पिशाच का बदला-3

ये पांच साल पुरानी बात है । नन्दलाल गौतम उर्फ़ नन्दू नदी में डूबकर बुडुआ प्रेत या बूडा प्रेत ( जल में डूबने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ ) बन गया ।
ये हर वक्त दुखी हुआ रोता सा रहता था । प्रेतयोनि में जाने के बाद भी इसे अपनी मां बहन भाई की बेहद चिंता रहती थी । ये प्रेत होकर आसानी से अपने ऊपर हुये जुल्म का खतरनाक बदला ले सकता था ।
लेकिन इसके बाबजूद सीधा स्वभाव होने के कारण ये बदले की बात भुलाकर अपने असहाय हो गये परिवार के विषय में सोचता रहता था । ये हम प्रेतो से भी कम वास्ता रखता था ।
तब इसके सीधेपन से प्रभावित होकर कुछ बडे शक्तिशाली प्रेतों ने इसकी मदद करने का निश्चय किया । जिनमें मैं भी शामिल था । हमें इससे बेहद सहानुभूति थी । क्योंकि हम भी कभी इंसान थे ?
और अब हमारे पास सिर्फ़ ये दुर्लभ मनुष्य शरीर ही तो नहीं है । बाकी हमारी भावनायें आदि लगभग वैसे ही होते है । हे साधु । आप जानते ही हैं । इंसानों और हम में सिर्फ़ शरीरों का ही फ़र्क है..?
मैंने देखा । पूरा वर्मा परिवार बडी उत्सुकता से इस दिलचस्प । प्रेतकथा । को सुन रहा था । वास्तव में इस प्रेतकथा में मेरे लिये कुछ भी दिलचस्प नहीं था । पर एक विशेष कारण से वह प्रेतकथा मैं पिशाच के द्वारा रेशमा के मुख से करवा रहा था ।
हे महात्मा । रेशमा कुछ देर रुककर फ़िर प्रेतवाणी में बोलने लगी । नन्दू प्रेतयोनि में लगभग दो साल भटका । हमने अपने ग्यान के आधार पर उसे समझाते हुये उसका प्रेतत्व प्रबल होने से रोका ।
क्योंकि ऐसा हो जाने पर यह अपनी मनुष्य देह की प्राप्त आयु में से शेष आयु का उपयोग पुनर्जन्म के रूप में नहीं कर पाता और हजारों सालों के लिये घृणित और कष्टदायी प्रेत योनि को भोगता ।
लेकिन हमें कोई भी ऐसा अवसर नहीं मिल रहा था । जिससे हम अपराधी ब्रिजेश या अन्य का संबन्ध इससे जोड पाते ।
प्रेतयोनि के नियम अनुसार बदला या कर्म संस्कार खत्म करने हेतु उस प्रेतात्मा को पहले तो उसी घर में जन्म लेना चाहिये । जिससे उसका बदले का कर्म जुडा हो । इसके लिये संबन्धित घर में किसी औरत का गर्भवती होना आवश्यक होता है ।
ऐसा न होने पर । जबकि समय खत्म हो रहा हो । वह प्रेतात्मा दूसरे नियम अनुसार किसी रिश्तेदार या फ़िर बाहर के घरों में जन्म ले सकता है ।
ब्रिजेश और उसकी पत्नी के पहले ही कोई संतान नहीं है । और न भविष्य में होगी । उसके घर में ऐसी कोई अन्य स्त्री भी नहीं है । जिसके निकट भविष्य ( लगभग पांच साल ) में गर्भधारण की उम्मीद हो ।
हे साधु । तब हम बडे ना उम्मीद हो चले थे कि क्या करना चाहिये ?
