तांत्रिक पुजारन-05

आधीरात होने को आई थी, बारिश रुक चुकी थी माई मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे दोबारा नहलाया लेकिन इसबार उसने मेरे बाल नही सुखाए और बदन भी नही पोछा | कल्लू जो शमशान की राख और मिट्टी ले कर आया था, उसमे से थोड़ा सा अपनी मुठ्ठी में ले कर उसने मेरे माथे पर, स्तानो पर और यौनांग पर मल दिया | फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई - मैं तो पहले से ही नशे में लड़खड़ा रही थी; लेकिन जैसा जैसा माई ने कहा मैं करती गई |माई के कहे अनुसार मैंने रसोई से लकड़िया ला कर कल्लू के खोदे हुए गढ्ढे में डाला और फिर आग जलाई... माई न ज़ाने क्या मंत्र वंत्र बड़बड़ाती हुई अपनी माला जपने लगी और उनके इशारे पर मैं आग में घी डालती रही |माई उस शैतानी आत्मा को खुश करने की कोशिश कर रही थी... मेरे पास माई का कहा मानने के अलावा और कोई चारा नही था |माई की तांत्रिक क्रिया ख़तम होने के बाद उसने मुझे कुँए के पास ले जा कर फिर से नहलाया और मेरा गमछे से मेरे बाल और बदन को सूखाया फिर मुझे खाना खिलाने के बाद वह मुझसे लिपट कर सो गई |यह सिलसिला अगले तीन दिन तक चलता रहा, लेकिन हर सुबह मेरी नींद दूर से आ रही मंदिर में चल रही आरती की आवाज़ से खुल जाती और मैं चुपके चुपके घर से निकल कर तालाब में डुबकी लगा कर सिर्फ़ एक ही प्रार्थना करती-"हे मा काली, मेरी रक्षा करो!" 
आज अमावस है | सुबह काफ़ी बारिश हुई थी बादल छाए हुए थे, चारों तरफ़ मानो एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था और बादलों की वजह से एक धुँआसा सा छाया हुआ था | हर रोज़ की तरह मैं चुपके चुपके तालाब में डुबकी लगा कर अपनी प्रार्थना कर आई थी | बूंदा बाँदी चल रही थी, मैने देखा की आँगन की नाली में कुछ फँस गया है, इसलिए आँगन में पानी जाम रहा था और धीरे धीरे कल्लू के द्वारा माई के लिए खोदे हुए अग्नि कुंड की तरफ बढ़ रहा था | मैंने झाड़ू ले कर नाली की रुकावट को दूर किया, जमा हुआ पानी तेज़ी से निकल ने लगा |बारिशथोड़ी तेज़ हो गई और तबतक माई भी उठ गई थी मुझे अपने बगल में ना पाकर शायद थोड़ा परेशान सी हो गई थी- आज वह जैसे और भी कमज़ोर लग रही थी- मेरा अंदाज़ा सही था; तांत्रिक क्रियाओं का कुछ असर उसके शरीर पर पड़ रहा था |“क्या कर रही है मेरी बच्ची?”,माई ने पूछा“आँगन में पानी जाम रहा था, माई... और हवन कुंड की तरफ आ रहा था, इस लिए मैने नाली साफ करके झाड़ू लगा रही थी...”“हाय- हाय, मुझे उठा तो दिया होता, मैं तुझे अपने हाथों से थोड़ा शराब पीला देती- तेरे बदन में गर्मी तो रहती, आज तू भेंट चढ़ेगी बेटी, और तू नंगे बदन, खुले बालों में बारिश में भीगती हुई आँगन में झाड़ू लगा रही है?...बीमार पड़ गई तो?”“आजकल आपकी तबीयत भी तो कुछ ढीली लग रही है माई, इसलिए मैने सोचा की नाली साफ कर दूं, वरना सारे आँगन में पानी पानी हो जाएगा...”“हाँ, तूने सही कहा बिटिया | मेरी तबीयत थोड़ी ढीली है,पर आज रात के बाद मैं बिल्कुल ठीक हो जाउंगी... मेरी शक्तियाँ और बढ़ जाएँगी, पर बेटी यहसब तो तेरी वजह से ही तो होगा ना... आज तू भेंट चढ़ेगी- रात भर ****** 'वह' तुझे...उससे पहले अगर तू बीमार पड़ गई तो?”