प्रेतकन्या-2
बाबाजी
के मच्छर भिनभिनाने जैसी आवाज
में सुनायी दे रहे शब्द "
तेरा
कल्याण हो..
.तेरा
कल्याण हो "
लगातार
मेरे साथ चल रहे थे ।वास्तव
में ये एक प्रकार की कनेक्टिविटी
थी । अब ऐसी ही आवाज में जब तक
बाबाजी को मेरे शब्द "
अलख
बाबाजी अलख "
और
मुझे तेरा कल्याण हो सुनाई
देते रहते । तब तक मैं बाबाजी
के सम्पर्क में था । शब्द बन्द
हो जाने का मतलब साफ़ था कि
सम्पर्क टूट गया । बाबाजी तेजी
से वापस
गुफ़ा की तरफ़ जाने लगे । और
मैं अंतरिक्ष की गहराईयों
में बढ रहा था ।
अंतरिक्ष में किसी भी लोकवासी या अन्य जीव की आवाज प्रथ्वी की तरह भारी ( बेसयुक्त ) और क्लियर न होकर एक भिनभिनाहट या छनछनाहट युक्त होती है । इस बात को इस तरह समझे कि टीवी मोबायल फ़ोन या अन्य किसी खराव प्रसारण में जब कभी मुख्य आवाज हल्की और उसके साथ छनछनाहट की आवाज अक्सर सुनाई देती है । कुछ कुछ वैसी ही मिलती जुलती आवाज अंतरिक्ष में परस्पर सम्पर्क का माध्यम होती है ।
और अंतरिक्ष की एक निश्चित सीमा पार करते ही किसी भी सामान्य आदमी की आवाज स्वतः ही हल्की और वैसी ही छनछनाहटयुक्त हो जाती है । आप कल्पना करें कि प्रथ्वी पर करोंङो लोग मोबायल पर बात कर रहे हों । और बो सभी आवाजें आपको बिना किसी मोबायल या यन्त्र के इकठ्ठी सुनाई दें । वस ऐसी स्थिति होती है ।
अंतरिक्ष में किसी भी लोकवासी या अन्य जीव की आवाज प्रथ्वी की तरह भारी ( बेसयुक्त ) और क्लियर न होकर एक भिनभिनाहट या छनछनाहट युक्त होती है । इस बात को इस तरह समझे कि टीवी मोबायल फ़ोन या अन्य किसी खराव प्रसारण में जब कभी मुख्य आवाज हल्की और उसके साथ छनछनाहट की आवाज अक्सर सुनाई देती है । कुछ कुछ वैसी ही मिलती जुलती आवाज अंतरिक्ष में परस्पर सम्पर्क का माध्यम होती है ।
और अंतरिक्ष की एक निश्चित सीमा पार करते ही किसी भी सामान्य आदमी की आवाज स्वतः ही हल्की और वैसी ही छनछनाहटयुक्त हो जाती है । आप कल्पना करें कि प्रथ्वी पर करोंङो लोग मोबायल पर बात कर रहे हों । और बो सभी आवाजें आपको बिना किसी मोबायल या यन्त्र के इकठ्ठी सुनाई दें । वस ऐसी स्थिति होती है ।
जब
ये आवाजें बेहद हल्की या ना
के बराबर हों । तो हम किसी भी
लोक से उस समय दूर हैं । और आवाज
जितनी क्लियर होती जाय । उतना
ही हम किसी लोक के नजदीक हैं
। दूसरी बात अंतरिक्ष की यात्रा
में अधिक परिश्रम नहीं होता
। और न ही किसी प्रकार का खतरा
होता है कि हम गिर जायेंगे ।
या टकरा जायेंगे । लेकिन अन्य
अंतरिक्ष जीवों से मुकाबला
या दोस्ती का गुण होना अनिवार्य
होता है । अन्यथा कदम कदम पर
खतरा ही समझो ।
तब
जब मैं कई लाख योजन की ऊँचाईयों
पर पहुँच चुका था । और इस प्रकार
के विचारों के बीच अपना सफ़र
