?" रामसिंह ने पूछा.
"सुनो, यह रोशनदान इस तरह बने हैं कि मानो किसी मनुष्य का हाथ लगा हो. पत्थरों को एकदम गोलाई से काटकर यह रोशनदान बनाए गए हैं."
"इसी कारण इस प्राकृतिक कमरे में घुटन भी नहीं है." रामसिंह बोला.
"इसीलिये मैं यह सोचने पर विवश हूँ कि यह कमरा प्रकृतिक नहीं है, बल्कि यह किन्हीं मनुष्यों द्बारा बनाया गया है. और यह सुरंग भी प्राकृतिक नहीं है. इस कमरे और सुरंग के चारों ओर के पत्थर एकदम बराबर से कटे हैं. और यह कार्य प्राकृतिक नहीं हो सकता." प्रोफ़ेसर ने चारों ओर देखते हुए कहा.
"यह तो तुम सही कह रहे हो. किंतु इस सुनसान स्थान पर पहाड़ियों को काटकर यह सुरंग किसने बनाई होगी?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"यही बात मेरे विचारों की पुष्टि कर रही है. अर्थात यहाँ पर प्राचीन समय में कोई सभ्यता ज़रूर आबाद थी.
जिसने अपना खजाना छुपाने के लिए इस सुरंग का निर्माण किया. वह खजाना ज़रूर यहीं इसी प्रकार की किसी सुरंग या किसी कमरे में होगा."
"इसका मतलब नक्शे ने हम लोगों का सही मार्गदर्शन किया है. " रामसिंह ने कहा.
"मेरा तो यही विचार है. इसलिए सबसे पहले हम लोग इसी कमरे की अच्छी तरह तलाशी लेंगे फिर आगे बढ़ेंगे." प्रोफ़ेसर ने दोबारा अपना सामान नीचे रखते हुए कहा. फिर उन लोगों ने उस कमरे का एक एक कोना देखना शुरू कर दिया मानो गिरी हुई सुई ढूँढ रहे हों. हालाँकि उस कमरे में कोई ऐसी जगह नहीं थी जहाँ खजाना छुपाया जा सकता था. किंतु फिर भी चोर दरवाज़े की आशा में उन्होंने अपनी जगह पर जमे कई पत्थरों को हिलाने का प्रयत्न किया जो असफल रहा.
"मेरा ख्याल है प्रोफ़ेसर, यहाँ पर कोई खजाना नहीं छुपा है. इसलिए हम लोगों को आगे बढ़ना चाहिए." शमशेर सिंह ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा.
"ठीक कहते हो चलो आगे बढ़ते हैं."
एक बार फिर सुरंग शुरू हो गई थी. सुरंग में इतना अँधेरा था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था. अतः प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला रखी थी.
"मुझे इस समय पता नहीं क्यों मिस्र के पिरामिडों की याद आ रही है." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"यहाँ पर भला मिस्र के पिरामिडों को याद करने की क्या तुक है?" रामसिंह बोला.
"तुक तो है. अब देखो पहाडियाँ भी नीचे से चौडी होती हैं और ऊपर जाते जाते पतली होती जाती हैं. इसी तरह मिस्र के पिरामिड भी नीचे से चौडे हैं और ऊपर जाते जाते पतले होते गए हैं. मिस्र के पिरामिडों के अन्दर कई कक्ष बने हैं. और वे आपस में सुरंगों द्बारा जुड़े हैं. यहाँ भी हम लोगों ने एक कक्ष देखा था और वहां जाने का रास्ता भी सुरंग है. हो सकता है इस पहाड़ी में और भी इस प्रकार के कक्ष हों और वे आपस में इसी प्रकार की सुरंगों द्बारा जुड़े हों." प्रोफ़ेसर ने खड़े होकर पूरा लेक्चर दे डाला था
"तुम्हारा मतलब ये पहाडियाँ नहीं बल्कि पिरामिड हैं." शमशेर सिंह ने उसकी ओर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा.
"यस्."
"फ़िर तो यहाँ ममियां भी मौजूद होनी चाहिए."
"किसकी मम्मियां? हम लोगों की मम्मियां तो स्वर्गवासी हो चुकी हैं. क्या स्वर्ग जाने वाला व्यक्ति यहीं आता है?" रामसिंह ने हैरत से पूछा.
