बेटा
"बेटा..... भाभी.... भाभी....बाइक खडी करते हुए मोहन दरवाजे पर खडे होकर बोला... आई भैया....... सुमित्रा दरवाजे की ओर बढते हुए बोली...आ गए आप मोहन भैया ....आप मुंह हाथ धो लीजिए मे खाना लगाती हूं ...... तकरीबन दो ढाई बजे प्रतिदिन की तरह दोपहर में खाना खाने फैक्ट्री से मोहन आया था .... मां बाबूजी ....कहा है भाभी.... वो बुआजी आई थी परिवार सहित ...बस अभी थोड़ी देर पहले ही गई है मां बाबूजी अपने कमरे में आराम करने गए है आप बैठिए मे खाना लगाती हूं कहकर सुमित्रा रसोईघर में चली गई .... रसोई में मोहन की थाली सजाते सुमित्रा ने जैसे ही कडाही से प्लेट हटाई बमुश्किल उसमें एक कटोरी कटहल की सब्जी बची थी ..... कितना पसंद है मोहन भैया को कटहल ....बडे चाव से खाते हैं कल कितने अरमानों के साथ लाए थे ...भाभी आपके हाथों से बना कटहल ....वाह....अलग ही स्वादिष्ट बनाती हो आप .... दोपहर शाम दोनों वक्त खुशी से खा लेते है मगर ....बुआजी परिवार सहित आई थी अतिथि भगवान रूप में आते हैं उन्हें भी कटहल बेहद स्वाद लगा और ....अब केवल कडाही मे एक कटोरी मात्र बचा है ...खैर मां बाबूजी सभी ने खा लिया मे और मोहन भैया ही खाना खा...