तांत्रिक पुजारन-04
अंधेरा
हो गया था |
आसपास
से टिड्डियों और मेंढकों की
आवाज़ों से जैसे वातावरन गूँज
रहा था |
यों तो मैं सिर्फ़ पार्टियों या फिर दोस्तों के साथ मिल कर ही शराब पीती हूँ- लेकिन एक तांत्रिक पुजारन के घर नंगी बैठ कर शराब पीने का यह पहला मौका था, शराब की बोतल पर एक लेबल लगा हुआ था, जिस में लिखा हुआ था टाइगर और उसमें सलमान ख़ान की फोटो भीलगी हुई थी- मुझे मालूम था कि माई मेरे उपर नज़र रखे हुए थी- वह समझ रही थी की धीरे धीरे मेरे उपर नशा चढ़ रहा है, क्योंकि वह मेरी मानसिक हालत से मानो हमेशा वाकिफ़ थी, उसे पता चल चुका था कि मैं धीरे धीरे अपने नंगेपन अभ्यस्त हो रही हूँ...
उसने तब मेरे बालों का फिर से एक जुड़ा बाँध दिया और बोली, "चल बेटी इससे पहले कि तू नशे में बेसूध हो जाए चूल्हा चौका संभाल ले - आज सुबह से इस घर में चूल्हा नही जला... आज से हम चारों जून सिर्फ़ माँस खाएँगे और शराब पिएँगे, और हाँ संध्या, तू जब घर के काम करेगी या फिर हॅगने- मूतने जाएगी अपने बाल बाँध लेना...”, थोड़ा रुक कर माई ने कहा, “और हाँ बिटिया, तू एक काम कर... बस मेरे से कह देना, तेरे बाल मैं ही बनाउंगी...", वह ऐसे बोल रही थी की मानो एक माँ अपनी दस साल की बेटी को समझा रही हो, "और खाली वक़्त अपने बाल खुले ही रखना, बेटी... खुले बालों में तू अच्छी लगती है..."
लेकिन मुझे एक बात बड़ी अजीब सी लगी, माई के घर के आँगन के बीचों बीच इतना बड़ा और घना सा पेड़ था- पर उसमे से मुझे सुबह से किसी चिड़िया या और कोई पक्षी की आवाज़ नही सुनाई दे रही थी | यहाँ तक कि जब मैं आँगन में झाड़ू लगा रही थी, तब भी मुझे पेड़ के आस पास ज़मीन पर किसी भी चिड़िया का पंख या फिर मल नही दिखा | शहर में मैं जिनके यहाँ मैं किराए पर रहती हूँ, उनके घर में भी एक बड़ा सा पेड़ है | जिसकी छाँव से छत हमेशा ठंडी रहती है, लेकिन छत पर कपड़े सुखाना नामुमकिन है, क्योंकि धुले हुए कपड़ो पर चिड़िया हमेशा गंदा का देती है-लेकिन यह पेड़ जैसे वीरान सा था- किसी चिड़िया का कोई घौंसला नही, एक गिलहरी तो दूर एक छिपकली भी नही- अच्छा है- मुझे छिपकलियों से बहुत डर लगता है |
यों तो मैं सिर्फ़ पार्टियों या फिर दोस्तों के साथ मिल कर ही शराब पीती हूँ- लेकिन एक तांत्रिक पुजारन के घर नंगी बैठ कर शराब पीने का यह पहला मौका था, शराब की बोतल पर एक लेबल लगा हुआ था, जिस में लिखा हुआ था टाइगर और उसमें सलमान ख़ान की फोटो भीलगी हुई थी- मुझे मालूम था कि माई मेरे उपर नज़र रखे हुए थी- वह समझ रही थी की धीरे धीरे मेरे उपर नशा चढ़ रहा है, क्योंकि वह मेरी मानसिक हालत से मानो हमेशा वाकिफ़ थी, उसे पता चल चुका था कि मैं धीरे धीरे अपने नंगेपन अभ्यस्त हो रही हूँ...
उसने तब मेरे बालों का फिर से एक जुड़ा बाँध दिया और बोली, "चल बेटी इससे पहले कि तू नशे में बेसूध हो जाए चूल्हा चौका संभाल ले - आज सुबह से इस घर में चूल्हा नही जला... आज से हम चारों जून सिर्फ़ माँस खाएँगे और शराब पिएँगे, और हाँ संध्या, तू जब घर के काम करेगी या फिर हॅगने- मूतने जाएगी अपने बाल बाँध लेना...”, थोड़ा रुक कर माई ने कहा, “और हाँ बिटिया, तू एक काम कर... बस मेरे से कह देना, तेरे बाल मैं ही बनाउंगी...", वह ऐसे बोल रही थी की मानो एक माँ अपनी दस साल की बेटी को समझा रही हो, "और खाली वक़्त अपने बाल खुले ही रखना, बेटी... खुले बालों में तू अच्छी लगती है..."
