पिशाच का बदला-2
उस
दिन रामवीर के दोस्त ब्रिजेश
के घर दूसरे गांव सुजानपुर
से कुछ मेहमान आये थे । शाम को
सात बजे के लगभग ये नन्दू की
महुआ बगीची के पास बैठे शराब
पी रहे थे । और चारों लोगों पर
नशा बुरी तरह हावी हो चुका था
।
ब्रिजेश
नन्दू की जमीन औने
पौने में ले लेना चाहता था ।
इसलिये हर हथकन्डा अपनाता था
। गांव का दबंग होने के कारण
नन्दू ब्रिजेश से भय खाता था
। और दूसरे लोग भी उसके समर्थन
में नहीं आते थे ।लक्ष्मी उस दिन दुर्भाग्य से खेतों से लौट रही थी । ब्रिजेश को नशा बेहद चड गया था । सो अपनी शेखी दिखाते हुये उसने लक्ष्मी को पकड लिया । और दोस्तों के मना करने पर भी उसके कपडे फ़ाड डाले । और झाडी में ले जाकर बलात्कार किया ।
पहले जो दोस्त इस कार्य के लिये मना कर रहे थे । बलात्कार होते देख सभी की बुद्धि भृष्ट हो गयी । और कामवासना का भूत सर चढकर बोलने लगा । सो बाद में सभी ने उसके साथ बलात्कार किया ।
लक्ष्मी की शादी तय हो चुकी थी । इसलिये बात बिगड न जाय । लक्ष्मी की मां ने जमाने की ऊंच नीच समझाते हुये नन्दू और लक्ष्मी को अपमान का घूंट पीकर इस वारदात को कुछ समय तक के लिये भूल जाने के लिये राजी कर लिया ।
दूसरे दिन नशा उतर जाने पर बलात्कारियों को अपनी भूल का अहसास हुआ । और नशे में होने का हवाला देते हुये उन्होंने धन देवी से काकी काकी मौसी आदि कहकर बार बार क्षमा भी मांगी ।
लेकिन नन्दू इस अपमान को न भुला पाया । और बदले की आग में सुलगने लगा ।
पर एक तो वह घर में अकेला था । बाप मर चुके थे । और छोटा भाई लगभग ग्यारह साल का था । इसलिये वह कुछ कर न पाता था ।
अब कहते तो ये हैं कि इस घटना से भयभीत होकर नन्दू ने अपनी सुरक्षा हेतु एक देशी तमंचा खरीद लिया था । और हमेशा अपने साथ रखने लगा था । पर ब्रिजेश के चमचों ने उस तक खबर पहुंचा दी कि नन्दू तुझे मारने के लिये तमंचा रखकर घूमता है ।
होनी की बात नदी के जिस स्थान पर मैं ( प्रसून ) वर्मा जी के साथ खडा था । उसी स्थान पर शराब के नशे में धुत ब्रिजेश ने नन्दू को पकड लिया ।
और छाती खोलता हुआ बोला । ले मार गोली । मार साले । और चुका अपनी बहन की इज्जत का बदला । इत्तफ़ाक से उस दिन भी रामवीर ब्रिजेश के साथ था । वे पांच थे । और नन्दू अकेला ।
नन्दू बचकर भागना चाहता था । पर ब्रिजेश आ बैल मुझे मार की तरह कुछ करना चाहता था । उसने नन्दू को बहुत मारा । भयभीत नन्दू जान बचाने के लिये नदी में कूद गया । और घबराहट में डूबकर मर गया ।
दाता । मेरे मुंह से आह निकली । तेरे रंग न्यारे ।
नन्दू लगभग पांच साल पहले मरा था । और reborn child डब्बू के रूप में अभी ढाई साल का था ।
पांच महीने लगभग उसने गर्भ में बिताये ( गर्भ में बढते पिन्ड में जीव चार महीने पूरा होने पर प्रवेश करता है । ) इसका मतलब लगभग दो साल वह प्रेत बनकर भटकता रहा ।
और फ़िर वर्मा जी की चौथे नम्बर की पुत्रवधू पुष्पा जब गर्भवती हुयी । तो नियमानुसार वह अपना कर्ज वसूलने उनके घर ही आ गया ।
