भूत भगाने वाले बाबा


भूत भगाने वाले बाबा

  अन्तरजाल से संकलित


एक बार की बात है मैं जब १२ साल का था तब मुझे भूत प्रेतों से बहुत डर लगता था आप लोगो को पता है आज कल लोग भूत प्रेतों पर विश्वाश नहीं करते मगर मैं जरूर करता हूँ मैं मध्य प्रदेश के रथोल के पुरा का रहने वाला हूँ जैसा की आप लोग जानते हो की भूत का नाम सुनते ही लोगो के रोंगटे खड़े हो जाते चलो अब असली बात पर आते है एक बार की बात है मैं एक बार सो रहा था तब मेने एक डरवना सपना देखा और मैं डर के उठ खड़ा हो गया मेरी चीख निकल गयी और घर के सारे लोग जाग गए तब मुझे मेरी मम्मी ने पूछ क्या हो गया मेने कहा मैंने भूत को देखा मम्मी बोली कहाँ नहीं कोई भूत नहीं होते वो तो पुराने ज़माने मैं हुआ करते मैं अब भी डरा हुआ था तब मम्मी ने मुझे समझाया और मुझे अपनी गोद मैं सुला लिया तब मैं सो गया जब मैं सुबह जगा तब मैंने रात की बात अपनी मम्मी से पूछी तब मम्मी ने मुझे मेरे दादा जी के साथ हुई एक घटना के बारे मैं बताया की तेरे दादी ने मुझे बताया था की एक बार तेरे दादाजी दोस्तों एक बार और बता दूं की पहले रास्ते ऐसे ही कच्चे होते थे और लोगो को पैदल ही सफ़र करना पड़ता था एक बार मेरे दादा जी को उनकी बहन के ससुराल जाना पड़ा उन्हें खबर मिली की उनकी बहन के ससुर चल बसे हैं इसलिए उन्हें रात मैं ही निकलना पडा और वो सुबह के २ बजे निकल पड़े गांव से तीन चार मील दूर एक पीपल का पेड़ था कुछ लोग बताते रहते की उस पेड़ पर भूत रहता है दादाजी ने सोचा की जो होगा देखा जायेगा जाना उसी रास्ते से था वो जब उस पीपल के पेड़ के पास पहुंचे तो देखते हैं की पीपल का पेड़ बहुत जोर जोर से हिल रहा है साथ मैं तरह तरह की आवाजे आ रही थी साथ ही पास मैं शियार के रोने की आवाजे आ रही थी दादा जी पहले तो एक दम रुक गए देखते क्या है कि एक बड़ा सा भूत उनके सामने खड़ा था उसके बड़े बड़े दांत यह भयानक चेहरा दादा जी पहले तो थोडा डरे फिर उन्होंने पुछा कि कौन है तू भूत ने भी यही पुछा कि तू कौन है दादाजी ने कहा कि पहले मेने पुछा है कि तू कौन है तब भूत ने कहा कि मैं भूत हूँ तब दादा जी ने कहा भाई तुम भूत तो मैं क्या करूँ मेरे सामने से हट जा मुझे जाने दे भूत बोला क्योँ जाने दूं पहले मुझ से लड़ दादा जी बोले तेरे को लड़ना है तो अभी मुझे जाने दे मुझे दुसरे गांव मैं जाना है उधर से लौटूंगा तब लड़ना भूत ने कहा देख तेरे को आज छोड़ रहा हूँ मगर आगे से सोच समझ के रात को निकला करो भूत कि इस तरह कि बातों से पता चला कि वो उसे जाने क्योँ दे रहा हे क्यों कि चार बज गए थे और दोस्तों आपको पता है कि चार बजे से ब्रह्म मुहूर्त सुरु हो जाता हे और गांव के लोगो का मानना है कि ब्रह्म मुहूर्त मैं गाँव के भूमियाँ बाबा का पहरा होता है और वो गांव का पहरा देते है उस पीपल से थोड़ी दूर पर ही एक गांव है रानपुर दोस्तों पहन के बाबा भूमियाँ बहुत ही अच्छे है एक बार प्रेम से बोलिए रानपुर वाले भूमियाँ वाले बाबा कि जय उस वक़्त उसी भूमियाँ बाबा का रास्ते से जाना था और उनके घंटे कि आवाज भी सुने दे रही थी उस आवाज को सुन कर भूत समझ गया कि आज इसे छोड़ देता हूँ नहीं तो मेरी खेर नहीं उसी वक़्त दादा जी के ध्यान में आया कि यहाँ तो पास गांव के गाँव के भूमियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं तभी उन्होंने बोला जय भूमिया वाले बाबा कि जय उसी वक़्त वहां भूमिया बाबा नीली घोड़ी पर बैठ के आ पहुंचे और उन्हें पास देखते ही भूत भागा खेतों मैं फिर वो दिखाई नहीं दिया बस खेतों मैं चटर पटर कि आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी उस वक़्त दादाजी ने देखा कि ऊपर से नीचे तक सफ़ेद कपडे पहने हुआ और घोड़ी पर बैठे हुए भूमियाँ बाबा को प्रणाम किया और बोला है बाबा अगर आज आप नहीं होते तो जाने क्या होता बाबा ने कहा तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो तब बाबा ने बताया कि मैं पास के गांव मैं रहता हूँ मेरी बहन के ससुर चल बसे हैं इसलिए मुझे रात मैं ही निकलना पड़ा तब भूमियाँ बाबा ने उन्हें कहा चल मैं तुझे रास्ते कि नदी पार करवाके आता हूँ तब भूमियाँ बाबा पीछे पीछे और मेरे बाबा आगे आगे चल दिए जब वो नदी के पास पहुंचे तो क्या देखते हैं हैं कि नदी के पास चार पांच लोगो कि आवाज सुनाई दे रही है और वो बात कर रहे थे कि कोई आ रहा है उनमे से एक ने कहा चलो अपने दो साथी और बन जायेंगे आज देखते क्या है कि एक एक करके वो सारे नदी मैं धमाक धमाक कूद गए दादाजी फिर समझ गए के सारे भी भूत थे भाई पानी मैं रहने वाले भूतों को बुढुआ भूत कहते है जो लोग डूब कर मर जाते है उन्हें बुढुआ भूत बोलते है ऐसे भूत तुम्हे बस पानी मैं डुबो कर मार सकते हैं वो सब भूमियाँ बाबा के डर के मारे भाग गए थे तब बाबा ने कहा कि इस टाइम नदी बहुत चढ़ी हुई है तुम ऐसा करो कि अपनी आखें बंद करो दादाजी ने जैसे ही आँखें बंद करी तो क्या देखते हैं कि वो नदी के उस पार खड़े हुए है और न हीं उनके पैर गीले हैं तब भूमियाँ बाबा ने कहा कि तुम अब जाओ मेरे जाने का टाइम हो गया है तब बाबा ने जैसे उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और वो अंतर्ध्यान हो गए प्रेम से बोलिए रानपुर वाले भूमिया बाबा कि जय तब मेरे बाबा गांव पहुंचे तब वहां सब लोग जाग रहे थे वहां पर वो मल्हा भी बैठा था जो नाव से नदी पार करवाता था तब उसने देखा कि मेरे दादा जी के न तो पैर गीले है न कपडे और इतनी जोर से चल रही नदी कैसे पार की तब उसने पुछा भाई तुम इतनी दूर से रात मैं तो आ गए पर मेने तो अभी नाव भी नहीं डाली तुम ने नदी कैसे पार की तब दादाजी ने सब हाल कह सुनाया तब वहां के लोगो मैं भी वहां के भूमियाँ वाले बाबा प्रति इतना लगाव हो गया की उनके नाम लिए बिना कोई कुछ काम नहीं करता प्रेम से बोलियों भक्तो रानपुर वाले भूमियाँ वाले बाबा की जय दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी पढ़ के जरूर बताना ?