लेकिन मुझे एक बात बड़ी अजीब सी लगी, माई के घर के आँगन के बीचों बीच इतना बड़ा और घना सा पेड़ था- पर उसमे से मुझे सुबह से किसी चिड़िया या और कोई पक्षी की आवाज़ नही सुनाई दे रही थी | यहाँ तक कि जब मैं आँगन में झाड़ू लगा रही थी, तब भी मुझे पेड़ के आस पास ज़मीन पर किसी भी चिड़िया का पंख या फिर मल नही दिखा | शहर में मैं जिनके यहाँ मैं किराए पर रहती हूँ, उनके घर में भी एक बड़ा सा पेड़ है | जिसकी छाँव से छत हमेशा ठंडी रहती है, लेकिन छत पर कपड़े सुखाना नामुमकिन है, क्योंकि धुले हुए कपड़ो पर चिड़िया हमेशा गंदा का देती है-लेकिन यह पेड़ जैसे वीरान सा था- किसी चिड़िया का कोई घौंसला नही, एक गिलहरी तो दूर एक छिपकली भी नही- अच्छा है- मुझे छिपकलियों से बहुत डर लगता है |
खैर,
माई
के कहे अनुसार मैंने सुअर के
माँस में दही,
मसाले
आदि इत्यादि मिला कर उनको
जमाने के लए छोड़ दिया,
मैं
शाकाहारी परिवार की लड़कीहूँ,
मुझे
माँस पकाना नही आता लेकिन
आद्रक लहसुन पीस कर जैसे जैसे
माई ने कहा,
मैं
वैसा ही करती गई;
और
कुछ देर बाद मैने माँस को चूल्हे
में चढ़ा दिया,
माई
ने "बीच
बीच में थोड़ा माँस को हिलती
रहना,
बिटिया
वरना नीचे से माँस लग (जल)
जाएगा.."
"रोटी या चावल नही बनाना है क्या माई?", मैने पूछा
"नही, बिटिया आज से ले कर अमावस की रात तक तुझे चारों जून सिर्फ़ माँस ही खाना होगा, मैने तुझे भेंट चढ़ने के लिए तैयार जो करना है- खूब शराब भी पीना होगा तुझे... मैं चाहती हूँ कि तू हमेशा नशे में रहे, क्योंकि जब तू भेंट चढ़ेगी - "वह" आ कर तुझे ******; मैं चाहती हूँ कि तू भी ***** का मज़ा ले सके मेरी बच्ची...”
मुझे मालूम था कि मेरे साथ क्या होने वाला है और मैने अपनी नियती को स्वीकार भी कर लिया था; "लेकिन, मैं तो कभी भी इतना नही पीती..."
"मैं पीलाउंगी ना तुझे... अब चल चल माँस को थोड़ा हिला कर यह गिलास ख़तम कर ले"
कुछ देर बाद मैने माई से झिझकते हुए कहा, "माई, मुझे बाथरूम जाना है..."
"क्या?", माई को समझ में नही आया |
मैने उसके कान के पास जा कर कहा की मुझे पिशाब लगी है | माई थोड़ा मुस्कुराइ और एक लोटा पानी ले कर मुझे आँगन के पिछले दवाज़े से बाहर ले गई | घर के इस हिस्से को देखने का मुझे पहले मौका नही मिला था | पिछली तरफ एक पतला सा रास्ता जंगल की तरफ़ जाता था और रास्ते के बाँई तरफ एक बड़ा सा तालाब था और दांई तरफ की ज़मीन खाली पड़ी हुई थी...और घर से कुछ ही दूर एक टूटा फूटा सा शौचालय था... पुराने ज़माने के घरों के शौचालय घर के बाहर ही हुआ करते थे; मैं उसे देखते ही डर गई, ना जानेउसके अंदर कितने भयनक भयानक छिपकलीयाँ और कीड़े मकौड़े होंगे |
"रोटी या चावल नही बनाना है क्या माई?", मैने पूछा
"नही, बिटिया आज से ले कर अमावस की रात तक तुझे चारों जून सिर्फ़ माँस ही खाना होगा, मैने तुझे भेंट चढ़ने के लिए तैयार जो करना है- खूब शराब भी पीना होगा तुझे... मैं चाहती हूँ कि तू हमेशा नशे में रहे, क्योंकि जब तू भेंट चढ़ेगी - "वह" आ कर तुझे ******; मैं चाहती हूँ कि तू भी ***** का मज़ा ले सके मेरी बच्ची...”
मुझे मालूम था कि मेरे साथ क्या होने वाला है और मैने अपनी नियती को स्वीकार भी कर लिया था; "लेकिन, मैं तो कभी भी इतना नही पीती..."
"मैं पीलाउंगी ना तुझे... अब चल चल माँस को थोड़ा हिला कर यह गिलास ख़तम कर ले"
कुछ देर बाद मैने माई से झिझकते हुए कहा, "माई, मुझे बाथरूम जाना है..."
"क्या?", माई को समझ में नही आया |
मैने उसके कान के पास जा कर कहा की मुझे पिशाब लगी है | माई थोड़ा मुस्कुराइ और एक लोटा पानी ले कर मुझे आँगन के पिछले दवाज़े से बाहर ले गई | घर के इस हिस्से को देखने का मुझे पहले मौका नही मिला था | पिछली तरफ एक पतला सा रास्ता जंगल की तरफ़ जाता था और रास्ते के बाँई तरफ एक बड़ा सा तालाब था और दांई तरफ की ज़मीन खाली पड़ी हुई थी...और घर से कुछ ही दूर एक टूटा फूटा सा शौचालय था... पुराने ज़माने के घरों के शौचालय घर के बाहर ही हुआ करते थे; मैं उसे देखते ही डर गई, ना जानेउसके अंदर कितने भयनक भयानक छिपकलीयाँ और कीड़े मकौड़े होंगे |
"पयखाना
 देख कर तुझे डर लगता है,
 बेटी?",
 माई
 हंस पढ़ी |
  
