खजाने-की-तलाश (Khazane ki Talash),,-03
कुछ
देर तक तो उनके होश ही न सही
हुए और जब उनका दिमाग कुछ सोचने
के अनुकूल हुआ तो सबसे ऊपर पड़े
हुए प्रोफ़ेसर ने भर्राई आवाज़
में कहा,
"हम
लोग जिंदा हैं या मर गए?"
"फिलहाल तो जिंदा हैं." बीच में पड़े हुए शमशेर सिंह ने कहा.
"फिलहाल तो जिंदा हैं." बीच में पड़े हुए शमशेर सिंह ने कहा.
"तो
फ़िर इस वीराने में मुझे इतना
नर्म बिस्तर कहाँ से मिल गया?"
"तुम्हें केवल बिस्तर मिला है और मुझे बिस्तर और रजाई दोनों मिल गए हैं. लेकिन रजाई बहुत भारी है."
अगर तुम लोग कुछ देर और मेरे ऊपर से नही हटे तो मेरी हड्डियाँ सुरमा बन जाएंगी. फ़िर बिना हड्डियों का और अच्छा बिस्तर बनेगा." सबसे नीचे पड़े हुए रामसिंह ने चीखकर फरियाद की. वे दोनों जल्दी से उठ बैठे.
सबसे बाद में रामसिंह हाय हाय करते उठा.
"क्या हुआ रामसिंह? क्या ज़्यादा चोट लग गई है?" शमशेर सिंह ने हमदर्दी से पूछा.
"अरे मुझे तो लगता है कि ज़रूर दो तीन जगह से फ्रेक्चर हो गया है." रामसिंह ने कराहते हुए कहा.
"दो मिनट रुको मैं देखता हूँ. यहाँ ज़रूर आयोडेक्स वाली घास मिल जायेगी." प्रोफ़ेसर ने जंगल की ओर रुख किया.
"रहने दो प्रोफ़ेसर, तुम्हारे इलाज से अच्छा है कि मैं बिना इलाज के रहूँ. वरना तुम मेरा भी वही हाल कर दोगे जो अपना किया था.
"ठीक है. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."
कुछ देर मौनता छाई रही फ़िर शमशेर सिंह बोला, "हमारा पहाड़ियों पर जाने का प्लान तो चौपट हो गया. अब क्या किया जाए?"
"हाँ. यह सब तुम लोगों की गलती से हुआ है. न एक साथ तीनों चढ़ते न रस्सी टूटती." फ़िर प्रोफ़ेसर ने रामसिंह से कहा, "ऐसा है तुम यहाँ कुछ देर आराम से रहो, हम लोग एक बार फ़िर पहाड़ियों में कोई रास्ता ढूँढ़ते हैं."
फ़िर वह दोनों रास्ता ढूँढने निकल गए और रामसिंह वहीँ बैठकर सूखी डबलरोटी चबाने लगा जो वह घर से अपने साथ लाया था. फ़िर उसने स्टोव जलाकर काफी चढा दी. कुछ देर बाद जब काफी तैयार हो गई उसी समय प्रोफ़ेसर और शमशेर सिंह वापस आ गए. उनके चेहरों से प्रसन्नता छलक रही थी.
"अरे वाह, तुमने तो काफी बनाकर हमारी खुशी दूनी कर दी." शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.
"क्यों क्या हुआ? किस बात की खुशी?"
"बात यह है कि हमें पहाड़ियों में एक रास्ता मिल गया है." प्रोफ़ेसर ने बताया.
"वाकई? किस जगह पर मिला?"
"उधर पश्चिम की ओर." शमशेर सिंह ने संकेत करते हुए कहा, "एक छोटा सा दर्रा है, जो पत्थर से बंद था. इस कारण हमारी दृष्टि उस पर नही पड़ी थी. बाद में गौर से देखने पर मालूम हुआ कि वह पत्थर पहाडी का हिस्सा नही है. बल्कि अलग से जमा हुआ है. हम लोगों ने थोड़ी कोशिश की और पत्थर को उसके स्थान से हटा दिया. अन्दर वह दर्रा एक सुरंग की तरह था जो काफ़ी लम्बी चली गई थी."
"क्या उस सुरंग का दूसरा सिरा पहाडी के दूसरी तरफ़ निकलता है?" रामसिंह ने पूछा.
"हम लोग उसके सिरे तक नही पहुँच सके. किंतु उस सुरंग की बनावट से मैंने यही अनुमान लगाया है कि वह पहाडी को पार करती है. हम लोग काफी पीकर उसी रास्ते से चलेंगे."
वे लोग काफी पीने लगे. काफी पीने के बाद प्रोफ़ेसर ने भूरे रंग की एक टहनी निकली और उसे अपने सूटकेस में रखने लगा.
"यह क्या है प्रोफ़ेसर?" रामसिंह ने पूछा.
"यह मुझे सुरंग के पास मिली थी. और इसके बारे में मेरा ख्याल है कि इसका सुरमा बनाकर आँखों में लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी का रोग दूर हो जाता है."
"प्रोफ़ेसर, तुम तो साइंस के एक्सपर्ट हो. एक बात बताओगे?" रामसिंह अपना सर खुजलाते हुए बोला.
