तांत्रिक पुजारन-01
मित्रो
इन्टरनेट पे एक जबरजस्त मोलिक
थ्रिलर रोमांचकारी स्टोरी
लिखी जा रही है.......लेखिका
का नाम ओदोलो चम्पा है ,क्या
जबरजस्त स्टोरी लिखी है इनहोने
आप भी गोर फरमाये ---- 
मुझे आज भी वह दिन याद है | मुझे बस उस दिन ऑफीस जाना था और उसके बाद मैं एक लंबी छुट्टी पर जाने वाली थी | मैने किसी को कुछ नही बताया था, सोचा था कीसब दोस्तों और सहेलियों को एक सर्प्राइज़ दूँगी- काफ़ी दिनो वह लोग मेरे साथ मिलकर एक पार्टी का प्लान बना रहे थे लेकिन मेरे पास टाइम ही नही होता था, क्या करू; मैं अब काम करने लगी थी और मेरे ज़्यादा तर दोस्त अभी कॉलेज मे ही थे- लेकिन किस्मत मे कुछ और ही लिखा था |
खैर, आज सुबह उठने मे काफ़ी देर हो गई थी, इसके लिए मैं मौसम को ज़िम्मेदार ठहराउंगी, कल रात से ज़ोरदार बारिश हो रही थी और बिजली कड़क रही थी, इस लिए मैं जल्दी जल्दी नहा धो कर तैयार हो गई पर मुझे ड्राइयर से बाल सूखने का मौका नही मिला, इसलिए मैने अपने अध गीले बालों का एक ढीला सा जुड़ा बनाया और एक अच्छी सी साड़ी और मैचिंग ब्लऊज पहन कर अपना पर्स और एक छतरी लेकर निकल पड़ी ट्रेन पकड़ने |
स्टेशन के रास्ते मे फूटपाथ पर लगी खाने की दुकानो मे से ज़्यादा तर अभी खुले ही नही थे, पर चाय की दुकाने खुल चुकी थी, बरसात के मौसम मे गरम चाय की चुस्कियों का मज़ा ही कुछ और होता है,लेकिन मुझे थोड़ी हिचक महसूस हो रही थी | क्योंकि चाय की दुकानो मे खड़े लोग निम्न वर्ग के थे और मुझे घूर रहे थे, इसमे उनका भी क्या दोष? मेरी उम्र तो सिर्फ़ इक्कीस साल की थी, लोग बाग और दोस्तों के अनुसार मेरा फिगर भी अच्छा है और मैं दिखने में भी खूबसूरत हूँ, ..कुछ भी हो अभी चाय के लिए वक़्त भी नही था, अगर मैं चाय के लिए स्टेशन के स्टॉल मे भी रुकी तो मेरी ७:२० की ट्रेन छूट जाएगी | मैने घड़ी देखी और तेज़ कदमो से स्टेशन की ओर बढ़ने लगी |
चलते चलते अचानक मेरी नज़र एक बुज़ुर्ग औरत पर पड़ी वह कुछ उदास होकर एक बंद दुकान की सीढ़ियों पर बैठी हुई थी और आते जाते लोगों की ओर एक दबी हुई इच्छा ले कर देख रहीथी, शक्ल और कपड़ों से तो वह कोई भिखारन नही लग रही थी- शायद आसपास के किसी गाँव से आई होगी - जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, ना जाने क्यों मुझे उस पर दया आ गयी -मैने घड़ी देखी, ७:१५ हो चुके थे ... पाँच मिनट में मैं दौड़ कर ट्रेन नही पकड़ सकती थी और अगली ट्रेन ७:४५ की थी |
मैने उस पास जा कर पूछा, "माता जी- क्या बात है, आप कुछ परेशान सी लग रही हैं?"
रास्ते से गुज़रता हुआ एक ट्रक ज़ोरदार हर्न बजा रहा था ..शायद इसलिए शायद उस औरत को मेरी बात सुनाई नही दी, इसलिए मैने उसके पास जा कर झुक कर उससे दोबारा पूछा, "माता जी- क्या बात है, आप कुछ परेशन सी लग रही हैं?"