मैने
 कहा,
 "हाँ"
  
"कोई
 बात नही तू यहीं कहीं झाड़ियों
 में बैठ जा..."
  
"लेकिन...",
 मैं
 थोड़ा झिझक रही थी  
"लेकिन
 वेकीन मत कर बेटी,
 मूतना
 है तो मूत ले...
 और
 हाँ बिटिया अकेली घर से बाहर
 मत निकलना...
 हमेशा
 मेरे साथ ही जाना |"
  
मेरे
 पास और कोई चारा नही था,
 मैं
 उस शौचालय में जाने से क़तरा
 रही थी और इधर मुझे अपने
 प्राकृतिक वेग से निपटना भी
 था...
 इस
 लिए मैं रास्ते के दांई तरफ़
 की खाली ज़मीन की ओर बढ़ी,
 माई
 ने झट से मेरा हाथ पकड़ के मुझे
 रोका और बोली,
 "पागल
 हो गई है क्या...
 देख
 नही सकती कहाँ जा रही है?
 वह
 खाली ज़मीन -
 ज़मीन
 नही है-
 दलदल
 है वह...
 एक
 बार तेरा पाँव पड़ गया बस अंदर
 धँसती चली जाएगी तू...”
  
"मुझे
 क्या मालूम,
 माई...",मैने
 अंजान बनते हुए कहा  
माई
 मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उस टूटे
 फूटे शौचालय के पास ले गयी और
 पास ही की झाड़ियों की तरफ
 इशारा करके बोली यहीं बैठ के
 मूत-
 मैने
 वैसा ही किया |
 माई
 ने लोटे से पानी लिया और मेरे
 गुप्त अंगो को धुला दिया...और
 बोली,
 "तेरे
 दो टाँगो के बीच में तो बाल
 ही नही हैं...
 "  अब
 मैं कैसे उसे समझायूं कि मैं
 हेयर रिमूवर का इस्तेमाल करती
 हूँ |
  
माई
 बोलती रही,"तेरे
 से पहले एक और लड़की को मैं
 चुरा कर लाई थी...
 उसे
 भी इस पयखाने डर लगता था;
 उसकी
 दो टाँगों बीच तो बालों जंगल
 बना हुआ था...
 बहुत
 बदतमीज़ थी वह....
 मेरा
 कहा नही मानती थी...
 हमेशा
 रोती बिलखती रहती थी;
 बेचारी
 एकदिन इसी दलदल में समा गई
 ... और
 मेरी साधना अधूरी ही रह गई |
 अच्छा
 हुआ की वक़्त रहते तू मुझे
 मिल गई,
 लेकिन
 तू मेरी अच्छी बेटी है...
 उससे
 बहुत सुंदर है;
 तेरी
 कमर तक लंबे काले और घने रेशमी
 बाल,
 पूरी
 तरह से विकसित सुडौल ******
 का
 जोड़ा (स्तन),
 छरहरा
 बदन,
 मांसल
 कूल्हे...
 सीधी
 सी बात है कि कल्लू डोम का दिल
 तुझ पर आ गया...”
  
ना
 जाने क्यों मेरे मूह से निकला,
 "माई,
 मैं
 कल्लू के साथ नही सोउंगी-
 कितना
 गंदा है वह..."
  
"कल्लू
 के साथ तू क्यों सोएगी मेरी
 बच्ची...
 तुझे
 तो 'वह
 ' आ
 कर ******...
 इस
 लिए तो तुझे मैं माँस मछली
 दारू पीला कर उस रात के लिए
 तैयार कर रही हूँ ",
 माई
 ने आसमान की तरफ इशारा करते
 हुए कहा,
 "बोल
 मेरी बच्ची...
 खुशी
 खुशी ******
 ना?"
  
"हाँ
 माई,
 मैने
 कहा ना...
 आप
 जैसा कहेंगी मैं वैसा ही
 करूँगी...",
 मैने
 दलदल की तरफ देखते हुए कहा |
  
