तांत्रिक पुजारन-06
अब
मेरा ध्यान आँगन में बैठे उस
शैतानी आत्मा की तरफ गया,
मैं
आँगन घुसी,
मैने
देखा की कल्लू बिल्कुल नंगा
पेड़ के नीचे बैठा हुआ गुर्रा
रहा है,
उसकी
आँखो की पुतलियाँ पलट कर मानो
उसके सर में घुस गई थी,
उसकी
आँखों का सिर्फ़ सफेद हिस्सा
ही नज़र आ रहा था...
मुझे
अपने पास आते देख कर वह डरते
डरते खड़ा हो गया पर ऐसा लग
रहा था कि मानी उसे अपने शरीर
पर काबू नही है,
वह
लड़खड़ा रहा था -
क्योंकि
उसके शरीर में जो शैतानी आत्मा
प्रवेश कर चुकी थी अब वह निकल
कर भागने की कोशिश कर रही थी...
मैं
हाथ में हंसिया उठाए लंबे लंबे
डॅग मारती हुई सीधे उसके पास
जा कर अपने बाएँ हाथ से उसका
गला पकड़ कर उसका भारी भरकम
शरीर ज़मीन से उठा लिया -
ना
जाने मुझेमे इतनी ताक़त कहा
से आ गई थी -
"कौन है रे तू?", मेरे अंदर से वही भारी आवाज़ निकली |
जवाब में कल्लू सिर्फ़ गुर्राता गया... मैने उसे उठा कर दूर फैंका, लेकिन कल्लू किसी तरह उठ कर भागने लगा... मैं भी उसके पीछे भागी - आज उस शैतानी आत्मा को उसके किए की सज़ा मिलनी थी |
गाँव के अंधेरे रास्ते में कल्लू गुर्राता हुया भागता रहा, मैं भी उसके पीछे हाथ में हंसिया उठाए नंगे बदन खुले बालों में तूफान को चीरती हुई भागती रही...
कल्लू भागते भागते अचानक एक बड़े से दरवाज़े के पास आ कर ठिठक कर रुक गया... यह गाँव के मा काली का मंदिर था |
मंदिर के किवाड़ बंद थे और दूसरी तरफ मैं थी, मैं धीरे धीरे कल्लू के पास आई और उसके सीने में एक लात मारी...
कल्लू मंदिर के दरवाज़े की कुण्डी तोड़ता हुआ मंदिर के आँगन में जा गिरा और छटपटाने लगा... मंदिर की घंटिया खुद ब खुद बज रही थी... मंदिर का पवित्र वातावरण उस शैतानी आत्मा के लिए बर्दाश्त के बाहर हो रहा था - वह गुर्राता रहा चीखता रहा फिर अचानक उसके मूह से धुँए का एक गुबार सा निकला - यह उस शैतानी आत्मा का प्रतीक था- मैने हंसिया उस गुबार की तरफ फैंक मारा !
एक जबदस्त विस्फोट सा हुआ और हर तरफ चिंगारियों की बरसात सी होने लगी... कल्लू एकदम निढाल सा हो कर पड़ा हुआ था और अब मुझे चक्कर से आने लगे और मैं बेहोश हो कर मंदिर के आँगन में ही गिर पड़ी....
सुबह
सुबह मंदिर में चल रही आरती
की आवाज़ से मेरी नींद खुली,
मैने
देखा कि मैं एक बिस्तर पे लेटी
हुई हूँ और मेरा बदन एक चादर
से ढका हुआ है,
माई
के तंत्र मंत्र का असर शायद
जा चुका था वरना तो मैं अपने
बदन पर कपड़े का एक कतरा भी
नही रख पाती थी | "कौन है रे तू?", मेरे अंदर से वही भारी आवाज़ निकली |
जवाब में कल्लू सिर्फ़ गुर्राता गया... मैने उसे उठा कर दूर फैंका, लेकिन कल्लू किसी तरह उठ कर भागने लगा... मैं भी उसके पीछे भागी - आज उस शैतानी आत्मा को उसके किए की सज़ा मिलनी थी |
गाँव के अंधेरे रास्ते में कल्लू गुर्राता हुया भागता रहा, मैं भी उसके पीछे हाथ में हंसिया उठाए नंगे बदन खुले बालों में तूफान को चीरती हुई भागती रही...
कल्लू भागते भागते अचानक एक बड़े से दरवाज़े के पास आ कर ठिठक कर रुक गया... यह गाँव के मा काली का मंदिर था |
मंदिर के किवाड़ बंद थे और दूसरी तरफ मैं थी, मैं धीरे धीरे कल्लू के पास आई और उसके सीने में एक लात मारी...
कल्लू मंदिर के दरवाज़े की कुण्डी तोड़ता हुआ मंदिर के आँगन में जा गिरा और छटपटाने लगा... मंदिर की घंटिया खुद ब खुद बज रही थी... मंदिर का पवित्र वातावरण उस शैतानी आत्मा के लिए बर्दाश्त के बाहर हो रहा था - वह गुर्राता रहा चीखता रहा फिर अचानक उसके मूह से धुँए का एक गुबार सा निकला - यह उस शैतानी आत्मा का प्रतीक था- मैने हंसिया उस गुबार की तरफ फैंक मारा !