मैं चुपचाप सर झुका कर हाथ में झाड़ू ले कर खड़ी बारिश में भीगती रही |“अरी लड़की, खड़ी खड़ी मेरा मूह क्या देख रही है? चल चल अंदर आ... थोड़ा पी कर अपना बदन गरम कर ले, अगर सारा दिन तू बारिश में भीगेगी तो भी तुझे ठंड नही लगेगी.. उसके बाद फिर कुँए से पानी भर लेना, चूल्हा चौका भी तो संभालना है तुझे... उसके बाद तेरे और भीकाम हैं आज... और देख तेरे बदन पर तो कीचड़ के छींटे भी लग गये हैं... हाय रे दैया शराब पिलाने के बाद मैं तुझे नहला भीदूँगी... दैया रे दैया घर में जवान लड़की सीने में पथ्थर की सील ती तरह होती है, अब चल अंदर आ छोकरी... जल्दी से गिलास और शराब की बोतल लेकरआ... थोड़ी देर में कल्लू भी आता होगा, शराब और माँस ले कर... मैं नही चाहती कि भेंट चढ़ने से पहले वह तुझे नंगी देखे...”मेरे मन में एक ही बात गूँज रही थी - हे मा काली, मेरी रक्षा करो |पता नही क्यों आज मई ने मुझे ज़रूरत से ज़्यादा ही शराब पिलाई, उसके बाद उसने मेरे बालों को समेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ कर बड़े जतन के साथ मुझे कुँए के पास ले गई और उसने मुझे नहलाया... लेकिन आज थोड़ी देर हो गई थी- कल्लू "माई ओमाई" आवाज़ देता हुआ, आँगन में घुस आया और मुझे नंगा नहाते हुए देख कर ठिठक सा गया |माई गुस्से से बोली,"हरामज़ादे, तेरे को भीअभी आना था क्या?"कल्लू आँखे फाड़ फाड़ कर मुझे घूर रहा था | माई बोली, "देख क्या रहा है? पहले लड़की नही देखी क्या?"कल्लू डरते डरते बोला,"माई, मैने इसी लड़की को तो बाज़ार में देखा था - पर इसकी *** में तो बाल ही नही हैं...""हाँ, मा**रचोद, मुझे मालूम है- तुझे हमेशा लड़की की *** ही दिखेगी... अब आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख, रख दे सारा समान बारमदे में और दफ़ा हो यहाँ से... और खबरदार मेरी लड़की की ओर दुबाराआँख उठा कर भी देखा तो... यह बेटी है मेरी ...."  
कल्लू को मानो साँप सूंघ गया हो, उसने चुपचाप वैसा ही किया जैसा माई ने कहा |फिर माई बोली, “और जैसा मैने कहा रात को वैसा ही करना वरना तेरे ही हँसिए से मैं तेरा गर्दन उड़ा दूँगी...”कल्लू के जाने के बाद माई ने बड़े लाड प्यार के साथ मेरा बदन पोंछ कर मेरे बाल सुखाए और मेरे बालों में कंघी की और कहने लगी, "मैं सोच रही थी, आज रात भेंट चढ़ने के बाद तू तो चली जाएगी... तू एक काम क्यों नही करती? तू मेरे पास ही क्यों नही रह जाती... बेटी बना कर रखूँगी तुझे मैं..."“नही माई, मुझे जाना ही होगा...”, मैने कहा |माईथोड़ा मुस्कुरई और फिर उसने मुझे थोड़ी और शराब पिलाई |फिर वह बोली, "बस बिटिया, अब तो सिर्फ़ रात का ही इंतेज़ार है...
आज ना जाने क्यों माई मुझे ज़रूरत से ज़्यादा शराब पीला रही थी और खाना कम खिला रहीथी, इसके साथ ही वह मेरे पूरे बदन को प्यार से सहला भी रही थी और बार बार यह कह रही थी कि, "आज की रात चूदेगी मेरी बेटी... 'वह' आ कर ****** मेरी बेटी को...आज रात यह लड़की खिलती हुई कली से फूल बन जाएगी...."
मैं मन ही मन बस एक ही बात दोहरा रही थी कि- “हे मा काली मेरी रक्षा करो”ना जाने मैं कब शराब के नशे में बेसूध हो गई थी, जब माई मुझे उठाने लगी तब तक काफ़ी रात हो चुकी थी, उसने मुझे नहा कर आने को कहा, मेरा नशा तब भी नही उतरा था- मैं किसी तरह लड़खड़ाती हुई कुँए के पास जा कर नहा कर आई- माई ने मुझे कमरे में ही रहने को कहा - इतने में फिर से घर के दरवाज़े के पास से कल्लू की आवाज़ आई, "माई ओ माई...



