तांत्रिक पुजारन-02
थोड़ा
आराम करने के बाद मैं माई के
कही अनुसार बाज़ार के लिए निकल
गयी,
माई
के के घर के आसपास सिवाए जंगल
के कुछ भी नही था...लेकिन
थोड़ी दूर चलने के बाद ही था
धूमिया गाँव का बाज़ार |
माई की दी हुई फेहरिस्त में सब्जियों के साथ ज़्यादा तर पूजा पाठ की सामग्री ही लिखी हुई थी, लेकिन उसके साथ सूअर के माँस का कीमा और चार बोतल देशी शराब का भी ज़िक्र था |
मैं वैसे तो माँस मछली नही खाती, लेकिन फिर भी माई के कहे अनुसार मैने सारा सामान खरीद लिया... यों तो मैं शहर में मैं चाय की दुकान मैं निम्न वर्गीय लोगों के साथ खड़े हो कर चाय पीने से कतरा रही थी, लेकिन ना जाने क्यों मैं बिना दोबारा सोचे सीधे बाज़ार में लगी देसी शराब की दुकान में बे झिझक पहुँच गयी; शराब खरीदते वक़्त एक आदमी ने मेरे से कहा, "अरी कमसिन कली, यहाँ की तो नही लगती... किसके घर आई है? थोड़ी हम पर भी महरबान हो जा..."
"मैं माई के घर आई हूँ"
यह सुनते ही उसका चेहरा जैसे उतार गया... मानो वह डर गया हो | लगता है की माई की इस गाँव में बहुत चलती है... लोग बाग उसे जानते हैं और मानते भी हैं |
***
मुझे अभी भी याद है की माई के घर पहुँचने के बाद, मैने देखा की वह पेड़ के नीचे बैठ कर फिर से अपनी रुद्राक्ष की माला जप रही थी | उसके आगे एक छोटी सी थाली में एक सेब रखा हुआ था |
मुझे देखते ही वह बोली, "बिटिया, शराब ले कर आई है ना?"
मैने कहा, "जी हाँ, माई..."
"ठीक है, सारा सामान पेड़ के नीचे रख दे... मैं यह सारा समान 'उसको' पहले भेंट चढ़ाउंगी... अभी मेरी पूजा में थोड़ा सा वक़्त और लगेगा, तब तक तू कुँए के पानी भर ले, खाना बनाना है और मैने तुझे नहलाना भी तो है..."
जितनी देर में मैने कुँए से पानी निकाल कर हौदी, बल्टियों और मटकों मे भर दिया, उतनी देरमें माई की पूजा ख़तम हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था की मानो वह मेरा ही इंतज़ार कर रही हो |
"ले बेटी, तोड़ा सा प्रसाद खा ले", यह कह कर उसने मुझे उस छोटी सी थाली में रखा हुआ सेब खाने को दिया |
मैने उसके कहे अनुसार पूरा सेब खा लिया |
खाने के साथ ही मेरा सिर दोबारा से चकराने लगा... जैसा की मुझे स्टेशन मे महसुस हुआ था |
शायद उसने मेरे मान की बात जान ली, " अभी तू मेरे साथ कमरे में चल, कुछ ही देर में बारिश शुरू होने वाली है, अगर तू भीग गई तो तेरा टीका धुल जाएगा... मेरे वश का असर तेरे से हट जाएगा... पर 'वह' चाहता है की मैं तुझ जैसी एक लड़की का ही भेंट उसे चढ़ाउँ... तू बहुत सुंदर है... कमसिन है, भोली भाली है और कुँवारी है... तेरी कौमार्य झिल्ली अभी तक बरकरार है... लेकिन 'उसने' ना जाने क्यों बार बार मुझ से कहा था कि था कि 'उसको' बिल्कुल तेरे जैसी कोई लड़की चाहिए... जब मैने तुझे दूर से ही चल कर आते हुए देखा था, तभी मैं समझ गई थी की मेरी तलाश ख़तम हो गई... ‘वह’ तेरी उफनती जवानी का रस चूस चूस कर पीएगा... इससे पहले कि उसका साया तुझ पर पड़े और मेरे वश का असर तेरे उपर से धुल जाए... मैं एक बार जी भर के तुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती हूँ... बोल बिटिया, क्या तू मेरे सामने नंगी होगी?"