इतने मे ना जाने क्यों मेरा जुड़ा खुल गया और मेरे बाल खुल कर उस औरत के चेहरे के उपर बिखर गये और मेरा पल्लू भी सरक गया, जल्द बाजी में मैं पिन लगाना भूल गयी थी |
मैनें जल्दी जल्दी अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और अपने बलों को समेट कर एक जुड़े में बाँधा और उनसे माफी माँगी |
वह औरत मुस्कुरा कर बोली, "कोई बात नही बेटी, तू एक नारी है ..लंबे घने बाल औरत का गहना होता है"
मैं थोड़ा शर्मा गयी, "लेकिन आप कुछ परेशान सी लग रहीं हैं ..क्या बात है?"
"क्या बतायूं बेटी, मैं कल रात शहर आई थी दवाई लेने ..पर मेरा सारा पैसा खो गया तब से मैं यहीं बैठी हुई हूँ आज कल बिना टिकट ट्रेन मे जाना मुनासिब नही है, अगर पकड़ी गई तो?"
"कहाँ जाना है, आपको?"
"धूमिया", फिर से अचानक बिजली कडकी और तेज़ बारिश शुरू हो गयी |
धूमिया की गाड़ी प्लॅटफॉर्म नंबर पाँच से चलती थी और मेरी लोकल ट्रेन प्लॅटफॉर्म नंबर दो से | अगर मैं इसकी मदद करूँ तो मेरी ७: ४५ की ट्रेन भी छूट जाएगी | लेकिन ना जाने क्यों उस औरत को सिर्फ़ टिकट के पैसे देकर उसको उसके हाल पर छोड़ने का मेरा मन मान नही कर रहा था |
"आप मेरे साथ आइए, मैं आपको टिकट दिला कर ट्रेन मे बैठा दूँगी| "लेकिन उससे पहले आप मेरे साथ चाय ज़रूर पीजिये...", मैने कहा |
यह बात तय थी उस औरत ने रात भर कुछ भी नही खाया होगा| अगर दुकाने खुली होती, तो शायद मैं कुछ खाने का इंतज़ाम भी करती, लेकिन इस वक़्त सारी दुकाने बंद थी |
उस औरत को उठने मे शायद सहारे की ज़रूरत थी, जो की मैने उसको दिया और तब मैने गौर किया कि उस औरत के हाथों की उंगलियों में तरह तरह कीअंगूठियाँ थी, कलाई और गले में रुद्राक्ष की माला |
पता नही क्यों उस औरत ने मुझ से कहा, "बेटी, अभी तेरे बाल गीले हैं| अपने बालों को खुला छोड़ दे..."
ना जाने उस औरत की बातों मे क्या जादू था मैने उसे अपनी छतरी के नीचे लेने के बाद अपने बाल खोल दिए |
वह मेरे बालों को सहलाती हुई मेरे से लिपट कर चल रही थी और बार बार बोल रही थी, "तू एक बहुत अच्छी लड़की है... मुझे तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी..."
तब मुझे थोड़ा शक हुआ, इस औरत के हाथों मे अंगूठियाँ, गले और कलाई में रुद्राक्ष की माला... कहीं यह जादू टोने वाली तो नही है?
मैं जानती थी कि मुझे आज ऑफीस जाने में काफ़ी देर हो जाएगी, इसलिए मैने उस बुज़ुर्ग औरत को टिकट काउंटर की सीडियों पर बिठा कर टिकट के लाइन मे खड़े होकर, अपने बॉस को फ़ोन लगाया, "सर, आज बारिश की वजह से ट्रेन लेट चल रही है | मुझे आने में देर होगी..."
"कोई बात नही, संध्या | तुम एक काम क्यों नही करती? तुम्हारी छुट्टियाँ तो कल से शुरू हो रही है | आज मौसम भी कुछ ठीक नहीहै... तुम एक काम करो, तुम आज से ही छुट्टी ले लो..."