क्योंकि नन्दू अकाल मौत मरा था । निर्दोष मरा था । इसलिये प्रेतयोनि के तमाम कष्टों से उसे ज्यादा नहीं जूझना पडा ।
लेकिन इस बात से मेरे दिमाग में एक नया रहस्य मानसी विला से ही पैदा हो गया था ।
नन्दू reborn child डब्बू अब प्रेत नहीं था । लेकिन उसके दिमाग का वह हिस्सा तीन । एक छोटा और दो बडे प्रेतों की पुष्टि कर रहे थे । और उस अध्याय का शीर्षक बदला था ।
तो ये तीन प्रेत कौन थे ? जो डब्बू को माध्यम बनाकर निर्दोष रेशमा को परेशान कर रहे थे ? ये सभी बातें मैं बिना किसी ओझाई आडम्बर के यानी किसी माध्यम को बैठाना और प्रेत आहवान यानी हीं क्लीं चामुन्डाय विच्चे ..आदि के बिना भी जान सकता था ।
और समस्या को बिना किसी नाटक के भी हल कर सकता था । पर यहां मामला दूसरा था ? मेरी नैतिकता के अनुसार मेरा पूरा प्रयास ये था कि न सिर्फ़ मैं वर्मा परिवार को प्रेत पीडा से मुक्ति दिलाऊं ।
बल्कि नन्दू के परिवार धन देवी और लक्ष्मी को भी यथासंभव न्याय दिला सकूं । इसलिये इस क्रिया को अब मैं पूरी तरह से expose तरीके से करना चाहता था ।
इसीलिये मैंने रामवीर को अकेले मन्दिर ले जाकर न सिर्फ़ सारी बातें कबुलवाईं । बल्कि उसे आगे की कार्यवाही हेतु एक evidence गवाह के तौर पर तैयार भी किया ।
रात के साढे दस बज चुके थे । वर्मा family के साथ साथ मैं भी डिनर से फ़ारिग हो चुका था । मैंने वर्मा जी को पहले ही समझा दिया था । कि इस प्रेत आपरेशन की बिलकुल publicity न होने पाये । जैसा कि आम ओझागीरी के समय तमाम गांव के लोग इकठ्ठा हो जाते हैं । और देर तक फ़ालतू की हू हा होती है ।
इसी का परिणाम था । कि गांव का या बाहर का कोई आदमी तो दूर स्वयं वर्मा जी के परिवार के अधिकांश लोग इस समय छत पर नहीं थे ।
इस समय रेशमा । वर्मा जी । रामवीर । वर्मा जी की पत्नी हरप्यारी देवी । पुष्पा । और पुष्पा का पति धर्म सिंह और सोता हुआ डब्बू ही मेरे साथ छत पर मौजूद थे । और आगामी दृश्यों की धडकते दिल से प्रतीक्षा कर रहे थे ।
मैंने एक सिगरेट सुलगायी और कश लगाता हुआ छत की जालीदार बाउंड्री के पास आकर खडा हो गया । मेरे साथ सिर्फ़ वर्मा जी थे । बाकी लोग पीछे चारपाईयों पर बैठे थे ।
मैंने वर्मा जी की ओर देखा । और मुस्कराकर बोला । हां कहूं तो है नहीं । ना कही ना जाय । हां ना के बीच में साहिब रहो समाय । वर्मा जी आप इस बात का मतलब जानते हैं ? ये भगवान की स्थिति और आदमी की जिग्यासा की बात है ।
लेकिन इस वक्त ये सन्तवाणी दूसरे अर्थ में आपके ऊपर फ़िट हो रही है । आपका नाम साहिब सिंह वर्मा है । इस वक्त प्रेत प्रभावित लोग छत पर बैठे हैं । लेकिन प्रेत कहीं नजर आ रहा है ? और प्रेत यहां बिलकुल है नहीं । ऐसा कम से कम आप तो नहीं कह सकते । भूत प्रेत होते ही नहीं हैं । अब कम से कम भुक्तभोगी हो जाने के बाद आप ये बात नहीं कह सकते । लेकिन मैं आपसे प्रश्न करता हूं कि प्रेत यदि है । तो वो कहां है ?