तय कर रहा था कि प्रथ्वी पर
भी कितना रहस्यमय जीवन है ।
मेरे परिवार के लोग या अन्य
परिचित कोई भी तो नहीं जानता
कि मैं अंतरिक्ष की अनंत
ऊँचाईयों पर अक्सर भृमण करता
हूँ । बाइचान्स अगर मुझे यहाँ
कुछ हो जाय । तो यही कहावत सटीक
बैठेगी कि जमीन निगल गयी । या
आसमान खा गया । और बाबाजी के
सम्पर्क में होने से सौ के
लगभग मैं ऐसे लोगों को जानता
था । जो आराम से अदृश्य लोकों
का भृमण करते थे । पर उन्हें
आम लोग नहीं जानते थे ।
ऐसे
ही विचारों के बीच मेरे दिमाग
में मानों विस्फ़ोट सा हुआ ।
जल्दबाजी में मैं प्रेतकन्या
का हुलिया (
जो
कि मुझे बाबाजी द्वारा
अपने दिमाग में फ़ीड कराना
था )
और
वास्तविक नाम का पता करना भूल
गया था ।
संजय
की मम्मी ने तो लङकी (
अपनी
समझ से )
का
नाम शीरीं बताया था । जो कि
संजय बङबङाता था । पर ये एकदम
झूठा भी हो सकता था । और उस वक्त
तो मेरे छक्के ही छूट गये । जब
मुझे पता चला कि विचारों के
भंवरजाल में डूबकर मैं कनेक्टिविटी
लाइन से कब अलग हो गया । इसका
मुझे पता ही नहीं चला ।
अलख..बाबा..अलख..बार
बार ये शब्द पुकारता हुआ मैं
सम्पर्क जोङने की कोशिश करने
लगा । पर तेरा कल्याण हो । मुझे
दूर दूर तक सुनायी नहीं दिया
।
अब
ये सांप के मुँह में छंछूदर
बाली बात हो रही थी । अतः मेरे
सामने दो ही रास्ते थे कि वापस
प्रथ्वी पर जाऊँ । या रास्ता
बदलकर किसी अन्य जान पहचान
वाले प्रेतलोक पर उतरकर सहायता
लूँ । तब मुझे लूढा याद आया ।
लूढा
सरल स्वभाव का प्रेत था । जो
एक सच्चे साधु का तिरस्कार
करने से प्रेतभाव को प्राप्त
हुआ था । लूढा से सम्पर्क वाक्य
था..तो
तू ही बता दे..।
इसके प्रत्युत्तर में अगर
मुझे ये सुनाई पङ जाता कि ..वो
जो कोई नही जानता..।
तो लूढा से मेरी कनेक्टिविटी
जुङी समझो ।
अतः
मैं बार बार कहने लगा । तो तू
ही बता दे..पर
कोई लाभ न हुआ । लूढा वहाँ से
पता नहीं कहाँ था । और मेरी
यात्रा के चार घन्टे पूरे हो
चुके थे । और तभी मेरी कनेक्टिविटी
में एक नया वाक्य आने लगा..।
लेकिन तू जो है..
।
पर
ये सम्पर्क अस्पष्ट
था । और इसकी वजह मैं अच्छी
तरह से जानता था । दरअसल
प्रेतलोकों से अंतरिक्ष यात्री
की कनेक्टिविटी में मेरे शब्द
इस कोड से मेल खा रहे थे । पर
इसका एकदम सही अन्य कोड क्या
था । ये मुझे नहीं पता था । तभी
मेरे पास कोड के साथ भीनी भीनी
तेज खुशबू आने लगी । और मैं एक
अग्यात लोक में उतर गया ।
अभी
मेरे लिये ये कहना मुश्किल
था कि ये प्रेतलोक है । या अन्य
प्रकार के जीवों का लोक ।
- स्वागत..हे..
मैंने
तुम्हें यहाँ उतारा है । कौन
हो तुम । और किस प्रयोजन से
अंतरिक्ष में हो ?
- अंतरिक्ष
क्या किसी के बाप की जागीर
है..
और
तू..
मुझे
इस तरह उतारने वाली कौन भला
?