"एक क्या हज़ार बातें पूछो." प्रोफ़ेसर ने खुश होकर कहा.
"मैंने सुना है कि मनुष्य पहले बन्दर था. क्या ये बात सच है?"
"बिल्कुल सच है. यह बात तो विश्व के महान वैज्ञानिक डार्विन ने बताई थी. उसने अपना पूरा जीवन बंदरों के बीच बिताने के बाद यह महान सिद्धांत दिया."
"तो फिर वह बन्दर से मनुष्य कैसे बना?" रामसिंह ने पूछा.
"मैंने एक किताब में पढ़ा है कि परमाणु युद्ध के बाद जातियों में परिवर्तन हो जाता है. इसलिए मेरा ख्याल है कि जब बन्दर बहुत विकसित हो गए तो उन्हें अपना बंदरों वाला चेहरा ख़राब लगने लगा. इसलिए उन्होंने अपनी जाति बदलने के लिए परमाणु युद्ध छेड़ दिया. उसके बाद उनकी जाति में परिवर्तन हो गया और वे बन्दर से मनुष्य बन गए."
"तुमने सही कहा प्रोफ़ेसर. मेरा ख्याल है कि आजकल भी इसी कारण परमाणु युद्ध की तैयारियां हो रही हैं. क्योंकि मनुष्य को अपनी शक्ल ख़राब लगने लगी है और वह इंसान से कुछ और बनना चाहता है." शमशेर सिंह ने अपनी राय ज़ाहिर की.
"तुमने बिल्कुल सही कहा शमशेर सिंह. मेरा विचार भी यही है. तुम ज़रूर मेरे शिष्य बनने के काबिल हो." प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह की पीठ थपथपाई.
"एक बात और बताओ, " रामसिंह ने कहा, "क्या मनुष्य वास्तव में चाँद पर पहुँच गया है?"
"अमरीका का तो यही कहना है. लेकिन मेरे ख्याल में वे लोग असली चाँद तक नही पहुँच पाए. बल्कि किसी नकली चाँद पर धोखे से उतर गए. क्योंकि मैंने किताबों में पढ़ा है कि चाँद बहुत सुंदर होता है.
जबकि अमरीका वाले कहते हैं कि वह बहुत ऊबड़ खाबड़ और बदसूरत है. जहाँ न तो हवा है और न पानी. तो बताओ फिर वह असली चाँद कैसे हो सकता है?"
"वैसे चाँद पर जाने से फायेदा क्या हो सकता है?" रामसिंह ने दोबारा पूछा.
"बहुत फाएदे हैं. उदाहरण के लिए तुम यहाँ खड़े हो तब तुम्हें अधिक दूर दिखेगा या पहाडी पर चढ़ जाओगे तब ज़्यादा दूर देख पाओगे?"
"जब पहाडी पर चढूँगा तब ज़्यादा दूर दिखेगा."
"तो इसी तरह चूंकि चाँद बहुत अधिक दूर है अतः उससे पूरी पृथ्वी दिखेगी. इस तरह अगर तुम्हें किसी को ढूँढना है तो कोई समस्या नही. चाँद पर चढ़ जाओ तो पृथ्वी पर जो कुछ है सब दिखेगा. यदि पुलिस को अपराधियों को ढूँढना होगा तो चाँद पर चढ़कर आराम से ढूँढ लेगी और जाकर हथकडी पहना देगी. कहीं पर कोई खजाना छुपा होगा तो चाँद पर चढ़ने के बाद दिख जाएगा. इसके अलावा आगरा का ताजमहल, पेरिस का एफिल टावर, इंग्लैंड का लन्दन टावर और न्यूयार्क की स्वतंत्रता की मूर्ति के एक साथ दर्शन चाँद पर बैठे बैठे हो जाएंगे."
"तो इस तरह तो हमें चाँद की हर वस्तु पृथ्वी से दिखनी चाहिए. ऐसा क्यों नहीं होता?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"चाँद पर कुछ है ही नही तो दिखेगा क्या. उसपर केवल चरखा कातती हुई बुढ़िया है और वही हमें दिखती है." प्रोफ़ेसर ने स्पष्टीकरण किया.
"और क्या क्या हैं चाँद पर जाने के फायदे?"
"एक ये भी फायेदा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम में निराश होकर अपनी प्रेमिका को संसार छोड़ने की धमकी देता है तो वह चाँद पर जा सकता है. इस तरह वह बिना आत्महत्या किए अपनी धमकी पूरी कर देगा. और सबसे बड़ा फायेदा तो यह है कि चाँद पर न तो हवा है न पानी. अतः चाँद पर रहने वाले लोगों का शरीर धीरे धीरे इन चीज़ों के बगैर रहने के अनुकूल हो जाएगा. अतः वे पृथ्वी पर भी बिना हवा पानी के रह सकेंगे. इस प्रकार न तो जल प्रदूषण कि समस्या रह जाएगी और न वायु प्रदूषण की.
अरे चाँद पर रहने के तो बीसियों फायेदे हैं. कहाँ तक गिनाऊं. मैं तो सोच रहा हूँ कि चाँद पर जाने के लाभ टाइटिल से एक किताब लिख डालूँ."