वर्मा जी ने असमंजस की स्थिति में मेरी तरफ़ देखा । अपने परिवार की तरफ़ देखा । फ़िर असहाय भाव से सिर हिलाने लगे ।
मैंने बहुत हल्के उजाले में लगभग आधा किलोमीटर दूर स्थित गांव के मन्दिर और वर्मा जी की हवेली के ठीक बीच में खडे पीपल के पुराने और भारी वृक्ष की तरफ़ देखा ।
और उंगली से उसकी तरफ़ इशारा करते हुये कहा । वहां । वहां है वो प्रेत ।
और फ़िर उसी उंगली को । उसी अन्दाज में घुमाते हुये । मैं अपनी जगह पर घडी के कांटे के अन्दाज में घूमा । और उंगली को रेशमा की तरफ़ कर दिया ।
रेशमा का शरीर अकडने लगा । उसकी मुखाकृति विकृत होने लगी । इसी के साथ सोता हुआ डब्बू किसी चाबी लगे खिलोने की तरह उठकर बैठ गया । परिवार के अन्य लोग स्वाभाविक ही alert हो गये ।
पर उस वक्त मेरा ध्यान सिर्फ़ रेशमा पर था ।
मेरे मुंह से सख्त आदेश निकला । ..अकेला नहीं ..अपने साथियों को भी बुला । जिनका इस परिवार से लेना देना हैं । उन दोनों को भी बुला । मुझे साफ़ साफ़ बात करने की आदत है...?
प्रेत अवस्था में भी रेशमा के शरीर में भय की एक झुरझुरी हुयी ।
सारी तैयारी के बारे में मैंने पहले ही समझा दिया था । रामवीर ने तुरन्त रेशमा को गोद में उठाकर एक दस बाई दस फ़ुट के पहले से आटा पूरित चौक में आसन पर बैठा दिया ।
 पुष्पा
 ने आनन फ़ानन अगरबत्ती के आठ
 पैकेट खोले । और बीस बीस
 अगरबत्तियों का एक गुच्छा
 चौक के किनारे आठ स्थानों पर
 लगाया । एक बडी थाली में तोडे
 गये फ़ूलों की ढेरों पखुंडिया
 और प्रेत आवाहन का अन्य जरूरी
 सामान मौजूद था । चन्दन गुलाब
 मोगरा बेला आदि की बेहद तेज
 मिली जुली खुशबू से छत महकने
 लगी ।
 
एक वह बरम देव ( पीपल ) दूसरा मन्दिर से आगे ( दो किलोमीटर दूर ) का शमसान । और तीसरा वर्मा का फ़ार्म हाउस । जिसमें खन्डित मन्दिर भी है ।
इन तीनों प्रमुख स्थानों पर डाकिनी शाकिनी यक्ष भूत प्रेत आदि अनेक प्रकार के लगभग तीस प्रेत बरम देब के आश्रय में रहते हैं । और नियमानुसार हम गलती करने वाले को ही परेशान करते हैं । बाकी हम इस गांव के आसपास से प्राप्त खुशबू और मनुष्य के त्याज्य मल ( कफ़ थूक उल्टी आदि ) कई चीजों का आहार करते हैं ।
हे साधु । आप जानते ही हैं । इससे अधिक प्रेतों के रहस्य बताना उचित नहीं है । इस प्रेतपीडा निवारण के पूरा हो जाने के बाद वर्मा परिवार को भी नियम के अनुसार गांव आदि में ये बात खोलना वर्जित है । कि इन स्थानों पर प्रेत रहते हैं ...?
एक मिनट । मैंने बीच में हस्तक्षेप करते हुये मुस्कराकर कहा । यदि वर्मा परिवार । तुम्हारे रहस्य । तुम्हारे रहने के स्थान । तुम्हारे घर आदि के बारे में लोगों को बता देगा । तो क्या हो जायेगा ?
हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला । मैं जानता हूं कि आप ये बात इन लोगों को ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे हैं । जो कि उचित ही है ।
तो सुनिये प्रेतों का तो कुछ खास नहीं होगा । पर ग्रामवासियों के मन में एक अग्यात भय पैदा हो जायेगा । लोग इन तीनों स्थानों पर पहुंचते ही इस भाव से देखेंगे । मानों प्रेत को देख रहे हों ।
जिस प्रकार हे साधु । मन्दिर में जाने वाले भक्त के मन में पत्थर की मूर्ति देखते ही ये विचार आता है कि ये भगवान हैं । और उसका भाव भगवान से जुड जाता है । और ये एक तरह से अदृश्य सम्पर्क हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर कि इन स्थानों पर प्रेत हैं । वे भाव रूपी सम्पर्क हमसे बार बार । जिग्यासा की वजह से । भय की वजह से करेंगे ।
इस तरह ये प्रेतों के लिये आमन्त्रण होगा । और इस गांव के घर घर में प्रेतवासा हो जायेगा । तब इसका जिम्मेदार वर्मा परिवार होगा ।
वास्तव में अधिकतर प्रेत आवेश होने की मुख्य वजह यही होती है । किसी भी एकान्त अंधेरे स्थान पर पहुंचकर भयभीत हुआ आदमी भूत प्रेत के बारे में सोचकर खुद ही ( यदि वहां प्रेत हो ) उससे सम्पर्क जोड लेता है । एक तरह से उसे निमन्त्रण खुद ही दे देता है ।
दूसरे आवेश में नियम के विपरीत कार्य करने से भी प्रेत आवेश होता है । इसके अलावा भी प्रेत आवेश के अन्य कारण होते हैं । पर उनको न कहता हुआ । मैं उस कारण को कहता हूं । जिससे वर्मा परिवार प्रभावित हुआ ।
मैंने मुठ्ठी भरफ़ूल अभिमन्त्रित कर रेशमा के ऊपर उछाल दिये । वह तेजी से झूमने लगी ।
तीनों relative प्रेत छत पर आ चुके थे । और सहमें हुये थे ।
दरअसल मन्दिर से लौटते समय ही मैं उनसे एक introduction टायप hi..hallo कर आया था ।
इसका फ़ायदा ये हुआ था कि एक तान्त्रिक के तौर पर उन्होंने पहले से ही मेरा पूर्व अवलोकन कर लिया था । इससे प्रेत आहवान के समय की संघर्ष वाली हाय हुज्जत की नौबत पहले ही खत्म हो गयी थी । यदि प्रेत मुझ पर भारी पडने वाले थे । तो अडियल रुख अपनायेंगे । और यदि वे जानते थे कि व्यर्थ में पिटने से क्या फ़ायदा ? तो तुरन्त समर्पण कर देंगे ।
यह मेरा अपना एक शिक्षित तन्त्र जानकार होने का फ़ार्मूला था । मेरा अपना स्टायल था । जो अशिक्षित तान्त्रिको की परम्परा से एकदम अलग था ।
इसलिये मैंने कहा । ..बेहतर है..कि हम सीधे सीधे मतलब की बात करें । तुम वर्मा परिवार से क्या चाहते हो ? सो बताओ ? कैसे और किस नियम से तुमने रेशमा को अपना निशाना बनाया ? सो बताओ ? इस परिवार को छोडने के बदले मैं क्या चाहते हो । सो बताओ ? तुम लोग कौन हो ? सो भी बताओ ?
