कोठेवाली -7
कोठेवाली -7
हर
इतवार बिना नागा आनेवाला
बदरीलाल उपर तल्ले दो इतवार
नहीं आया। तीसरे इतवार तो पहले
चाँद की रात थी,
उसे
आना भी नहीं था। लेकिन तड़के
ही दीनू ललारी के बाहर वाले
दरवाजे.
की
साँकल ऐसी बजी जैसे खटकाने
वाला बहुत ही जल्दी में हों।
बदरुन्निसा ने दौड़ कर दरवाजा
खोला। ढीला ढीला कुरता और
मटमैली तहमद पहने एक लंबा चौड़ा
पहलवान सा काला धुत्त आदमी
चौखट से लगा खड़ा था। बदरुन्निसा
पर नजर पड़ते ही जहर आलूदा आवाज
में बोला,
"बदरीलाल
हर इतवार तेरे पास ही आता है?"
बदरुन्निसा
को लगा कि अगर उसने सिर भी हिला
दिया तो उसकी खैर नहीं। पता
नहीं आने वाला किस इरादे से
आया हो। उसने हाथ बढ़ाकर दरवाजा
बंद करना चाहा। पहलवानिया
आदमी ने धूल सनी गुरगाबी में
से फूल कर उठता हुआ अपना एक
गठीला पैर दहलीज पर टिका दिया,
"जाती
कहाँ है बेहया?
तू
ही है न वो मरासन जो रेडिओ पर
गाती है?"
"मैं
बदरुन्निसा हूँ।"
वह
सहम कर बोली।
बेकरी
वाले बख्तियार को अपनी आँखों
पर यकीन न हुआ। रेडिओ मंडली
में लगी एक भी अटकल उस औरत पे
पूरी नहीं उतरती थी जो उसके
सामने थी। मंझला कद,
दुहरा
बदन, कढ़ी
हुई कम दूध वाली चाय जैसा रंग।
जुड़ी हुई भवों वाला माथा। उमर
कोई पचीस के उपर। और गर्दन ऐसी
लंबी तनी जैसे कोई मगरूर परीजादी
हो।
ढ़क्की
दरवाजा गली की बाकी औरतों की
तरह बदरीलाल की बीवी भी बाहर
निकलते वक्त बुरका पहनती थी,
बैठक
से घर की तरफ खुलने वाले दरवाज़े
की चिक के पीछे कभी कभार उसकी
लंबी परछाई में छरहरी काठी
ही बेकरी वाले बख्तियार ने
देखी थी।
"हाथ
लगाए मैली होती है जी।"
बख्तियार
की घरवाली ने बताया था,
"माँ
बाप ने सोच कर ही नाम चाँदरानी
रखा है। दो जवान बेटों की माँ
हो गई पर मजाल है कि जिस्म की
मलाई उतरी हो। हाथ पैर कबूतर
के परों जैसे कूले है। जब कभी
जाओ, हँस
कर मिलती है।"
"यहाँ
क्यों आए हो?"
बदरुन्निसा
बड़ी बेरूखी से पूछ रही थी।
उसकी जुड़ी भवों के उपर की शिकन
और भी गहरी हो आई थी।
"तुझे
यह बताने कि तेरी बद्दुआओं
से बदरीलाल की नेक बख्त बीवी
के पेट में रसौली फूटी है।
घरवाले उसे पिंडी के बड़े अस्पताल
ले गए हैं। तेरा यार जाती बार
मुझे कह गया था कि तुझे बता
दूँ।"
••••
चिता
में लगाई आग को सन्न चेहरे से
देखता बदरीलाल सकते में आ गया।
बदरीलाल की बीवी के लाल जोड़े
से सजे जिस्म के फूले हुए पेट
से पानी की एक तेज धार फूटी और
जलती हुई लपटों से ऊँची उठ गई।
देखने वालों के हाथ खुद–ब–खु.द
तौबा के लिए उठे और रहम की दुआ
माँगने लगे।
"गम
का गोला अंदर ही अंदर दबाये
जीती थी। आज सब गमों से छूट
गई।"
"अधमरी
को मारने ले गया था अस्पताल
में। उन्होंने चीरा देकर पेट
खोला और जालिम कैंसर देख कर
वहीं दुबारा सी दिया।"
"कैंसर
से जालिम तो यह खुद निकला जी।
घरवाली सहकती रही और यह मौजें
करता रहा।"
"आँख
की शरम होगी इसे तो अब उस मरासन
के पास भी न फटकेगा।"
"कौन
जाने उसी को खुदा का ख़ौफ आ जाए।"
"उसे
कोई शरम–लिहाज होता तो यह चिता
क्यों जलती?"
बदरुन्निसा
रंगरेजा बस्ती छोड़कर ढक्की
दरवाजा गली आ गई। बदरीलाल के
साथ उसी के घर में रहने लगी।
न निकाह न कोई कागज़ी कार्रवाही।
बस रहने लगी। उसके आते ही रेडिओ
मंडली पहले कुछ दिन सहमी रही।
फिर इक्का दुक्का करके सभी
लौटने लगे। न वो लाहौर जा कर
गाती,
न
ही अब उसे लेकर कोई अटकल लगाता।
बैठक की गहमा गहमी वैसी की
वैसी। 
बदरुन्निसा
मिलने जुलने वालों के सामने
बैठक में कभी न आती। चिक के उस
पार गोपाल उससे कभी कभार बतिया
लेता। बी॰ ए॰पास होने का नतीजा
निकला तो गोपाल ने तफरीह के
लिए काशमीर जाना चाहा। बदरुन्निसा
ने अपना सोने का गुलूबंद तुड़वा
कर पैसों का इंतजाम कर दिया
तो गया वरना गोपाल के बाप ने
तो मना ही कर दिया था।
"जवान
जहान बेटा है। उसकी छोटी सी
ख्वाहिश को क्यों मारते हो।"
उसने
गोपाल के बाप को समझाया।
गोपाल
कश्मीर से लौटा तो बदरुन्निसा
के लिए शाल लाया। सुर्ख रंग
का शाल,
उपर
तिल्ले की आरी वाली कढ़ाई।
बदरुन्निसा ने सँभाल कर रख
दिया।
"तेरी
दुल्हन को दूँगी।"
उसने
कहा।
लेकिन
दुल्हन आई कहाँ?
उससे
पहिले तो बँटवारा आया। अपने
बाप और छोटे भाई को इकबाल लिवाने
आया और अपने साथ उधर ले गया।
और बदरुन्निसा,
वो
ताहिरा की माँ बनने का इधर ही
इंतजार करती रही।
बेकरी
वाले बख्तियार की घरवाली ने
सलाह दी।
"काफर
की औलाद को इस मुसलमानों की
गली में पैदा करोगी तो हम सब
की खैर नहीं। दीवारें,
छतें
सभी जुड़ी हैं इस गली के घरों
की। तुम्हारे घर में लगाई आग
हम सब को जला देगी। लाहौर चली
जाओ, बाद
में कभी लौट आना।"
बदरुन्निसा
ने छोटी बहिन जाहिदा को लेकर
लाहौर जाने वाली खचाखच गाड़ी
तो पकड़ी मगर उससे उतरी नहीं।
२२
जुलाई १९६९ की शाम चित्रा ने
ताहिरा और करन के लिए एक दावत
रखी थी। रसल स्क्वेयर के
इंस्टीट्यूट आफ कामनवेल्थ
स्टडीज से हैडन सैंट्रल वापिस
आने में करन को कुछ देर हो गई
थी। घर पहुँचा तो ताहिरा खिड़की
से झाँकती मिली। पूरा दिन उसने
कई जोड़े उतारे पहने थे। उसका
जी चाहता था कि वह ऊदे रंग का
शरारा–कुरती पहने ताकि जाहिदा
खाला के हाथ का बना महीन कढ़ाई
वाला भारी दुपट्टा ओढ़ सके।
लेकिन करन कह गया था कि अंडरग्राउंड
में जाना है,
इसलिए
गरारा या शरारा पहन कर सीढ़ियाँ
उतरना चढ़ना मुश्किल होगा।
काशनी
चूड़ीदार कुरते के साथ मुकैश
लगा दुपट्टा पहन जब ताहिरा
करन के साथ घर की सीढ़ियों से
उतरी तो बुढ़ऊ मकान मालिक दरवाज़े
के साथ ही जुड़ कर खड़ा था।
"खूबसूरत,
बहुत
ही खूबसूरत।"
उसने
अपनी दो सूखी सी उँगलियों से