कहते
हुये मैंने उस प्रेतकन्या को
देखा । अब मैं अपने पूर्व
अनुभवों से जान गया था कि ये
भी कोई अन्य प्रेतलोक है ।
दरअसल
इन लोकों में प्रथ्वी की तरह
मर्दानगी वाला सिद्धांत चलता
है । यदि आपने सभ्यता का प्रदर्शन
किया । तो आपको डरपोक माना
जायेगा । और ये भी पहचान हो
जायेगी कि आप पहली बार यहाँ
आये है । न सिर्फ़ नये बल्कि
अंतरिक्ष के लिये अजनबी भी ।
और ये दोनों बातें बेहद खतरनाक
हैं ।
प्रेतकन्या
एक सफ़ेद घांघरा पहने थी । और
कमर से ऊपर निर्वस्त्र थी ।
उसके बेहद लम्बे बाल हवा में
लहरा रहे थे ।
- तुम
वाकई सख्त और बङे..।
उसने मेरे कमर के पास निगाह
फ़ेंकते हुये होठों पर जीभ
फ़िरायी -
जिगर
वाले
हो । आओ..मेरे
जैसा सुख पहुँचाने वाली । यहाँ
दूसरी नहीं है । क्या तुम..।
उसने पुनः अपने उन्नत
उरोजों
को उभारते हुये कहा -
भोग
करना चाहोगे ।
मैं
एक अजीव चक्कर में पङ गया ।
दरअसल उससे सम्भोग करने का
मतलब था कि अपने दिमाग को उसे
रीड करने देना । और
लगभग दस परसेंट प्रेतभाव का
फ़ीड हो जाना । और सम्भोग नहीं
करने का मतलब था कि उसका रुष्ट
हो जाना । तो जो जानकारी मैं
उससे प्राप्त करना चाहता था
। उससे वंचित रह जाना । मैंने
फ़ैसला लेते हुये बीच का रास्ता
अपनाया । और उसे पेङ के नीचे
टेकरी पर गिराकर उसके उरोजों
से खेलने लगा ।
-
पहले
तुझे कभी नहीं देखा..।
किस लोक का प्रेत है तू ?
वह
आनन्द से आँखे बन्द करते हुये
बोली ।
-
देख
इस बक्त मेरे दिमाग में सिर्फ़
एक ही बात है..।
उस साली किनझर वाली की अकङ
ढीली करना .।
मानों
विस्फ़ोट सा हुआ हो । "
किनझर
"
सुनते
ही वह चौंककर उठकर बैठ गयी ।
और लगभग चिल्लाकर
बोली
- तू
प्रेत नहीं हैं ।..अन्य
है..
।
प्रेत किनझर का मुकाबला नहीं
कर सकता..।
- देख
मैं जो भी हूँ । मैंने प्रेतकन्या
की कमजोर नस पर चोट की -
तू
मुझे किनझर का शार्टकट बता
दे । मेरे पास समय कम है । लेकिन
लौटते समय..समझ
गयी । कहाँ चोट मारूँगा..।
मेरा
पेंतरा काम कर गया । वह बेहद
अश्लील भाव से हँसी । चींटी
से लेकर..मनुष्य..देवता.
.किसकी
कमजोरी नहीं होती । ये कामवासना
।
अबकी
बार जब मैंने अंतरिक्ष
में छलांग लगायी । तो मेरे पास
पूरी जानकारी थी ।
किनझर
बेहद शक्तिशाली किस्म के वेताल
प्रेतों का लोक था । वहाँ का
आम जीवन बेहद उन्मुक्त किस्म
का था । हस्तिनी किस्म की
स्थूलकाय प्रेतनियां पूर्णतः
नग्न अवस्था में रहती थी । और
लगभग दैत्याकार पुरुष भी एकदम
निर्वस्त्र रहते थे । सार्वजनिक
जगहों पर सम्भोग और सामूहिक
सम्भोग वहाँ के आम दृश्य थे
। कुछ ही देर में मैं किनझर
पर मौजूद था । किनझर क्षेत्रफ़ल
की दृष्टि से काफ़ी विशालकाय
प्रेतलोक था । अभी मैं सोच
विचार में मग्न ही था कि मेरे
पास से बीस बाईस युवतियों का
दल गुजरा । वे बङे कामुक भाव
से मुझ अजनबी को देख रही थी ।
अब
मुझे ट्रिक से काम लेना था ।
मैंने बेलनुमा एक पेङ की टहनी
तोङी । और उसे यूँ ही हिलाता
हुआ एक प्रेतकन्या के पास
पहुँचा । और उसके नितम्ब पर
सांकेतिक रूप से हल्का सा वार