जैसा कि मैने कहा की मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुघ सा महसूस हो रहा था...मैं समझ थी कि माई मुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती थी... और मुझे अज़ीब सा लग रहा था, लेकिन मेरे मन को लग रहा था कि माई जब इतने प्यार से मुझ से यह सब बोल रही है तो वह शायद मेरी तारीफ ही कर रही होगी | इस लिए मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही |
"तू इतनी चुप क्यों हैं?”, फिर वह मुस्कुरा कर बोली , “तू बहुत स्त्रैण हैं... तेरी अंतर आत्मा तुझे जबाब देने से रोक रही है...चल बेटी अंदर चल और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान... उसके बाद मैं तुझे आंगन में और घर के बाहर नंगी हो ही कर कदम रखने की इज़ाज़त दूँगी... कमरे में जा कर के अपने सारे कपड़े उतार दे- सबसे पहले मैं तुझे एक बार जी भर के नंगी देखना चाहती हूँ - उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं और देख अब तक तो दोपहर होने को आई.... देख घर कितना गंदा हुआ पड़ा है... और अब तक चूल्हा भी ठंडा पड़ा हुआ है ... तुझे झाड़ू पोंछा, चूल्हा चौका भी तो करना है... घर में तुझ जैसी जवान लड़की के होते हुए यह सब मैं बुढ़िया करूँगी क्या?... और उसके बाद मैने तुझे नहला धुला के भेंट के लिए तैयार भी तो करना है... चल बिटिया अंदर चल.. 'वह' सब जानता है, ‘वह’ सब कुछ देख सकता है... लेकिन तेरी कुंवारी जवानी को कोई अगर पहले नंगा देखेगा तो वह मैं होउंगी... क्योंकि मैं ही तुझे चुरा कर लाई हूँ... कुछ ही देर में डोम भी आता होगा; शमशान की राख और मिट्टी लेकर के... चल, चल, चल अंदर चल... और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान कर बिल्कुल नंगी हो जा..."
माई मुझे कमरे में ले गयी | कमरे में एक खटिया एक पुरानी लकड़ी की अलमारी और कुछ घरेलू सामान रखा हुया था | दीवार में एक बड़ा सा आईना भी टंगा हुआ था, माई ने मुझे उस आईने के सामने ला कर खड़ा किया और बोली, "अब मैं तेरे कपड़े उतारने जेया रही हूँ बेटी; और याद रही इसके बाद मेरे घर आँगन में तुझे नंगी हो कर ही रहना होगा..."
उसके
बाद माई ने एक एक करके मेरी
साड़ी,
ब्लाऊज
पेटिकोट और ब्रा और पैन्टी
उतार दी,यहाँ
तक की मारे मेरे हाथ की चूड़ियाँ,
गले
से सोने का हार और कान से सोने
की बालियां भी और बोली,
"हाय
री,
तू
नंगे बदन कितनी सुंदर लगती
है...",
यह
कह कर उसने मेरे बाल भी खोल
दिए और बोली,
"अपने
आप को आईने ने में देख बिटिया
तेरे ऊपर भरपूर जवानी चढ़ चुकी
है,
तू
जो एक अच्छी जात की लड़की है
यह तो तो मैं तुझे देखते ही
समझ गयी थी,
तेरी
कमर तक लंबे काले और घने रेशमी
बाल,
पूरी
तरह से विकसित सुडौल उभारों
का जोड़ा,
छरहरा
बदन,
मांसल
कूल्हे...
और
यह मत भूल बिटिया...
तेरे
अंदर तो अभी जवानी की आग भड़क
रही है...
मैं
उसकी गर्मी महसूस कर सकती
हूँ...
