एक चोरी, एक फरेब-01

एक चोरी, एक फरेब

 तकरीबन दस बजे
राजनगर की जबरन चमकाई नजर आने वाली ये बिल्डिंग असल में संपूर्णानंद बैंकर का दफ्तर है. बिल्डिंग के बाहर पुलिस की गाड़ियों की कतार लगी है, जो इस बात की चुगली बिना पूछे कर रही है कि जरूर कोई बड़ी वारदात हुई है. बाहर खड़े सिपाही अंदर गए साहब लोगों का इंतजार कर रहे थे. अंदर गए साहब लोग अमूमन वारदात की जगह पर अंदर जाते हैं... फिर कुछ देर बाद तेजी से बाहर निकलकर अपनी-अपनी जीप में बैठकर अलग-अलग डायरेक्शन में दौड़ पड़ते हैं. मानो अभी मुल्जिम को पकड़कर अंदर हवालात कर देंगे. कुछ साहब लोग बाहर निकलकर मीडिया को बताते हैं. वही रटे-रटाए डायलाग... सुराग मिल गए हैं. जल्द गिरफ्तारी होगी. घटना संदिग्ध है. या फिर पुलिस की इतनी टीम लगा दी गई हैं. अगले दिन पोर्टर टाइप के रिपोर्टर खबरों को कुछ यूं लिख देते हैं कि मानो वारदात का खुलासा बस होने वाला है. और हां, उसमें पीड़ित की पीड़ा दिखाई दे न दे, वर्जन देने वाले अफसर की या मौके पर मौजूद आला अधिकारियों की तस्वीरें जरूर होती हैं. फिंगर प्रिंट टीम अभी पहुंची है. इस टीम का नाम सुनकर हॉलीवुड स्टाइल हाइटेक टीम की तस्वीर दिमाग में न बना लीजिएगा. टीम के नाम पर दो लोग हैं, जो कंधे पर एक लगातार लटकने और इस्तेमाल होने के कारण बदरंग हो चुका बैग लेकर पहुंचते हैं. जब तक ये पहुंचते हैं, थाना, अफसर घटनास्थल पर इतने फिंगरप्रिंट छोड़ चुका होता है कि मुल्जिम के निशान ढूंढना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा है.



अचानक सरगर्मी तेज होती है. डीआईजी साहब बाहर आ गए हैं. पीछे मातहतों की फौज है. इनमें से कई दरोगा और इंस्पेक्टर डायरी लिए हैं, जो इन्होंने बरसों से नहीं खोली. कैमरे की फ्लैश चमकती है, तो रिफ्लेक्स में डीआईजी के चेहरे पर मुस्कान चमक जाती है. उन्हें इस गलतफहमी का शिकार बनाया जा चुका है कि उनका चेहरा फोटोजनिक है और अगर पुलिस डिपार्टमेंट की नौकरी न बजा रहे होते, तो सिंघम अजय देवगन के हाथ से निकल गई होती. बहरहाल उत्सुक मीडियाकर्मियों को वो हाथ का इशारा करके यूं शांत करते हैं, जैसे मैथ्स का मास्टर कक्षा में दाखिल हो गया हो. मीडियाकर्मियों के चेहरे पर भी वही उत्सुकता के भाव हैं, जो पहली बार रेशमा की जवानी देखते समय ग्याहरवीं कक्षा के छात्र के चेहरे पर होते हैं. डीआईजी साहब बताते हैं, चोरी हुई है. अभी ठीक रकम का अंदाजा तो एकांउटेंट के आने के बाद होगा, लेकिन अनुमान तकरीबन पांच करोड़ का है. संपूर्णानंद बैंकर के दफ्तर में मैनेजर के कमरे में बने करेंसी चेस्ट से पांच करोड़ रुपये चोरी हुए हैं. सुबह तकरीबन नौ बजे चोरी का पता चला. करेंसी चेस्ट के सामने ही मैनेजर अजय कालरा अपनी कुर्सी पर बेहोश मिले. उन्हें दिल का दौरा पड़ा है और गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है. करेंसी चेस्ट को तोड़ा नहीं गया, बल्कि चाबी से खोला गया है. अभी तक मौका--वारदात के मुआयने से पता चलता है कि ये किसी अंदर के आदमी का काम है.
बड़ी खबर मिलने की खुशी (चाहे वो किसी का घर लुटने से मिले या फुंकने से) में मीडियाकर्मी तेजी से खिसक लिए. तमाम जरूरी सवालों के जवाब लिए बगैर. जवाब बाद में मिल जाएंगे. पहले ब्रेकिंग देनी है. मीडिया के निकल जाने के बाद डीआईजी अपनी गाड़ी में बैठे. उनके बैठने के साथ ही वायरलैस पर मैसेज गूंजा, एंटीथैफ्ट सेल को दफ्तर तलब किया गया है. एंटीथैफ्ट सेल से ये मुगालता मत पाल लीजिएगा कि ये चोरी के मामलों के स्पेशलिस्ट हैं. पुलिस में होना ही अपने आप में सबसे बड़ा स्पेशलाइजेशन हैं. एंटीथैफ्ट सेल के जो आजकल इंचार्ज हैं, पिछली पोस्टिंग पर किसी अफसर के पेशकार थे. उससे पहले थाना इंचार्ज. और उससे पहले स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) में