काम आमन्त्रण हेतु किया । उसने
आश्चर्य से पलटकर देखा । मैंने
उसका हाथ पकङकर अपनी तरफ़ खींच
लिया ।
ये
वहाँ की जीवन शैली का स्टायल
था । इसके विपरीत अगर मैं
प्रथ्वी की तरह बहन जी या भाभी
जी जरा सुनना ...जैसी
स्टायल में बात करता । तो वो
तुरन्त समझ जाती कि मैं प्रथ्वी
या उस जैसे किसी अन्य लोक का
हूँ । और ये स्थिति मुझे कैद
करा सकती थी ।
मेरे
शरीर से मानव की बू नहीं आती
थी । क्योंकि पूर्व की अंतरिक्ष
यात्राओं में ही मैं वह बू
छिपाने की तरकीबें जान गया
था । वह कामक्रीङा हेतु तैयार
होकर एक पेङ के नीचे लेट गयी
। और मदभरी नजरों से मुझे देखने
लगी ।
मुझे
उससे सम्भोग तो करना
ही नही था । सो उसे गोद में
लिटाकर उसके उरोंजो पर हाथ
फ़िराते हुये मैंने कहा -
ये
शीरीं आज मुझे कहीं नजर नहीं
आयी...।
मुझे उसे एक सन्देश देना था..।
-
शैरी..ओह..इधर
भी..।
वह मेरा हाथ अपनी इच्छानुसार
करती हुयी बोली -
वह
नदी पार अजगर के साथ सम्भोग
करती है । और अक्सर वहीं मिलती
हैं ।
-
पर
अजगर के साथ क्यूँ । प्रेतों
की कमी है क्या..?
वो
अजगर नहीं हैं । वो कामुक भाव
से हँसी -
वो
एक इंसान की रूह में है । और
जल्दी ही प्रेत हो जाने वाला
है । क्योंकि वो अपनी इच्छा
से प्रेत बन रहा है । अतः वो
बहुत शक्तिशाली प्रेत होगा
। सौ प्रेतनी को एक साथ कामत्रप्त
करने की क्षमता बाला होगा वो
। अरे तू क्या फ़ालतू की बात
ले बैठा । अन्दर नहीं जायेगा
।
मैंने उसे एक झटके से अलग कर दिया । और बोला - अभी मैं उसको संदेश दे आऊँ । फ़िर तुझे घायल करता हूँ..।
फ़िर उसकी प्रतिक्रिया जाने विना मैं कुछ ही दूर पर स्थिति एक पेङ पर बैठ गया । और ध्यान स्थिति में संजय को रीड करने की कोशिश करने लगा । लेकिन मुझे बेहद थोङी सफ़लता ही मिली । अब मुझे उसी हथियार को फ़िर से इस्तेमाल करना था । यानी नारी की कामलोलुपता का लाभ उठाकर उसे सही बात सोचने का अवसर न देना । और इसके लिये अब मैं पूरी तरह से तैयार था ।
मुझे शीरी का सही नाम शैरी पता चल चुका था । मैंने खुद को संजय के रूप में ढाला । और कुछ ही देर में मैं शैरी के सामने था । वो वास्तव में अजगर को लिपटाये हुये थी । जो उसके कामुक अंगों को स्पर्श सुख दे रहा था ।
- हे ..शैरी..अब फ़ेंक इसे..मैं असली जो आ गया ..।
मैंने उसे एक झटके से अलग कर दिया । और बोला - अभी मैं उसको संदेश दे आऊँ । फ़िर तुझे घायल करता हूँ..।
फ़िर उसकी प्रतिक्रिया जाने विना मैं कुछ ही दूर पर स्थिति एक पेङ पर बैठ गया । और ध्यान स्थिति में संजय को रीड करने की कोशिश करने लगा । लेकिन मुझे बेहद थोङी सफ़लता ही मिली । अब मुझे उसी हथियार को फ़िर से इस्तेमाल करना था । यानी नारी की कामलोलुपता का लाभ उठाकर उसे सही बात सोचने का अवसर न देना । और इसके लिये अब मैं पूरी तरह से तैयार था ।
मुझे शीरी का सही नाम शैरी पता चल चुका था । मैंने खुद को संजय के रूप में ढाला । और कुछ ही देर में मैं शैरी के सामने था । वो वास्तव में अजगर को लिपटाये हुये थी । जो उसके कामुक अंगों को स्पर्श सुख दे रहा था ।