आ
जा बिटिया मेरे गले से लग
जा...”माई की दी हुई फेहरिस्त में सब्जियों के साथ ज़्यादा तर पूजा पाठ की सामग्री ही लिखी हुई थी, लेकिन उसके साथ सूअर के माँस का कीमा और चार बोतल देशी शराब का भी ज़िक्र था |
मैं वैसे तो माँस मछली नही खाती, लेकिन फिर भी माई के कहे अनुसार मैने सारा सामान खरीद लिया... यों तो मैं शहर में मैं चाय की दुकान मैं निम्न वर्गीय लोगों के साथ खड़े हो कर चाय पीने से कतरा रही थी, लेकिन ना जाने क्यों मैं बिना दोबारा सोचे सीधे बाज़ार में लगी देसी शराब की दुकान में बे झिझक पहुँच गयी; शराब खरीदते वक़्त एक आदमी ने मेरे से कहा, "अरी कमसिन कली, यहाँ की तो नही लगती... किसके घर आई है? थोड़ी हम पर भी महरबान हो जा..."
"मैं माई के घर आई हूँ"
यह सुनते ही उसका चेहरा जैसे उतार गया... मानो वह डर गया हो | लगता है की माई की इस गाँव में बहुत चलती है... लोग बाग उसे जानते हैं और मानते भी हैं |
***
मुझे अभी भी याद है की माई के घर पहुँचने के बाद, मैने देखा की वह पेड़ के नीचे बैठ कर फिर से अपनी रुद्राक्ष की माला जप रही थी | उसके आगे एक छोटी सी थाली में एक सेब रखा हुआ था |
मुझे देखते ही वह बोली, "बिटिया, शराब ले कर आई है ना?"
मैने कहा, "जी हाँ, माई..."
"ठीक है, सारा सामान पेड़ के नीचे रख दे... मैं यह सारा समान 'उसको' पहले भेंट चढ़ाउंगी... अभी मेरी पूजा में थोड़ा सा वक़्त और लगेगा, तब तक तू कुँए के पानी भर ले, खाना बनाना है और मैने तुझे नहलाना भी तो है..."
जितनी देर में मैने कुँए से पानी निकाल कर हौदी, बल्टियों और मटकों मे भर दिया, उतनी देरमें माई की पूजा ख़तम हो चुकी थी और ऐसा लग रहा था की मानो वह मेरा ही इंतज़ार कर रही हो |
"ले बेटी, तोड़ा सा प्रसाद खा ले", यह कह कर उसने मुझे उस छोटी सी थाली में रखा हुआ सेब खाने को दिया |
मैने उसके कहे अनुसार पूरा सेब खा लिया |
खाने के साथ ही मेरा सिर दोबारा से चकराने लगा... जैसा की मुझे स्टेशन मे महसुस हुआ था |
शायद उसने मेरे मान की बात जान ली, " अभी तू मेरे साथ कमरे में चल, कुछ ही देर में बारिश शुरू होने वाली है, अगर तू भीग गई तो तेरा टीका धुल जाएगा... मेरे वश का असर तेरे से हट जाएगा... पर 'वह' चाहता है की मैं तुझ जैसी एक लड़की का ही भेंट उसे चढ़ाउँ... तू बहुत सुंदर है... कमसिन है, भोली भाली है और कुँवारी है... तेरी कौमार्य झिल्ली अभी तक बरकरार है... लेकिन 'उसने' ना जाने क्यों बार बार मुझ से कहा था कि था कि 'उसको' बिल्कुल तेरे जैसी कोई लड़की चाहिए... जब मैने तुझे दूर से ही चल कर आते हुए देखा था, तभी मैं समझ गई थी की मेरी तलाश ख़तम हो गई... ‘वह’ तेरी उफनती जवानी का रस चूस चूस कर पीएगा... इससे पहले कि उसका साया तुझ पर पड़े और मेरे वश का असर तेरे उपर से धुल जाए... मैं एक बार जी भर के तुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती हूँ... बोल बिटिया, क्या तू मेरे सामने नंगी होगी?"