"तो तुम अपनी यह सोच पूरी कर डालो. अगर यह किताब मार्केट में आ गई तो ज़रूर बेस्ट सेलर होगी, और उसके बाद चाँद पर जाने के लिए इतनी भीड़ लग जायेगी कि रॉकेट मिलने मुश्किल हो जायेंगे." शमशेर सिंह ने कहा.
"और रॉकेट बनाने वालों के वारे न्यारे हो जायेंगे. हो सकता है कि वे तुम्हें अपनी बिक्री बढ़ने के लिए इनाम विनाम दे डालें." रामसिंह ने प्रोफ़ेसर के हौसलों को और पानी पर चढाया.
"वैसे मेरा यार है काबिल आदमी." शमशेर सिंह ने कहा, "अगर यह कोशिश करे तो नोबुल प्राइज़ ज़रूर प्राप्त कर लेगा."
"मैं नोबिल प्राइज़ क्यों प्राप्त करुँ. देख लेना एक दिन आएगा जब मेरे नाम से पुरूस्कार बटेंगे." प्रोफ़ेसर ने अकड़ कर कहा.
अब तक वे लोग सुरंग के मुंह तक पहुँच चुके थे.
"यार, यह तो काफी लम्बी सुरंग लग रही है. अन्दर एकदम अँधेरा है." रामसिंह ने कहा.
"लम्बी तो होगी ही. आख़िर यह हमें पहाड़ियों के दूसरी ओर ले जायेगी." शमशेर सिंह ने कहा.वे लोग सुरंग के अन्दर घुसते चले गए. उनके घुसने के साथ ही कुछ छुपे चमगादड़ इधर उधर भागने लगे. कुछ इनसे भी आकर टकराए.
"यार प्रोफ़ेसर, टॉर्च जला लो. वरना ये चमगादड़ हमें अपना शिकार समझकर खा जायेंगे." रामसिंह ने कहा. प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला ली. टॉर्च की रौशनी में मकड़ियों के काफी बड़े बड़े जाले चमक रहे थे. यह प्राकृतिक सुरंग मकड़ियों और चमगादडों का निवास थी.
वे लोग जाले साफ करते हुए आगे बढ़ने लगे. चमगादड़ रौशनी देखकर फिर अपने अपने बिलों में छुप गए थे.
"यार प्रोफ़ेसर, ये चमगादड़ रौशनी में क्यों नही निकलते? अंधेरे में ही क्यों निकलते हैं?" रामसिंह ने मिचमिची दृष्टि से इधर उधर देखते हुए पूछा.
"बात यह है कि चमगादड़ को नई नई चीज़ें खाने का बहुत शौक था. इसी शौक में एक दिन वह अफीम की पत्ती खा गया. फिर क्या था, उसको दिन ही में रंगीन सपने दिखाई देने लगे. उसके बाद वह रोजाना अफीम की पत्ती खाने लगा. और खाकर किसी अंधेरे कोने में पड़ा रहता था. धीरे धीरे उसकी आँखों को सूर्य की रौशनी असहनीय लगने लगी और वह पूरी तरह अंधेरे में रहने लगा."
"यह तुमने कहाँ पढ़ा है?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"यह एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक लैमार्क का सिद्धांत है कि प्राणियों में जिन अंगों का इस्तेमाल नही होता वे धीरे धीरे समाप्त होते जाते हैं और जिनका अधिक इस्तेमाल होता है वे बलिष्ट होते जाते हैं."
"यह
बात तो शत प्रतिशत सत्य है."
शमशेर
सिंह ने कहा,
"मेरे
पड़ोस में एक पहलवान जी रहते
हैं,
जिनकी
खोपडी एकदम सफाचट है,
क्योंकि
वे खोपडी का इस्तेमाल बिल्कुल
नही करते.
बल्कि
जहाँ अक्ल के इस्तेमाल की बात
आती है,
वहां
भी वे जूतेलात को काम में लाते
हैं.
जब
वो अपनी लड़की की शादी एक जगह
कर रहे थे तो उसी समय लड़के ने
मोटरसाइकिल की मांग कर दी.
वे
बहुत परेशान हुए.
लोगों
ने राए दी कि थोड़ा अक्ल से काम
लेते हुए लड़के को बहला दीजिये
वरना बारात लौट जायेगी तो
बहुत बदनामी होगी.
उन्होंने झपट कर लड़के का गिरेबान पकड़ा और उठाकर पटक दिया. बोले कमबख्त,तेरे तो होने वाले बच्चों ने भी कभी मोटरसाइकिल कि शकल नही देखी होगी. आइन्दा अगर तूने मोटरसाइकिल कि मांग कि तो वो पटखनियाँ दूँगा कि तुझे पंक्चर साइकिल कि याद आने लगेगी. वो लड़का इतना घबराया कि बोलना ही भूल गया. और तब तक नही बोला जब तक सही सलामत दुल्हन को लेकर घर नही पहुँच गया."