“बस
 तीन दिन की ही तो बात है-
 फिर
 मैं तुझे हमेशा के लिए आज़ाद
 का दूँगी...",
 माई
 ने मुस्कुरा कर कहा |
अपना
 घर और अपना बिस्तर-
 तकिया
 ना हो तो मुझे ठीक से नींद नही
 आती और वैसे भी मैं तो माई ने
 तो मुझे क़ैद करके रखा था-
 'भेंट
 चढ़ने के लिए '-
 यह
 शायद देशी शराब का असर था कि
 मुझे थोड़ी नींद आ गई |
 लेकिन
 आँख खुलते के साथ ही,
 मैं
 मानो अपने हालत से दोबारा
 वाकिफ़ हो गई |
माई के कहे अनुसार मुझे आज से कुछ ख़ास नियम क़ानूनो को मान कर चलना था ...
कुछ भी हो इस गाँव की आबोहवाह में ऐसी ताज़गी थी जो कि शहर के वातावरण में नही होती है| आज घने बादल भी छाए हुए थे बिजली भी कड़क रही थी, लगता है कि ज़ोरों की बारिश होने वाली है |
मैंने धीरे धीरे उठ कर कमरे के बाहर आँगन में कदम रखा, माई तब भी सो रही थी | किसी भी दरवाज़े पर कोई भी ताला नही था, पर मैं भाग भी नही सकती थी, क्योंकि माई का टोटके की वजह से मैं अपने बदन पर कोई कपड़ा नही पहन सकती थी... बिना कपड़ो के इस वीरान इलाक़े से बाहर जाना नामुमकिन है |
माई के कहे अनुसार मुझे आज से कुछ ख़ास नियम क़ानूनो को मान कर चलना था ...
कुछ भी हो इस गाँव की आबोहवाह में ऐसी ताज़गी थी जो कि शहर के वातावरण में नही होती है| आज घने बादल भी छाए हुए थे बिजली भी कड़क रही थी, लगता है कि ज़ोरों की बारिश होने वाली है |
मैंने धीरे धीरे उठ कर कमरे के बाहर आँगन में कदम रखा, माई तब भी सो रही थी | किसी भी दरवाज़े पर कोई भी ताला नही था, पर मैं भाग भी नही सकती थी, क्योंकि माई का टोटके की वजह से मैं अपने बदन पर कोई कपड़ा नही पहन सकती थी... बिना कपड़ो के इस वीरान इलाक़े से बाहर जाना नामुमकिन है |
मैं
  यह सब सोच ही रही थी कि अचानक
  मेरा ध्यान कहीं दूर से आ रही
  मंदिर की घंटियों और शंख की
  आवाज़ पर गया |
  मैं
  आवाज़ को सुनती हुई ना जाने
  कब घर के पिछले दरवाज़े से
  निकल कर जो पतला सा रास्ता
  शौचालय की तरफ जाता था-वहाँ
  खड़ी हो कर जंगल कि तरफ़ देखने
  लगी कि मंदिर की घंटियों,
  ढाक
  ढोल की आवाज़ की आवाज़ और शंख
  ध्वनि जो मेरे अंदर एक जोश
  सा भर रही है -
  किस
  तरफ से आ रही है...
  मुझे
  लगा कि कुछ ही दूर ज़रूर कहीं
  माँ काली का कोई मंदिर होगा
  | 
जहाँ
  सुबह सुबह आरती हो रही है,
  मैने
  तालाब में उतर कर एक डुबकी
  लगाई और अपने हाथ जोड़ कर माँ
  काली का स्मरण किया -
  "हे
  माँ काली,
  मेरी
  रक्षा करो..." 
तभी
  ज़ोर से बिजली कड़क उठी और
  तेज़ बारिश शुरू हो गई |
  