अपने होंठ चूम कर कहा,
"लेकिन
नहाते वक्त इतनी देर तक गरम
पानी मत चलाया करो,
मेरा
खर्चा बढ़ जाता है।"
ताहिरा
को लगा जैसे उसके खूबसूरत
लिबास के नीचे एक गीला तौलिया
उसे लपेट में लिए है जिसे जितना
भी निचोड़ लो,
उसकी
गीलाहट नहीं जाती। तौलिया
सूखे तब न जब उसे कहीं खुली
हवा या धूप में फैलाया जाये
लेकिन यह तौलिया तो धोने के
बाद भी साफ नहीं होता था। बस
हर रोज इस्तेमाल के बाद और
गीला होकर चिपट ही जाता था।
हैडन
सैंट्रल की उबड़ खाबड़ गोरों
की गली के दोनों तरफ बिल्कुल
एक जैसे एक दूसरे से सटे हुए
गिरते ढहते से दिखाई देने वाले
मकानों में रहनेवाले भी ढीले
ढाले थे। ताहिरा जब कभी सौदा
सुल्फ लेने अकेले गली में
उतरती,
तो
उसे नुक्कड़ तक पहुँच कर ही
साँस में साँस आती। "यू
स्टिंकिंग पाकीज",
कह
कर एक बार किसी फटे हुए कोट और
पजामानुमा पैंट वाले बुढ्ढ़े
ने उस पर थूक दिया था। तभी से
वह गली में अकेले आने से कतराती
थी।
आज
भी करन की कुहनी थामे गली से
निकल जाने की उसे बहुत जल्दी
थी। लेकिन चित्रा के घर पहुँचने
में ताहिरा और करन को करीबन
दो घंटे लग गये। हैडन सैंट्रल
से कैसिंगहन स्ट्रीट का पूरा
रास्ता अंडरग्राउंड़ में
पैंतीस–चालीस मिनट का था।
ताहिरा चारिंग क्रॉस पर ही
उतर कर विंडोशापिंग में ऐसी
लगी कि चलती कम और रुकती ज़्यादा।
रीजंट स्ट्रीट,
ब्रांड
स्ट्रीट,
आक्सफ़ोर्ड
स्ट्रीट की साफ सुथरी बंद
दुकानों की सजी धजी विंडोज।
न कीमत पूछने की जरूरत,
न
दाम चुकाने की कैफयत का एहसास।
मन ही मन उसने बहुत सा सामान
खरीदा और बड़े सलीके से एक
खूबसूरत सा घर सजा लिया। एक
ऐसा घर जिसमें वह जितनी देर
चाहे नहा सकती थी। जहाँ कई
खिड़कियाँ थीं,
दरवाज़े
थे और जिसके फर्श पर कोई फटी
हुई दरी नहीं थी। बांड स्ट्रीट
की एक शो विंडो में सजाये
फर्नीचर को उसने एक इरानी
कालीन के आस पास रखना शुरू ही
किया था कि करन ने उसे एक हल्का
सा धक्का देकर कहा,
"तुम्हारे
चलनें की रफतार अगर यही रही
तो दुनिया का पहला आदमी चाँद
पर पहले उतरेगा और हम चित्रा
के घर बाद में पहुँचेंगे।"
"आदमी
को चाँद पर तो गई रात ढले उतरना
है ना,
अभी
तो सात भी नहीं बजे।"
ताहिरा
ने एक बार फिर दामास्क के हलके
तरबूजी रंग के गद्दों वाले
सोफ़े को हसरत भरी नजरों से
देखा।
"चित्रा
बड़ी स्मार्ट लड़की है ताहिरा।
हमें शादी की मुबारक देने के
लिए उसने आज का ही दिन चुना,
यह
महज इत्तफ़ाक नहीं है। तुम
देखना,
इस
एक बनाए गए इत्तफ़ाक से और कितने
इत्तफ़ाक निकल आयेंगे।"
"जैसे?"