- हे ..शैरी..अब फ़ेंक इसे..मैं असली जो आ गया ..।
उसने
अविश्वसनीय निगाहों से मुझे
देखा । मैं उसे सोचने का कोई
मौका नहीं देना चाहता था ।
मैंने अजगर को छीनकर बाबाजी
को स्मरण किया । और उनकी गुफ़ा
को लक्ष्य बनाकर अलौकिक शक्ति
का उपयोग करते हुये अजगर को
पूरी ताकत से अंतरिक्ष में
फ़ेंक दिया ।
अब ये अजगर अपनी यात्रा पूरी करके गुफ़ा के द्वार पर गिरने बाला था । और इस तरह से संजय की रूह प्रेतभाव से आधी मुक्त हो जाती । इसके बाद संजय के दिमाग ( जो अब मेरे दिमाग से जुङा था ) से मुझे वह लिखावट ( फ़ीडिंग ) मिटा देनी थी । जो उसके और शैरी के वीच हुआ था । बस इस तरह संजय मुक्त हो जाता ।
इस हेतु मैंने शैरी को बेहद उत्तेजित भाव से पकङ लिया । और पूरी तरह कामुकता में डुबोने की कोशिश करने लगा । शैरी सम्भोग के लिये व्याकुल हो रही थी ।
जब मैंने कहा - हे ..शैरी ! अब जब कि मैं पूरी तरह से प्रथ्वी छोङकर तेरे पास आ गया हूँ । मेरा दिल कर रहा है कि तू मुझे हमारी प्रेमकहानी खुद सुनाये । ताकि आज से हम नया जीवन शुरू कर सके । वरना तू जानती ही है कि मैं सौ प्रेतनी को एक साथ संतुष्ट करने वाला वेताल हूँ । तेरी जैसी मेरे लिये लाइन लगाये खङी हैं..।
मेरी चोट निशाने पर बैठी । उसे और भी सोचने का मौका न मिले । इस हेतु मैं उसके स्तनों को सहलाने लगा ।
अब ये अजगर अपनी यात्रा पूरी करके गुफ़ा के द्वार पर गिरने बाला था । और इस तरह से संजय की रूह प्रेतभाव से आधी मुक्त हो जाती । इसके बाद संजय के दिमाग ( जो अब मेरे दिमाग से जुङा था ) से मुझे वह लिखावट ( फ़ीडिंग ) मिटा देनी थी । जो उसके और शैरी के वीच हुआ था । बस इस तरह संजय मुक्त हो जाता ।
इस हेतु मैंने शैरी को बेहद उत्तेजित भाव से पकङ लिया । और पूरी तरह कामुकता में डुबोने की कोशिश करने लगा । शैरी सम्भोग के लिये व्याकुल हो रही थी ।
जब मैंने कहा - हे ..शैरी ! अब जब कि मैं पूरी तरह से प्रथ्वी छोङकर तेरे पास आ गया हूँ । मेरा दिल कर रहा है कि तू मुझे हमारी प्रेमकहानी खुद सुनाये । ताकि आज से हम नया जीवन शुरू कर सके । वरना तू जानती ही है कि मैं सौ प्रेतनी को एक साथ संतुष्ट करने वाला वेताल हूँ । तेरी जैसी मेरे लिये लाइन लगाये खङी हैं..।
मेरी चोट निशाने पर बैठी । उसे और भी सोचने का मौका न मिले । इस हेतु मैं उसके स्तनों को सहलाने लगा ।
तुम
कितने शर्मीले थे ।
वह जैसे तीन महीने पहले चली
गयी -
मैं
प्रथ्वी पर नदी में निर्वस्त्र
नहा रही थी । जब तुम उस रास्ते
से स्कूल से लौटकर आये थे ।
मैं प्रथ्वी पर नया वेताल
बनाने के आदेश पर गयी थी ।
क्योंकि आकस्मिक दुर्घटना
में मरे हुये का प्रेत बनना
। और स्वेच्छा से प्रेतभाव
धारण करने वाला प्रेत इनकी
ताकत में लाख गुने का फ़र्क
होता है ।