"माई, यह कल्लू इतनी रात को यहाँ क्या कर रहा है?", मैने गौर किया की मेरी ज़बान भी लड़खड़ा रही है, माई ने मुझे कुछ ज़्यादा ही पीला दिया था |“अब क्या बतायूं, बिटिया, तुझे भेंट चढ़ने के लिए मुझे इसके अलावा और कोई मिला ही नही...”
बात को समझ ने की कोशिश कर, बेटी... 'वह' एक आत्मा है, तुझे ***** के लिए उसे किसी मरद के शरीर की ज़रूरत पड़ेगी...मैं 'उसकी' आत्मा को कल्लू के शरीर में प्रवेश करवाउंगी... शरीर कल्लू का होगा और आत्मा 'उसकी'... और क्या फरक पड़ता है? तू तो लड़की है, तेरे को तो कुछ नही करना... तुझे तो सिर्फ़ अपनी टाँगे फैला कर लेटे रहना होगा...”

मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई, मेरा नशा मानो उतर सा गया... आज मेरा सर्वनाश होने वाला था वह कल्लू जैसे डोम के हाथों...

आप को और कोई नही मिला, माई?”, मैने झुंझला कर पूछा

अब क्या बतायूं, बिटिया... शैतानी आत्मा किसी राजा महाराजा, या फिर किसी राजकुमार के शरीर में तो आएगा नही... इसलिए मैने कल्लू डोम को ही चुना... और तू जानती है? जब मैं भेंट चढ़ि थी तो आत्मा मेरे गुरु के शरीर में आई थी, अब तैयार रहना बेटी... कुछ देर बाद ही तुझे भेंट चढ़ना है...”, यह कह कर माई कमरे से चली गई |
मैं विस्मित हो कर कमरे में बैठी रही, मुझे समझमें नही आ रहा था कि मैं के करूँ... लेकिन फिर से मुझे दूर से मंदिर की घंटिया और शंख की ध्वनि सुनाई देने लगी... मैं मन ही मन दोहराने लगी, 'हे मा काली मेरी रक्षा करो...'
  

 ***
करीब आधी रत हो चुकी थी, आँगन के पेड़ के नीचे आग जला कर माई बिल्कुल नंगी हो कर अपनी तांत्रिक पूजा कर रही थी; पास ही में एक चादर बिछी हुई थी, मुझे समझने में देर नही लगी कि इसी चादर में मुझे चित हो कर अपने पैरों को फैला कर लेटना होगा, ताकि मैं भेंट चढ़ सकूँ, बगल में कल्लू भी पालती मार कर नंगा बैठा हुआ था- पर शायद उसको कोई होश नही था... अचानक मुझे किसी के गुर्राने की आवाज़ सुनाई दी... मैने खड़की से झाँक कर देखा की कल्लू बड़े अज़ीब तरह से गुर्रा रहा था



शायद वह शैतानी आत्मा उसके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी...इतने में माई ने आवाज़ लगाई, "संध्या? संध्या मेरी बच्ची... बाहर आ जा, तेरा वक़्त आ गया है... अब अच्छी बच्ची की तरह इस चादर पे लेट जा, 'वह' तुझे ***** के लिए बेताब हो रहा है- उसकी प्यास अपनी उफनती जवानी से मिटा दे बेटी... अब कितना इंतेज़ार करवाएगी?...”मैं कमरे में से हिली नही, मैं सिर्फ़ मा काली का स्मरण कर रही थी... मुझे ना आते देख कर माई उठ कर कमरे में आई, और बड़े प्यार से बोली, "शर्मा रही है, बेटी? चल मैं तुझे अपने साथ ले कर चलती हूँ..."