एंटी थैफ्ट सेल ने शाम तकरीबन चार बजे वारदात को लेकर अपनी रिपोर्ट अफसरों के सामने रखी. सुबह-सुबह चोरी की सूचना पर भागे दरोगाओं के चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि न नींद पूरी हुई है, न खाना. बहरहाल वारदात को लेकर कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. जुर्म की तह तक जाने के लिए घटना की कड़ी का मिलना बहुत जरूरी है. मौका--वारदात असल में मोती के टूटे दानों की माला की तरह है. एक-एक मोती तलाशना और उसे सिलसिले से पिरोना माला को तैयार करने या मुल्जिम के लिए जरूरी है. लेकिन पुलिस क्या करती है, इसका अंदाजा जरा इस वारदात को लेकर हुई तफ्तीश, बयान, सुबूत और फिर उससे निकलने वाले निष्कर्ष से लगाइये.
डीआईजी- हां, पवार बताओ क्या निकला.
पवार (जो असल में संजय पवार नाम का इंस्पेक्टर है)- सर मामला लगभग खुल गया है. चोरी की घटना मैनेजर कालरा ने ही अंजाम दी है. हमारे पास ठोस गवाह है, परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं.
डीआईजी- फिर वो वहां बेहोश क्यों पड़ा था. हमें तो बताया गया कि हालत बहुत सीरियस है उसकी.
पवार- साहब वो चोरी तो कर गया, लेकिन सुबह होते-होते अंजाम का अहसास हुआ, तो दिल जवाब दे गया. वैसे अब उसकी हालत स्टेबल है. लेकिन पुलिस से बात करने लायक तो शायद एक महीने में भी नहीं हो पाएगा.
डीआईजी- तो क्या किया जाए. गिरफ्तारी भी नहीं हो सकती. घर की तलाशी लो. रात भर में पांच करोड़ कहां छिपाया होगा. बरामदगी ही हो जाए, तो जान छूटे.
पवार- सर, तलाशी हो गई. कुछ नहीं मिला.
डीआईजी- अरे. फिर... अच्छा चलो ये बताओ कि गवाहों और सुबूतों के जरिये वारदात का क्या नक्शा बनता है.
पवार- सर, आपने मौके पर देखा था. नीचे दफ्तर है, ऊपर मैनेजर का आवास है. आफिस में कैशियर, कलेक्टर व बाकी स्टाफ समेत तीस लोग हैं. शाम पांच बजे स्टाफ के जाने के बाद नीचे के हिस्से को बाहर से लॉक कर दिया जाता है. खुद मैनेजर कालरा उसे लॉक करते थे. रात आठ बजे यहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड की शिफ्ट चेंज होती थी. रात की शिफ्ट परमानेंट तौर पर एक ही गार्ड करता रहा है. पिछले पांच साल से सही राम यहां गार्ड है. रिटायर्ड फौजी है. बेदाग रिकार्ड. बहुत भरोसेमंद. इस भरोसे का ही तकाजा है कि दिन वाले सिक्योरिटी गार्ड से दोगुनी तनख्वाह पाता है. अंदर जाने के लिए एक और रास्ता है, जो ऊपर के फ्लोर, यानी अजय कालरा के मौजूदा निवास से है. ये सीढ़ियां मैनेजर के दफ्तर के ठीक बराबर में एक गलियारे में नीचे उतरती हैं. तयशुदा रुटीन के मुताबिक अजय कालरा बाहर से ग्राउंड फ्लोर को लॉक करने के बाद परिसर में बनी सीढ़ियों से ऊपर जाते थे. फिर अंदर के जीने से नीचे उतरकर दफ्तर में जाते थे. बाकी काम निपटाते थे. जिसमें अमूमन उन्हें सात बज जाते थे. रात तकरीबन आठ बजे नियमित तौर पर वो एक क्लब में जाते थे, जहां से लौटते-लौटते उन्हें दस बज जाते थे.