  
   
मैं
   तालाब के पानी से निकल कर माई
   के घर के आँगन में गई और जल्दी
   जल्दी आँगन में सूख रहे माई
   के कपड़ों को उतारने लगी,
   फिर
   घर के बरामदे में आ कर एक गमछा
   ले कर अपने बाल और बदन पोंछने
   लगी,
   शुक्र
   है कि माई तब भी सो रही थी |
   उसे
   मालूम था कि मैं उसके घर कहीं
   भाग भी नही सकती थी,
   लेकिन
   उसने मुझे घर के बाहर अकेले
   जाने से माना कर रखा था जब
   मैं कमरे में गई तो माई उठ
   चुकी थी |
   मैंने
   माई के कहे अनुसार ज़मीन पर
   घुटनो के बल बैठ कर अपना झुका
   कर ज़मीन पर टेक कर अपने बालों
   को सामने की तरफ़ फैला दिया,
   और
   बोली,
   "प्रणाम,
   माई!" 
माई
   ने अपने दोनो पैर के तलवे
   मेरे बालों पर रख कर मुझे
   'आशीर्वाद'
   दिया,
   और
   बोली,
   "आ
   बिटिया मेरे पास आ कर बैठ...
   बारिश
   हो रही है क्या?"
   
   
"हाँ
   माई..." 
"हाय
   दैया!
   मेरे
   कपड़े भीग जाएँगे...” 
"मैं
   कपड़े उतार के ले आई..." 
"और
   तू बारिश में भीग भी गई?
   तभी
   तो तेरे बाल गीलें हैं" 
"हाँ,
   माई” 
"माई,
   यहाँ
   आस पास कोई मंदिर है क्या?" 
"हाँ,
   थोड़ी
   दूर ही काली मा का एक मंदिर
   है" 
"आप
   कभी गई हैं वहाँ?" 
"नही
   बेटी,
   मेरा
   रास्ता अलग है-
   मैं
   काली माँ के मंदिर के आस पास
   भी नही जा सकती ...पर
   यह सब तू क्यूँ पूछ रही है?” 
“जी
   कुछ नही...
   आप
   बैठिए,
   मैं
   पानी लाती हूँ आप मूह हाथ धो
   लीजिए |",
   ना
   जाने क्यों मुझे लग रहा था
   कि माई कुछ कमज़ोर सी लग रही
   थी... 
"और
   हाँ,
   बिटिया-
   उसके
   बाद शराब की बोतल,
   दो
   गिलास और बचा हुआ माँस भी ले
   कर आना...
   बहुत
   भूख लगी है मुझे...और
   हाँ बिटिया,
   अब
   से हर रोज़ कल्लू आ कर खाने
   पीने का सामान दे कर जाएगा,
   याद
   रही उसकी नज़र तुझ पर नही
   पढ़नी चाहिए |" 
मुझे
   लग रहा था कि जैसे जब व्रत
   रखा जाता है,
   तो
   लोग ख़ान पान में परहेज़ करते
   हैं-
   वैसे
   ही शायद माई आज कल सिर्फ़
   माँस और शराब पी रही थी और
   मुझे भी वैसा ही खिला पीला
   रही थी | 
"जी
   माई..",
   यह
   बोल कर मैं रसोई से शराब और
   माँस ले आई ,
   माई
   मूह हाथ धो कर पहले से ही ज़मीन
   पर उकड़ू हो कर बैठ कर खाने
   का इंतेज़ार कर रही थी |
   मैने
   दो थालियों में माँस परोसा