तभी । ठीक तीन साल पहले की बात है । एक दिन फ़ार्म हाउस में कृषि कार्य ( जब कटी फ़सल से गल्ला अनाज आदि निकाला जाता है ) हेतु देखरेख के लिये धर्मपाल और उसकी पत्नी पुष्पा रात को रुके ।
रात दो बजे के लगभग जब कार्य लगभग खत्म सा हो गया । एकान्त स्थान होने से धर्मपाल की कामवासना जाग उठी । और उसने फ़ार्म हाउस के कमरे में पुष्पा से सहवास किया ।
बस यहीं हमें मौका मिल गया । मन्दिर । खन्डित मन्दिर । प्रेतवासा आदि बहुत से ऐसे स्थान होते हैं । जहां पत्नी से भी सहवास वर्जित है । ये स्थिति प्रेतों को आसान निमन्त्रण देती है ।
हमने नन्दू से पुष्पा के गर्भ से जन्म लेने का संकल्प करवा दिया । पुष्पा को योनि द्वारा गर्भाधान हो ही चुका था । ठीक समय आ जाने पर नन्दू प्रेत भाव छोडकर पुष्पा के गर्भ में चला गया । और प्रेत योनि से मुक्त हो गया । इसके बाद इसने पुष्पा के गर्भ से जन्म लिया । आप लोगों के बीच डब्बू के रूप में बैठा हुआ पिछले जन्म का दलित नन्दू ही है ।
अचानक पुष्पा ही क्या सबने डब्बू की तरफ़ देखा । पुष्पा के शरीर में जोरों की झुरझुरी हुयी । प्रेत द्वारा
उसके सम्भोग की बात सुनाते ही उसके होश उड गये । पर वह कर भी क्या सकती थी ।
धर्मपाल का मुंह भी शर्म और लज्जा से लाल हो गया । पर वह मजबूर था । सब मजबूर थे ?
एक मिनट पिशाच । मैंने यकायक बदल गये माहौल को संभालने के उद्देश्य से बीच में हस्तक्षेप किया । जब नन्दू पुष्पा की संतान के रूप में जन्म ले चुका था । तो उसका बदला तो पूरा हो गया था । फ़िर तुमने निर्दोष रेशमा को क्यों सताया ?
मुझे क्षमा करें । महात्मन । रेशमा गम्भीर प्रेतवाणी मे बोली । आप उच्च स्तर के साधक हैं । ये वरम देव ने हमें बता दिया है । और खुद हम अपने अनुभव से भी जान चुके हैं । ये आपकी सात्विक साधना का ही असर है कि हम प्रेत अपने उग्र स्वभाव के विपरीत प्रेत आहवान के समय शान्त आचरण कर रहे हैं ।
वरना सोखा गुनिया छोटे मोटे ओझा होने पर यहां का माहौल तामसी होता । और ये आवेशित औरत निर्वस्त्र होती । यहां चीख चिल्लाहट का माहौल होता । और हम कबूलने से अधिक मांस मदिरा की मांग कर उसका उपयोग कर रहे होते ।
किसी भी प्रेत को नियम अनुसार पूजा होने पर पीडित को छोडना ही पडता है । पर जिस तरह का शान्त माहौल । और जिस तरह हम लोगों द्वारा आप प्रेतकथा का पाठ करवा रहे हैं । ये बेहद उच्च स्तर के सात्विक साधुओं के द्वारा ही संभव है ।
हे महात्मा । आप सब कुछ जानते हुये भी अनजान होने का दिखावा कर रहें हैं । ताकि ये लोग प्रत्यक्ष रूप से प्रेत जगत के बारे में ठीक ठीक जान सकें । इसके अलावा आपका और गूढ उद्देश्य क्या है ? ये हम नहीं जान सकते ? अर्थात आप ही बेहतर जानते होगे ? अब मैं आपके पूछे गये प्रश्न का उत्तर देता हूं ?
हे महात्मन । जैसा कि मैंने पूर्व में ही कहा था । नन्दू के सीधा होने के कारण हम प्रेतों ने इसका बदला चुकाने का निश्चय किया था । इसका जिम्मा उपस्थित हम तीनों प्रेतों का था । नन्दू डब्बू के रूप में इस घरका सदस्य बन चुका था । अब वह बडे होकर कुपुत्र के रूप में या सुपुत्र के रूप में क्या करता । यह हमको ग्यात नहीं हैं ।
वह अपना बदला ले पाता या नहीं ? यह भी हम नहीं कह सकते ? आप जानते ही हैं कि हम प्रेतों के स्थान बदलते रहते हैं । हो सकता है कि कुछ समय बाद हमें किसी दूर वन या अन्य स्थान पर जाना पडता । तब हमारे दिये हुये वचन का क्या होता । अब क्योंकि रामवीर भी....?