बड़की बारीवाला भूत (सत्य कथा)------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- हमारे गाँव से लगभग आधा किलोमीटर पर एक बहुत बड़ा बगीचा है जिसको हमारे गाँववाले बड़की बारी नाम से पुकारते हैं। यह लगभग बारह-पंद्रह एकड़ में फैला हुआ है। इस बगीचे में आम और महुआ के पेड़ों की अधिकता है। बहुत सारे पेड़ों के कट या गिर जाने के कारण आज यह बड़की बारी अपना पहलेवाला अस्तित्व खो चुकी है पर आज भी कमजोर दिलवाले व्यक्ति दोपहर या दिन डूबने के बाद इस बड़की बारी की ओर जाने की बात तो दूर इस का नाम उनके जेहन में आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। आखिर क्यों? उस बड़की बारी में ऐसा क्या है ? जी हाँ, तो आज से तीस-बत्तीस साल पहले यह बड़की बारी बहुत ही घनी और भयावह हुआ करती थी। दोपहर के समय भी इस बड़की बारी में अंधेरा और भूतों का खौफ छाया रहता था। लोग आम तोड़ने या महुआ बीनने के लिए दल बाँधकर ही इस बड़की बारी में जाया करते थे। हाँ इक्के-दुक्के हिम्मती लोग जिन्हे हनुमानजी पर पूरा भरोसा हुआ करता था वे कभी-कभी अकेले भी जाते थे। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि रात को भूत-प्रेतों को यहाँ चिक्का-कबड्डी खेलते हुए देखा जा सकता था। अगर कोई व्यक्ति भूला-भटककर इस बारी के आस-पास भी पहुँच गया तो ये भूत उसे भी पकड़कर अपने साथ खेलने के लिए मजबूर करते थे और ना-नुकुर करने पर जमकर धुनाई भी कर देते थे। और उस व्यक्ति को तब छोड़ते थे जब वह कबूल करता था कि वह भाँग-गाँजा आदि उन लोगों को भेंट करेगा। तो आइए उस बगीचे की एक सच्ची घटना सुनाकर अपने रोंगटे खड़े कर लेता हूँ। उस बगीचे में मेरे भी बहुत सारे पेड़ हुआ करते थे। एकबार हमारे दादाजी ने आम के मौसम में आमों की रखवारी का जिम्मा गाँव के ही एक व्यक्ति को दे दी थी। लेकिन कहीं से दादाजी को पता चला कि वह रखवार ही रात को एक-दो लोगों के साथ मिलकर आम तोड़ लेता है। एक दिन हमारे दादाजी ने धुक्का (छिपकर सही और गलत का पता लगाना) लगने की सोची। रात को खा-पीकर एक लऊर (लाठी) और बैटरी (टार्च) लेकर हमारे दादाजी उस भयानक और भूतों के साम्राज्यवाले बारी में पहुँचे। उनको कोन्हवा (कोनेवाला) पेड़ के नीचे एक व्यक्ति दिखाई दिया। दादाजी को लगा कि यही वह व्यक्ति है जो आम तोड़ लेता है। दादाजी ने आव देखा न ताव; और उस व्यक्ति को पकड़ने के लिए लगे दौड़ने। वह व्यक्ति लगा भागने। दादाजी उसे दौड़ा रहे थे और चिल्ला रहे थे कि आज तुमको पकड़कर ही रहुँगा। भाग; देखता हूँ कि कितना भागता है। अचानक वह व्यक्ति उस बारी में ही स्थित एक बर के पेड़ के पास पहुँचकर भयंकर और विकराल रूप में आ गया। उसके अगल-बगल में आग उठने लगी। अब तो हमारे दादाजी को ठकुआ मार गया (काठ हो गए और बुद्धि ने काम करना बंद कर दिया) । उनका शरीर काँपने लगा, रोएँ खड़े हो गए और वे एकदम अवाक हो गए। अब उनकी हिम्मत जवाब देते जा रही थी और उनके पैर ना आगे जा रहे थे ना पीछे। लगभग दो-तीन मिनट तक बेसुध खड़ा रहने के बाद थोड़ी-सी हिम्मत करके हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए वे धीरे-धीरे पीछे हटने लगे। जब वे घर पहुँचे तो उनके शरीर से आग निकल रही थी। वे बहुत ही सहमे हुए थे। तीन-चार दिन बिस्तर पर पड़े रहे तब जाकर उनको आराम हुआ। उस साल हमारे दादाजी ने फिर अकेले उस बड़की बारी की ओर न जाने की कसम खा ली। -


credit- http://wwwbhootajay.blogspot.com/2011/06/bhoot-bhagane-wale-baba_27.html

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