डीआईजी- हूं, तो सारी चाबी उनके पास होती थीं. और मौका भी. अच्छा घर में कौन-कौन है.
पवार- पत्नी और एक बेटा. श्रीमती सोनिया कालरा हाउसवाइफ हैं. बेटा शिशिर अभी दो महीने पहले ही सीए कंपलीट करके कालरा के दफ्तर में ही काम करता है. फिलहाल प्रोबेशन पीरियड पर है, लेकिन बैंकर की प्लानिंग शिशिर को नोएडा आफिस में शिफ्ट करने की है. बेटा तो शाम साढ़े पांच बजे ही हेल्थ क्लब चला जाता है. जहां से रात को देर से ही लौटता था.
डीआईजी- गवाहों से क्या निकला.
पवार- सर सबसे चौंकाने वाली जानकारी, या यूं कहिए केस का टर्निंग पाइंट सिक्योरिटी गार्ड सही राम की गवाही है. सही राम रात आठ बजे ड्यूटी पर पहुंचा. उसने सारे लॉक चेक किए. इसके बाद सही राम सिक्योरिटी गार्ड रूम में बैठ गया, जहां सीसी टीवी कैमरे पर वो बैंक के अंदर भी नजर रख सकता है. सही राम के मुताबिक रात आठ बजकर पांच मिनट पर बिल्डिंग के ऊपर के पोर्शन के दरवाजे के खुलने और बंद होने की आवाज आई. फिर गाड़ी स्टार्ट हुई. ये आवाज वो रोज सुनता रहा है. उसने नतीजा निकाला कि अजय कालरा क्लब चले गए हैं. लेकिन तकरीबन सवा आठ बजे उसकी स्क्रीन पर नजर पड़ी. निचले फ्लोर पर बहुत कम रोशनी थी. अजय कालरा के यानी मैनेजर के कमरे में नीम अंधेरा था. केबिन का दरवाजा खुला हुआ था और उसके गेट पर सोनिया कालरा खड़ी थीं. सही राम गार्ड रूम और बिल्डिंग के बीच बने लोहे के मजबूत जाल वाले पारदर्शी पैनल पर पहुंचा. सोनिया कालरा उस समय कह रही थीं, अजय तुम गए नहीं. अंधेरे में अपने केबिन में क्या कर रहे हो. सहीराम मुतमईन हो गया कि केबिन में अजय कालरा हैं तो वो अपनी सीट पर लौट आया. तब तक केबिन लॉक हो चुका था. यानी अजय और सोनिया कालरा ऊपर जा चुके थे. शिशिर रात को तकरीबन ग्यारह बजे लौटा, उस समय अजय कालरा अपनी गाड़ी गैराज में पार्क कर रहे थे. दोनों ने ऊपर जाकर खाना खाया और सो गए. सुबह नौ बजे अजय कालरा रोज की तरह नीचे आए. चूंकि अजय कालरा नाश्ता करके नहीं आए थे, इसलिए सोनिया कालरा उन्हें बुलाने के लिए नीचे आईं. जहां उन्होंने खुली करेंसी चेस्ट के सामने अजय कालरा को बेहोश पाया.
डीआईजी- ये तो ओपन एंड शट केस हैं. सोनिया कालरा क्या कहती हैं सही राम की शहादत के बारे में.
पवार- सर वो तो इस बात से साफ मुकर गईं कि वो कल रात नीचे गईं थी और अपने पति से बात की थी.
डीआईजी- और क्या कहेगी पवार. सही राम की हां-हां में मिलाने का मतलब वो भी जानती है. सहीराम की गवाही उनके पति को चोर ठहरा रही है. ऐसे में कोई भी समझदार औरत कानून का डंडा तो झेल लेगी, लेकिन पति को बचाने की कोशिश करेगी. अजय कालरा की माली हालत चेक कराओ. सारे सुबूत चौकस रखो. जरा शिफा पा जाए ये कालरा का बच्चा. तुरंत जेल की हवा खाएगा.
पवार- ओके सर...

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