ताहिरा
की नजरें अब शो विंड़ो से टंगे
एक भूरे बादामी लेडीज कोट पर
थी।
"जैसे
कि डेविड हमारी शादी की मुबारक
का जाम उठाते हुए कहेगा,
"अगर
इन्सान चाँद पर उतर के वहाँ
चहल कदमी कर सकता है,
और
एक काश्मीरी ब्राह्मण नौजवान
एक पाकिस्तानी मुस्लिम लड़की
से शादी कर सकता है,
तो
दुनिया में क्या नहीं हो सकता?
अब
तो हम यह उम्मीद भी कर सकते
हैं कि वह दिन दूर नहीं जब भारत
और पाकिस्तान अपने आपसी भेद–भाव
भुला कर तमाम दक्षिण एशिया
की माली हालत सुधारने में
साँझी जिम्मेदारी सँभाल लेंगे।
"
ताहिरा
ने शो विंडो से अपनी नजरें हटा
ली। हल्की सी ताली बजाई और
पूछा,
"यह
तुम हमारे लिए दी जाने वाली
दावत की बात कर रहे हो या फ़ेलोशिप
खत्म होने पर किसी और ग्रांट
के लिए अप्लाय करने का मजमून
ढूँढ रहे हो।"
"मुझे
डेविड की तरह किताबें लिखने
पढ़ने का कोई शौक नहीं।"
"तो
यहाँ क्यों आए थे?"
"इत्तफ़ाक
से मौका मिला,
आ
गया वरना पापा जी के साथ काश्मीरी
कालीन बेचता रहता।"
ताहिरा
अब फिर रुक गई थी। औरतों के
अंडरगार्मेंटस की एक बड़ी दुकान
की शो विंडो के सामने। शीशे
की बड़ी सी खिड़की में लेस और
सिल्क की ब्रा और पैंटीज के
बीच एक छोटे से कार्डबोर्ड
के फट्टे पर काले रिबन से लिखा
था "सेल्सगर्ल
वान्टेड,
फलेक्सिबल
आवर्स।"
"देखो
करन, लगता
है मुझे भी इत्तफ़ाक से मौका
मिल सकता है,
मैं
अप्लाय कर दूँ?"
"जी
नहीं।"
"लेकिन
क्यों?"
"इस
बात पर जिरह करनें का यह कोई
वक्त है क्या?"
करन
की आवाज में हल्की सी तल्ख़ी
थी। "हमें
पहले ही काफ़ी देर हो चुकी है।"
फिर
उसने जो ताहिरा का हाथ पकड़ कर
चलना शुरू किया तो कैंसिगटन
स्ट्रीट पहुँच कर ही रुका।
••••
चौड़े
सलेटी पत्थरों की शानदार
तिमंजली इमारत। हर मंजिल पर
फर्श से उठ कर छत को छूती साफ
सुथरे काँच की खिड़कियाँ,
खिड़कियों
के आगे चमकते हुए काले रेलिंग
वाली बालकनियों में सजे बड़े
बड़े गमलों से ऊँचे उठते हरे
कचूच पौधे। पौधों से परे
खिड़कियों के पार बादामी झालर
वाले महीन परदों की अधखुली
भीतों से झाँकते कंदील। पूरी
इमारत में जाने के लिए एक मजबूत
महागनी की चमचमाती लकड़ी का
लंबा चौड़ा दरवाजा। दरवाज़े के
दायीं तरफ दीवार पर औंधाए गमले
जैसे शेड से ढँके दूधिया बल्ब
की रोशनी में चमचम करती पीतल
से लिखी रहनेवालों के नाम की
फहरिस्त। ताहिरा ने फहरिस्त
पढ़नी शुरू ही की थी कि करन ने
सिर हिलाकर टोक दिया।
"हमें
बेसमेंट में जाना है।"
बेसमेंट
का दरवाजा डेविड ने खोला,
अदब
से ताहिरा की कोहनी थामी और
एक हल्की सी सीटी बजाकर चुपचाप
खड़ा हो गया। कमरे में जमी भीड़
से उठती आवाज़ें एकदम खामोश
हो गई। 
"लीजिए
साहिबान,
दुल्हन
आ गयी। "
डेविड
ने कहा।
तालियों
की बौछार हुई,
और
यकलख्त ताहिरा के जिस्म से
लिपटा गीला तौलिया कहीं गायब
हो गया। फर्श को छूते अपने
मुकैश वाले दुपट्टे का पल्ला
सँभालती वह करन के बाजू से
घिरी दूधिया बल्बों की गुदगुदी
रोशनी में नहा गई। एक के बाद
एक नया अजनबी चेहरा,
हर
जुबान से नये अंदाज में
मुबारकबादी,
हर
मिलने वाले हाथ में गरमजोशी,
हर
उठती हुई नजर में कहीं अनकही
खुशामदीद।
"दुल्हनें
तो सभी खूबसूरत होती हैं लेकिन
इस दुल्हन की खूबसूरती?