"मम्मियां नहीं उल्लू की दम, ममियां. पुराने समय में लोग मरने वालों के मसाला लगाकर उन्हें ताबूत में सुरक्षित कर देते थे. वे लाशें ही ममियां कहलाती हैं." शमशेर सिंह ने स्पष्टीकरण किया.
"मैं भी यही समझता हूँ कि यहाँ ममियां ज़रूर होंगी." प्रोफ़ेसर ने कहा, "और उनके साथ खजाना भी होगा. क्योंकि मिस्र के पिरामिडों में जहाँ जहाँ ममियां मिली थीं वहां वहां उनके साथ विशाल खजाने भी मिले थे." खजाने के ख्याल ने एक बार फिर उन्हें रोमांचित कर दिया.
आगे सुरंग पर एक मोड़ था. जैसे ही वे लोग मोड़ पर पहुंचे, उन्हें सुरंग का मुंह दिखाई पड़ने लगा. वहां से हलकी रोशनी अन्दर आ रही थी जिससे पता चल रहा था कि शाम होने वाली है.
"लो हम लोग सुरंग के मुंह तक तो पहुँच गए, यानी पहाडियों को पार कर गए." रामसिंह ने प्रसन्नता से कहा.
"इसमें दांत निकालने कि क्या बात है. हम लोग पहाडियां पार करने नहीं बल्कि खजाने की तलाश में आये है." शमशेर सिंह ने रामसिंह को घूरा.
"वह भी मिल जाएगा. वह ज़रूर सुरंग के मुंह पर नीचे बिखरा होगा. क्योंकि मुझे नीचे काफी गहराई मालूम हो रही है." रामसिंह ने कहा.
वे लोग सुरंग के मुंह तक पहुँच गए. और वहां से नीचे देख उनकी आशा निराशा में बदल गई. क्योंकि एक तो सुरंग का मुंह भूमि से काफ़ी ऊँचाई पर था और दूसरे वहां भूमि होने की बजाये एक बड़ा सा तालाब था, और यह तालाब पहाडी से एकदम लगा हुआ था. अतः नीचे उतरने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता था.
वे लोग कुछ देर तक एक दूसरे की शक्लें देखते रहे, फिर प्रोफ़ेसर ने नीचे पैर लटकाकर बैठते हुए कहा, "क्या ख्याल है, नीचे तालाब में उतरा जाए?"
"अरे नहीं. ऐसा विचार भी अपने मन में मत लाना. अगर तुम तालाब में उतर गए तो कहीं सहारा भी नहीं ले पाओगे. क्योंकि तालाब के चारों ओर चिकनी पहाडियाँ हैं. और उनपर हाथ जम ही नहीं सकता." शमशेर सिंह ने प्रोफ़ेसर के बाजू पूरे जकड़ लिए.
"मुझे तो अब झल्लाहट होने लगी है. अगर अब भी खजाना नहीं मिला तो मैं वापस लौट जाऊंगा. तुम लोग आराम से फिर खजाना खोजते रहना." रामसिंह बोला.
"वापस तो अब लौटना ही पड़ेगा. क्योंकि आगे का रास्ता पूरी तरह बंद है." शमशेर सिंह बोला.
"खैर छोड़ो इन बातों को. यह देखो, सामने का दृश्य कितना सुंदर है." प्रोफ़ेसर ने सामने देखते हुए कहा.
"तुम्हें यह ऊबड़ खाबड़ पहाडियां सुंदर दिखाई पड़ रही हैं और यहाँ हम लोगों को इतना क्रोध आ रहा है कि यदि ताजमहल भी सामने आ जाए तो हम लोगों को कुरूप महल दिखाई देगा." रामसिंह पूरी तरह झल्लाया हुआ था.
"खैर झल्लाहट तो मुझे भी महसूस हो रही है. लेकिन मैंने किताबों में पढ़ा था कि यदि पहाडियों के नीचे कोई नदी तालाब इत्यादि दिखाई दे रहा हो और उसमें डूबते सूरज का प्रतिबिम्ब दिख रहा हो , आकाश अपनी लालिमा बिखेर रहा हो तो वह दृश्य बहुत सुंदर माना जाता है."
"मुझे तो सबसे अच्छा दृश्य वह लगेगा जब खजाना मेरे सामने होगा." रामसिंह ने कहा.
"मुझे तो अब ऐसा लग रहा है कि या तो हम रास्ता भूल गए हैं या प्रोफ़ेसर ने कहीं से ग़लत नक्शा निकाल लिया है." शमशेर सिंह बोला.