जैसा कि मैने कहा की मैं सब कुछ सुन रही थी और समझ भी रही थी, लेकिन मुझे ना जाने क्यों कैसा बेसुघ सा महसूस हो रहा था...मैं समझ थी कि माई मुझे बिल्कुल नंगी देखना चाहती थी... और मुझे अज़ीब सा लग रहा था, लेकिन मेरे मन को लग रहा था कि माई जब इतने प्यार से मुझ से यह सब बोल रही है तो वह शायद मेरी तारीफ ही कर रही होगी | इस लिए मैं चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही |
"तू इतनी चुप क्यों हैं?”, फिर वह मुस्कुरा कर बोली , “तू बहुत स्त्रैण हैं... तेरी अंतर आत्मा तुझे जबाब देने से रोक रही है...चल बेटी अंदर चल और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान... उसके बाद मैं तुझे आंगन में और घर के बाहर नंगी हो ही कर कदम रखने की इज़ाज़त दूँगी... कमरे में जा कर के अपने सारे कपड़े उतार दे- सबसे पहले मैं तुझे एक बार जी भर के नंगी देखना चाहती हूँ - उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं और देख अब तक तो दोपहर होने को आई.... देख घर कितना गंदा हुआ पड़ा है... और अब तक चूल्हा भी ठंडा पड़ा हुआ है ... तुझे झाड़ू पोंछा, चूल्हा चौका भी तो करना है... घर में तुझ जैसी जवान लड़की के होते हुए यह सब मैं बुढ़िया करूँगी क्या?... और उसके बाद मैने तुझे नहला धुला के भेंट के लिए तैयार भी तो करना है... चल बिटिया अंदर चल.. 'वह' सब जानता है, ‘वह’ सब कुछ देख सकता है... लेकिन तेरी कुंवारी जवानी को कोई अगर पहले नंगा देखेगा तो वह मैं होउंगी... क्योंकि मैं ही तुझे चुरा कर लाई हूँ... कुछ ही देर में डोम भी आता होगा; शमशान की राख और मिट्टी लेकर के... चल, चल, चल अंदर चल... और एक अच्छी बच्ची की तरह अपनी माई का कहा मान कर बिल्कुल नंगी हो जा..."
माई मुझे कमरे में ले गयी | कमरे में एक खटिया एक पुरानी लकड़ी की अलमारी और कुछ घरेलू सामान रखा हुया था | दीवार में एक बड़ा सा आईना भी टंगा हुआ था, माई ने मुझे उस आईने के सामने ला कर खड़ा किया और बोली, "अब मैं तेरे कपड़े उतारने जेया रही हूँ बेटी; और याद रही इसके बाद मेरे घर आँगन में तुझे नंगी हो कर ही रहना होगा..."
यह कह कर माई ने मुझे अपने आगोश में ले लिया और मैं भी उससे लिपट गयी... कुछ देर बाद वह मुझ से बोली, "चल बेटी पहले मैं तुझे नहला दूं उसके बाद तुझे घर के काम भी तो करने हैं...", फिर ना जाने क्यों वह थोड़ी संजीदा सी हो गयी और बोली, "लेकिन उससे पहले मैं तुझे एक अहम फ़ैसला करने मौक़ा ज़रूर दूँगी..."
मैं तब तक पूरे घर और आँगन में झाड़ू लगा चुकी थी |
माई मुझे कुँए के पास ले गयी, वहाँ पर रखी हुई एक छोटी लकड़ी की चौपाई (stool) पर माई ने मुझे बैठने को कहा फिर मेरे पीछे खड़ी हो कर उसने मेरे बालों को दोबा रासमेट कर मेरी गर्दन के पास अपने बाँये हाथ मुठ्ठी मे एक पोनी टेल जैसे गुच्छे में करके पकड़ा और अपने दाहिने हाथ से एक पीतल का लोटा बाल्टी में डुबो कर उसमें उसने पानी भर कर उसे को अपने होंठों के पास लाई और कुछ मंत्र बड़बड़ा कर उसने लोटे से भरे हुए पानी में एक बार थूका और उसने फिर उस लोटे का पानी मेरे ऊपर डाल दिया; उस थूक मिली हुई पानी से मैं जैसे ही थोड़ा सा भीगी मुझे लगा की मेरे हाथ पैर बिल्कुल शीथिल हो गये, मानो लकवा मार गये हों...
माई यह जानती थी इस लिए वह बोली, "बिटिया, तेरे ऊपर तीन चार लोटा पानी डालने के बाद तेरे माथे और बलों में लगी वशीकरण भस्मी धुल जाएगी... तेरे ऊपर से मेरे वश का असर ख़तम हो जाएगा... तुझे सब कुछ याद आएगा की तू अब तक मेरी सारी बातें बिना झिझक मान रही थी और इस वक़्त मैने तुझे नंगा कर रखा है... तुझे बहुत अज़ीब लगेगा... चौंकना नही... लेकिन जब तक मैने तेरे बाल पकड़ रखें हैं, तू यहाँ से हिल भी नही पाएगी... अब मैं तुझे एक फ़ैसला करने का मौका ज़रूर दूँगी..."