बिलकुल
बेमिसाल है।"
कहने
वाले ने अपना नाम ह्यूम मोस्ले
बताया। ताहिरा के साथ खड़े करन
का चेहरा खिल उठा।
"आप
आज यहाँ आने का वक्त निकाल
पाये,
सर,
यह
हमारे लिये बहुत बड़ी बात है।
हम दोनों आपके बेहद मशकूर
हैं।"
करन
बोला और फिर ताहिरा की तरफ
देखकर कहा उसने जैसे कोई ताजा
जीती ट्राफ़ी दिखा रहा हो।
"प्रोफ़ेसर
मोस्ले इंस्टीट्यूट आफ कॉमनवेल्थ
स्टडिज के डायरेक्टर हैं।"
ट्वीड
का कोट ओर डार्क ग्रे पैंट के
साथ हल्की स्लेटी कमीज और
बरगंडी स्कार्फ पहने एक बरौब
अजनबी अब ताहिरा से मिलने के
लिए हाथ बढ़ाए खड़ा था।
डेवड
ने परिचय कराया।
"डा॰रिचर्ड
टेलर आर्ट हिस्टरी डिपार्टमेन्ट
के हेड हैं। चित्रा इनके
डिपार्टमेन्ट की स्नातक है।"
गरमजोशी
से हाथ मिलाकर डा॰टेलर ने एक
बाँह फैलायी और बिना छुऐ ताहिरा
के कंधों को घेरे में ले लिया।
फिर वैसे ही थामे पास की दीवार
पर लगी एक ब्लैक अैंड व्हाइट
तस्वीर दिखा कर बोले,
"मुझे
पूरा यकीन है कि आज से पचास
साल बाद भी आप और आपके पति साथ
साथ इतने ही खुश होंगे जितने
आप दोनों आज हैं।"
तस्वीर
में एक जोड़े की पीठ थी। बाहें
एक दूसरे की कमर में,
सर
एकदूसरे की तरफ झुकते हुए।
गरम कोटों मे से झुके हुए काँधे,
बालों
की सफ़ेदी और हाथों की उभरी
नसें सभी उनकी उम्र का अहसास
दिला रही थीं। किसी पुल पर एक
लैम्पपोस्ट के पास खड़े उनके
न दिखने वाले चेहरे शाम के
धुँधलके का नकाब ओढ़े थे।
"तुम
इस जोड़ी को जानते हो क्या?"
डॉ
टेलर ने डेविड से पूछा,
"नहीं
गर्मियों की छुट्टियों में
चित्रा और मैं रोम गये थे,
वहीं
पर चित्रा ने इन दोनों को पुल
पर ऐसा खड़ा देख कर यह तस्वीर
ली थी,
इनको
बिना बताये। इनको एक कॉपी
भेजने की इजाजत भी फ़ोटो लेने
के बाद ही ली।"
"बहुत
यादगार लम्हा कैमरे में उतारा
है चित्रा ने। किसी आर्ट
स्टूडेंट को कहना चाहिये कि
वह फ़ोटोग्राफ़ी,
एचिंग
और आर्किटेक्चर के आपसी प्रभाव
पर योरोपीय और एशियाई संदर्भ
में कुछ और रिसर्च करे। तुम्हारा
क्या ख्याल है डेविड?