"बाद में तो ससुराल वालों ने पहलवान कि लड़की को बहुत सताया होगा." प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"ऐसा कुछ नही हुआ. ससुराल वालों के सारे अरमान धरे रह गए. क्योंकि पहलवान की बेटी भी अखाड़े में दंड बैठक लगाये हुए थी. कोई घूर कर भी देखता था तो वह पटखनी देती थी कि घूरने वाला चारों खाने चित हो जाता था."
"खैर यह ख्याल अच्छा है कि दहेज़ समस्या के हल के लिए लड़कियों को पहलवान बनाया जाए. ताकि वह अपनी रक्षा ख़ुद कर सकें." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"यार, यह सुरंग कितनी लम्बी है कि ख़त्म होने में ही नही आ रही है." रामसिंह ने कहा.
"अभी कैसे ख़त्म होगी. अभी अभी तो हम लोग चले हैं. मेरा ख्याल है कि अभी हम पहाडी के बीचोंबीच हैं." प्रोफ़ेसर ने ख्याल ज़ाहिर किया.
वे लोग आगे बढ़ते रहे, फिर अचानक यह सुरंग कमरे की तरह चौड़ी हो गई. यहाँ पर मालूम हो रहा था जैसे इस कमरे में आमने सामने दो दरवाज़े हैं. एक वो जिससे ये लोग दाखिल हुए और दूसरा सामने नज़र आ रहा था.
"यह जगह ठहरने के लिए अच्छी है. अब यहाँ रूककर कुछ खा पी लिया जाए. मेरे तो भूख लगने लगी है." शमशेर सिंह ने कहा.
फिर वे लोग वहीँ बैठ गए. प्रोफ़ेसर ने इधर उधर देखते हुए कहा, "प्रकृति भी कैसे कैसे करिश्में दिखाती है. अब यही देखो, पहाड़ियों के बीच सुरंग खोदकर एक कमरा तैयार कर दिया. मानो इंसानी हाथों ने संवारा है."
"क्या ऐसा नही हो सकता कि वास्तव में किसी ने सुरंग खोदकर यह कमरा बना दिया हो?" रामसिंह ने अनुमान लगाया.
भला इस सुनसान जगह पर कोई ऐसा क्यों करने लगा? वैसे लगता तो कुछ ऐसा ही है."
"रामसिंह, अगर तुम्हें खजाना मिल जाए तो तुम उसका क्या करोगे?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"मेरे दिमाग में तो खजाने को लेकर कई योजनायें हैं."
"कुछ हम लोगों को भी तो बताओ."
"एक तो मैं ऐसा सामान बनाने की फैक्ट्री लगाने की सोच रहा हूँ जिसमें फायदा ही फायदा है. क्योंकि उस सामान की मांग तो बहुत है लेकिन मैंने आजतक ऐसी कोई कंपनी नहीं देखी जो उसका उत्पादन करती हो. इसलिए इसमें कोई कम्पटीशन नहीं होगा और फायदा ही फायदा होगा."
"ऐसा कौन सा सामान है जिसकी डिमांड बहुत है लेकिन बनाता कोई नहीं." प्रोफ़ेसर ने चकराकर पूछा.
"मैं फैशन बनाने की फैक्ट्री खोलूँगा. क्योंकि मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मैं इस फैशन का दीवाना हूँ, मैं उस फैशन का दीवाना हूँ. लेकिन मैंने आजतक किसी को नही सुना कि उसने फैशन बनाने की फैक्ट्री खोली है."
"विचार तो बहुत अच्छा है तुम्हारा. लेकिन क्या तुमने कभी फैशन को देखा है?"
"देखा तो नही, किंतु मेरा विचार है कि वह कोई चलने वाली वस्तु है. क्योंकि मैंने अक्सर सुना है कि आजकल बड़े बालों का फैशन चल रहा है, आजकल लुंगी पहनने का फैशन चल रहा है. मेरा ख्याल है कि फैशन कपड़े भी पहनता है, बाल भी रखता है. और साल दो साल में समान वेश में चक्कर भी लगाता है."
"तुमने अनुमान तो सही लगाए हैं. किंतु माई डियर, फैशन कोई फैक्ट्री में बनने वाली चीज़ नही है. बल्कि यह दिमाग का फितूर होता है. और अक्सर इसे वे लोग बनाते हैं जो अपने नौसिखियापन में कोई गलती कर बैठते हैं. यानी ये जो तुम कपड़े पहने हो इसको बनाने में अगर कोई दर्जी गलती से कमीज़ की बजाये पैंट सिल देता तो वह एक फैशन कहलाता." शमशेर सिंह ने बताया.
"ओह, फ़िर तो मुझे किसी और बिजनेस के बारे में सोचना पड़ेगा. वैसे मेरा ख्याल है कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो."
"खैर बने हुए को बनाने की कोई ज़रूरत नही होती. यह बताओ, और क्या क्या तुम्हारे विचार हैं?" शमशेर सिंह ने फ़िर पूछा.
"मुझे एकता बहुत पसंद है. इसलिए मैं एक ऐसा घर बनाऊंगा, जिसका नक्शा मस्जिद जैसा होगा. उसमें भगवान् की मूर्तियाँ भी होंगी. ईसाइयों का क्रास भी होगा और गुरुग्रंथसाहब भी होंगे. यह घर विभिन्न धर्मों की एकता का अनोखा उदाहरण होगा."