मैंने अपनी आँखें बंद की और इस बार मुझे मा काली का करुणामयी रूप नही दिखा बल्कि उनका एक रुद्र रूप दिखाई दिया... मेरा पूरा शरीर ना जाने क्यों काँपने लगा... मेरे पूरे बदन में जैसे एक बिजली सी दौड़ने लगी... बाहर जैसे मौसम का मिज़ाज़ भी बदल गया, एक तूफान सा जैसे आ गया और ज़ोर ज़ोर से बिजली कडकने लगी... माई ने मेरे पास आ कर मेरा हाथ पकड़ कर कहा, "चल अब उठ मेरी बच्ची..."मैनें पट से अपनी आँखे खोली, कमरे में लगे शीशे में मेने अपनी परछाई देखी- मुझे लगा कि नही- यह मैं नही हूँ... मैने बलपूर्वक अपना हाथ छुड़ाया और मैने माई के सीने में एक लात दे मारी | माई चार पाँच फिट दूर कमरे के बाहर जा गिरी और भौंचक्की हो कर मुझे देखने लगी
मैं उठ कर कमरे से बाहर आई, कमरे के बाहर दरवाज़े के पास ही एक खुँटे से कल्लू का दिया हुआ हंसिया टंगा हुआ था, मैने उसे हाथ में ले लिया... माई डर गई... वह किसी तरह से उठ कर भागी और पेड़ के नीचे रखे हुए अपने लोटे में से हाथ में पानी ले कर कुछ मंत्र बड़बड़ा कर मेरे उपर पानी के छींटे मारने लगी... लेकिन इस बार मुझे उसके तंत्र मंत्र का कोई असर नही हुआ... माई ने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसा होते हुए कभी नही देखा था... मैं हाथ में हंसिया ले कर धीरे धीरे आगे बढ़ती गई, माई के कदम पीछे हटते गये, मेरे मूह से एक चीख निकली... यह चीख किसी दर्द यह फिर विवस्ता का नही था बल्कि यह चीख मानो एक युद्ध का ऐलान कर रही थी...

माई डर के मारे घर के पिछले दरवाज़े से बाहर भागी |

मेरे पूरे बदन में एक दिव्य शक्ति कौंध रही थी, मैं भी माई के पीछे भागी... पिछला रास्ता घर के टूटे फूटे शौचालय की तरफ जाता था और उस पतले से रास्ते के एक तरफ तालाब था और दूसरी तरफ दलदल!

माई मेरे यह रूप देख कर बहुत डर गई थी, अंघेरे में भागते हुए उसका पैर फिसल गया और वह सीघे दलदल में जा कर के गिरी और धीरे धीरे उसमें धँसने लगी |

वह चीखती चिल्लती हुई मुझसे गुहार लहने लगी, "बिटिया, मेरी मदद कर मैं दलदल में डूब रहीं हूँ... मुझे बचा ले ..."

अब मेरे मूह से एक भारी आवाज़ निकली, "संध्या ने एक बार निस्वार्थ भाव से तेरी मदद करनी चाही...और तू? उसका क्या हश्र करने वाली थी?"

ग़लती ही गई... ग़लती ही गई... यह सब 'उसका' किया धरा है... मुझे बचा ले बेटी... मुझे बचा ले...”, माई दलदल से निकल ने के लिए हाथ पैर मारती गई और वह जितना हाथ पैर मारती उतना ही दलदल में धँसती जाती... मैं हाथ में हंसिया उठाए दलदल के पास ही खड़ी रही... माई चीखती चिल्लती दलदल में समा गई...  
 
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