मुझे
तो अब तक लगता है कि यूरोप और
एशिया की परम्पराएँ उनके
इतिहास से कम और भूगोल से ज्यादा
प्रभावित है।"
खामोश
खड़ी ताहिरा से अब एक और अजनबी
हाथ मिला रहा था।
"मिसेस
जुत्शी,
मैं
आज शाम की खास मेहमान से जल्दी
जाने की इजाजत चाहूँगा। मुझे
घर पहुँचने के लिये अभी मीलों
का फ़ासला तय करना है। इन्सान
को चांद पर पहला कदम रखते हुए
देखने के लिए,
मेरा
परिवार मेरे साथ होगा।"
डेविड
जाने वाले को दरवाजे तक छोड़ने
गया, करन
ने ताहिरा से कहा, 
"वो
डा॰टामसपेलिंग थे,
स्कूल
ऑफ ओरियंटल एैंड अफ़ीकन स्टडीज
में साउथ ऐशिया प्रोग्राम के
डाइरेक्टर है,
डेविड
के बॉस हैं।"
"तुम
जानते हो अभी जाने से पहले
टॉमस मुझे क्या कह कर गया है?"
डेविड
कह रहा था,
"वह
चाहता है कि किसी स्टूडेंट
से कह कर कैम्पस जर्नल के आने
वाले इश्यू में तुम दोनों को
लेकर एक लेख छपाया जाये।"
करन
को बड़े नाटकीय आवाज में अपनी
टाई ठीक करते हुए देख कर डेविड
मुस्करा दिया।
"अरे
हाँ टॉमस यह भी कह रहा था कि
तुम दोनों की जोड़ी इतनी खूबसूरत
है कि कैमरा तो तुम्हें तलाश
करेगा ही,
देखने
वाले भी एकबार देख लेंगे तो
पूरा लेख पढ़ ही डालेंगे।"
करन
और ताहिरा की शादी को लेकर रसल
स्क्वेयर के हरे भरे अहाते
में काफ़ी चर्चा थी।
इन्स्टीट्यूट
आफ कामन वेल्थ स्टड़ीज और स्कूल
आफ ओरियंटल ऐंड अफ़ीकन स्टड़ीज
में अन्तर–जातीय,
अन्तर–मजहबी
या अन्तर–देशीय शादी होना
कोई बड़ी बात नहीं थी। अन्तरदेशीय
माहौल में रहकर ही तो इंसान
मजहब,
जाति
और राष्ट्रीयता के संकुचित
दायरों से उपर उठता है न इसीलिए
तो कई कई परोपकारी दूर दूर से
बिछड़े हुए देशों के स्नातकों
को वज़ीफ़े देकर बाहर की दुनिया
में पढ़ने–लिखने का मौका देते
हैं। लेकिन करन तो ताहिरा से
शादी करने के बाद ही लंदन आया
था, और
वह भी पहली बार। जम्मू कश्मीर
युनिवर्सिटी से सेकन्ड डिवीजन
में एम ए किया था उसने और ताहिरा
लाहौर के किसी प्राइवेट कालिज
में पढ़कर बी ए हुई थी।
स्कूल
आफ ओरियंटल ऐंड अफ़ीकन स्टड़ीज
में हिस्टरी आफ आर्ट की छात्रा
चित्रा की एक सहपाठिन ने पूछा
कि क्या वह ताहिरा और करन को
जानती है।
"मेरे
दादा ताहिरा के पिता थे।"
चित्रा
ने ऐसे सहज कहा जैसे कि "कुनबे
के दरख्त"
की
किसी टहनी पर हाथ रख दिया हो।
बस
फिर तो उत्सुक स्नातकों का
ताँता सा लग गया चित्रा के आस
पास।
"तुम्हारे
दादा मुस्लिम थे क्या?"
"करन
तो ऊँची जाती का हिंदू है ना?