"गुड गुड, क्या विचार है." प्रोफ़ेसर ने ताली बजाकर कहा, "फ़िर सौ दो सौ सालों बाद जब तुम्हारी हड्डियाँ भी सड़ गल जाएँगी, उस समय तुम्हारे उस एकता के केन्द्र को हिंदू मन्दिर कहेंगे, मुसलमान मस्जिद का दावा करेंगे, सिख अपने गुरूद्वारे से चिपट जायेंगे और इसाई अपने चर्च की मांग करेंगे. उस समय धर्मों तो क्या अधर्मों के भी हाथों से एकता के तोते उड़ जायेंगे."
"तुम्हें केवल बिस्तर मिला है और मुझे बिस्तर और रजाई दोनों मिल गए हैं. लेकिन रजाई बहुत भारी है."
अगर तुम लोग कुछ देर और मेरे ऊपर से नही हटे तो मेरी हड्डियाँ सुरमा बन जाएंगी. फ़िर बिना हड्डियों का और अच्छा बिस्तर बनेगा." सबसे नीचे पड़े हुए रामसिंह ने चीखकर फरियाद की. वे दोनों जल्दी से उठ बैठे.
सबसे बाद में रामसिंह हाय हाय करते उठा.
"क्या हुआ रामसिंह? क्या ज़्यादा चोट लग गई है?" शमशेर सिंह ने हमदर्दी से पूछा.
"अरे मुझे तो लगता है कि ज़रूर दो तीन जगह से फ्रेक्चर हो गया है." रामसिंह ने कराहते हुए कहा.
"दो मिनट रुको मैं देखता हूँ. यहाँ ज़रूर आयोडेक्स वाली घास मिल जायेगी." प्रोफ़ेसर ने जंगल की ओर रुख किया.
"रहने दो प्रोफ़ेसर, तुम्हारे इलाज से अच्छा है कि मैं बिना इलाज के रहूँ. वरना तुम मेरा भी वही हाल कर दोगे जो अपना किया था.
"ठीक है. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."
कुछ देर मौनता छाई रही फ़िर शमशेर सिंह बोला, "हमारा पहाड़ियों पर जाने का प्लान तो चौपट हो गया. अब क्या किया जाए?"
"हाँ. यह सब तुम लोगों की गलती से हुआ है. न एक साथ तीनों चढ़ते न रस्सी टूटती." फ़िर प्रोफ़ेसर ने रामसिंह से कहा, "ऐसा है तुम यहाँ कुछ देर आराम से रहो, हम लोग एक बार फ़िर पहाड़ियों में कोई रास्ता ढूँढ़ते हैं."
फ़िर वह दोनों रास्ता ढूँढने निकल गए और रामसिंह वहीँ बैठकर सूखी डबलरोटी चबाने लगा जो वह घर से अपने साथ लाया था. फ़िर उसने स्टोव जलाकर काफी चढा दी. कुछ देर बाद जब काफी तैयार हो गई उसी समय प्रोफ़ेसर और शमशेर सिंह वापस आ गए. उनके चेहरों से प्रसन्नता छलक रही थी.
"अरे वाह, तुमने तो काफी बनाकर हमारी खुशी दूनी कर दी." शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.
"क्यों क्या हुआ? किस बात की खुशी?"
"बात यह है कि हमें पहाड़ियों में एक रास्ता मिल गया है." प्रोफ़ेसर ने बताया.
"वाकई? किस जगह पर मिला?"
"उधर पश्चिम की ओर." शमशेर सिंह ने संकेत करते हुए कहा, "एक छोटा सा दर्रा है, जो पत्थर से बंद था. इस कारण हमारी दृष्टि उस पर नही पड़ी थी. बाद में गौर से देखने पर मालूम हुआ कि वह पत्थर पहाडी का हिस्सा नही है. बल्कि अलग से जमा हुआ है. हम लोगों ने थोड़ी कोशिश की और पत्थर को उसके स्थान से हटा दिया. अन्दर वह दर्रा एक सुरंग की तरह था जो काफ़ी लम्बी चली गई थी."
"क्या उस सुरंग का दूसरा सिरा पहाडी के दूसरी तरफ़ निकलता है?" रामसिंह ने पूछा.
"हम लोग उसके सिरे तक नही पहुँच सके. किंतु उस सुरंग की बनावट से मैंने यही अनुमान लगाया है कि वह पहाडी को पार करती है. हम लोग काफी पीकर उसी रास्ते से चलेंगे."
वे लोग काफी पीने लगे. काफी पीने के बाद प्रोफ़ेसर ने भूरे रंग की एक टहनी निकली और उसे अपने सूटकेस में रखने लगा.
"यह क्या है प्रोफ़ेसर?" रामसिंह ने पूछा.
"यह मुझे सुरंग के पास मिली थी. और इसके बारे में मेरा ख्याल है कि इसका सुरमा बनाकर आँखों में लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी का रोग दूर हो जाता है."
"प्रोफ़ेसर, तुम तो साइंस के एक्सपर्ट हो. एक बात बताओगे?" रामसिंह अपना सर खुजलाते हुए बोला.