रुको पिशाच । मैंने उसे रोकते हुये कहा । रामवीर वाली बात छोडकर बात कहो । हालांकि बदले हुये हालात में मैं स्वयं सभी बात वर्मा जी को बता दूंगा । लेकिन मेरे अनुसार जब रामवीर अपनी गलती मान चुका है । और मुझसे वचन ले चुका है । तो उसके बारे में कहना उचित नहीं ..?
जैसा आप कहें । महात्मा । रामवीर की पत्नी रेशमा प्रेतवाणी में बोली ।
सब लोग चौंककर रामवीर की तरफ़ देखने लगे । वह लज्जा से सिर नीचे किये दूसरी तरफ़ देख रहा था । अपनी गलती को याद कर उसकी आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे ।
**********
मैंने रिस्टवाच पर निगाह डाली । रात के साढे बारह बजने वाले थे । मुझे सिगरेट की बहुत तेज तलब लग रही थी । और अभी मेरे गणित के अनुसार यह कार्यक्रम करीब तीन बजे तक चलने वाला था ।
रेशमा पर दो घन्टे का प्रेत आहवान हो चुका था । डब्बू भी इस समय आवेशित जैसा था । यानी सबको थोडा रेस्ट देना ठीक था । आवेश से बार बार रेशमा का गला सूख रहा था । और उसे बोलने मैं कठिनाई हो रही थी । मैंने पिशाच और उपस्थित प्रेतों को पहले से तैयार सुगन्धित खाध्य पदार्थ सुलगाकर आहार दिया । और उन्हें आधा घन्टे को रेशमा से आवेश हटाने को कहा । इसके बाद प्रेत आवेश हटते ही मैंने रेशमा और डब्बू को दो दो गिलास मोसम्बी का जूस पिलवाया । और रामवीर ने उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया । मेरे इशारे पर धर्मपाल ने पुष्पा को सबके लिये चाय बनाकर लाने का आदेश दिया । पुष्पा के जाते ही मैं गद्दी छोडकर खडा हो गया । और सिगरेट सुलगाकर कश लेते हुये टहलने लगा । छत पर एक अजीव सा रहस्यमय सन्नाटा था । और किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो आपस में क्या बात करें । तब वर्मा जी बिना किसी कारण ही मेरे साथ साथ ही टहलने लगे । मैंने देखा । प्रेत पीपल पर पहुंच गये थे ।..अगली बार प्रेतक्रिया आधा घन्टे के बजाय पचास मिनट बाद ही शुरू हो सकी । सब कुछ पहले जैसा हो गया । रेशमा फ़िर से गद्दी के सामने पूरित चौक पर बैठ गयी थी । पिशाच के आवेश के फ़लस्वरूप उसका शरीर ऐंठा हुआ सा था । और शरीर अजीव अन्दाज में थका हुआ सा था ।
इसका एक गुप्त कारण था । कोई भी सम्भोग का अभ्यस्त प्रेत आवेश । आवेश के समय सम्भोग या वैसी हरकतों की मांग करता है । या फ़िर मांस मदिरा जैसी उत्तेजक वस्तुओं की । जिससे उनमें एक ऊर्जा बनी रहती है । वर्मा जी के सदाचारी घर में ये दोनों बातें सम्भव नहीं थी । और मेरी इस तरह की कोई दिलचस्पी भी नहीं थी कि उन्हें मांस मदिरा आवश्यक बताकर वर्मा परिवार को मजबूर करूं । लिहाजा इस कार्यवाही को जल्दी निपटाने के उद्देश्य से मैंने कहा । हां तो पिशाच । हम आगे की बात करते हैं ..?