ब्राह्मण
है?"
"एक
भारतीय और एक पाकिस्तानी में
शादी होना तो बड़ी सनसनी वाली
वारदात रही होगी?"
"तुम्हारे
यहाँ तो शादियाँ अरेंज होती
है, इनका
प्रेम विवाह हुआ होगा। मिले
कहाँ होंगे यह दोनों?
काश्मीर
में मिले हो,
ऐसा
मुमकिन तो नहीं लगता।"
फतरतन
कम बोलने वाली चित्रा ने डेविड
को बताया, 
"करन
और ताहिरा के बारे में बातें
करना मुझे अजीब सा लगता है।
पता नहीं वह दोनों खुद पब्लिक
में क्या कहना चाहते हैं?"
"तुम
उन दोनो के लिये एक दावत दे
सकती हो। कैम्पस वाले इस जोड़ी
से एक बार खुद मिल लेंगे तो
शायद एक दूसरे के आदी भी हो
जायेंगे।"
डेविड
ने सलाह दी।
चित्रा
ने करन से पूछा,
"तुम
किस किसको न्योता देना चाहोगे?"
करन
ने कुछ सीनियर फैकल्टी मेम्बरज
के नाम गिना दिए जिन्हें वह
एकाध बार मिल चुका था और जो
शायद उसका नाम उसके चेहरे से
जोड़ सकते थे। स्नातकों की
फहरिस्त चित्रा और डेविड पर
छोड़ दी।
रसल
स्क्वेयर का अहाता लंदन के
बीचो बीच पड़ता है। इंस्टीट्यूट
ऑफ कामनवेल्थ स्टडीज और स्कूल
आफ ओरियंटल ऐंड अफ़ीकन स्टडीज
जैसी दो नामवर संस्थाएँ इसी
अहाते में एक दूसरे से कुछ ही
कदमों की दूरी पर हैं। वहां
के सीनियर फैकल्टी मेम्बर्स
इंग्लैंड में ही नहीं,
दूसरे
मुल्कों में भी आला तालीम,
व्यापारी
और सियासती मामलों में सलाह
करते हैं,
देते
हैं। न जाने कौन,
कब,
किसकी
नजर में पड़ जाये?
कहाँ
से कहाँ पहुँच जाये?
वैसे
भी करन यही मान कर चलता था कि
अंग्रेज़ों ने ऐसा एम्पायर तो
जरूर बनाया था जहाँ सूरज कभी
डूबता नहीं,
लेकिन
जब वो टूट कर बिखरा तो काफ़ी
मेस हो गई। उसे संभालने के लिए
कुछ तो इमदाद चाहिए थी। वह
तैयार था,
बस
बात उस पर किसी की नजर पड़ने की
थी।
"नीली
छतरीवाला अगर अंग्रेज है तो
उपर से नीचे देखने वक्त मैं
उसे एक बार बस दिखाई दे जाऊँ,
बाकी
मैं खुद सँभाल लूँगा।"
उसने
चित्रा से कहा,
"फिर
तुम्हारी पार्टी में तो ताहिरा
भी मेरे साथ होगी। उसे देख कर
नजर फेर लेना मुमकिन ही नहीं।"
सीनियर
फैकल्टी मेम्बर्स जब तक पार्टी
में रुके,
बाकी
मेहमान उन्हीं को घेरे रहे,
उनके
जाते ही पूरी पार्टी का नक्शा
बदल गया। छोटी छोटी टोलियाँ
बनीं और यहाँ वहाँ बिखर गई।
कैंट,
मार्लबरो
और रॉथमैन सिगरेटों से उठते
धुएँ की अलग–अलग महक कई–कई
आवाज़ों से उठता बे–अल्फ़ाज
शोर। खाली गिलासों को भरने
के लिए कोने में रखी ड्रिंक्स
की ट्रे की तरफ बढ़ते और वहाँ
से लौटते कदमों की चहल पहल।
करीनेवार बेतरतीबी का जीता
जागता मेला। मेले में करन
ताहिरा से कब जुदा हुआ,
उसे
पता नहीं चला।
क्रमश:•••••••
 
 
 
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