तुम फ़िर अक्सर उधर से ही आने लगे । लेकिन तुम इतने शर्मीले थे कि सिर्फ़ मेरी नग्न देह को देखते रहते थे । जबकि तुम्हारे द्वारा सम्भोग किये बिना मैं तुम में प्रेतभाव नहीं डाल सकती थी..तब एक दिन हारकर मैंने योनि को सामने करते हुये तुम्हें आमन्त्रण दिया और पहली बार तुमने मेरे साथ सम्भोग किया..वो कितना सुख पहुँचाने वाला था.. मैं....संजय तुम .. अब ..... दिनों ... उसने ... गयी ... कि ... जब .... दिया ....देना..नदी..किनझर..।
शैरी नही जानती थी कि मैं उसके बोलने के साथ साथ ही संजय के दिमाग से वह लेखा मिटाता जा रहा
था । हालाँकि इस प्रयास में कामोत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल हो चुका था । उसके नाजुक अंगो से खिलवाङ करते हुये मुझे उत्तेजना हो रही थी । पर सम्भोग करते ही मेरी असलियत खुल जाती । और संजय तो मुक्त हो जाता । उसकी जगह मैं प्रेतभाव से ग्रसित हो जाता । आखिरकार संयम से काम लेते हुये मैं वो पूरी फ़ीडिंग मिटाने में कामयाब हो गया ।
शैरी कामभावना को प्रस्तुत करती हुयी मेरे सामने लेट गयी । जब अचानक मैं उसे छोङकर उठ खङा हुआ । और बोला कि अभी मैं थकान महसूस कर रहा हूँ । कुछ देर आराम के बाद मैं तुम्हें संतुष्ट करता हूँ ।
कहकर मैं लगभग दस हजार फ़ीट ऊँचाई वाले उस वृक्ष पर चढ गया । और एक निगाह किनझर को देखते हुये मैंने विशाल अंतरिक्ष में नीचे की और छलांग लगा दी । अब मैं बिना किसी प्रयास के प्रथ्वी की तरफ़ जा रहा था । मेरा ये सफ़र लगभग तीन घन्टे में पूरा होना था । जब मैं बाबाजी के गुफ़ा द्वार पर होता ।
इस पूरे मिशन में मुझे लगभग तेरह घन्टे का समय लगा था । यानी कल शाम तीन बजे से जब आज मैं गुफ़ा के द्वार पर होऊँगा । उस समय सुबह के चार बज चुके होंगे ।
मेरा अनुमान लगभग सटीक ही बैठा । ठीक सवा चार पर मैं गुफ़ा के द्वार पर था । बाबाजी ने मेरी सराहना की । और शेष कार्य खत्म कर दिये । आंटी सोकर उठी थी । संजय अभी भी अर्धबेहोशी की हालत में था ।
बाबाजी ने एक विशेष भभूत आंटी और संजय के माथे पर लगा दी । जिसके प्रभाव से वे अपनी तीन महीने की इस जिन्दगी के ये खौफ़नाक लम्हें हमेशा के लिये भूल जाने वाले थे । यहाँ तक कि उन्हें कुछ ही समय बाद ये गुफ़ा और बाबाजी भी याद नहीं रहने वाले थे ।
तुम फ़िर अक्सर उधर से ही आने लगे । लेकिन तुम इतने शर्मीले थे कि सिर्फ़ मेरी नग्न देह को देखते रहते थे । जबकि तुम्हारे द्वारा सम्भोग किये बिना मैं तुम में प्रेतभाव नहीं डाल सकती थी..तब एक दिन हारकर मैंने योनि को सामने करते हुये तुम्हें आमन्त्रण दिया और पहली बार तुमने मेरे साथ सम्भोग किया..वो कितना सुख पहुँचाने वाला था.. मैं....संजय तुम .. अब ..... दिनों ... उसने ... गयी ... कि ... जब .... दिया ....देना..नदी..किनझर..।
शैरी नही जानती थी कि मैं उसके बोलने के साथ साथ ही संजय के दिमाग से वह लेखा मिटाता जा रहा
था । हालाँकि इस प्रयास में कामोत्तेजना से मेरा भी बुरा हाल हो चुका था । उसके नाजुक अंगो से खिलवाङ करते हुये मुझे उत्तेजना हो रही थी । पर सम्भोग करते ही मेरी असलियत खुल जाती । और संजय तो मुक्त हो जाता । उसकी जगह मैं प्रेतभाव से ग्रसित हो जाता । आखिरकार संयम से काम लेते हुये मैं वो पूरी फ़ीडिंग मिटाने में कामयाब हो गया ।