"लेकिन, सर...", बॉस के मूड का कुछ पता नही, मैने तो सोचा था की वह मेरी हमेशा के लिए छुट्टी कर रहें हैं |
"अरे बाबा, तुम आज से ही छुट्टी लेलो | तुम्हे पाँच दिन की छुट्टी चाहिए था ना; उसकी जगह छह दिन का छक्का मार लो और इस महीने एक दिन सैयटर्डे शिफ्ट कर लेना... बस ख़तम हो हाई बात, छुट्टी ले लो आज से ही..."
बाप रे बाप! जान में जान आई | पता नही आज बॉस इतना मेहेरबान क्यों है?
"अरी बिटिया, किससे बात कर रही थी?"
"जी मैने अपने बॉस को फोन लगाया था... कह रही थी कि आज मुझे आने में देर हो जाएगी..."
"हाँ देर तो होगी ही... उसने तुझे आज छुट्टी दी की नही?"
यहसुन कर मैं बिल्कुल दंग रह गयी, "जी, हाँ दी... लेकिन आपको कैसे मालूम?"
"अरी मेरी काफ़ी उमर हो गयी है, मैने तेरे से ज़्यादा दिनदेखें हैं... आज का मौसम देख... अगर दिन ढलते ढलते मौसम और खराब हो गया तो? कौन ज़िम्मेदारी लेगा कि तू काम के बाद घर पहुँची कि नही?"
बात तो सही है |
फिर वह मुझ से कहने लगी, "बेटी, अगर हो सके तो तू मुझे मेरे घर तक छोड़ दे... मैं कल रात की जगी हुई हूँ... अगर ट्रेन मे ही सो गयी तो ना जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाउंगी"
मैने कुछ देर सोचा उसके बाद मैने तय किया कि आज तक कभी भी मैने गाँव नही देखा था, यह तो एक बेचारी सीधी साधी बुढ़िया है,मेरा क्या बिगड़ेगी... लेकिन आज कल ज़माना बहुत खराब है... पर कहीं यह सीधी औरत असल में टेढ़ी निकली तो? वैसे आज दिन भर घर जाने के बाद सिवाय झक मरने के मैं करूँगी भी क्या? सारे के सारे दोस्त भी आज घर मे ही रहेंगे, आज कहीं प्लान बनाने का सवाल ही नही उठता... मौसम जो इतना खराब है...
"क्या सोच रही है", बिटिया?", उस बुज़ुर्ग औरत ने पूछा |
"जी, माता जी...कुछ नही", मुझे समझ मे नही आ रहा था की क्या कहूँ |
"यही ना, कि मैं तुझे अपने साथ कहीं चुरा के ना ले जाउँ?"
हाँ मेरे दिमाग़ में यह ख्याल एक बार आया ज़रूर होगा, लेकिन मैं बोल पड़ी, "जी माता जी, कुछ भी तो नही...", फिर थोड़ा सोच कर मैंने फ़ैसला किया, "ठीक है, मैं आपके साथ धूमिया गाँव जाउंगी... आप को घर तक छोड़ कर आउंगी"
"मेरी अच्छी बिटिया, तू ना होती तो मेरा क्या होता? हाँ एक बात और बेटी... गाँव में लोग बाग मुझे माई कहते हैं... अगर तू भी मुझे माई बोलेगी तो मुझे अच्छा लगेगा..."
