एक चोरी, एक फरेब-03
एक चोरी, एक फरेब-03
वारदात असल में एक जख्म की तरह होती है. वक्त के साथ सूखता है. जिसके साथ घटना हुई, वो दिन-रात की मसरूफियत में उलझता है, जिन लोगों का इंटरेस्ट होता है, वो डाइवर्ट होने लगता है. लेकिन पांच करोड़ की चोरी, जिसमें न चोर का पता, न रकम बरामद, बातें उठनी तो लाजिमी थी. फिर भी पुलिस की खाल बहुत मोटी होती है. अखबारों में खबर मुख्य पेज से सरककर अंदर के पेज पर चली गई. फिर कुछ पंक्तियों में सिमटने लगी. वारदात को तकरीबन डेढ़ महीना हो चुका था. अब अजय कालरा अस्पताल से निजात पाकर घर आ चुके थे. हालांकि डॉक्टर्स ने उन्हें बता दिया था कि किस्मत ने साथ दिया है, बच गए हैं. अब जरा सा भी दबाव दिल बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है.
पुलिस ने डेढ़ महीने बाद पहली बार वारदात के सिलसिले में अजय कालरा का बयान लिया. इस बयान ने पुलिस के छक्के छुड़ा दिए. पुलिस की कहानी रेत की इमारत तक ढह गई. अजय कालरा के पास इस बाबत पुख्ता एलिबाई थी कि वो रात सवा आठ बजे घर से दस किलोमीटर दूर एक थियेटर में मौजूद थे. असल में अजय कालरा के पास उस दिन सिटी में होने वाली एक मशहूर गजल सिंगर की नाइट का वीवीआईपी पास था. जिस समय वो नाइट में पहुंचे, तो उनकी सीट पर एक नेताजी जमे थे. अजय कालरा ने अपनी ही सीट पर बैठने की जिद पकड़ ली, जिसके चलते नाइट में खासा हंगामा खड़ा हो गया था. अजय कालरा अपनी सीट लेकर ही माने. नाइट के आयोजक से लेकर नेताजी तक सबको ये वाकया बखूबी याद था. रात पौने ग्यारह बजे तक वो नाइट में मौजूद थे और उसके बाद घर पहुंचे तो बाहर ही बेटा मिल गया. अजय कालरा अब चोरी की वारदात में खुद को बेदाग साबित कर चुके थे. उन्होंने बताया कि सुबह तकरीबन नौ बजे जब वह अपने दफ्तर में पहुंचे तो करेंसी चेस्ट खुला हुआ था और रकम गायब थी. पुलिस अब खाली हाथ थी. कोई रास्ता उसके सामने नहीं था. अब तक जो वारदात बस मुल्जिम की गिरफ्तारी के इंतजार थी, उसमें कहानी जहां से शुरू हुई थी, वहीं पहुंच चुकी थी.
अजय कालरा पर हाथ डालने की अब पुलिस की हिम्मत नहीं थी. कालरा भी अब नौकरी से छुट्टी पाकर रिटायरमेंट की लाइफ जीने के तलबगार थे. उन्होंने ऋषिकेश के पास पहले से ही इसी दिन के लिए एक छोटा सा फ्लैट ले रखा था. सोनिया और अजय कालरा गंगा किनारे शांति का जीवन जीने के लिए ऋषिकेश चले गए. बेटा विदेश में नौकरी पा गया था. पुलिस को न तो पांच करोड़ का सुराग लगा, न ही मुल्जिम का. पुलिस ने नोट के नंबर सीरिज के बारे में देशभर के वित्तीय संस्थानों व बैंकों को अलर्ट भेजा. लेकिन कहीं रकम की बरामदगी न हुई. देश के अलग-अलग कोनों में एक-दो कभी-कभी मिल जाने के अलावा कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा. अब ये माना जा चुका था कि चोरी की ये मिस्ट्री सुलझने वाली नहीं है.
(क्या आपको लगता है कि ये मिस्ट्री सुलझने वाली नहीं थी. आखिर रकम चोरी हुई, पांच करोड़. चोर तो कहीं था. और सबसे बड़ी बात, उस रकम के साथ मजे में)अक्सर वारदात न खुलने का ये सिलसिला असल में पुलिस की वर्किंग की मूल खामी से जुड़ा हुआ है. कत्ल से लेकर जेबकतरी तक की घटनाओं में मुल्जिम सामने होता है, लेकिन पुलिस के हाथ उसके गिरेबां तक नहीं पहुंच पाते. कुछ मामलों में फर्जी गिरफ्तारियां होती हैं, जो कोर्ट में औंधे मुंह गिर जाती है. अपराध की जांच बहुत संजीदा मामला है. बिना पूर्वाग्रह के, हर संभावना-आशंका पर गौर करते हुए. शुबहा जांच की पहली कड़ी है. और अगर शक की पतली सी किरण भी किसी शख्स तक पहुंच रही है, तो उसका संदिग्ध के दायरे में रहना जरूरी है. अपराध की घटनाएं असल में तीन चीजों पर टिकी हैं. पहला अवसर. किसे वारदात अंजाम देने का मौका हासिल था. दूसरा मोटिव (किसके पास वारदात को अंजाम देने का उद्देश्य था). तीसरा क्षमता (यानी किसमें ये कुव्वत थी, अपराध को अंजाम देने के संसाधन भी इसी में शामिल हैं.
अगर पांच करोड़ की चोरी की इस वारदात में आप पुलिस की तफ्तीश को सिर्फ इन कसौटियों पर कसेंगे, तो इन तीनों की पैमानों पर पुलिस विफल रही. बस अवसर की उपलब्धता को लेकर सुविधाजनक निष्कर्ष और संभावित मुल्जिम को सामने देखकर उसने अपनी सोच के सारे दरवाजे बंद कर लिए. पुलिस की वर्किंग यही है. पहले मुल्जिम तलाशो, फिर उसे सुबूतों और गवाहों के जरिये फ्रेम कर दो. अजय कालरा पर पुलिस की पेश नहीं चली. लेकिन अब क्लाइमेक्स....
1. पूरे केस में सबसे निर्णायक और पॉजिटिव चीज गार्ड सही राम की गवाही थी, लेकिन पुलिस उसकी गवाही और सोनिया कालरा के इंकार के बीच ही अटक कर रह गई. उसने ये महसूस नहीं किया कि वह सही राम की गवाही और सोनिया कालरा के इंकार को एक साथ खारिज कर रही है.
2. मोटिव के मामले में जब ये तय हो गया था कि अजय कालरा के पास इस घटना को अंजाम देने का उद्देश्य नहीं है, तो फिर किसके पास है.
3. चोरी का अवसर अजय कालरा को मुहैया नहीं था. अजय कालरा चोर नहीं था, तो फिर और किसको चोरी का अवसर मुहैया था.
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