"नक्शा तो ग़लत होने का सवाल ही नहीं. हाँ यह हो सकता है कि हम लोग रास्ता भूल गए हों. मैं एक बार फिर नक्शा देखे लेता हूँ." प्रोफ़ेसर ने जेब से नक्शा निकाला और देखने लगा.
"मेरी तो अब इसमें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है. यह नक्शा तो लग रहा है कि यहाँ का है ही नहीं."
"मरवा दिया प्रोफ़ेसर तूने हमें. मुझे पहले ही डर था कि यह नक्शा खजाने का नहीं है. अब इन पहाडियों से सर टकरायें या तालाब में कूद पड़ें." रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"अरे तो हिम्मत क्यों हार रहे हो." प्रोफ़ेसर ने ढाढस बंधाई, "अभी खजाना मिलने कि हमारी आशाएं जीवित हैं. मैंने थोडी देर पहले कहा था कि ये पहाडियां मिस्र के पिरामिडों से मिलती हैं. अतः उन पिरामिडों की तरह यहाँ भी हमें प्राचीन सभ्यता द्बारा छुपाया गया खजाना मिलना चाहिए."
"तो फिर यहाँ बैठकर अपनी किस्मत को रोने से क्या फायेदा. हमें दोबारा अन्दर चलकर कोशिश करनी चाहिए." शमशेर सिंह ने कहा.
वे तीनों उठ खड़े हुए और दोबारा सुरंग में घुसने लगे. जल्दी ही वे लोग फिर उसी कमरे में पहुँच गए. इस बार वहां रुकने की बजाये वे और आगे बढ़ने लगे. उनका विचार था कि पहाडियों से निकलकर फिर से कोई और रास्ता ढूँढा जाएगा. हो सकता है उस रास्ते से जाने पर खजाना मिल जाए.
कुछ दूर जाने के बाद अचानक उनके सामने एक दोराहा आ गया.
"यह दोराहा कहाँ से आ गया? जब हम लोग आ रहे थे तब तो यह था नहीं." रामसिंह ने कहा.
"यह कैसे हो सकता है कि आने में दोराहा न रहा हो. दोराहा तब भी था लेकिन हम लोग केवल आगे देखते हुए चल रहे थे अतः यह हमें दिखाई न दिया." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"किंतु समस्या ये है कि यह कैसे पता चले कि हम लोग किस रास्ते से आये थे?" शमशेर सिंह ने असमंजस के भाव में कहा.
"हाँ. यह तो वास्तव में समस्या है. अगर हम लोगों ने ग़लत रास्ता पकड़ लिया तो शायद यहीं पहाडियों की सुरंगों में भटकते रह जायेंगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"फ़िर क्या किया जाए? कैसे पता लगाया जाए कि कौन सा सही रास्ता है?" रामसिंह ने परेशान होकर कहा.
"ऐसा करते हैं. टॉस कर लेते हैं. यदि हेड आया तो दाएँ ओर और यदि टेल आया तो बाएँ ओर चलेंगे. तुममें से किसी के पास रूपया होगा?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"मेरे पास है. यह लो." कहते हुए रामसिंह ने रूपया दिया.
"यह तो कागज़ का रूपया है उल्लू. टॉस करने के लिए सिक्का चाहिए."
"फ़िर तो सॉरी. हममें से किसी के पास रूपया नहीं है." दोनों ने एक साथ कहा.
"कोई तो सिक्का होगा तुम्हारे पास?"
"वास्तव में हम लोगों के पास कुछ नहीं है. हम लोग यह सोचकर खली हाथ आये थे कि खजाना मिलने पर अपने आप हाथ भर जायेंगे." शमशेर सिंह बोला.
"मेरी जेब में एक चवन्नी पड़ी थी. देखते हैं." कहते हुए रामसिंह ने अपनी जेब टटोली फिर निराशा से सर हिलाया, "लगता है यह वहां पर गिर गई जहाँ मैं कीचड़ में गिरा था."
"तुम लोगों के पास कुछ अक्ल नहीं है." प्रोफ़ेसर ने दोनों को घूरा, "ऐसा करते हैं कि मेरे पास जो किताब है, उससे टॉस कर लेते हैं."
......अगले सिल्वर जुबली एपिसोड में पढ़ें, कुछ ख़ास.
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