ठीक है । महात्मन । वह बोला । रामवीर को भी दोषी मानते हुये । हम इसको सजा देना चाहते थे । लेकिन इस घर में सदाचार । भक्ति । और पूजा इतनी थी कि सम्भव नहीं हो पा रहा था ।  




लेकिन एक दिन रेशमा की बहुत छोटी सी गलती से हमें यह मौका मिल गया । रेशमा ने हाल ही में ( चार महीने पहले ) एक पुत्र को जन्म दिया है । और यह अशौच की स्थिति में न सिर्फ़ वरम देव के पास से गुजरी । इसने अनजाने में गलत स्थान पर मूत्र त्याग किया ।
हालांकि ये कोई बडी गलती नहीं थी । फ़िर भी बदला लेने के लिये इसकी जच्चा स्थिति को उचित समझते हुये हमने इसे प्रभावित कर दिया । क्योंकि हमें तो रामवीर और फ़िर ब्रिजेश से विशेष मतलब था ।
रेशमा के प्रभावित होते ही हमने रेशमा के जरिये रामवीर को भृष्ट करना शुरू कर दिया । हम एक शाकिनी के माध्यम से रेशमा की काम भावना भडकाते थे । और स्वयं मैं रामवीर के ऊपर भाव आवेश करके उसे काम प्रेरित करते थे । और इस तरह इन पति पत्नी का शरीर हम अपनी कामवासना त्रप्त करने के लिये करते थे । इस तरह ये शरीर बहुत शीघ्र प्रेत प्रभावित होने लगते हैं ।
दरअसल हमारा उद्देश्य रामवीर के शरीर को कुछ इसी तरह से भोगते हुये कुछ दिन बाद ब्रिजेश के साथ उसी नदी में डुबाकर मार देने का था...
पिशाच की इस बात से मानों विस्फ़ोट हुआ हो । वर्मा परिवार एकदम ये बात सुनकर कांप गया । उनके रोंगटे खडे हो गये ।
मैं सबकी नजर बचाकर मुस्कराया । और मुझे इटावा के संजीव की याद आ गयी । जो ऐसे ही मिलते जुलते घटनाक्रम में अपने दोस्त के साथ नहर में स्वतः कूदकर मर गया था ।
क्योंकि मैं संजीव को जानता था । इसलिये इस घटना की वास्तविकता में जानता था । और संसार के लोग इसकी वास्तविकता कुछ और जानते थे । जो कि एकदम असत्य थी । क्योंकि जैसा कि पिशाच कह रहा था । वैसा कौन सोच सकता था ?
खैर..सच्चाई तो सच्चाई ही थी ।
इसलिये मैंने आगे कहा । हे पिशाच । ये काम तुम किस तरह करते ? और निर्दोष रेशमा को क्या इतनी बडी सजा देना उचित था ? और साथ ही तुम नन्दू के घरवालों के साथ इंसाफ़ करने की सोच चुके थे ? वह किस तरह करते ?
हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला । आप की यह बात उचित ही है कि रेशमा को दन्ड बिना बात के मिल रहा था । पर रेशमा क्योंकि रामवीर की पत्नी है । अतः उसके आधे की भागीदार बनती है । जिस प्रकार कि घर में किसी एक सदस्य के दुष्ट ( चोर बदमाश ) होने पर घर के अन्य सज्जन सदस्यों को भी फ़लस्वरूप कुछ न कुछ भोगना ही पडता है ।
इसी तरह रेशमा को एक अपराधी की पत्नी होने का दन्ड भोगना पड रहा था । और फ़िर कुछ दिनों बाद हम रामवीर को मार ही डालने वाले थे ।
हे साधु । आप जानते ही हैं । क्रूर और उग्र व्यवहार । अधर्म ये सब प्रेत धर्म के अंतर्गत आते हैं । अर्थात ये क्रियायें ऐसा लगता हैं कि प्रेत कर रहे हैं । जब कि प्रेत सिर्फ़ निमित्त होते हैं । व्यक्ति के अतीत का कर्मफ़ल ऐसी घटनायें कराता हैं । इसलिये इसमें हमारा कोई दोष नहीं होता । और हमारा कोई पाप कर्म भी नहीं बनता । अब जैसा कि हमने आगे सोचा था । उसके बारे में सुनिये ...? 









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