यह बोल कर माई मेरे ऊपर जल्दी जल्दी लोटे से पानी डालने लगी |
उसका कहना बिल्कुल सही था...पानी से मेरे माथे और बालों में लगी वशीकरण की भस्मी धुलने लगी; मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे दिल और दिमाग़ से किसी तरह के बादल जैसे छँट रहे हों... मेरे मन में आज सुबह से ले कर अब तक की सारी घटनायों की तस्वीरें तैरने लगी... मेरा माई को उसके घर तक ले आना, फिर बाज़ार जाना, उसके लिए कुँए से पानी भरना और अब उसके कहे अनुसार उसके सामने बिल्कुल नंगी होकर नहाने बैठना... जैसे ही मेरे ऊपर से माई के वशीकरण का असर ख़तम हुआ मुझे लगा कि मेरे ऊपर एक बिजली सी गिरी; मैं वहाँ से उठ कर भाग जाना चाहती थी लेकिन माई ने मेरे बाल कस कर पकड़ रखे थे और मेरे हाथ पैरों में तो जैसे जान ही नही थी |
"मैं जानती हूँ कि तुझे कैसा महसूस हो रहा है, बेटी...", यह कह कर उसने मेरे बाल छोड़ दिए, मुझे लगा की मेरे हाथ- पैरों में जान लौट आई, मैं तुरंत उठ कर कमरे में भागी और गीले बालों और भीगे बदन ही मैने जल्दी जल्दी अपना पेटिकोट चढ़ाया, ब्लाऊज पहना और साड़ी लपेटने लगी... पर ना जाने क्यों मैं अपने पूरे बदन में एक जलन सी महसूस करने लगी... लकिन मुझे यहाँ से भागना था... इसलिए उस वक़्त मैने उस पर उतना ध्यान नही दिया; पर यह जलन धीरे धीरे बर्दाशत के बाहर होती जा रही थी, मुझे ऐसा लगने लगा था की मेरे सारे बदन में आग लगी हुई है और मैं ज़िंदा जल रही हूँ |
मैं चीखते चिल्लाते हुए अपने कपड़े उतार कर फैंकने लगी... और फूट फूट कर रोने लगी |
हाँ, मुझे अब समझ में आ रहा था... जब स्टेशन में माई ने मेरे माथे पर टीका लगाया था तब भी मुझे एक चक्कर सा आया था और सेब खाने के बाद भी एसा ही हुआ; इसका मतलब की वह जब भी मेरे ऊपर कोई टोना या टोटका करती, मुखे हल्का सा चक्कर आ जाता था...
कुछ देर बाद माई कमरे में आई, मैं कमरे के एक कोने में बिल्कुल सिकुड़ बैठ कर अपने हाथों से अपने तन को ढकने की कोशिश कर रही थी, "याद है बेटी, मैने तुझे एक सेब खाने को दिया था? यह उसी का असर है, सेब अब तक तेरे पेट में पच कर तेरे शरीर के खून से मिल गयाहै... मैने उस पर टोटका कर रखा था... और अब; जब तक मेरा काम पूरा नही हो जाता तू कपड़े के एक टुकड़े से भी अपना बदन ढक नही पाएगी... अगर तुझे यकीन नही होता है तो तू खुद ही देख ले...", यह कह कर उसने मेरी साड़ी उठा कर मेरे ऊपर फैंकी | जैसे ही साड़ी मेरे ऊपर आ कर पड़ी, मुझे लगा कि किसी ने मेरे ऊपर आग फैंक दी हो-
मैं दर्द से करहा कर साड़ी को दूर फैंक दिया और चीख कर रोती हुई बोली, "आख़िर आप मुझ से चाहती क्या हैं, मैं तो आपकी मदद करना चाहती थी... क्यों कर रही हैं यह सब मेरे साथ?"