मेरे जीवन में बहुत कम केस ऐसे थे । जिनमें मैंने खुले रूप से ऐसी कार्यवाही की थी । यदि किसी केस से मुझे जुडना भी पडता था । तो मैं अधिकतर गुप्त रूप से ज्यादा से ज्यादा से कार्यवाही निबटाकर समस्या का हल कर देता था ।
पर ये मामला ऐसा था । जिसमें बात का पूरी तरह से खुलना सभी के हित में था ।
रेशमा के मुंह से एक पुरुष आवाज निकली...हे साधु । आपको हमारा प्रणाम है । मैं अशरीरी योनि में पिशाच श्रेणी का प्रेत हूं । मेरे साथ दूसरा ब्रह्म राक्षस और तीसरा छोटा यम प्रेत है । हम बरम देव के आश्रय में रहते हैं ।वह हममें सबसे बडे हैं । इस गांव के आसपास तीन स्थानों पर हमारा बसेरा है ।
एक वह बरम देव ( पीपल ) दूसरा मन्दिर से आगे ( दो किलोमीटर दूर ) का शमसान । और तीसरा वर्मा का फ़ार्म हाउस । जिसमें खन्डित मन्दिर भी है ।
इन तीनों प्रमुख स्थानों पर डाकिनी शाकिनी यक्ष भूत प्रेत आदि अनेक प्रकार के लगभग तीस प्रेत बरम देब के आश्रय में रहते हैं । और नियमानुसार हम गलती करने वाले को ही परेशान करते हैं । बाकी हम इस गांव के आसपास से प्राप्त खुशबू और मनुष्य के त्याज्य मल ( कफ़ थूक उल्टी आदि ) कई चीजों का आहार करते हैं ।
हे साधु । आप जानते ही हैं । इससे अधिक प्रेतों के रहस्य बताना उचित नहीं है । इस प्रेतपीडा निवारण के पूरा हो जाने के बाद वर्मा परिवार को भी नियम के अनुसार गांव आदि में ये बात खोलना वर्जित है । कि इन स्थानों पर प्रेत रहते हैं ...?
एक मिनट । मैंने बीच में हस्तक्षेप करते हुये मुस्कराकर कहा । यदि वर्मा परिवार । तुम्हारे रहस्य । तुम्हारे रहने के स्थान । तुम्हारे घर आदि के बारे में लोगों को बता देगा । तो क्या हो जायेगा ?
हे महात्मा । रेशमा के मुख से पिशाच बोला । मैं जानता हूं कि आप ये बात इन लोगों को ठीक से समझाने हेतु पूछ रहे हैं । जो कि उचित ही है ।
तो सुनिये प्रेतों का तो कुछ खास नहीं होगा । पर ग्रामवासियों के मन में एक अग्यात भय पैदा हो जायेगा । लोग इन तीनों स्थानों पर पहुंचते ही इस भाव से देखेंगे । मानों प्रेत को देख रहे हों ।
जिस प्रकार हे साधु । मन्दिर में जाने वाले भक्त के मन में पत्थर की मूर्ति देखते ही ये विचार आता है कि ये भगवान हैं । और उसका भाव भगवान से जुड जाता है । और ये एक तरह से अदृश्य सम्पर्क हो जाता है । इसी तरह ये जानकारी हो जाने पर कि इन स्थानों पर प्रेत हैं । वे भाव रूपी सम्पर्क हमसे बार बार । जिग्यासा की वजह से । भय की वजह से करेंगे ।
इस तरह ये प्रेतों के लिये आमन्त्रण होगा । और इस गांव के घर घर में प्रेतवासा हो जायेगा । तब इसका जिम्मेदार वर्मा परिवार होगा ।
वास्तव में अधिकतर प्रेत आवेश होने की मुख्य वजह यही होती है । किसी भी एकान्त अंधेरे स्थान पर पहुंचकर भयभीत हुआ आदमी भूत प्रेत के बारे में सोचकर खुद ही ( यदि वहां प्रेत हो ) उससे सम्पर्क जोड लेता है । एक तरह से उसे निमन्त्रण खुद ही दे देता है ।
दूसरे आवेश में नियम के विपरीत कार्य करने से भी प्रेत आवेश होता है । इसके अलावा भी प्रेत आवेश के अन्य कारण होते हैं । पर उनको न कहता हुआ । मैं उस कारण को कहता हूं । जिससे वर्मा परिवार प्रभावित हुआ ।
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