"एक क्या हज़ार बातें पूछो." प्रोफ़ेसर ने खुश होकर कहा.
"मैंने सुना है कि मनुष्य पहले बन्दर था. क्या ये बात सच है?"
"बिल्कुल सच है. यह बात तो विश्व के महान वैज्ञानिक डार्विन ने बताई थी. उसने अपना पूरा जीवन बंदरों के बीच बिताने के बाद यह महान सिद्धांत दिया."
"तो फिर वह बन्दर से मनुष्य कैसे बना?" रामसिंह ने पूछा.
"मैंने एक किताब में पढ़ा है कि परमाणु युद्ध के बाद जातियों में परिवर्तन हो जाता है. इसलिए मेरा ख्याल है कि जब बन्दर बहुत विकसित हो गए तो उन्हें अपना बंदरों वाला चेहरा ख़राब लगने लगा. इसलिए उन्होंने अपनी जाति बदलने के लिए परमाणु युद्ध छेड़ दिया. उसके बाद उनकी जाति में परिवर्तन हो गया और वे बन्दर से मनुष्य बन गए."
"तुमने सही कहा प्रोफ़ेसर. मेरा ख्याल है कि आजकल भी इसी कारण परमाणु युद्ध की तैयारियां हो रही हैं. क्योंकि मनुष्य को अपनी शक्ल ख़राब लगने लगी है और वह इंसान से कुछ और बनना चाहता है." शमशेर सिंह ने अपनी राय ज़ाहिर की.
"तुमने बिल्कुल सही कहा शमशेर सिंह. मेरा विचार भी यही है. तुम ज़रूर मेरे शिष्य बनने के काबिल हो." प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह की पीठ थपथपाई.
"एक बात और बताओ, " रामसिंह ने कहा, "क्या मनुष्य वास्तव में चाँद पर पहुँच गया है?"
"अमरीका का तो यही कहना है. लेकिन मेरे ख्याल में वे लोग असली चाँद तक नही पहुँच पाए. बल्कि किसी नकली चाँद पर धोखे से उतर गए. क्योंकि मैंने किताबों में पढ़ा है कि चाँद बहुत सुंदर होता है.
जबकि अमरीका वाले कहते हैं कि वह बहुत ऊबड़ खाबड़ और बदसूरत है. जहाँ न तो हवा है और न पानी. तो बताओ फिर वह असली चाँद कैसे हो सकता है?"
"वैसे चाँद पर जाने से फायेदा क्या हो सकता है?" रामसिंह ने दोबारा पूछा.
"बहुत फाएदे हैं. उदाहरण के लिए तुम यहाँ खड़े हो तब तुम्हें अधिक दूर दिखेगा या पहाडी पर चढ़ जाओगे तब ज़्यादा दूर देख पाओगे?"
"जब पहाडी पर चढूँगा तब ज़्यादा दूर दिखेगा."
"तो इसी तरह चूंकि चाँद बहुत अधिक दूर है अतः उससे पूरी पृथ्वी दिखेगी. इस तरह अगर तुम्हें किसी को ढूँढना है तो कोई समस्या नही. चाँद पर चढ़ जाओ तो पृथ्वी पर जो कुछ है सब दिखेगा. यदि पुलिस को अपराधियों को ढूँढना होगा तो चाँद पर चढ़कर आराम से ढूँढ लेगी और जाकर हथकडी पहना देगी. कहीं पर कोई खजाना छुपा होगा तो चाँद पर चढ़ने के बाद दिख जाएगा. इसके अलावा आगरा का ताजमहल, पेरिस का एफिल टावर, इंग्लैंड का लन्दन टावर और न्यूयार्क की स्वतंत्रता की मूर्ति के एक साथ दर्शन चाँद पर बैठे बैठे हो जाएंगे."
"तो इस तरह तो हमें चाँद की हर वस्तु पृथ्वी से दिखनी चाहिए. ऐसा क्यों नहीं होता?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"चाँद पर कुछ है ही नही तो दिखेगा क्या. उसपर केवल चरखा कातती हुई बुढ़िया है और वही हमें दिखती है." प्रोफ़ेसर ने स्पष्टीकरण किया.
"और क्या क्या हैं चाँद पर जाने के फायदे?"
"एक ये भी फायेदा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम में निराश होकर अपनी प्रेमिका को संसार छोड़ने की धमकी देता है तो वह चाँद पर जा सकता है. इस तरह वह बिना आत्महत्या किए अपनी धमकी पूरी कर देगा. और सबसे बड़ा फायेदा तो यह है कि चाँद पर न तो हवा है न पानी. अतः चाँद पर रहने वाले लोगों का शरीर धीरे धीरे इन चीज़ों के बगैर रहने के अनुकूल हो जाएगा. अतः वे पृथ्वी पर भी बिना हवा पानी के रह सकेंगे. इस प्रकार न तो जल प्रदूषण कि समस्या रह जाएगी और न वायु प्रदूषण की.
अरे चाँद पर रहने के तो बीसियों फायेदे हैं. कहाँ तक गिनाऊं. मैं तो सोच रहा हूँ कि चाँद पर जाने के लाभ टाइटिल से एक किताब लिख डालूँ."