“मैने कहा ना, मैं तुझे अपनी बेटी बना कर रखना चाहती हूँ, गाँव की बहू बेटियाँ घर के सारे काम करती है... तुझे भी करना पड़ेगा... उसके बाद मैं तुझे 'उसको' तेरा भेंट चढ़ाउंगी...”
“आप मुझे भेंट चढ़ाएँगी? क्या मतलब है आपका?”
“तू अच्छी तरह से जानती है बेटी...”
“तो क्या आपयह सब पैसों के लिए कर रही हैं?”
"पैसा? किसने कहा की मुझे पैसे चाहिए? क्या पैसा ही सब कुछ है, मेरी बच्ची? मैं जो चाहती हूँ वह इस दुनिया से परे है... मुझे चाहिए बेइन्तिहा तांत्रिक शक्तियाँ... आज से तीन दिन बाद पूर्ण अमावस की रात है, ऐसा योग सौ सालों में एक बार ही आता है... और उस रात 'वह' बहुत प्यासा होता है... यह प्यास सिर्फ़ तुझ जैसी एक सुंदर लड़की की उबलती जवानी ही बुझा सकती है... उस रात तू 'उसकी' प्यास बुझाएगी.... तेरी जवानी की भेंट पा कर 'वह' संतुष्ट हो जाएगा... और मुझे मेरी सिद्धि मिल जाएगी... और मैं एक वादा करती हूँ... मेरी सिद्धि मुझे मिल जाने के बाद मैं तुझे आज़ाद कर दूँगी... बस तीन दिन की ही तो बात है... किसी को कुछ पता नही चलेगा...तुझे तेरी ज़िंदगी वापस मिल जाएगी"
मैं दोबारा फूट फूट कर रोने लगी | माई ने जो टोटका मेरे उपर कर रखा था उसकी वजह से मैं कपड़े नही पहन सकती थी, मुझे पूरी तरह समझ में आ गया था कि मैं उसके घर में क़ैद हो चुकी थी क्योंकि बिना कपड़ो के मैं उसके घर से निकल के भाग भी नही सकती थी |
“अब तुझे एक फ़ैसला करना है बिटिया, या तो तू जो मैं कहूँ वह राज़ी खुशी करेगी या फिर मजबूरी में... अगर राज़ी खुशी करेगी तो इसका तुझे फल भी मिलेगा... और मैं यह चाहती हूँ की तुझे तेरे त्याग का फल मिले, तभी मैने तेरे ऊपर से अपना वशीकरण हटाया, ताकि तू अपने पूरे होशोहावास में सब जान सके और समझ सके कि मैं तुझे यहाँ क्यों लाई हूँ... नही तो मुझे यह सब तुझ से तेरे को अपने वश में ला करके करवाना होगा... और तेरे हाथ कुछ नही लगेगा... इसलिए अच्छी तरह से सोच समझ कर फ़ैसला करना... मैं बाहर तेरा इंतज़ार कर रही हूँ...”
यह कह कर मुझे कमरे में रोता बिलखता छोड़ कर माई बाहर चली गयी |
मैं ना जाने कमरे में बैठ कर कब तक रोती रही, एक बार मैनें अपना पर्स खोल कर अपना मोबाइल फ़ोन भी देखा- वह टावर नही पकड़ रहा था और बैटरी भी ख़तम होने को आई थी... मेरा मोबाइल बस कुछ ही देर में बंद हो जाएगा, मेरे पास चारजर तो था लेकिन माई के घर बिजली नही थी, निराश हो कर मैंने अपना मोबाइल फ़ोन ऑफ कर दिया...
माई के घर ना तो क़ैद खाने कीउँची उँची दीवारें थी और ना तो लोहे की मोटी मोटी सलाखें; लेकिन फिर भी मैं उसके घर में क़ैद हो चुकी थी |
आख़िरकार मैने फ़ैसला किया मैं माई का कहा मानूँगी, क्योंकि इसके अलावा मेरे पास और कोई चारा भी नही था कम से कम एक उम्मीद तो रहेगी- के माई अपना काम पूरा होने के बाद मुझे आज़ाद कर देगी |
मैं यह सब सोच ही रही थी कि घर के बाहर से एक आदमी की आवाज़ आई- "माई... ओ माई..."
मुझे यह आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगी...
 
 
 
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