एक जबदस्त विस्फोट सा हुआ और हर तरफ चिंगारियों की बरसात सी होने लगी... कल्लू एकदम निढाल सा हो कर पड़ा हुआ था और अब मुझे चक्कर से आने लगे और मैं बेहोश हो कर मंदिर के आँगन में ही गिर पड़ी....
मैं याद करने की कोशिश कर रही थी कि मैं माई के घर से यहाँ कैसे पहुँची... कुछ देर बाद कमरे के दरवाज़े खोल कर एक बुजुर्ग औरत अंदर आई और उसने मेरे पैर छू कर मुझे प्रणाम किया और बोली, "बेटी तुम कौन हो? इस गाँव की तो नही लगती... पर कल रात तुमने हम सब को स्वयं मा काली के दर्शन करवाए ... तुम्हे प्रणाम! "
मैंने रोते हुए उनको अपनी आप बीती सुनाई, मुझे तो लग रहा था कि उनको मेरी कोई भी बात का विशवाश नही होगा, लेकिन उन्होने कहा, "मा काली का लाख लाख धन्यवाद! तुम्हारे जैसी कई लड़कियाँ उस तांत्रिक औरत की बलि चढ़ चुकी हैं ... अपनी क्रिया पूरी होने के बाद शायद वह तुम्हे भी मार कर उस दलदल में फैंक देती... अच्छा हुआ की तुम बच गई... और तुमने उस तांत्रिक औरत का भी नाश कर दिया... लो यह कपड़े पहन लो ... और मा (मा काली) के दर्शन कर लो..."
यह कह कर वह औरत कमरे के बेर मेरा इंतज़ार करने लगी, हाँ माई के मंत्रो का असर उसके साथ ही ख़तम हो चुका था कपड़ो से मुझे कोई जलन महसूस नही हो रही थी, उस औरत ने मुझे बंगाली तांत की बनी एक सुंदर सी साड़ी और एक ब्लऊज दी थी |
मैं जब बाहर आने को हुई तब मुझे एक आदमी की आवाज़ सुनाई दी वह बांगला बोल रहा था, , "मेय टा की उठे पोड़ेछे? (वह लड़की जाग गई है क्या)?"
मैं बाहर आई, एक बुज़ुर्ग आदमी जो की उस औरत का पति और मंदिर का पुजारी भी था, उसने भी मेरे पैर छू कर प्रणाम किया और बांग्ला मे ही बोले कि बेटी जाओ, मा काली के दर्शन कर लो |
मैं मंदिर के अंदर गई, वहाँ एक मा काली बड़ी सी मूर्ति थी - मा का वही करुणामई रूप और हाथों में कई तरह के अस्र शत्र और एक हाथ में एक असुर का कटा हुआ शीश...
मैने आँखों में आँसू ले कर मा के चरणों में गिर पड़ी |
मंदिर के बाहर काफ़ी लोग इकठ्ठा हो चुके थे, मुझे आते देख कर सब के सब मुझे प्रणाम करने लगे, मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि मैं जानती थी मैं इस सनमान के लायक नही थी - लेकिन इस गाँव के लोगों को काओं समझाए, खास कर तब जब मैने एक दुष्ट तांत्रिक औरत का नाश किया था - जाते जाते वर्दी में खड़े पुलिस इनस्पेक्टर को देख कर मैं ठिठक गई... पर उसने भी मुझे प्रणाम किया और बोले, "मैडम इस रिपोर्ट पर आप साइन कर दीजिए..."
मंदिर की पुजार्न ने पूछा, "क्या लिखा है इसमे?"
"क्या लिखूं? आप ही बताइए? तंत्र मंत्र? जादू टोना? या फिर कल्लू डोम इस लड़की का रेप करने जा रहा था और बचाव के लिए इस लड़की ने हंसिया उठा लिया... कल्लू डर के मारे भागता रहा और मर गया ...."
"मौत की वजह?", मैने पूछा
"दिल का दौरा...."
"और माई?..."
"उसका कोई पता नही....अगर वह मर भी गई होगी तो पुलिस को उसकी लाश चाहिए... अब आप इस काग़ज़ पर साइन कर दें... मुझे और भी काम है...", इनस्पेक्टर साहब बोले |
मेरे कपड़े, गहने और मोबाइल फ़ोन माई के घर में ही था, मंदिर की पुजारीन के ज़िद करने से मैं उनके साथ उसके घर तक गई, मेरे साथ गाँव के काफ़ी लोग भी थे | मैने एक एक करके अपना सारा सामान समेटा और निकल आई |
मुझे स्टेशन तक छोड़ने गाँव के लोगों के साथ पुजारी जी खुद अपनी पत्नी को ले कर आए थे | जाते जाते उन्होंने मुझे वह हँसीया थमाया और बोले, "बेटी, इस हँसिए को हमेशा अपने पास रखना..."
ट्रेन की सिटी बजी और मैंने दुबारा मा काली का स्मरण किया और निश्चय किया किया की हर साल मैं दीवाली में मा काली के मंदिर में पूजा चढ़ाने धूमिया गाँव ज़रूर आउंगी |
**** जय मा काली **
 
 
 
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