"तो तुम अपनी यह सोच पूरी कर डालो. अगर यह किताब मार्केट में आ गई तो ज़रूर बेस्ट सेलर होगी, और उसके बाद चाँद पर जाने के लिए इतनी भीड़ लग जायेगी कि रॉकेट मिलने मुश्किल हो जायेंगे." शमशेर सिंह ने कहा.
"और रॉकेट बनाने वालों के वारे न्यारे हो जायेंगे. हो सकता है कि वे तुम्हें अपनी बिक्री बढ़ने के लिए इनाम विनाम दे डालें." रामसिंह ने प्रोफ़ेसर के हौसलों को और पानी पर चढाया.
"वैसे मेरा यार है काबिल आदमी." शमशेर सिंह ने कहा, "अगर यह कोशिश करे तो नोबुल प्राइज़ ज़रूर प्राप्त कर लेगा."
"मैं नोबिल प्राइज़ क्यों प्राप्त करुँ. देख लेना एक दिन आएगा जब मेरे नाम से पुरूस्कार बटेंगे." प्रोफ़ेसर ने अकड़ कर कहा.
अब तक वे लोग सुरंग के मुंह तक पहुँच चुके थे.
"यार, यह तो काफी लम्बी सुरंग लग रही है. अन्दर एकदम अँधेरा है." रामसिंह ने कहा.
"लम्बी तो होगी ही. आख़िर यह हमें पहाड़ियों के दूसरी ओर ले जायेगी." शमशेर सिंह ने कहा.वे लोग सुरंग के अन्दर घुसते चले गए. उनके घुसने के साथ ही कुछ छुपे चमगादड़ इधर उधर भागने लगे. कुछ इनसे भी आकर टकराए.
"यार प्रोफ़ेसर, टॉर्च जला लो. वरना ये चमगादड़ हमें अपना शिकार समझकर खा जायेंगे." रामसिंह ने कहा. प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला ली. टॉर्च की रौशनी में मकड़ियों के काफी बड़े बड़े जाले चमक रहे थे. यह प्राकृतिक सुरंग मकड़ियों और चमगादडों का निवास थी.
वे लोग जाले साफ करते हुए आगे बढ़ने लगे. चमगादड़ रौशनी देखकर फिर अपने अपने बिलों में छुप गए थे.
"यार प्रोफ़ेसर, ये चमगादड़ रौशनी में क्यों नही निकलते? अंधेरे में ही क्यों निकलते हैं?" रामसिंह ने मिचमिची दृष्टि से इधर उधर देखते हुए पूछा.
"बात यह है कि चमगादड़ को नई नई चीज़ें खाने का बहुत शौक था. इसी शौक में एक दिन वह अफीम की पत्ती खा गया. फिर क्या था, उसको दिन ही में रंगीन सपने दिखाई देने लगे. उसके बाद वह रोजाना अफीम की पत्ती खाने लगा. और खाकर किसी अंधेरे कोने में पड़ा रहता था. धीरे धीरे उसकी आँखों को सूर्य की रौशनी असहनीय लगने लगी और वह पूरी तरह अंधेरे में रहने लगा."
"यह तुमने कहाँ पढ़ा है?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"यह एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक लैमार्क का सिद्धांत है कि प्राणियों में जिन अंगों का इस्तेमाल नही होता वे धीरे धीरे समाप्त होते जाते हैं और जिनका अधिक इस्तेमाल होता है वे बलिष्ट होते जाते हैं."
उन्होंने झपट कर लड़के का गिरेबान पकड़ा और उठाकर पटक दिया. बोले कमबख्त,तेरे तो होने वाले बच्चों ने भी कभी मोटरसाइकिल कि शकल नही देखी होगी. आइन्दा अगर तूने मोटरसाइकिल कि मांग कि तो वो पटखनियाँ दूँगा कि तुझे पंक्चर साइकिल कि याद आने लगेगी. वो लड़का इतना घबराया कि बोलना ही भूल गया. और तब तक नही बोला जब तक सही सलामत दुल्हन को लेकर घर नही पहुँच गया."
"बाद में तो ससुराल वालों ने पहलवान कि लड़की को बहुत सताया होगा." प्रोफ़ेसर ने पूछा.
"ऐसा कुछ नही हुआ. ससुराल वालों के सारे अरमान धरे रह गए. क्योंकि पहलवान की बेटी भी अखाड़े में दंड बैठक लगाये हुए थी. कोई घूर कर भी देखता था तो वह पटखनी देती थी कि घूरने वाला चारों खाने चित हो जाता था."
"खैर यह ख्याल अच्छा है कि दहेज़ समस्या के हल के लिए लड़कियों को पहलवान बनाया जाए. ताकि वह अपनी रक्षा ख़ुद कर सकें." प्रोफ़ेसर ने कहा.
"यार, यह सुरंग कितनी लम्बी है कि ख़त्म होने में ही नही आ रही है." रामसिंह ने कहा.
"अभी कैसे ख़त्म होगी. अभी अभी तो हम लोग चले हैं. मेरा ख्याल है कि अभी हम पहाडी के बीचोंबीच हैं." प्रोफ़ेसर ने ख्याल ज़ाहिर किया.