मैने मुस्कुरा कर कहा, "जी, माई- अब से मैं आपको माई कह कर ही बुलाउंगी"
"और हाँ मेरी बच्ची, जब तक मैं ना कहूं, अपने बाल खुले ही रखना... तेरे बाल तेरी कमर तक लंबे और घने हैं... खुले बालों में तू अच्छी लगती है...", माई ने मेरे बिल्कुल कान के पास आ कर कहा |
मैं शर्मा गयी और ना जाने क्यों मेरे मेरे मूहसे निकला, "जी, माई... जब तक आप ना कहें, मैं अपने बाल खुले ही रखूँगी"
"बहुत अच्छा...", न ज़ाने उसकी मुस्कान मे एक अजीब सी बात थी.... शायद वह खुश हो रही थी कि - ना जाने क्यों मैं उसकी एक एक बात मान रही हूँ... और शायद मैं धीरे धीरे उसके वश में चलती चली रही थी |
वह दोबारा सीढ़ियों पर जा कर बैठ गयी लेकिन इस बार उसने अपने गले से रुद्राक्ष की माला निकाल कर जपने लग गयी |
टिकेट की लाइन धीरे धीरे आगे बढ़ती गई और जल्दी ही मैंने धूमिया की दो टिकटें खरीद ली |
लेकिन जब मैने मुढ़ कर सीढ़ियों की तरफ देखा तो हैरान रह गयी क्योंकी माई वहाँ से गायब थी |
मैं उसे ढूँढने के लिए इधर उधर देख ही रही थी कि पीछे से उसने मुझे पुकारा, "कहाँ ढूँढ रही है, मेरी बच्ची? मैं तो यहाँ हूँ..."
"आप कहाँ चली गयी थी, माई?"
"पास वाले मंदिर से पवित्र भस्मी लाने - आ बैठ; तेरे माथे पर एक टीका लगा कर, तेरे बालों का एक जुड़ा बाँध दूं..."
 मैं
 माई से लंबी थी,
 इस
 लिए मैं सीढ़ियों पर ही बैठ
 गयी,
 माई
 ने मेरे माथे पर भस्मी का टीका
 लगाया और मेरे बालों कोसमेट
 कर एक जुड़े में बाँध दिया |
  
 जैसेही
 मैं उठ कर खड़ी हुई मुझे जैसे
 एक चक्कर सा आ गया...
 पर
 मैं सम्भल गयी,
 आज
 यह क्या हो रहा है? 
“चलिए माई, ट्रेन का टाइम हो रहा है”, मैने कहा |
शायद बारिश और तूफान की वजह से ट्रेन रुक रुक कर चल रही थी| मुझे ना जाने क्यों नींद आने लगी, माई के कहने पर मैं उनके गोद में सर रख कर सो गयी... कहाँ तो माई कह रही थी कि वह कल रात की जागी हुई है और ना जाने क्यों मुझे ही नींद आ रही थी | जैसे ही मैं उनकी गोद में लेटी, उसने एक हाथ से मेरा माथा प्यार से सहलाना शुरू किया और उसका दूसरा हाथ सीधे मेरे सीने पर पहुँच गया... वह मेरे साड़ी के आँचल के नीचे हाथ डाल कर धीरे धीरे मेरे स्तनों को दुलारने लगी... मुझे नींद आ रही थी, ना जाने कब मैं सो गयी |
आख़िरकार ट्रेन धूमिया स्टेशन के से कुछ दूर पहले जा कर रुकी | तब माई ने कहा, “चल बिटिया, हम लोग यहीं उतार जाएँगे, यहाँ से मेरा घर पास है”
ट्रेन जहाँ रूकी थी, वहाँ आस पास घना जंगल था, पर मैने कहा, "जी माई "
ट्रेनसे उतार कर हमलोग जंगल के रास्ते चलने लगे, मुझे याद है कि मैने माई से दुबारा कोई सवाल नही किया कि हम लोग ईस जगह क्यों उतर रहे हैं या फिर माई का घर वहाँ से कितनी दूर है, बस हम लोग उतर गये और मैं जैसे मंत्र मुग्ध हो कर माई के साथ चल रही थी | ना जाने कितनी दूर चलने के बाद माई एक पूरने से एक मंज़िला मकान के पास आ कर रुकी |
घर छोटा सा ही था, पर उसके आँगन के बीचोबीच एक बड़ा सा पेड़ था | उस घर को देख कर ऐसा लग रहा था की मानो उस पेड़ को घेर कर ही माई के घर का आँगन और उसका घर बनाया गया हो | पेड़ के पास ही में एक कोने में एक कुँआ भी था |
माई ने कहा, "बेटी, यही मेरे घर है, चल अंदर चल... थोड़ा आराम कर ले उसके बाद मैं तुझे बाज़ार से कुछ समान लाने भेजूँगी, घर के थोड़े बहुत काम भी हैं, वह तुझे करना होगा; उसके बाद मुझे तेरे से बहुतसी बातें करनी है... मुझे बहुत दीनो से तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी......"