शैरी कामभावना को प्रस्तुत करती हुयी मेरे सामने लेट गयी । जब अचानक मैं उसे छोङकर उठ खङा हुआ । और बोला कि अभी मैं थकान महसूस कर रहा हूँ । कुछ देर आराम के बाद मैं तुम्हें संतुष्ट करता हूँ ।
कहकर मैं लगभग दस हजार फ़ीट ऊँचाई वाले उस वृक्ष पर चढ गया । और एक निगाह किनझर को देखते हुये मैंने विशाल अंतरिक्ष में नीचे की और छलांग लगा दी । अब मैं बिना किसी प्रयास के प्रथ्वी की तरफ़ जा रहा था । मेरा ये सफ़र लगभग तीन घन्टे में पूरा होना था । जब मैं बाबाजी के गुफ़ा द्वार पर होता ।
इस पूरे मिशन में मुझे लगभग तेरह घन्टे का समय लगा था । यानी कल शाम तीन बजे से जब आज मैं गुफ़ा के द्वार पर होऊँगा । उस समय सुबह के चार बज चुके होंगे ।
मेरा अनुमान लगभग सटीक ही बैठा । ठीक सवा चार पर मैं गुफ़ा के द्वार पर था । बाबाजी ने मेरी सराहना की । और शेष कार्य खत्म कर दिये । आंटी सोकर उठी थी । संजय अभी भी अर्धबेहोशी की हालत में था ।
बाबाजी ने एक विशेष भभूत आंटी और संजय के माथे पर लगा दी । जिसके प्रभाव से वे अपनी तीन महीने की इस जिन्दगी के ये खौफ़नाक लम्हें हमेशा के लिये भूल जाने वाले थे । यहाँ तक कि उन्हें कुछ ही समय बाद ये गुफ़ा और बाबाजी भी याद नहीं रहने वाले थे ।
मैंने
आंटी को साथ लेकर उन्हें और
संजय को उनके घर छोङ दिया ।
मैं काफ़ी थक चुका था अतः घर
जाकर गहरी नींद में सो गया
।
अगले दिन सुबह दस बजे मैं संजय की स्थिति पता करने उसके घर पहुँचा । तो दोनों माँ बेटे बेहद गर्मजोशी से मिले - हे प्रसून तुम इतने दिनों बाद मिले । आज छह महीने बाद तुम घर पर आये हो ।
आंटी ने भी कहा - प्रसून तुम तो हमें भूल ही जाते हो । कहाँ व्यस्त रहते हो ?
उन्हे अब कुछ भी याद नहीं था । मैंने देखा संजय कल की तुलना में स्वस्थ और प्रसन्नचित्त लग रहा था । आंटी में भी वही खुशमिजाजी दिखायी दे रही थी । उनके साथ क्या घटित हो चुका था । इसका उन्हें लेशमात्र भी अन्दाजा न था । बाबाजी ने उनकी दुखद स्मृति को भुला दिया था । एक तरह से वो पन्ने ही उनकी जिन्दगी की किताब से फ़ट चुके थे ।
मैंने एक सिगरेट सुलगायी और हौले हौले कश लगाने लगा ।
अगले दिन सुबह दस बजे मैं संजय की स्थिति पता करने उसके घर पहुँचा । तो दोनों माँ बेटे बेहद गर्मजोशी से मिले - हे प्रसून तुम इतने दिनों बाद मिले । आज छह महीने बाद तुम घर पर आये हो ।
आंटी ने भी कहा - प्रसून तुम तो हमें भूल ही जाते हो । कहाँ व्यस्त रहते हो ?
उन्हे अब कुछ भी याद नहीं था । मैंने देखा संजय कल की तुलना में स्वस्थ और प्रसन्नचित्त लग रहा था । आंटी में भी वही खुशमिजाजी दिखायी दे रही थी । उनके साथ क्या घटित हो चुका था । इसका उन्हें लेशमात्र भी अन्दाजा न था । बाबाजी ने उनकी दुखद स्मृति को भुला दिया था । एक तरह से वो पन्ने ही उनकी जिन्दगी की किताब से फ़ट चुके थे ।
मैंने एक सिगरेट सुलगायी और हौले हौले कश लगाने लगा ।
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