वे लोग आगे बढ़ते रहे, फिर अचानक यह सुरंग कमरे की तरह चौड़ी हो गई. यहाँ पर मालूम हो रहा था जैसे इस कमरे में आमने सामने दो दरवाज़े हैं. एक वो जिससे ये लोग दाखिल हुए और दूसरा सामने नज़र आ रहा था.
"यह जगह ठहरने के लिए अच्छी है. अब यहाँ रूककर कुछ खा पी लिया जाए. मेरे तो भूख लगने लगी है." शमशेर सिंह ने कहा.
फिर वे लोग वहीँ बैठ गए. प्रोफ़ेसर ने इधर उधर देखते हुए कहा, "प्रकृति भी कैसे कैसे करिश्में दिखाती है. अब यही देखो, पहाड़ियों के बीच सुरंग खोदकर एक कमरा तैयार कर दिया. मानो इंसानी हाथों ने संवारा है."
"क्या ऐसा नही हो सकता कि वास्तव में किसी ने सुरंग खोदकर यह कमरा बना दिया हो?" रामसिंह ने अनुमान लगाया.
भला इस सुनसान जगह पर कोई ऐसा क्यों करने लगा? वैसे लगता तो कुछ ऐसा ही है."
"रामसिंह, अगर तुम्हें खजाना मिल जाए तो तुम उसका क्या करोगे?" शमशेर सिंह ने पूछा.
"मेरे दिमाग में तो खजाने को लेकर कई योजनायें हैं."
"कुछ हम लोगों को भी तो बताओ."
"एक तो मैं ऐसा सामान बनाने की फैक्ट्री लगाने की सोच रहा हूँ जिसमें फायदा ही फायदा है. क्योंकि उस सामान की मांग तो बहुत है लेकिन मैंने आजतक ऐसी कोई कंपनी नहीं देखी जो उसका उत्पादन करती हो. इसलिए इसमें कोई कम्पटीशन नहीं होगा और फायदा ही फायदा होगा."
"ऐसा कौन सा सामान है जिसकी डिमांड बहुत है लेकिन बनाता कोई नहीं." प्रोफ़ेसर ने चकराकर पूछा.
"मैं फैशन बनाने की फैक्ट्री खोलूँगा. क्योंकि मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मैं इस फैशन का दीवाना हूँ, मैं उस फैशन का दीवाना हूँ. लेकिन मैंने आजतक किसी को नही सुना कि उसने फैशन बनाने की फैक्ट्री खोली है."
"विचार तो बहुत अच्छा है तुम्हारा. लेकिन क्या तुमने कभी फैशन को देखा है?"
"देखा तो नही, किंतु मेरा विचार है कि वह कोई चलने वाली वस्तु है. क्योंकि मैंने अक्सर सुना है कि आजकल बड़े बालों का फैशन चल रहा है, आजकल लुंगी पहनने का फैशन चल रहा है. मेरा ख्याल है कि फैशन कपड़े भी पहनता है, बाल भी रखता है. और साल दो साल में समान वेश में चक्कर भी लगाता है."
"तुमने अनुमान तो सही लगाए हैं. किंतु माई डियर, फैशन कोई फैक्ट्री में बनने वाली चीज़ नही है. बल्कि यह दिमाग का फितूर होता है. और अक्सर इसे वे लोग बनाते हैं जो अपने नौसिखियापन में कोई गलती कर बैठते हैं. यानी ये जो तुम कपड़े पहने हो इसको बनाने में अगर कोई दर्जी गलती से कमीज़ की बजाये पैंट सिल देता तो वह एक फैशन कहलाता." शमशेर सिंह ने बताया.
"ओह, फ़िर तो मुझे किसी और बिजनेस के बारे में सोचना पड़ेगा. वैसे मेरा ख्याल है कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो."
"खैर बने हुए को बनाने की कोई ज़रूरत नही होती. यह बताओ, और क्या क्या तुम्हारे विचार हैं?" शमशेर सिंह ने फ़िर पूछा.
"मुझे एकता बहुत पसंद है. इसलिए मैं एक ऐसा घर बनाऊंगा, जिसका नक्शा मस्जिद जैसा होगा. उसमें भगवान् की मूर्तियाँ भी होंगी. ईसाइयों का क्रास भी होगा और गुरुग्रंथसाहब भी होंगे. यह घर विभिन्न धर्मों की एकता का अनोखा उदाहरण होगा."
"गुड गुड, क्या विचार है." प्रोफ़ेसर ने ताली बजाकर कहा, "फ़िर सौ दो सौ सालों बाद जब तुम्हारी हड्डियाँ भी सड़ गल जाएँगी, उस समय तुम्हारे उस एकता के केन्द्र को हिंदू मन्दिर कहेंगे, मुसलमान मस्जिद का दावा करेंगे, सिख अपने गुरूद्वारे से चिपट जायेंगे और इसाई अपने चर्च की मांग करेंगे. उस समय धर्मों तो क्या अधर्मों के भी हाथों से एकता के तोते उड़ जायेंगे."
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