ना जाने माई के मन में क्या था...
मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुध सा महसूस हो रहा था, और मेरे मूह से ज़बाब मे निकला, "जी, माई"
मुझे क्या मालूम था कि दरअसल मैं माई के मंत्र फूँके हुए भस्मी के टीके की वजह से उसके वश में थी |
 
 
 
 
 
  
“चलिए माई, ट्रेन का टाइम हो रहा है”, मैने कहा |
शायद बारिश और तूफान की वजह से ट्रेन रुक रुक कर चल रही थी| मुझे ना जाने क्यों नींद आने लगी, माई के कहने पर मैं उनके गोद में सर रख कर सो गयी... कहाँ तो माई कह रही थी कि वह कल रात की जागी हुई है और ना जाने क्यों मुझे ही नींद आ रही थी | जैसे ही मैं उनकी गोद में लेटी, उसने एक हाथ से मेरा माथा प्यार से सहलाना शुरू किया और उसका दूसरा हाथ सीधे मेरे सीने पर पहुँच गया... वह मेरे साड़ी के आँचल के नीचे हाथ डाल कर धीरे धीरे मेरे स्तनों को दुलारने लगी... मुझे नींद आ रही थी, ना जाने कब मैं सो गयी |
आख़िरकार ट्रेन धूमिया स्टेशन के से कुछ दूर पहले जा कर रुकी | तब माई ने कहा, “चल बिटिया, हम लोग यहीं उतार जाएँगे, यहाँ से मेरा घर पास है”
ट्रेन जहाँ रूकी थी, वहाँ आस पास घना जंगल था, पर मैने कहा, "जी माई "
ट्रेनसे उतार कर हमलोग जंगल के रास्ते चलने लगे, मुझे याद है कि मैने माई से दुबारा कोई सवाल नही किया कि हम लोग ईस जगह क्यों उतर रहे हैं या फिर माई का घर वहाँ से कितनी दूर है, बस हम लोग उतर गये और मैं जैसे मंत्र मुग्ध हो कर माई के साथ चल रही थी | ना जाने कितनी दूर चलने के बाद माई एक पूरने से एक मंज़िला मकान के पास आ कर रुकी |
घर छोटा सा ही था, पर उसके आँगन के बीचोबीच एक बड़ा सा पेड़ था | उस घर को देख कर ऐसा लग रहा था की मानो उस पेड़ को घेर कर ही माई के घर का आँगन और उसका घर बनाया गया हो | पेड़ के पास ही में एक कोने में एक कुँआ भी था |
माई ने कहा, "बेटी, यही मेरे घर है, चल अंदर चल... थोड़ा आराम कर ले उसके बाद मैं तुझे बाज़ार से कुछ समान लाने भेजूँगी, घर के थोड़े बहुत काम भी हैं, वह तुझे करना होगा; उसके बाद मुझे तेरे से बहुतसी बातें करनी है... मुझे बहुत दीनो से तेरे जैसी किसी लड़की की तलाश थी......"
ना जाने माई के मन में क्या था...
मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुध सा महसूस हो रहा था, और मेरे मूह से ज़बाब मे निकला, "जी, माई"
मुझे क्या मालूम था कि दरअसल मैं माई के मंत्र फूँके हुए भस्मी के टीके की वजह से उसके वश में थी |
 
 
 
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