   और गिलास में शराब डाल कर माई
   की ओर बढ़ाया...
   माई
   ने मुझे अपने बिल्कुल पास
   आकर उकड़ू हो कर बैठने को कहा
   और अपने हाथों से मुझे उसने
   शराब का एक घूँट पीला कर मेरे
   बालों को सहलाती हुई बोली,
   "मेरी
   प्यारी बच्ची...
   कितनी
   सुंदर है तू...
   खुले
   बालों में और नंगी और भी
   खूबसूरत लगती है तू...",
   यह
   कह वह मेरे स्तानो को भी हल्का
   हल्का दबाने लगी और फिर उसका
   हाथ मेरी दो टाँगो के बीच में
   चला गया... 
मैनें
   चौंक कर पूछा,
   "यह
   आप क्या कर रहीं हैं माई?" 
"कुछ
   नही बेटी,
   बस
   तेरी जवानी की ज़रा तारीफ
   कर रहीं हूँ...
   बरसों
   पहले मुझे भी यहाँ कोई चुरा
   कर लाया था,
   लेकिन
   मैं तेरे से छोटी थी,
   उसने
   मुझे भी कई दिनों तक घर में
   बिल्कुल नंगी रखा,
   शराब
   पिलाया,
   माँस
   खिलाया...
   फिर
   वक़्त आने पर उसने मुझे भी
   भेंट चढ़ाया,
   मैं
   भी तेरी ही तरह कुँवारी थी,
   बिल्कुल
   अनछुई....
   इस
   लिए पहली बार चुदते वक़्त
   मुझे बहुत दर्द हुआ था...
   तुझे
   भी होगा...
   कौमार्य
   झिल्ली के फटते समय खून भी
   बहा था...
   मैं
   जानती हूँ के तेरे साथ भी ऐसा
   ही होगा,
   पर
   धीरे धीरे सब कुछ अच्छा लगने
   लगेगा...” 
“पर
   आपने तो कहा था कि,
   ऐसा
   योग सौ साल में एक बार आता
   है...” 
"हाँ,
   बिटिया...
   परसों
   वाला योग...
   वरना
   वैसे तो किसी भी अमावस को
   लड़की भेंट चढ़ाई जा सकती
   है..." 
“आपको
   यहाँ चुरा कर कौन लाया
   था?” 
“मेरा
   गुरु,
   उनको
   गुज़रे बहुत साल हो गये...
   भेंट
   चढ़ने के बाद मैं उसी (गुरु
   की)
   की
   हो कर रह गई...
   तंत्र
   मंत्र सीखी...
   और
   आज तू मेरे पास है...
   ” 
मैं
   अवाक हो कर माई की तरफ़ देख
   रही थी | माई
   बड़े लाड से बोली,
   "अब
   ऐसे आँखे फाड़ फाड़ कर मत देख
   बेटी,
   चल
   शराब पी कर नशा कर ले...तुझे
   घर के काम भी तो करने हैं...
   थोड़ी
   देर में कल्लू भी आता होगा
   माँस और शराब ले कर,
   उससे
   पहले जा कर पानी भर ले...
   बरसात
   भी तेज़ हो रही है...कोई
   बात नही...
   मैं
   बदन पोंछ दूँगी और तेरे बाल
   सूखा कर कंघी कर दूँगी...
   आज
   रात से तुझे तो मेरी तांत्रिक
   पूजा में मदद भी करनी होगी...”
   
   
  
 
 
 
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